Thursday, November 29, 2018

स्वतंत्र सद्गुरु -- लल्ला

स्वतंत्र सद्गुरु -- लल्ला

इसीलिए कश्मीरी लोग कहते थे , ''हम दो ही नाम जानते है ; एक अल्लाह और दुसरा लल्ला |'

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योग मार्ग स्त्री - पुरुष , दोनों के लिए समान रूप से उपलब्ध है | लेकिन न जाने क्यों स्त्रिया उस मार्ग पर बहुत कम चली | और जो चली भी उनमे पहुचने वाली अत्यंत कम है | कश्मीरी रहस्यदर्शी स्त्री ''लल्ला ' ऐसी अद्दितीय स्त्रियों में से एक है | वह योगिनी थी इसलिए उसे नाम मिला , लल्ला योगेश्वरी |
लल्ला की एक और अद्दितीयता यह थी कि वह आजीवन नग्न रही | शायद विश्व में एक मात्र ऐसी स्त्री होगी जो निवस्त्र होकर बीच बाजार रही | पुरुष भी इतनी हिम्मत नही कर पाते जो आज से सात सौ साल पहले एक भारतीय स्त्री ने की | स्त्रियों के लिए अपनी देह के पार जाना असम्भव है | एक लल्ला ही अनोखी थी जो विदेह अवस्था में मुक्त मन से विचरती रही | इसीलिए कश्मीरी लोग कहते थे , ''हम दो ही नाम जानते है ; एक अल्लाह और दुसरा लल्ला |''चौदहवी सदी का कश्मीर आज के कश्मीर से बिलुकल अलग था | उस समय हिन्दू शासन था और शिव की उपासना खूब होती थी | मुसलमान राज की शुरुआत होने के साथ लल्ला का जन्म हुआ | लड़की बहुत ही बुद्धिमान थी इसलिए उसने बचपन से ही गीता , वेद, उपनिषद कठंस्थ किये | अपनी पढ़ाई के बारे में लल्ला लिखती है :
''परान-परान ज्यब ताल फजिम ''
पढ़ते - पढ़ते जीभ और तालू घिस गये |
चूँकि उन दिनों बाल - विवाह का चलन था , लल्ला का विवाह भी छोटी उम्र में हो गया | उस समय उनका नाम पदमावती था | सास सौतेली थी सो उसने और लल्ला के पति ने मिलकर लल्ला पर बेहद अत्याचार किये | वे अत्याचार लल्ला ने अपूर्व धैर्य के साथ सहे | लेकिन उससे वह पागल सी हो गयी | और वही स्थिति उसकी आत्म खोज का कारण बनी |
लाला स्वंय लिखती है :
सम्सारस आयस तपसैइ
ब्व्द्दी प्रकाश लोबुम सहज
'' मैं संसार में तपस्वनी की तरह आई और बुद्धि के प्रकाश से मैंने सहज को पा लिया |
योग साधना करते - करते लल्ला ने सिद्धि पा ली | उसकी वजह थी उसकी पूर्व जन्म की तपस्या | लल्ला के गीतों में चन्द्रमा का प्रतीक कई बार आता है | चन्द्रमा को वह ''शशि कला '' कहती है | लल्ला का स्त्री हृदय खोज भी करता है तो किसी दूर गगन में बसे हुए परमात्मा की नही , अपने अन्दर में बैठे चन्द्रमा की |
अद्रिय आयस चन्द्ररुय गारान
अंतर्मन में चन्द्रमा की खोज करते - करते मैं बाहर आई | यही लल्ला की अद्दितीयता है | आम तौर पर स्त्रिया गहने , कपडे , साज - सिंगार परिवार या ज्यादा से ज्यादा प्रेम को खोजती है ; लेकिन लल्ला की खोज अलौकिक थी |
लल्ला जो जन्म में पद्मावती थी , लल्ला कैसे हुई ? उसकी कहानी इस तरह है : कश्मीरी भाषा में लल्ला यानी पेट का मांस | कहानी है कि वह नग - धडंग घुमती थी | कुछ लोगो ने उससे कहा ''एक स्त्री इस तरह घुमे यह अच्छा नही लगता | कम से कम पेट के नीचे के अंग को ढंक ले "' उस पर लल्ला ने पेट का मांस खीचकर अपने गुप्त अंग को ढांके और बालो से छाती को छुपा लिया | इससे उसका नाम लल्ला पडा | जैसे संतो के सम्बन्ध में जनमानस में कहानिया तैरती रहती है , वैसे लल्ला के सम्बन्ध में भी कई कहानिया है |
वह उन्मनी दशा में गाँव गाँव घुमती रहती बच्चे उसे चिढाते | वे उसे पागल ही समझते | एक गाँव में एक कपडे का दूकानदार उसका भक्त था | उसने जब लडको को उसे चिढाते हुए देखा तो उन्हें बुलाकर खूब डाट लगाई | लल्ला उसके पास गयी और एक कपड़ा माँगा | दुकानदार ने फ़ौरन एक कपडा दे दिया | लल्ला ने उसे दो समान टुकड़े कर एक बाए और दूसरा दाहिने कंधे पर डाला फिर वह बाजार में घुमने लगी | रास्ते में कोई उसे गाली देता , कोई उसे नमस्कार करता | जैसे ही कोई गाली देता वह दाए कंधे के कपड़े में गाठ बाधती और जब कोई नमस्कार करता वह बाये कंधे पर रखे कपड़े पर गाठ बाधती | शाम होते होते वह लौटकर उस दूकानदार के पास गयी और उसे दोनों कपड़ो का वजन करने को कहा | दोनों बराबर थे , तब लल्ला ने उसे समझाया , देख आज मुझे जितनी गाली मिली उतना ही सम्मान मिला है | तो क्या फ़िक्र करनी | कोई पत्थर फेंके या फूल हिसाब बराबर |
लल्ला कश्मीरी साहित्य की पहली कवियत्री है | उन्होंने संस्कृत जैसी प्रतिष्ठित भाषा को त्यज कर आम लोगो की कश्मीरी भाषा को अपनी अभिव्यक्ति के लिए अपनाया | कश्मीरी साहित्य के समीक्षक शम्भुनाथ भट्टा ''हलीम '' उसके बारे में लिखते है : लल्लेश्वरी की वाणी को लोगो ने इतना पसंद किया कि वह आज तक काश्मीर के हर पढ़े लिखे और अनपढ़ की जबान पर है | कश्मीर के खेतो में काम करने वाला किसान या बोझ ढोने वाला मजदुर बलबूट काढने वाला कारीगर हो या नाव खेने वाला माझी सभी लल्लेश्वरी का कोई न कोई बाख स्वर में गाने की चाह मौजूद है | कश्मीर की संगीत सभाओं का आरम्भ लल्ला - वाक्य से किया जाता है | लल्ला - वाक्य कश्मीरी भाषा के मुहावरे और सुक्तिया बने है |

लल्ला के पार्थिव शरीर का अंत कब और कैसे हुआ ? इसके इर्द गिर्द फिर एक बार अफवाहों की धुंध है | हिन्दू कहते है , वह आग की लपट बन गयी , और मुसलमान कहते है , उसे बिजबिहाडा मस्जिद के पास दफनाया गया | जो भी हो कश्मीर के हिन्दू - और मुसलमान दोनों ही एक दिल से उसके मुरीद है , काश कश्मीर के आज खौफनाक मंजर में एक दुसरे के दुश्मन बने हुए वहाँ बसने वाले लोग लल्ला को याद करे और उसके साथ उन दिनों को जब भाईचारा मजहब की हदों को पार कर अनहद में बिसराम कर सकता था लल्ला की ममतामयी याद कश्मीर के जख्मो पर मरहम लगा सकती है लल्ला - बाख कश्मीरी :
अमि पनसोदरस नावि छ्यसलमान |
कति बेजि दय म्योन म्यती डाई तार ||
आम्यान टाक्य्नपौज जन शमान|
जब छुम भ्रमान घर गछ हाँ ||
अनुवाद - सागर के कच्चे धागे से मैं नैया खीच रही हूँ | काश , दई( ईश्वर ) मेरी सुने और मुझे पार लगा दे | मेरी दशा उस कच्चे मिटटी के बर्तन की सी है जो सदा पानी चूसता रहता है | मेरा जी कर रहा है अपने घर चली जाऊं |कन्धो पर पताशो की गठरी है , उसकी रस्सी ढीली पड़ गयी है | बोझ ढोकर देह कमान जैसी झुक गयी |
( नोट -- यह बाख एक प्रतीक रूप है | पांच तत्व , दस इन्द्रिया और ग्यारहवा मन - ये सब मिलकर व्यक्ति को सब दिशाओं में खीचते है | और उसे आत्मा से , अपने केंद्र से अलग करते है |
ओशो का नजरिया :
कश्मीर के लोग लल्ला से इस कदर प्रेम करते है कि वे आदरवश कहते है ;'हम दो ही शब्द जानते है , एक अल्लाह और दूसरा लल्ला |" कश्मीर में निन्यानबे प्रतिशत मुसलमान है | फिर भी वे अल्लाह के साथ लल्ला को जोड़ते है | यह महत्वपूर्ण है | लल्ला ने कभी किताब नही लिखी वह इतनी हिम्मतवर थी कि जीवन भर निवस्त्र रही और ध्यान रहे , यह सैकड़ो साल पुरानी बात है | और पूरब में घटी है | लल्ला सुंदर स्त्री थी | कश्मीरी सुन्दर होते है | भारत में वही जाति वास्तविक सुन्दर होती है | लल्ला बहुत सुन्दर थी | वह नाचती और गाती थी | उसके कुछ गीत बचाए गये है | मुसलमान लोग किसी को अपनी औरतो का चेहरा भी नही देखने देते | तुम मुसलमान औरतो की सिर्फ आँखे देख सकते हो और कुछ भी नही | लेकिन वे अल्लाह के बराबर लल्ला की इबादत करते है | इस स्त्री ने पुरे कश्मीर को प्रभावित किया होगा | मैंने पुरे कश्मीर की यात्रा की है मैंने बार बार ये दो नाम दोहराए देखा ''अल्लाह और लल्ला | वह एक महान सद्गुरु थी | उसके कई शिष्य थे | उसका बहुत बड़ा गुण था जो मुझे बेहद पसंद है : वह स्वतंत्र सद्गुरु थी | फिर भी अन्य धर्मो के लोग उसे प्यार करते है उसे मानते थे - माने वगैर नही रह सकते थे |
ओशो -- दि स्वोर्ड एंड दि लोटस

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (01-12-2018) को "नदी सरोवर झील" (चर्चा अंक-3172) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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