संगत ------------
हकीम लुकमान अक्सर अपने बेटे को संगत के बारे में बताते रहते थे , लेकिन वह नादाँन उनकी बातो को समझता नही था | एक दिन हकीम लुकमान ने अपने बेटे को पास बुलाया और कहा -- बेटा , आज मैं तुम्हे समझाउंगा कि अच्छी या बुरी संगत हमारे व्यक्तित्व पर किस तरह असर डाल सकती है |
अच्छा यह बताओ कि सामने जो धूपदान रखा है , उसमे क्या है ? बेटा बोला - अब्बा , हुजुर उसमे तो चन्दन का चूरा है |हकीम लुकमान बोले - तुमने बिलकुल ठीक कहा | अब ऐसा करो कि एक मुठ्ठी चूरा ले आओ | यह सुनकर बेटा धूपदान में से एक मुठ्ठी चन्दन का चूरा ले आया | इसके बाद हकीम लुकमान ने सामने चूल्हे में पड़े बुझे हुए कोयले की ओर इशारा करते हुए बेटे से कहा -- ' अब दूसरे हाथ की मुठ्ठी में थोडा कोयला भी ले आओ | बेटा कोयला भी लेकर आ गया | तब हकीम लुकमान ने अपने बेटे से कहा - अब तुम ऐसा करो कि इन दोनों चीजो को वापस इनकी जगह रख आओ | बेटे ने वैसा ही किया और आ कर पुन: अपने पिता के पास खड़ा हो गया | तब हकीम लुकमान ने उससे पूछा - ' क्या तुम्हारे हाथ में अब भी कुछ है ? बेटा बोला - नही अब्बा , मेरे तो दोनों हाथ खाली है | हकीम लुकमान ने कहा -- नही बेटा , ऐसा नही है | तुम अपने हाथो को गौर से देखो , तुम्हे इनमे पहले के मुकाबले कुछ फर्क नजर आयेगा | बेटे ने अनुभव किया कि जिस हाथ में वह चन्दन का चुरा लेकर आया था , उससे अब भी चन्दन की महक आ रही थी , जबकि जिस हाथ से कोयला रखा , उसमे कालिख लगी है | इसके बाद हकीम लुकमान ने कहा - बेटा , चन्दन का चूरा अब भी तुम्हारे हाथ को खुशबु दे रहा है , जबकि कोयले का टुकडा तुमने जिस हथेली में लिया , वह काली हो गयी और उसे फेंक देने के बाद भी तुम्हारी हथेली काली है | यही है अच्छी और बुरी संगत का असर | दुनिया में कुछ लोग चन्दन की तरह होते है , जिनके साथ जब तक रहो , तब तक हमारा जीवन महकता रहता है और उनका साथ छुट जाने पर भी वह महक हमारे जीवन से जुडी रहती है | वही कुछ लोग ऐसे भी होते है . जिनका साथ रहने से और साथ छूटने पर भी जीवन कोयले की तरह कलुषित होता है |
हकीम लुकमान अक्सर अपने बेटे को संगत के बारे में बताते रहते थे , लेकिन वह नादाँन उनकी बातो को समझता नही था | एक दिन हकीम लुकमान ने अपने बेटे को पास बुलाया और कहा -- बेटा , आज मैं तुम्हे समझाउंगा कि अच्छी या बुरी संगत हमारे व्यक्तित्व पर किस तरह असर डाल सकती है |
अच्छा यह बताओ कि सामने जो धूपदान रखा है , उसमे क्या है ? बेटा बोला - अब्बा , हुजुर उसमे तो चन्दन का चूरा है |हकीम लुकमान बोले - तुमने बिलकुल ठीक कहा | अब ऐसा करो कि एक मुठ्ठी चूरा ले आओ | यह सुनकर बेटा धूपदान में से एक मुठ्ठी चन्दन का चूरा ले आया | इसके बाद हकीम लुकमान ने सामने चूल्हे में पड़े बुझे हुए कोयले की ओर इशारा करते हुए बेटे से कहा -- ' अब दूसरे हाथ की मुठ्ठी में थोडा कोयला भी ले आओ | बेटा कोयला भी लेकर आ गया | तब हकीम लुकमान ने अपने बेटे से कहा - अब तुम ऐसा करो कि इन दोनों चीजो को वापस इनकी जगह रख आओ | बेटे ने वैसा ही किया और आ कर पुन: अपने पिता के पास खड़ा हो गया | तब हकीम लुकमान ने उससे पूछा - ' क्या तुम्हारे हाथ में अब भी कुछ है ? बेटा बोला - नही अब्बा , मेरे तो दोनों हाथ खाली है | हकीम लुकमान ने कहा -- नही बेटा , ऐसा नही है | तुम अपने हाथो को गौर से देखो , तुम्हे इनमे पहले के मुकाबले कुछ फर्क नजर आयेगा | बेटे ने अनुभव किया कि जिस हाथ में वह चन्दन का चुरा लेकर आया था , उससे अब भी चन्दन की महक आ रही थी , जबकि जिस हाथ से कोयला रखा , उसमे कालिख लगी है | इसके बाद हकीम लुकमान ने कहा - बेटा , चन्दन का चूरा अब भी तुम्हारे हाथ को खुशबु दे रहा है , जबकि कोयले का टुकडा तुमने जिस हथेली में लिया , वह काली हो गयी और उसे फेंक देने के बाद भी तुम्हारी हथेली काली है | यही है अच्छी और बुरी संगत का असर | दुनिया में कुछ लोग चन्दन की तरह होते है , जिनके साथ जब तक रहो , तब तक हमारा जीवन महकता रहता है और उनका साथ छुट जाने पर भी वह महक हमारे जीवन से जुडी रहती है | वही कुछ लोग ऐसे भी होते है . जिनका साथ रहने से और साथ छूटने पर भी जीवन कोयले की तरह कलुषित होता है |
हकीम लुकमान अक्सर अपने बेटे को संगत के बारे में बताते रहते थे , लेकिन वह नादाँन उनकी बातो को समझता नही था | एक दिन हकीम लुकमान ने अपने बेटे को पास बुलाया और कहा -- बेटा , आज मैं तुम्हे समझाउंगा कि अच्छी या बुरी संगत हमारे व्यक्तित्व पर किस तरह असर डाल सकती है |
अच्छा यह बताओ कि सामने जो धूपदान रखा है , उसमे क्या है ? बेटा बोला - अब्बा , हुजुर उसमे तो चन्दन का चूरा है |हकीम लुकमान बोले - तुमने बिलकुल ठीक कहा | अब ऐसा करो कि एक मुठ्ठी चूरा ले आओ | यह सुनकर बेटा धूपदान में से एक मुठ्ठी चन्दन का चूरा ले आया | इसके बाद हकीम लुकमान ने सामने चूल्हे में पड़े बुझे हुए कोयले की ओर इशारा करते हुए बेटे से कहा -- ' अब दूसरे हाथ की मुठ्ठी में थोडा कोयला भी ले आओ | बेटा कोयला भी लेकर आ गया | तब हकीम लुकमान ने अपने बेटे से कहा - अब तुम ऐसा करो कि इन दोनों चीजो को वापस इनकी जगह रख आओ | बेटे ने वैसा ही किया और आ कर पुन: अपने पिता के पास खड़ा हो गया | तब हकीम लुकमान ने उससे पूछा - ' क्या तुम्हारे हाथ में अब भी कुछ है ? बेटा बोला - नही अब्बा , मेरे तो दोनों हाथ खाली है | हकीम लुकमान ने कहा -- नही बेटा , ऐसा नही है | तुम अपने हाथो को गौर से देखो , तुम्हे इनमे पहले के मुकाबले कुछ फर्क नजर आयेगा | बेटे ने अनुभव किया कि जिस हाथ में वह चन्दन का चुरा लेकर आया था , उससे अब भी चन्दन की महक आ रही थी , जबकि जिस हाथ से कोयला रखा , उसमे कालिख लगी है | इसके बाद हकीम लुकमान ने कहा - बेटा , चन्दन का चूरा अब भी तुम्हारे हाथ को खुशबु दे रहा है , जबकि कोयले का टुकडा तुमने जिस हथेली में लिया , वह काली हो गयी और उसे फेंक देने के बाद भी तुम्हारी हथेली काली है | यही है अच्छी और बुरी संगत का असर | दुनिया में कुछ लोग चन्दन की तरह होते है , जिनके साथ जब तक रहो , तब तक हमारा जीवन महकता रहता है और उनका साथ छुट जाने पर भी वह महक हमारे जीवन से जुडी रहती है | वही कुछ लोग ऐसे भी होते है . जिनका साथ रहने से और साथ छूटने पर भी जीवन कोयले की तरह कलुषित होता है |
हकीम लुकमान अक्सर अपने बेटे को संगत के बारे में बताते रहते थे , लेकिन वह नादाँन उनकी बातो को समझता नही था | एक दिन हकीम लुकमान ने अपने बेटे को पास बुलाया और कहा -- बेटा , आज मैं तुम्हे समझाउंगा कि अच्छी या बुरी संगत हमारे व्यक्तित्व पर किस तरह असर डाल सकती है |
अच्छा यह बताओ कि सामने जो धूपदान रखा है , उसमे क्या है ? बेटा बोला - अब्बा , हुजुर उसमे तो चन्दन का चूरा है |हकीम लुकमान बोले - तुमने बिलकुल ठीक कहा | अब ऐसा करो कि एक मुठ्ठी चूरा ले आओ | यह सुनकर बेटा धूपदान में से एक मुठ्ठी चन्दन का चूरा ले आया | इसके बाद हकीम लुकमान ने सामने चूल्हे में पड़े बुझे हुए कोयले की ओर इशारा करते हुए बेटे से कहा -- ' अब दूसरे हाथ की मुठ्ठी में थोडा कोयला भी ले आओ | बेटा कोयला भी लेकर आ गया | तब हकीम लुकमान ने अपने बेटे से कहा - अब तुम ऐसा करो कि इन दोनों चीजो को वापस इनकी जगह रख आओ | बेटे ने वैसा ही किया और आ कर पुन: अपने पिता के पास खड़ा हो गया | तब हकीम लुकमान ने उससे पूछा - ' क्या तुम्हारे हाथ में अब भी कुछ है ? बेटा बोला - नही अब्बा , मेरे तो दोनों हाथ खाली है | हकीम लुकमान ने कहा -- नही बेटा , ऐसा नही है | तुम अपने हाथो को गौर से देखो , तुम्हे इनमे पहले के मुकाबले कुछ फर्क नजर आयेगा | बेटे ने अनुभव किया कि जिस हाथ में वह चन्दन का चुरा लेकर आया था , उससे अब भी चन्दन की महक आ रही थी , जबकि जिस हाथ से कोयला रखा , उसमे कालिख लगी है | इसके बाद हकीम लुकमान ने कहा - बेटा , चन्दन का चूरा अब भी तुम्हारे हाथ को खुशबु दे रहा है , जबकि कोयले का टुकडा तुमने जिस हथेली में लिया , वह काली हो गयी और उसे फेंक देने के बाद भी तुम्हारी हथेली काली है | यही है अच्छी और बुरी संगत का असर | दुनिया में कुछ लोग चन्दन की तरह होते है , जिनके साथ जब तक रहो , तब तक हमारा जीवन महकता रहता है और उनका साथ छुट जाने पर भी वह महक हमारे जीवन से जुडी रहती है | वही कुछ लोग ऐसे भी होते है . जिनका साथ रहने से और साथ छूटने पर भी जीवन कोयले की तरह कलुषित होता है |
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