Wednesday, January 10, 2018

कहलगांव से विक्रम शिला --- 10-1-18

कहलगांव से विक्रम शिला ---


साल के आखरी तीन दिन पहले दो पहिये वाहन से कडाके की ठंढी में अनीत मिश्रा और उनके सहयोगी आशीष के साथ कहलगांव से विक्रमशिला जाने का मौका दिलाया छोटे भाई धीरज ने निकल पडा दक्षिण ओर पहाडो की श्रृखला के साथ उत्तरायणी गंगा के बीच बसा कहलगांव से करीब बारह किलोमीटर सर्पीले उबड़ - खाबड़ रास्तो से गुजरते हुए खजूर के वृक्षों का तांता एक तरफ गंगा की निर्मल धारा दूसरी तरफ पहाडो की श्रृखला प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य देखते हुए मैं पहुचा अंतींचक गाँव - विक्रमशिला के विस्तृत परिसर में अंतींचक , माधोपुर के साथ ओरियप नाम के तीन गाँवों के क्षेत्र आंशिक रूप से सम्मलित है किन्तु इसमें सबसे बड़ा हिस्सा अंतींचक का है इसके सबसे नजदीक बस्तिया इसी गाँव की है इसलिए विक्रमशिला परिसर को अंतींचक गाँव के पास स्थित कहना सर्वथा तर्कसंगत होगा |


इस स्थल का नाम विक्रमशिला सम्भवत: महाविहार के संस्थापक नरेश धर्मपाल को प्रदत्त उपाधि ''विक्रमशील '' के कारण प्रचलित हुआ होगा | किन्तु जनश्रुति के अनुसार यहाँ विक्रम नामक यक्ष का दमन होने के कारण ऐसा नाम पडा | महाविहार को राजकीय विश्व विद्यालय के रूप में जाना जाता था इसका कारण था की यह विश्व विद्यालय राजा धर्मपाल द्वारा निर्माण करवाया गया था | इसके रख - रखाव व प्रबन्धन के लिए इसे राजकीय प्रश्रय प्राप्त था | उत्खनन में प्राप्त एक मुद्रा ( सील ) पर भी 'राजगृह महाविहार ' अंकित है जिससे इस विचार को बल मिलता है | ऐसा प्रतीत होता है कि इस विश्व विध्यालय को तिब्बत में विक्रमशिला के नाम से जाना जाता रहा होगा जब की भारत में इसके लिए राजगृह महाविहार अधिक प्रचलित नाम था |
विक्रमशिला विश्व विध्यालय के प्रादुर्भाव के समकालीन सामाजिक एवं धार्मिक परिपेक्ष्य में जन सामान्य की लालसा मोक्ष प्राप्ति की अपेक्षा सांसारिक सुखभोगो के प्रति बढ़ रही थी | ऐसे समय में लोकप्रियता प्राप्त करने व अधिक से अधिक अनियाई आकृष्ट करने के दृष्टिकोण से बौद्द धर्म में वज्रयान स्म्र्पदाय का सूत्रपात हुआ | धीरे - धीरे तंत्रशास्त्र के सभी लोकप्रिय एवं प्रचलित कर्मकांड व जादू- टोना आदि को बौद्द धर्म में समाहित कर लिया गया |

तंत्र्यान वस्तुत: धर्म , दर्शन , विज्ञान,रहस्यविध्या, जादू - टोन एवं योग विध्या आदि का मिलाजुला स्वरूप था जो अनुयायी को स्थापित सामजिक नियमो का उल्लघन करने की एक सीमा तक छुट भी देता था | इसमें मानवीय इच्छाओं की तुष्टि के लिए मन्त्रो , जादू टोन एवं योग विध्या आदि के प्रयोग के साथ - साथ आत्मबोध कराने का प्रयास भी किया जाता था ||
ऐसा विश्वास था की मन्त्रो में पापो व दोषों को का नाश करने की अदभुत शक्ति निहित है | अध्ययन का यह विषय यहाँ पर प्रमुखता के साथ पढ़ाया जता था जो इस विश्व विध्यालय की लोकप्रियता का मुख्य कारण बना | इस बात का उल्लेख्य करना प्रासंगिक है कि तंत्रशास्त्र की अवधारणा विशुद्द भारतीय है तथा विश्व संस्कृति में इस प्रकार का साहित्य इससे पूर्व देखने को मिलता |

विक्रमशिला के बारे में जानकारी देने वाले श्रोत अत्यल्प है जिसमे सोलहवी - सत्रहवी शती के प्रमुख तिब्बती इतिहासकार लामा तारानाथ के विवरण प्रमुख है | इसके अतिरिक्त पुरातात्विक उत्खननो एवं सर्वेक्षणों द्वारा प्राप्त पूरा सामग्री को ही विश्वसनीय श्रोत मन जा सकता है |
उत्खनन से पूर्व अधातोघुम्कड़ राहुल सांकृत्यायन ने पुरातत्व अवशेषों की चर्चा करते हुए सुल्तानगंज के करीब होने का अन्देशा जताया था |
उत्खनन से पूर्व भागलपुर व पटना जिलो के अंतर्गत सिलाव सुल्तानगंज , पथरघट्टा, केउर आदि अनेक स्थलों पर स्थित तिलों को विक्रमशिला महाविहार के अवशेषों के रूप में पहचानने के प्रयास किये गये थे , किन्तु विभिन्न स्र्वेस्ख्नो से प्राप्त सामग्री व साहित्य श्रोतो के विवरणों के आधार पर अंतींचक स्थित पुरास्थल पर विक्रमशिला महाविहार के भग्नावशेष होने की सर्वाधिक प्रबल थी | इस स्थल पर वर्षो तक किये गये उत्खननो के परिणाम ने उक्त सम्भावना की पुष्टि कर दी है | यहाँ प्रारम्भिक उत्खनन पटना विश्व विध्यालय1960 - 69 तक कराए गये जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण1972 से 82 तक पूर्ण किया गया वैसे अभी भी वहाँ पर उत्खनन की आवश्यकता है |

प्राप्त साक्ष्यो के आधार पर अब यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है की विक्रमशिला की स्थापना पाल नरेश धर्मपाल द्वारा आठवी शदी के अंतिम चरण अथवा नौवी शदी के प्रारम्भ की गयी थी | लगभग चार शताब्दियों के वैभवकाल के उपरान्त त्रेह्वी सदी के प्रारम्भिक चरण में इसका विध्वंस बख्तियार खिलजी द्वारा कर दिया गया था |
महान विश्व विध्यालय --


विक्रंशिला महाविहार अपने युग के विशालतम विश्व विद्यालयो में से एक था जिसका दो अन्य विश्व विद्यालयों नालंदा एवं ओद्न्तपुरी से भी घनिष्ठ पारस्परिक सम्बन्ध था | यहाँ अध्ययन के मुख्य विषय अध्यात्म , दर्शन , तंत्रविध्या व्याकरण तत्वज्ञान तर्कशास्त्र आदि थे | इनमे सर्वाधिक लोकप्रिय विषय तंत्र शास्त्र था क्योकि इस महाविहार का उत्कर्षकाल तंत्र मन्त्र व जादू टोना का युग आदि में विशेष रूचि लेते थे | जिसमे हिन्दू तथा बौद्ध दोनों धर्मो के अनुयायी तंत्र एवं गूढ़विध्या था |

इस विश्व विध्यालय ने अनेको महापंडित विद्वानों को जन्म दिया जिन्हें बौद्ध शिक्षा , संस्कृति व धर्म का प्रसार करने के उद्देश्य से सुदूर देशो में भी आमंत्रित किया जाता था | विक्रमशिला को रत्न्वज्र , जेतारी ,ज्ञान , श्रीमित्र रत्नकृति , रत्नाकर शान्ति जैसे अनेको विद्वान् उत्पन्न करने का श्री प्राप्त है जिसमे तिब्बत में लामा स्म्र्पदाय के संस्थापक आतिश दीपंकर का नाम सर्वप्रमुख है |
यहाँ प्रवेश पाने के इच्छुक छात्र को द्वार पर ही कठिन परीक्षा पास करनी पड़ती थी जिसके निमित्त उच्च योग्यता वाले पंडित विशेष रूप से नियुक्त होते थे |

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