14 मार्च के दैनिक जागरण में प्रकाशित अपने ब्यान में केन्द्रीय जल ससाधन मंत्री श्री नितिन गडकरी ने कहा है कि बड़े बाँध बनाने में मंत्री से लेकर नौकर शाह तक बहुत खुश होते है , लेकिन कमांड एरिया डेवलपमेंट यानी सिचाई के लिए बाँध का पानी खेतो तक पहुचाने के लिए नहर प्रणाली में किसी की रूचि नही है | श्री गडकरी ने आगे कहा कि ''वे बाँध के खिलाफ नही है | लेकिन वे चाहते है कि इससे मिलने वाला शत प्रतिशत जल कृषि उत्पादन को बढाने के काम आये | इसके लिए नहर से लेकर खेतो की नालियों तथा जल के वैज्ञानिक प्रबन्धन पर काम किया जाए ताकि कृषि उत्पादन का बढ़ना निश्चित है | अपने इस ब्यान में उन्होंने अपने मंत्रालय द्वारा त्वरित सिचाई लाभ प्रोग्राम और उसके लिए आवंटित 78000O करोड़ रूपये की 99 परियोजनाओं का भी जिक्र किया | बताने की जरुरत नही है कि सिचाई के लिए घोषित त्वरित एवं दूरगामी परियोजनाए सालो - साल तक लंबित पड़ी रहती है | उनके लिए आवंटित धन को अंशत: व पूर्णत: हजम कर लिया जाता है , मगर वे परियोजनाए आगे नही बढ़ा पाती | इसका सबूत श्री गडकरी के ब्यान में स्पष्ट झलकता है | उन्होंने उसे सिंचाई के लिए बाँधो से कमांड एरिया की नहरों नालियों के विकास में रूचि न लेने की बात कही है | हालाकि यह रूचि लेने का या न लेने का मामला नही है और न ही मामला प्रान्तों के मंत्रियो अधिकारियों तक सीमित ही है | वस्तुत: मंत्रियों , अधिकारियो में सिचाई के विकास विस्तार के प्रति अरुचि व निष्क्रियता कृषि विकास और उसके लिए सरकारी निवेश एवं सार्वजनिक योजनाओं के क्रियान्वन में की जाती रही नियोजित कम - कटौती का नतीजा है | इसे केन्द्रीय जल ससाधन मंत्री बेहतर जानते है उनके लिए यह बात अनजानी नही हो सकती कि 1990 के दशक से ही सार्वजनिक सिंचाई योजनाओं , प्रोग्रामो को हतोत्साहित करते हुए किसानो को सिचाई के लिए स्वंय अपना निजी ससाधन ( अर्थात निजी पम्प सेट ) लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता रहा है | नहरों एवं सरकारी ट्युबेलो को विस्तार देने या उसे बनाये रखने का काम भी ठप्प या लगभग खत्म कर दिया गया है | बजट और बजट से इतर घोषित सार्वजनिक सिचाई योजनाओं को मुख्यत: कागजी या बयानबाजी की घोषणाओं में बदल दिया गया है | इन तथ्यों के बाद श्री गडकरी के यह कहने कि गुंजाइश कहाँ रह जाती है कि सिचाई के लिए कमांड एरिया डेवलपमेंट में मंत्रियों एवं नौकरशाहों को कोई रूचि नही है | अगर केन्द्रीय व प्रांतीय सरकारे पहले की तरह सार्वजनिक सिचाई योजनाओं को बढावा देने में लगी रहती तो मंत्रियों व अन्य नौकर शाहों को उसे आगे बढ़ाना पड़ता | उसके विकास में रूचि लेनी पड़ती | बशर्ते की पहले से निर्मित नहर प्रणाली को कारगर बनाये रखा जाता | खेती के सूखने से पहले ही नहरों का सूखापन खत्म किया जाता |
लेकिन जब कृषि क्षेत्र में सरकारी निवेश घटाने के साथ सार्वजनिक सिचाई को काटने घटाने का नीतिगत एवं योजनागत काम किया जाता रहा तब शासकीय प्रशासकीय हिस्सों से तब नहरों एवं सार्वजनिक नलकूपों का कारगर बनाने की कोई उम्मीद नही की जा सकती | सार्वजनिक सिचाई और कमांड एरिया विकास के प्रति मंत्रियों अधिकारियो में रूचि पैदा नही की जा सकती | श्री गडकरी जी के ब्यान में इस अरुचि को आगे करके सभी सरकारों द्वारा पिछले 20 - 25 सालो से कृषि व सार्वजनिक सिचाई में निरंतर की जाती राजी कटौती की सुनियोजित नीतियों व योजनाओं पर पर्दा डालने का कम किया गया है |
लेकिन जब कृषि क्षेत्र में सरकारी निवेश घटाने के साथ सार्वजनिक सिचाई को काटने घटाने का नीतिगत एवं योजनागत काम किया जाता रहा तब शासकीय प्रशासकीय हिस्सों से तब नहरों एवं सार्वजनिक नलकूपों का कारगर बनाने की कोई उम्मीद नही की जा सकती | सार्वजनिक सिचाई और कमांड एरिया विकास के प्रति मंत्रियों अधिकारियो में रूचि पैदा नही की जा सकती | श्री गडकरी जी के ब्यान में इस अरुचि को आगे करके सभी सरकारों द्वारा पिछले 20 - 25 सालो से कृषि व सार्वजनिक सिचाई में निरंतर की जाती राजी कटौती की सुनियोजित नीतियों व योजनाओं पर पर्दा डालने का कम किया गया है |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (20-04-2017) को "कहीं बहार तो कहीं चाँद" (चर्चा अंक-2946) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'