धोबन का ज्ञान
नर्मदा के किनारे रामपुर गाँव में एक पंडित जी रहते थे वो रोज प्रात: नदी में स्नान के बाद ईश्वर को अर्घ्य देते हुए बुदबुदा रहे थे -- '' प्रीति बड़ी माता की और भाई का बल | ज्योति बड़ी किरणों की और गंगा का जल ' | यह सुनकर वह से गुजर रही गाँव की बूढी धोबन हँस पड़ी | पंडित जी को धोबन का यू हँसना अपना अप्माआं लगा | उन्होंने तुरंत जाकर गाँव के सरपच से इस बात की शिकायत करते हुए धोबन को दंड देने की मांग की | सरपच ने पंडित जी से कहा - यदि धोबन ने आपका अपमान किया है तो उसे दंड जरुर मिलेगा | अगले दिन पचायत बुलाई गयी | पचायत में सरपच ने धोबन से कहा -- ' पंडित जी ने शिकायत की है कि तुमने उनका अपमान किया है | तुम्हे इस बारे में क्या कहना है ? धोबन हाथ जोड़कर बोली ' हुजुर ; मेरी क्या औकात जो मैं पंडित जी का अपमान करूं | जरुर उन्हें गलतफहमी हुई है ' | तब पंडित जी बोले - ' कल सुबह तुम जो मुझ पर हंसी थी , क्या वह मेरा अपमान नही था ? धोबन ने नजरे झुकाए जबाब दिया = ' विप्रवर , मैं आप पर नही , आपकी बात सुनकर हंसी थी ' पंडित जी बोले मैंने तो यही कहा था कि प्रीती माता की और भाई का बल | ज्योति बड़ी किरणों की और गंगा का जल ' | इस पर सरपच ने कहा - पंडित जी का कहना सही तो है | इसमें हँसने की बात क्या है ? धोबन बोली - पंडित जी की बात सिर्फ सत्य प्रतीत होती है परन्तु है नही | उनके जैसा ज्ञानी यह बात करे इसीलिए मुझे हंसी आई | तब सरपच ने उससे पूछा तो तुम्हारी नजर में सही क्या है ? धोबन बोली - ' सच तो यह है कि ' प्रीति बड़ी त्रिया ( स्त्री ) की और बाहों का बल | ज्योति बड़ी नयनो की और मेघो का जल | ' कयोकी बात अगर पिता और पुत्र में फंसे तो मां पुत्र का साथ नही देगी , परन्तु पत्नी किसी भी हाल में साथ होगी | जब बैरी अकेले में घेर लेगा तो भाई का नही , अपनी बाहों का ही बल काम आयेगा | ज्योति नयनो की इसीलिए बड़ी है कि जब आँखे ही न हो तो सूरज की किरणों की रौशनी या अमावस का अँधेरा सब बराबर है | गंगा जी पवित्र भले ही है , लेकिन वे मेघो के समान न तो जन - जन की प्यास बुझा सकती है , न ही सभी खेतो में फसलो की सिचाई कर सकती है | यह सुनकर सरपच ने पंडित से कहा - अब आप क्या कहते है ? पंडित जी बोले - मुझे समझ में आ गया किसिर्फ किताबी ज्ञान पाना काफी नही | अभी बहुत कुछ सीखना है |
नर्मदा के किनारे रामपुर गाँव में एक पंडित जी रहते थे वो रोज प्रात: नदी में स्नान के बाद ईश्वर को अर्घ्य देते हुए बुदबुदा रहे थे -- '' प्रीति बड़ी माता की और भाई का बल | ज्योति बड़ी किरणों की और गंगा का जल ' | यह सुनकर वह से गुजर रही गाँव की बूढी धोबन हँस पड़ी | पंडित जी को धोबन का यू हँसना अपना अप्माआं लगा | उन्होंने तुरंत जाकर गाँव के सरपच से इस बात की शिकायत करते हुए धोबन को दंड देने की मांग की | सरपच ने पंडित जी से कहा - यदि धोबन ने आपका अपमान किया है तो उसे दंड जरुर मिलेगा | अगले दिन पचायत बुलाई गयी | पचायत में सरपच ने धोबन से कहा -- ' पंडित जी ने शिकायत की है कि तुमने उनका अपमान किया है | तुम्हे इस बारे में क्या कहना है ? धोबन हाथ जोड़कर बोली ' हुजुर ; मेरी क्या औकात जो मैं पंडित जी का अपमान करूं | जरुर उन्हें गलतफहमी हुई है ' | तब पंडित जी बोले - ' कल सुबह तुम जो मुझ पर हंसी थी , क्या वह मेरा अपमान नही था ? धोबन ने नजरे झुकाए जबाब दिया = ' विप्रवर , मैं आप पर नही , आपकी बात सुनकर हंसी थी ' पंडित जी बोले मैंने तो यही कहा था कि प्रीती माता की और भाई का बल | ज्योति बड़ी किरणों की और गंगा का जल ' | इस पर सरपच ने कहा - पंडित जी का कहना सही तो है | इसमें हँसने की बात क्या है ? धोबन बोली - पंडित जी की बात सिर्फ सत्य प्रतीत होती है परन्तु है नही | उनके जैसा ज्ञानी यह बात करे इसीलिए मुझे हंसी आई | तब सरपच ने उससे पूछा तो तुम्हारी नजर में सही क्या है ? धोबन बोली - ' सच तो यह है कि ' प्रीति बड़ी त्रिया ( स्त्री ) की और बाहों का बल | ज्योति बड़ी नयनो की और मेघो का जल | ' कयोकी बात अगर पिता और पुत्र में फंसे तो मां पुत्र का साथ नही देगी , परन्तु पत्नी किसी भी हाल में साथ होगी | जब बैरी अकेले में घेर लेगा तो भाई का नही , अपनी बाहों का ही बल काम आयेगा | ज्योति नयनो की इसीलिए बड़ी है कि जब आँखे ही न हो तो सूरज की किरणों की रौशनी या अमावस का अँधेरा सब बराबर है | गंगा जी पवित्र भले ही है , लेकिन वे मेघो के समान न तो जन - जन की प्यास बुझा सकती है , न ही सभी खेतो में फसलो की सिचाई कर सकती है | यह सुनकर सरपच ने पंडित से कहा - अब आप क्या कहते है ? पंडित जी बोले - मुझे समझ में आ गया किसिर्फ किताबी ज्ञान पाना काफी नही | अभी बहुत कुछ सीखना है |
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