इनके सपनों को हर कोई रौदा है |
कोई भी किसान इस तथ्य से इन्कार नही करेगा कि खाद , बीज , बिजली , डीजल तथा कृषि के अन्य आधुनिक ससाधन की बढती महगाई के कारण खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है | हालाकि सरकारों एवं प्रचार माध्यमो ने यहाँ तक कि कृषि विशेषज्ञ एवं किसान समर्थक कहे जाने वाले बौद्धिक हिस्सों ने कृषि लागत घटाने की मांग को कभी उठने ही नही दिया | इसे चर्चा से बाहर रखकर बिना कुछ कहे ही यह साबित करने का प्रयास किया है कि कृषि लागत के सामानों का मूल्य दाम घटाना सम्भव नही है | कृषि लागत मूल्य में बढ़ोत्तरी को एक अपरिवर्तनीय प्रक्रिया मानकर उनके द्वारा कृषि उत्पादों के बेहतर मूल्य- भाव की मांग को ही प्रमुखता से पेश किया जाता रहा है | प्रचार माध्यमो में किसानो की आय बढाने उसे डेढ़ गुना या दो गुना करने आदि के प्रचारों के साथ किसानो की उपज के बेहतर समर्थन मूल्य की , कृषि उत्पादों की बेहतर बिक्री के लिए मंडी के विकास विस्तार आदि की मांग व चर्चा प्रमुखता से उठती रही है |
वास्तविकता यह है कि किसानो द्वारा बेहतर मूल्य भाव की मांग मुख्यत: इसलिए उठायी जाती है कि कृषि लागत खर्च में लगातार वृद्धि होती रहती है | अगर यह वृद्धि कम हो जाए और खाद बीज , डीजल , बिजली तथा कृषि के के मूल्य घटा दिए जाए तो कृषि उत्पादों के मूल्य को बढाने के लिए बारम्बार की जाने वाली मांग की जरूरत ही नही रहेगी | बस लागत और किसान के जीवन के अन्य आवश्यक खर्च के अनुसार कृषि उत्पादों के एक संतुलित मूल्य भाव के मांग की ही आवश्यकता रहेगी | फिर कृषि उत्पादों के मूल्य भाव को एक सीमा से अधिक बढाया भी नही जा सकता | क्योकी खाध्य प्रदार्थ के रूप में कृषि उत्पाद समस्त आबादी के लिए ग्रामीण एवं शहरी आबादी के लिए आवश्यक है | अत: कृषि उत्पादों के मूल्यों में अधिक वृद्धि और कृषि उत्पादों की बढती महगाई का विरोध गैर कृषक आबादी से उठना स्वाभाविक है , जैसा की आम तौर पर होता भी रहा है | फलस्वरूप कृषि उत्पादों के मूल्य में वृद्धि को एक सीमा तक नियंत्रित रखना भी आवश्यक है |
लेकिन कृषि लागत के बीज , खाद , डीजल ,एवं अन्य ससाधनो के मूल्य को अधिकाधिक घटाने से देश के जनसाधारण आबादी के किसी भी हिस्से को घाटा नही होना है | | वस्तुत: कृषि लागत मूल्य घटाने से इन औद्योगिक एवं तकनीकी मालो , मशीनों , उन्नत बीजो , खादों आदि के उत्पादन व व्यापार की मालिक धनाढ्य कम्पनियों को मिलते रहे उच्च मुनाफो , लाभों में कमी आ जायेगी | उन्हें भी घाटे में नही जाना है | पर इससे आम किसानो को घाटे की स्थितियों से निकलने तथा गैर कृषक हिस्सों को खाद्यानो का संतुलित मूल्यों पर उपलब्ध कराने का सटीक रास्ता जरुर निकल आयेगा | इसीलिए लागत घटाने के लिए धनाढ्य कम्पनियों के लाभों - मुनाफो का घटाया जाना आवश्यक एवं न्यायसंगत है | फिर महगाई कम किये जाने के लिए भी कृषिगत उत्पादों के मूल्यों को ही नही बल्कि औद्योगिक मालो - मशीनों के मूल्यों को भी नियंत्रित किया जाना आवश्यक एवं सर्वथा न्याय संगत है |
फिर महगाई कम किये जाने के लिए भी कृषिगत उत्पादों के मूल्यों को ही नही बल्कि औद्योगिक मालो - मशीनों के मूल्यों को भी नियंत्रित किया जाना आवश्यक है | इसीलिए कृषि उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले बीज खाद एवं अन्य ससाधनो को घटाए जाने की मांग आम किसानो द्वारा एवं गैर कृषक हिस्सों द्वारा भी उठाया जाना चाहिए | इस सम्बन्ध में किसानो को इस महत्वपूर्ण तथ्य पर भी ध्यान देना चाहिए कि कृषि उत्पादों के मूल्य निर्धारण एवं नियंत्रण के लिए कृषि लगत एवं मूल्य आयोग पहले से ही बना हुआ है और वह निरंतर सक्रिय भी रहता है | कृषि उत्पादों के लागत खर्च को जोड़कर वह कृषि उत्पादों के मूल्य को निर्धारित करने के साथ सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य बढाने की सलाह देता रहता है | लेकिन यह आयोग भी कृषि उत्पादों के मूल्य निर्धारण व नियंत्रण के लिए कृषि में प्रयुक्त औद्योगिक एवं तकनीकी मालो - मशीनों के मूल्य को नियंत्रित करने और घटाने की कोई सलाह नही देता है \ दिलचस्प बात यह है कि इस आयोग का नाम ही कृषि लागत एवं मूल्य आयोग है ?
फिर इससे भी ज्यादा दिलचस्प तथा ध्यान देने वाली बात यह है कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की तरह औद्योगिक लगत - मूल्य आयोग सम्भवत: बनाया ही नही गया है | अगर कोई ऐसा आयोग बना है तो उसके नाम काम का कभी कोई समाचार देखने को नही मिला | क्या औद्योगिक मालो - सामानों का मूल्य नियंत्रण आवश्यक नही है ? अवश्य है सही कहा जाए तो महगाई कम करने के लिए तथा कृषि लागत के सामानों को कम मूल्य पर मुहैया करने के लिए औद्योगिक मालो समानो तकनीको मशीनों के मूल्य नियंत्रण लगाया जाना आवश्यक है | ऐसा किया जाना आवश्यक है कि औद्योगिक सामानों की मालिक कम्पनिया इन उत्पादों और उनके अधिकाधिक मूल्य एवं बिक्री बाजार से करोड़ो अरबो के मुनाफो एवं पूंजियो की मालिक बनती जा रही है | जबकि उन मालो सामानों की बढती महगाई से जनसाधारण समाज के सभी या बहुसंख्यक हिस्से उसके आवश्यक उपभोग और उपयोग से वंचित हो रहे है | जनसाधारण के सभी हिस्सों को एक अधिकार प्राप्त एवं कारगर औद्योगिक लागत एवं मूल्य आयोग के गठन की और उसके द्वारा औद्योगिक ममालो सामानों के मूल्य नियंत्रण व निर्धारण की मांग उठाना आवश्यक है | खासकर समस्याग्रस्त एवं संकटग्रस्त किसानो को तो कृषि लागत के औद्योगिक एवं तकनिकी मालो सामानों ( खाद , बीज , दवा , डीजल , मशीन उपकरण आदि ) के निर्धारण व नियंत्रण की मांग के साथ ऐसे स्वायत्त आयोग की मांग उठाना आवश्यक है | दोनों मागो को किसान आन्दोलन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मांग बनाया जाना आवश्यक है | लेकिन इस मूल्य निर्धारण व नियंत्रण का वास्तविक समर्थन उन्हें किसी सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी नेताओं तथा उच्चस्तरीय प्रचार माध्यमि विद्वानों कृषि वैज्ञानिको एवं बहुचर्चित किसान हिमायतियो से नही मिल सकता | लेकिन क्यो ? क्योकि इससे कृषि लागत के औद्योगिक मालो सामानों की मालिक धनाढ्य कम्पनियों के ऊँचे लाभ मुनाफो में गिरावट का आना निश्चित है | इसलिए धनाढ्य कम्पनियों इसे स्वीकार नही करेंगी और न ही उनको शासन सत्ता के जरिये नीतिगत योजनाबद्ध रूप में बढ़ावा देने में लगी सत्ताधारी पार्टियों के उच्चस्तरीय राजनेता अधिकारी व् विद्वान् इसे स्वीकार कर सकते है | वे स्वंय भी इन्ही धनाढ्यो की धन पूंजी के बूते आय - व्यय सुख सुविधा का उपभोग करते है | अपनी सम्पत्तियों सुविधाओं को बढाते रहते है | इसलिए कृषि लगत के खर्च को घटाने की मांग को स्वं की किसानो को ही करना होगा अब फिर से किसानो को लामबंद होना पड़ेगा तभी वो अपनी खेती किसानो को बचा सकता है अन्यथा .........
सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक --
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