Saturday, August 4, 2018

जब दर्द नही था सीने में तब ख़ाक मजा था जीने में -------

जब दर्द नही था सीने में तब ख़ाक मजा था जीने में --------
---इन गीतों को सुर देने वाले किशोर दा का ----
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सपनो के शहर ,हम बनायेगे घर पल भर में ये बनाके गिरा .............चल सपनो के शहर में तुझे ले जाता हूँ , तेरी राहो में मैं सितारे बिखराता हूँ ....जैसे गीतों से इस भौतिकता वादी दुनिया में चन्द सकूं देते यह गीत मनमौजी , अंदाज मस्ताना सूर के बेताज बादशाह किशोर कुमार अपने फन में एक माहिर इन्सान थे वो गीतकार ,कलाकार , निर्देशक , संगीतकार तो थे ही वो एक ऐसे प्यारे और हर दिल अजीज इन्सान थे जिनमे रूमानियत थी उसके साथ एक प्यार और मासूम से दिल के मालिक थे किशोर दा उनकी आवाज ने संगीत की सारी सीमाओं को तोड़ दिया था उनके गाये गीतों के अल्फाजो से दर्शन और सुर को जोड़ा की उन्होंने पूरी दुनिया में अपने संगीत से हर दिल में बस गये | किशोर दा चार अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा में एक कुलीन ब्राम्हण बंगाली परिवार में पैदा हुए थे किशोर अपने माता -- पिता के सबसे छोटे संतान थे उनके पिता खंडवा में नामी गिरामी बैरिस्टर थे ||किशोर के बड़े भाई अशोक कुमार की तरह उन्हें अभिनय रास नही आया किशोर का मन ज्यादा सुर साधना में रहता | उनके गायन क्षेत्र में आने की एक दिलचस्प घटना है | अशोक कुमार ने एक बार कहा था की किशोर जब दस साल के थे तब उनकी आवाज कर्कश थी लेकिन उन्हें गायन से जबर्दस्त प्यार था | एक दिन जब उनके माँ रसोई में सब्जी काट रही थी तो किशोर दौड़ते हुए रसोई में आये और उनका पैर कट गया | पैर में इतना दर्द हुया की किशोर वेकल हो उठे और एक महीने तक हर दिन घंटो रोते रहे थे | इतना ज्यादा रोने से उनकी आवाज साफ़ हो गयी और किशोर जो की प्रशिक्षित गायक नही थे पर अब वो मधुर स्वर में आये |तो फिर कभी नही थमे और वो सुर इस दुनिया का सबसे बेहतरीन सुर बना |
ब्रिटिश गायक और गीतकार डेविड कर्टनी ने किशोर कुमार पर अपनी आनलाइन बायोग्राफी '' बायोग्राफी आफ किशोर कुमार '' में लिखा है की जहा बालीवुड सिनेमा में गायकों को शीर्ष पर पहुचने और वहा अपनी जगह बनाये रखने में संघर्ष करना पड़ता था वही किशोर कुमार को आसानी से यह प्रवेश मिल गया और वह संगीत की अलग -- अलग धारा ( शैलियों ) में महारत हासिल कर संगीत को एक नया आयाम दिया बल्कि वो उस बुलंदी को अपने जीवन के अन्त तक कायम भी रखा | कर्टनी के अनुसार गायक के रूप में किशोर कुमार जैसे कोहिनूर हीरे को एक संगतराश सचिन देव बर्मन ने तराश कर एक नया किशोर बना दिया | किशोर पहले के एल शगल की तरह गाते थे , बर्मन दा ने उनसे अपनी खुद की शैली का विकास करने को प्रेरित किया | इसके बाद किशोर दा ने अपनी आवाज का जो झंडा गाड़ना शुरू किया वो उनके जीवन के अन्त तक बरकरार रहा |
किशोर दा ने उस दौर के लहर संगीतकार के साथ काम किया और अनगिनत हिट गाने गाये | 70 के दशक में किशोर दा को पहली बार सुपरस्टार राजेश खन्ना के लिए गाये गीत फिल्म '' अराधना '' के इस गीत '' रूप तेरा मस्ताना '' से मिली | इस गाये गीत से किशोर की आवाज पूरे देश में छा गयी और किशोर को पहली बार फिल्म फेयर अवार्ड मिला
किशोर दा मस्त मौला तबियत के बेहद लापरवाह और फक्कड इन्सान थे | उन्हें इस दुनिया का तीन पांच का आकडा समझ में नही आता था |इसीलिए कई बार वह न चाहते हुए भी कई विवादों से जुड़े रहे| व्यक्तिगत जीवन में कई निर्माता -- निर्देशकों ने उन्हें सनकी तक कहा | कुछ पत्रकारों और लेखको के अनुसार किशोर ने वार्डन रोड स्थित अपने बंगले के बाहर '' किशोर से सावधान '' का बोर्ड टांग रखा था | किशोर जितने सनकी थे उतने ही उदार हृदय के भी थे उनके मित्र अरुम मुखर्जी की मौत के बाद किशोर नियमित रूप से भागाल्प्र में उनके परिवार को पैसे भेजते थे | निर्माता विपिन गुप्ता की तंगी के दिनों में किशोर कुमार ने ही उनकी मदद की | आपातकाल के दौरान संजय गांधी ने उनसे काब्ग्रेस की एक रैली में गाने के लिए कहा , जिसे उन्होंने इनकार कर दिया | इससे गुस्सा होकर कांग्रेस सरकार ने आकाशवाणी और दूरदर्शन पर उनके गाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया | अमिताभ और मिथुन चक्रवर्ती के साथ व्यक्तिगत समस्याओं के कारण किशोर ने कुछ समय तक उनके लिए अपनी आवाज नही दी | किशोर दा ने जब अपने गीत के माध्यम से एक दर्शन दिया '' जिन्दगी का सफर है ये कैसा सफर , कोई समझा नही कोई जाना नही या ओ माझी रे अपना किनारा नदिया की धारा है ' या अपने साथी के लिए बोला ओ साथी रे तेरे बिना क्या जीना ज, ओ मेरे दिल के चैन चैन आये दिल को दुआ कीजिये ,चिंगारी कोई भडके सावन उसे नुझाये सावन जो आग लगाए उसे कौन बुझाए ,कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम है कहना , छोडो बेकार की बातो में कही बीत ना जाए रैना जैसे सुपरहिट गीत देने वाले किशोर कुमार ने रिकार्ड आठ बार सर्वश्रेष्ठ गायक का फिल्म फेयर पुरूस्कार जीता | किशोर ने अपने जीवन में लोगो को बहुत प्यार दिया मधुबाला का जब दिल टुटा तो किशोर ने ही उनको संभाला मधुबाला की मृत्यु के बाद लीना से शादी की | 13 अक्तूबर 1987 को किशोर की मृत्यु हुई | किशोर आज हमारे बीच नही है लेकिन उनकी आवाज सदा हमारे दिल में गुजती है , किशोर सदा ही किशोर ही रहेंगे .किशोर की तरह .....
-सुनील दत्ता ------------- स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-08-2018) को "वन्दना स्वीकार कर लो शारदे माता हमारी" (चर्चा अंक-3054) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. आभार राधा जी आपने मेरे आलेख को चर्चा मंच पर स्थान दिया

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