Saturday, April 28, 2018

दैनिक जागरण जो कर रहा है, वो प्रो-रेपिस्ट पत्रकारिता है --- सुशील मानव

दैनिक जागरण जो कर रहा है, वो प्रो-रेपिस्ट पत्रकारिता है


जम्मू के कठुआ रसाना में आठ वर्षीय बकरवाल समुदाय की बच्ची से हुए गैंगरेप को लेकर जिस तरह की असंवेदनशील झूठी और शर्मनाक रिपोर्टिंग हिंदी अख़बार दैनिक जागरण ने की है वे पत्रकारिता का बेहद ही अश्लील नमूना है। इसे प्रो-रेपिस्ट पत्रकारिता कहना ज्यादा मुनासिब होगा।
बता दें कि दिल्ली की फोरेंसिक लैब एफएसएल ने अपनी रिपोर्ट में बच्ची संग मंदिर में बलात्कार की पुष्टि की है। रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि मंदिर के अंदर जो खून के धब्बे मिले थे वो पीड़िता के ही हैं। मंदिर में और लड़की लाश के पास जो बालों का गुच्छा मिला था जाँच में वो एक आरोपी शुभम संगारा के होने की पुष्टि लैब ने किया है। पीड़िता के कपड़ों पर मिले खून के धब्बे उसके डीएनए प्रोफाइल से मैच करते हैं। साथ ही पीड़िता की वजाइना पर खून मिलने की पुष्टि लैब ने की हैं।
बावजूद इतने सारे वैज्ञानिक सबूतों, प्रमाणों, तथ्यों को झुठलाते हुए दैनिक जागरण ने उस मिथ्या बात को हाइलाइट करके फ्रंट पेज पर छापा जो लगातार भाजपा और संघ के लोग दुष्प्रचारित करते चले आ रहे हैं। दैनिक जागरण ने पहले 20 अप्रैल 2018 को चंड़ीगढ़, पटना, दिल्ली, लखनऊ, जम्मू जैसे मेट्रो शहरों के संस्करणों में फ्रंटपेज की हेडलाइन बनाते हुए मोटे मोटे अक्षरों में बच्ची से नहीं हुआ था दुष्कर्म जैसे जजमेंटल हेडलाइन के साथ खबर छापी। और फिर उसके अगले दिन 21 अप्रैल 2018 को फिर से वही आधारहीन मिथ्या खबर को उसी जजमेंटल हेडलाइन बच्ची से नहीं हुआ था दुष्कर्म के साथ इलाहाबाद, कानपुर वाराणसी समेत जैसे छोटे शहरों और ग्रामीण अंचलों के सभी संस्करणों में उसी बर्बरता और निर्लज्जता के साथ दोहराया। साफ जाहिर है दैनिक जागरण अखबार पत्रकारिता के बुनियादी बातों, उसूलों और मूल्यों को त्यागकर सत्ता के मुखपत्र की तरह कार्य करते हुए बलात्कार के पक्ष में मानस को उन्मादित करके जनदबाव बनाने का कार्य कर रहा है जो न सिर्फ अनैतिक अमानवीय व हिंसक है अपितु आपराधिक भी।
दैनिक जागरण हमेशा से ही मिथ्या रिपोर्टिंग करता आया है। लेकिन इधर फासीवादी शक्तियों के सत्तासीन होने के बाद से तो ये अखबार लगभग निरंकुश भाव से  रिपोर्टिंग के नाम मिथ्याचार,दुष्प्रचार और बलात्कार पर उतर आया है। हिंदी है हम जैसे फासीवादी टैगलाइन के साथ मैंथिली मगही, अंगिका और भोजपुरी जैसी समृद्ध भाषाओं वाले बिहार में बिहार संवादी के बहाने दैनिक जागरण भाषाई वर्चस्वाद स्थापित करने के फासीवादी एजेंडे पर काम कर रहा है। एक भाषा एक विचार फासीवादी राष्ट्रवाद के मूल विचारों में से एक है।

आज से दशकों पहले दैनिक जागरण के मालिक नरेन्द्र मोहन ने अखबार के प्रधान संपादक कथाकार कमलेश्वर और दिल्ली के वरिष्ठ सहयोगियों के साथ नोएडा स्थित कार्यालय में मीटिंग की। उस मीटिंग में नरेन्द्र मोहन ने स्पष्ट कहा था कि जिस तरह उर्दू अखबार मुसलमानों की पत्रकारिता करता है उसी तरह मेरा अखबार हिन्दू पत्रकारिता करेगा। अगर मेरी बातों से किसी को कोई असहमति है तो वे अखबार छोड़कर जा सकते हैं।
बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हिन्दू पत्रकारिता’ कर रहे दैनिक जागरण को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया’ ने मुसलमानों के खिलाफ तथ्यात्मक रूप से गलत व भड़काने वाली ख़बरें छापने का दोषी माना था। नरेन्द्र मोहन ने इसके जवाब में कुछ ऐसा कहा कि- प्रेस काउंसिल को जो करना हो करेहमारी भावना प्रकट करने पर कैसे रोक लगा सकता है। इसके बदले में बीजेपी ने नरेन्द्र मोहन को राज्यसभा भेजकर उपकृत किया। बीजेपी का यह कदम अप्रत्याशित नहीं था। बीजेपी को यह पता था कि सांप्रदायिक विचारधारा के चलते भविष्य में दैनिक जागरण उनके कितना काम आनेवाला है।

इसी बीच बिहार संवादी के नाम से पटना बिहार में दैनिक जागरण ने दो दिवसीय साहित्य के उत्सव का आयोजन किया। साहित्यकार अरुण कमल आलोक धन्वा, अरुण शीतांष कर्मेंदु शिशिर, ध्रुव गुप्त, तारानंद वियोगी, प्रेम कुमार मणि, संजय कुमार कुंदन कवयित्री निवेदिता शकील, सुजाता चौधरी व युवा कवि राकेश रंजन ने दैनिक जागरण की प्रो-रेपिस्ट पत्रकारिता के विरोध में  उसके इस कुकृत्य की कड़े शब्दों में भर्त्सना करते हुए बिहार संवादी” कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया।
वहीं दूसरी ओर दिल्ली में दैनिक जागरण के प्रो-रेपिस्ट पत्रकारिता से नाराज़ होकर प्रतिरोध स्वरूप उसके द्वारा दिल्ली में दैनिक जागरण के मुक्तांगन कार्यक्रम का भी साहित्यकारों ने बहिष्कार कर दिया है। मुक्तांगन का बहिष्कार करने वालों में वरिष्ठ कवयित्री सविता सिंह, विपिन चौधरी, कवयित्री सुजाता, दिल्ली जलेस के सचिव प्रेम तिवारी और मिहिर पांड्या शामिल थे। साहित्यकारों द्वारा दैनिक जागरण मुक्तांगन के बहिष्कार से तिलमिलाई मुक्तांगन की मालकिन ने कार्यक्रम के पोस्टर में उन पाँचों साहित्यकारों के नाम पर काली स्याही लगाकर क्रॉस कर दिया। सिर्फ इतना नहीं कार्यक्रम के पहले सत्र में वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, राकेश वैद और शरद दत्त जैसे भाड़े के लोगो को बुलाकर मुक्तांगन की मालकिन ने बहिष्कार करनेवाले साहित्यकारों पर हमले बुलवायेइन लोगो ने एक स्वर में कहा कि - "मंच छोड़कर जाने के बाद वे ही लोग बाद में सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास निकालते हैं। यह सोच निश्चित तौर पर पलायनवादी है।"  हिंदुत्ववादी पत्रकार राहुल देव ने साहित्य जगत को सहनशीलता का पाठ पढ़ाते हुए सीधे साहित्यकार की वैचारिकता पर ही सवाल खड़ा कर दिया। ये कहकर कि- "जागरूकता फैलाने की जगह विरोध करना अनुचित है। हम सिर्फ कहेंगेलेकिन सुनेंगे नहींयह कोई विचारशील व्यक्ति कैसे कर सकता है।" शरद दत्त ने मुक्तांगन का बहिष्कार करने वालों को गिरोहबंदी की संज्ञा देते हुए अपनी फासिस्ट सोच को ही उजागर किया। जब उसने कहा कि - "साहित्य का मंच छोड़कर भागना बुद्धिमता नहीं है। मंच का बहिष्कार गलत है।" फिर तीनों ने सामूहिक हमला करते कहा कि – संवाद का मंच छोड़कर भागना अपराध है। इस तरह साहित्यकारों के बहाने इन्होंने महात्मा गाँधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन से लेकर संसद में विपक्ष के वाकआउट तक को अपराध घोषित कर डाला! बहिष्कार जैसे लोकतांत्रिक प्रतिरोध को अपराध कहना फासीवादी सोच नहीं तो और क्या है।
लेखक संगठनों में से जन संस्कृति मंच ने साहित्यकारों से जागरण संवादी के बहिष्कार की अपील की। इलाहाबाद जलेस के सचिव संतोष चतुर्वेदी ने जलेस इलाहाबाद अनदह, व पहली बार साहित्यिक पत्रिका की ओर से साहित्यकारों से अपील की कि वो जागरण संवादी का हिस्सा न बनें। दिल्ली जलेस के सचिव व साहित्यकार प्रेम तिवारी ने दैनिक जागरण के बलात्कारी पत्रकारिता की घोर भर्त्सना करते हुए कहा,- मैंने मुक्तांगन के कार्यक्रम में जाना स्थगित कर दिया है। दैनिक जागरण की पत्रकारिता जनतांत्रिक और सेक्युलर मूल्यों और मर्यादाओं की हत्या करने वाली साबित हुई है। वरिष्ठ कवि अरुण कमल ने दैनिक जागरण कठुआ गैंगरेप मामले में दैनिक जागरण की उस खबर को सीधा सीधा फासिज्म को प्रमोट करने वाला बताते हुए दैनिक जागरण की इस अमानीय व बर्बर हरकत की भर्त्सना की और कहा कि अखबार द्वारा बलात्कारियों के पक्ष में इस हद तक की गलतबयानी करना उस बच्ची के साथ बलात्कार करने जैसा ही है। कवि मदन कश्यप ने कहा कि दैनिक जागरण हमेशा से ऐसा ही अखबार रहा है, सांप्रदायिक आधार पर खबरों व तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करने वाला। खबरों को तो छोड़िए लेखों को भी हद से ज्यादा इडिटिंग करता है ये, इसीलिये मैंने कभी कुछ नहीं लिखा इस अखबार के लिए। मदन कश्यप जी कहते हैं कि वो शुरू से ही दैनिक जागरण के कार्यक्रमों का बहिष्कार करते रहे हैं। उन्होंने सख्त लहजे में कहा कि मैं दैनिक जागरण और बिहार संवादी कार्यक्रम का बहिष्कार करता हूँ तब तक जब तक कि अखबार अपनी मिथ्या खबर का खंडन करके पाठकों से माफी नहीं माँगता। और साहित्यकारों से भी अपील करता हूँ कि वो जागरण संवादी का बहिष्कार करें।
आलोक धन्वा ने फोन पर बताया कि सुबह से पच्चीसों लड़कियों का फोन आ चुका है। वो सब बार बार गुजारिश कर रहीं हैं कि दादा प्लीज आप बलात्कार को प्रमोट करनेवाले बिहार संवादी का हिस्सा मत बनिए। वो आगे कहते हैं कि, यही नन्हीं लड़कियाँ ही तो मेरा बल हैं उनके अनुनय की अनदेखी करके भले मैं कैसे किसी इसके कार्यक्रम में शामिल हो सकता हूँ।
बतौर वक्ता शामिल किये गए लेखक ध्रुव गुप्त ने बिहार संवादी का बहिष्कार करते हुए कहा- 'जागरणने निष्पक्ष पत्रकारिता के मूल्यों की कीमत पर अपने ख़ास राजनीतिक एजेंडे के तहत देश में बलात्कार के पक्ष जो माहौल बनाने की कोशिश की हैउसकी जितनी भी भर्त्सना की जाय कम होगी। 'जागरणके इस अनैतिकअमानवीय और आपराधिक चरित्र के ख़िलाफ़ मैं आज और कल पटना के तारामंडल में आयोजित बिहारियों के तथाकथित साहित्य उत्सव 'बिहार संवादीका बहिष्कार करता हूं।
युवा कवि राकेश रंजन जी बिहार संवादी का बहिष्कार करते हुए कहते हैं-“ कठुआ में सामूहिक बलात्कार के बाद जिस बच्ची की निर्मम हत्या हुईउसे लेकर दैनिक जागरण की कल की रपट बेहद संवेदनहीनदायित्वहीन तथा अनैतिक है। यह रपट नहींकपट हैजिस परिवार का सब कुछ लुट चुका हैउसकी बेचारगी और तकलीफ के साथ किया जानेवाला मजाक है। दैनिक जागरण की जैसी प्रवृत्ति रही हैउसके आधार पर मुझे लगता है कि ऐसा जान-बूझकर किया गया है। मैं इसका विरोध करते हुए आज से आरंभ हो रहे 'बिहार संवादीनामक आयोजन में नहीं जा रहा।
साहित्यकार तारानंद वियोगी ने भी बिहार संवादी का बहिष्कार करते हुए कहा-एक लेखक के रूप में 'बिहार-संवादीमें शामिल होने की सहमति मैंने दी थी। वे मुझसे सीता पर बात करनेवाले थे। मैं भी उत्साह में था कि बोलूंगा। खासकरराम से परित्यक्त होने के बाद सीता की जो दशा थीउनका जो भयानक जीवनसंघर्ष थाउसपर रचे मिथकों के हवाले से कुछ बात करूंगा। मिथिला में प्रचलित सीता की लोकगाथा 'लवहरि कुसहरिको लेकरकि कैसे उस दुखियारी औरत ने जंगल में रहकरलकड़ी चुनकरकंद-फल बीनकर अपने दो बालकों का प्रतिपाल कियाउन्हें लायक बनाया। ध्यान दीजिएगामिथिला में लोकगाथाएं बहुत हैं पर वे या तो दलितों की हैं या वंचितों की। लेकिनसीता और उसके दो बच्चों की लोकगाथा है।
       लेकिनमैं क्या करूं! दुनिया जानती है कि सीता का एक नाम 'मैथिलीभी है।
       और यह भी कि कठुआ की बेटी आसिफा भी एक छोटी-मोटी सीता ही थी।

वरिष्ठ साहित्यकार कर्मेन्दु शिशिर जी बिना किसी लाग लपेट के कहा कि मेरा प्रसंग यह है कि बिना मुझसे बात किये ही उन लोगों ने नाम दे दिया था। कल शाम को पहली बार उनका फोन आया। वैसे भी मैं ऐसे आयोजनों में एकदम नहीं जाता। ऐसे में मेरे जाने का सवाल ही नहीं था। न जाने का निर्णय तो था ही। वह अखबार भी मैं नहीं लेता। कल फेसबुक पर यह प्रकरण देखा। अब यह कि पहले से न जाने के निर्णय को मैं इस विरोध से जोड़ दूँयह बात लगे हाथ क्रांतिकारी बन जाने जैसा होता। न जाना था न गया लेकिन विरोध प्रसंग में भी चुप रहा। झूठ मुझे पसंद नहीं।
कवयित्री निवेदिता ने बिहार संवादी का बहिष्कार करते हुए कहा- “17 जनवरी 2018 की कठुआ बलात्कार मामले  को लेकर जागरण की ख़बर से गहरे आक्रोश में हूँ।

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (30-04-2017) को "अस्तित्व हमारा" (चर्चा अंक-2956) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. Journalism aajkal gir gaya hai.

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