बड़ा कौन ?
अमेरिका या विश्व व्यापार सगठन ?
अम्रीका की पाली - पोसी बिल्ली ( डब्लू टी ओ ) पर गुर्राने की हिम्मत कैसे कर सकती है ?
अमेरिका या विश्व व्यापार सगठन ?
अम्रीका की पाली - पोसी बिल्ली ( डब्लू टी ओ ) पर गुर्राने की हिम्मत कैसे कर सकती है ?
अमेरिका ने चन्द दिन पहले ही दूसरे देशो से अमरीका में होने वाले स्टील व अलमुनियम पर आयात शुल्क बढ़ाकर उस पर लगाम लगाने की घोषणा किया | फलस्वरूप इन देशो के स्टील व अलमुनियम के अमरीकी व्यापार बाजार में कमी आनी स्वाभाविक है | अमरीका ने यह घोषणा अपने देश के स्टील व अलमुनियम उद्योग को सरक्षंण देने के नाम पर किया है | उसकी घोषण से चीन , भारत जैसे देशो के स्टील , अलमुनियम उद्योग और उसका अंतर्राष्ट्रीय निर्यात भी जरुर प्रभावित होगा | इस देश के प्रचार माध्यमो में इस पर चिंता भी की जा रही है | अमरीका के सरक्षणवादी कदम पर इस देश द्वारा तथा कई अन्य देशो द्वारा विरोध जताया गया है | इसे विश्व व्यापार सगठन ( डब्लू टी ओ ) की बैठक में उठाने की बात भी की गयी है | लेकिन अमेरिका और वहाँ के शासन प्रशासन ने उसे अनसुना करते हुए डब्लू टी ओ को ठेंगा दिखा दिया | अमरीका प्रशासन ने डब्लू टी ओ पर यह कहकर हमला कर दिया कि डब्लू टी ओ एक अप्रभावी व्यवस्था है | अमरीका ने डब्लू टी ओ के नियमो , करारो की परवाह किये बिना भारत सहित कई देशो के विरुद्ध कारोबारी जंग की धमकी दी है | 19 मार्च को विश्व व्यापार सगठन के महानिदेशक श्री अजवेदों भारत द्वारा आयोजित दो दिवसीय लघु मंत्री मंडलीय सम्मेलन में भाग लेने दिल्ली आये हुए थे | भारतीय बड़े उद्योगों के सगठन (सी आई आई) द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने अमरीका द्वारा डब्लू टी ओ की अवहेलना तथा आलोचना की चर्चा पर कहा कि अमरीका डब्लू टी ओ का समर्थन करता है | उन्होंने कहा कि सगठन की कार्य प्रणाली को लेकर अमरीका की कुछ चिंताए है | उन्होंने उसे रेखांकित करते हुए कहा कि'अमरीका का कहना है 1995 में डब्लू टी ओ के वजूद में आने के बाद दुनिया में तमाम अहम् बदलाव हुए है | उन्हें देखते हुए इस सगठन में कुछ उन्नयन व सुधार की जरूरत है
ध्यान देने लायक बात है कि डब्लू टी ओ में उन्नयन व सुधार की बात खुद डब्लू टी ओ के महानिदेशक व अन्य पदाधिकारियों ने तथा अन्य सदस्य देशो ने नही बल्कि अमरीका ने ही कहा है | अमरीका ने यह बात डब्लू टी ओ को निष्प्रभावी कहते हुए तथा उसके न्यायाधिशो की नियुक्तिमें व्यधान डालते कही है |
यह है अमरीका और सभी देशो से बराबर का बर्ताव का दावा करने वाले वैश्विक सगठन डब्लू टी ओ में अंतर | विश्व व्यापार सगठन अगर मिमियाता हुआ अमरीका की चिंता को स्वीकार कर रहा है तो अमरीका गुर्राने के अंदाज में उसे निष्प्रभावी बता रहा है | स्वाभाविक है कि इसमें दबना डब्लू टी ओ को ही है | उसे ही अमरीका सुझाव के अनुसार डब्लू टी ओ के न्यायाधिशो की नियुक्ति करना और फिर सगठन के तथा कथित उन्नयन का प्रस्ताव देना है | फिर उसे बहुसंख्यक देशो से स्वीकार करवाना है |
डब्लू टी ओ नाम की संस्था 1995 से पहले अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सगठन को सचालन के लिए बने एक ढीले - ढाले सगठन - गाट ( व्यापार एवं चुंगी पर आम समझौता ) थी उसी सगठन को 1995 से पहले विश्व व्यापार सगठन में बदल दिया गया था | इस सगठन के महानिदेशक के जरिये दिए गये डंकल प्रस्ताव पर सदस्य देशो की सहमती लेने का भी काम किया गया था | क्या यह काम मुख्यत: डब्लू टी ओ के पधाधिकारियो ने किया था ? नही , इस सगठन को आगे करके यह यह काम अमरीका के नेतृत्व में सभी विकसित साम्राज्यी देशो ने किया था | 1989 में सोवियत रूस के पतन के बाद अपने वैश्विक व्यापार एवं वैश्विक प्रभाव प्रभुत्व को बढाने के लिए किया था | फलस्वरूप अमरीका को डब्लू टी ओ पर गुर्राने और डब्लू टी ओ के मिमियाने पर कोई आश्चर्य नही होना चाहिए | आखिर अमरीका की पाली पोसी बिल्ली उसी पर गुर्राने की हिम्मत भला कैसे कर सकती है ?
ध्यान देने लायक बात है कि डब्लू टी ओ में उन्नयन व सुधार की बात खुद डब्लू टी ओ के महानिदेशक व अन्य पदाधिकारियों ने तथा अन्य सदस्य देशो ने नही बल्कि अमरीका ने ही कहा है | अमरीका ने यह बात डब्लू टी ओ को निष्प्रभावी कहते हुए तथा उसके न्यायाधिशो की नियुक्तिमें व्यधान डालते कही है |
यह है अमरीका और सभी देशो से बराबर का बर्ताव का दावा करने वाले वैश्विक सगठन डब्लू टी ओ में अंतर | विश्व व्यापार सगठन अगर मिमियाता हुआ अमरीका की चिंता को स्वीकार कर रहा है तो अमरीका गुर्राने के अंदाज में उसे निष्प्रभावी बता रहा है | स्वाभाविक है कि इसमें दबना डब्लू टी ओ को ही है | उसे ही अमरीका सुझाव के अनुसार डब्लू टी ओ के न्यायाधिशो की नियुक्ति करना और फिर सगठन के तथा कथित उन्नयन का प्रस्ताव देना है | फिर उसे बहुसंख्यक देशो से स्वीकार करवाना है |
डब्लू टी ओ नाम की संस्था 1995 से पहले अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सगठन को सचालन के लिए बने एक ढीले - ढाले सगठन - गाट ( व्यापार एवं चुंगी पर आम समझौता ) थी उसी सगठन को 1995 से पहले विश्व व्यापार सगठन में बदल दिया गया था | इस सगठन के महानिदेशक के जरिये दिए गये डंकल प्रस्ताव पर सदस्य देशो की सहमती लेने का भी काम किया गया था | क्या यह काम मुख्यत: डब्लू टी ओ के पधाधिकारियो ने किया था ? नही , इस सगठन को आगे करके यह यह काम अमरीका के नेतृत्व में सभी विकसित साम्राज्यी देशो ने किया था | 1989 में सोवियत रूस के पतन के बाद अपने वैश्विक व्यापार एवं वैश्विक प्रभाव प्रभुत्व को बढाने के लिए किया था | फलस्वरूप अमरीका को डब्लू टी ओ पर गुर्राने और डब्लू टी ओ के मिमियाने पर कोई आश्चर्य नही होना चाहिए | आखिर अमरीका की पाली पोसी बिल्ली उसी पर गुर्राने की हिम्मत भला कैसे कर सकती है ?
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