कृषि सब्सिडी अर्थात खाद , बीज , सिंचाई आदि पर दी जाने वाली सरकारी सहयाता को कृषि व किसानो को दी जाने वाली बड़ी सहायता के रूप में प्रचारित किया जाता है | रासायनिक खादों पर दी जाने वाली सब्सिडी केंद्र सरकार द्वारा और सिंचाई , बिजली पर सब्सिडी प्रांतीय सरकारों द्वारा दी जाती रही है | नि:संदेह कृषि क्षेत्र में मिल रही सब्सिडी से किसानो को उनके लागत के महंगे सामानों की खरीद में कुछ राहत मिलती है | हालांकि उन्हें सब्सिडी के प्रचारों से धोखा भी दिया जाता रहा है | इसमें पहला धोखा तो यही है कि यह सब्सिडी किसानो को खाद , बिजली , सिंचाई को कम मूल्य पर उपलब्द्ध कराने के लिए ही दी जाती है | जाहिर तौर पर यह बात ठीक भी लगती है | हालाकि सब्सिडी वाले मालो - सामानों के मालिको बाजारी दाम और उन मालो - सामानों के मालिको के लाभ में कोई कमी नही आती है | उन्हें न केवल सब्सिडी का पैसा मिल जाता है बल्कि सब्सिडी के चलते उन मालो - सामानों का बिक्री बाजार भी बढ़ जाता है | यह मालो के मालिको के लाभ मुनाफे का एक और स्रोत बन जाता है | अत: कृषि सब्सिडी , किसानो से कही ज्यादा धनाढ्य कम्पनियों को सहयाता पहुचाने का काम करता है | उनके लाभ एवं बाजार को बढाने का काम होता है |
सब्सिडी के सम्बन्ध में सरकारों और प्रचार माध्यमो द्वारा एक दूसरा धोखा रासायनिक खाद पर दी जाने वाली सब्सिडी की मात्रा के बारे में दिया जाता रहा है | उदाहरण - केंद्र सरकार द्वारा रासायनिक खाद पर 1999-2000 में दी गयी - 13 हजार 244 करोड़ रूपये की सब्सिडी 2008 -2009 में 76 हजार करोड़ 609 करोड़ रूपये तथा 2015 - 16 में 72 हजार 438 करोड़ हो गयी | स्पष्ट है कि अब उसकी मात्रा में पहले जैसा बढाव नही हो रहा है | फिर बढती मात्रा बढती मात्रा में दी जाती रही सब्सिडी भी किसानो के लिए दरअसल राहतकारी नही हो पा रही है | उसका प्रमुख कारण 1991 - 92 के बाद से रासायनिक खादों के मूल्य पर लगे हुए सरकारी नियंत्रण का हटाना हो रहा है | उसके फल स्वरूप खादों के दामो में अचानक वृद्धि हुई जो लगातार बढती रही है | उदाहरण - 24 जुलाई 1991 को तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा रासायनिक खादों खासकर पोटाश , दाई पर मूल्य नियंत्रण हटाने के साथ उसके थोक मूल्य में 40% की वृद्धि कर दी गयी थी | बाद के सालो में भी रासायनिक खादों के बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों का बहाना लेकर देश में खादों के दामो में वृद्धि की जाती रही है | फलत: खादों पर दी जाने वाली 25% से 35% की सब्सिडी निष्प्रभावी ही नही बल्कि ऋणात्मक भी साबित होती रही | कयोकी सब्सिडी के मुकाबले खादों के मूल्य में वृद्धि कही ज्यादा हुई |
तीसरा धोखा कृषि सब्सिडी में खाद बिजली सिंचाई पर दी जाने वाली सब्सिडी के साथ खाध्ययान्न सुरक्षा योजना के अंतर्गत दी जाने वाली खाद्ययान सब्सिडी को मिलाकर कृषि सब्सिडी के प्रचारों द्वारा दिया जाता रहा है | असलियत यह है कि खाद्ययान सुरक्षा योजना के तहत दी जाने वाली सब्सिडी से कृषि उत्पादन वृद्धि में अथवा कृषि उत्पादों के बिक्री बाजार में कोई मद्दद नही मिलती | जबकि खाद्यान्न सुरक्षा के लिए दी जाने वाली सब्सिडी का लगभग आधा है | 2015-16 में कृषि क्षेत्र को कुल मिलाकर दी गयी लगभग 2.5 लाख करोड़ की सब्सिडी में खाद्ययान योजनाओं की सब्सिडी 1.35 लाख करोड़ थी | फिर खाद्यान सुरक्षा योजना के अंतर्गत भरी सब्सिडी के जरिये अत्यंत कम मूल्य पर गेंहू - चावल की व्यापक वितरण प्रणाली से खाद्यान्नो के बाजार मूल्य भाव पर किसानो की दृष्टि से नकारत्मक असर पड़ता रहा है | उसके मूल्य भाव से अप्रत्यक्ष रूप में कमी आती रही है | स्वभावत: इसका घाटा आम किसानो पर ही पड़ता रहा है और पड़ रहा है | सब्सिडी के बारे में उपरोक्त धोखाधड़ी भरे प्रचारों को जान्ने - समझने के साथ आम किसानो को यह जरुर जानना चाहिए की किसान के लिए सब्सिडी से कही ज्यादा आवश्यक मामला खाद - बीज - बिजली - सिंचाई आदि के मूल्य नियंत्रण का है | उनकी कीमतों को उच्चतम लाभ देने वाली कीमतों से घटाकर औसत लाभ देने वाली कीमत पर लाने व नियंत्रित करने का है | अगर सरकारे खाद , बिजली , सिंचाई से जुडी कम्पनियों को अधिकतम लाभ कमाने के लिए उच्च मूल्य निर्धारण की छूटे व अधिकार न देती तो कृषि लागत के उपरोक्त मालो - सामानों पर सब्सिडी देने की दरअसल कोई जरूरत ही नही पड़ती | वस्तुत: किसानो को लागत के मालो - सामानों के बेहिसाब बढ़ते मूल्यों पर नियंत्रण चाहिए | सब्सिडी की किसानो को तभी तक जरूरत है , जब तक लगत के औद्योगिक मालो - सामानों के दाम को न्यूनतम स्तर पर नही ला दिया जाता |
इन मांगो को अगर किसान सगठित तौर पर नही उठाते है तो किसानो को मिलती रही सब्सिडी को काटा घटाया जाना निश्चित है | अत: किसानो को न केवल सब्सिडी देने बढाने की ही मांग करनी चाहिए अपितु खाद , बीज सिंचाई बिजली आदि मूल्यों को नियंत्रित किये जाने की मांग प्रमुखता से उठाना चाहिए |
सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक - चर्चा आजकल
बिल्कुल सही लिखा है
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (16-07-2018) को "बच्चों का मन होता सच्चा" (चर्चा अंक-3034) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आदरणीय राधा जी आपका आभार आपने मेरे आलेख को चर्चा मंच पर स्थान दिया
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