Saturday, January 13, 2018

दिवालिया होते बैंक -- 13-1-18

सम्पादकीय -- चर्चा आजकल

दिवालिया होते बैंक --



देश की सत्ता सरकारों को अब यही उपचार समझ में आ रहा है | डकैतों , लुटेरो को ही घर का मालिक बना देने जैसा उपचार सही लग रहा है |

25- दिसम्बर 2017 के हिंदी दैनिक 'बिजनेस स्टैंडर्ड ' ने बैंको के डूबता धन का उपचार श्रीश्क के साथ यह समाचार प्रकाशित किया है कि संसद की समिति ने सरकार से इसके लिए तत्काल कदम उठाने को कहा है | इसके लिए वर्तमान एवं निकम्मे सतर्कता तंत्र की जगह एक सखत सतर्कता तंत्र बनाने के लिए कहा है | समिति ने बैंको के डूबता धन के उपचार हेतु बैंकिंग कानूनों में शंसोधन का सुझाव दिया है | इन सुझाव में कर्ज न चुकाने वालो के नाम खुलासा किये जाने की बात भी कही गयी है |
जहां तक बैंको के डूबता धन के तथ्यों आकड़ो का प्रश्न है तो 'रिजर्व बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार सरकारी बैंको द्वारा दिए गये कर्जो में वापस न मिल पाने वाले धन की मात्रा 7.34 लाख करोड़ रूपये हो गयी है | इसके अलावा निजी क्षेत्रो के बैंको में भी डूबता धन की रकम 1.03 लाख रूपये पहुच गयी है | बैंको के इस डूबता धन या बत्तेखाते की रकम के बारे में समाचार पत्रों ने यह सुचना प्रकाशित किया है कि इसमें बड़े कारोबारियों व कम्पनियों की हिस्सेदारी 77% है | स्वभावत तमाम छोटे मझोले स्टार के बत्तेखाते की रकम की कुल हिस्सेदारी 23% है | इस 23% के बारे में समाचार पत्र ने सिर्फ शिक्षा के लिए दिए जाने वाले कर्ज की चर्चा करते हुए कहा है की शिक्षा कर्ज अब एक समस्या बनता जा रहा है |यह कर्ज मार्च 2017 तक बैंको की डूबती रकम का 6.67% हो गया है |
रिजर्व बैंक के अनुसार बैंको के ब्त्तेखाते की रकम उनके द्वारा दिए गये कुल कर्ज की प्रतिशत के रूप में लगातार बढती जा रही है | 2014-15 में वक कुल कर्ज की 5.7% थी जो 2015-16 में 7.3% तक तथा पिछले वर्ष में 7.67% तक पहुच गया है |
दिलचस्प बात है कि समाचार पत्र ने अपनी सुचना में शिक्षा क्षेत्र के डूबता कर्ज पर तो दो बार महत्व देकर चर्चा किया है पर बड़े कारोबारियों के डूबता कर्ज की समस्या पर कोई चर्चा नही किया है | जबकि बैंको के डूबता धन में बड़े कारोबारियों की 77% हिस्सेदारी की तुलना में शिक्षा कर्ज में डूबता धन की हिस्सेदारी बहुत कम है (7.67%० है |
जहाँ तक डूबता धन के उपचार के लिए मौजूद सतर्कता तंत्र की बात है तो उसने साल - दर साल बढ़ रहे डूबता धन के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार बड़े कारोबारियों एवं कम्पनियों का नाम का भी निर्णय अभी तक नही लिया है |
संसदीय समिति ने 'सखत सतर्कता तंत्र ' बनाये जाने के साथ दिए गये सुझावों में उनका नाम खुलासा करने का सुझाव मात्र दिया है | जबकि इस सन्दर्भ में सुझाव देने की बात इसलिए भी बेमानी है की किसानो एवं अन्य छोटे बकायेदारो की सूचनाये समाचार पत्रों में आये दिन प्रकाशित की जाती रहती है | उनके नाम से आर सी कटती रही है और उनके जमीनों सम्पत्तियों की नीलामी तक होती रही है |
बताने की जरूरत नही है की चढ़े बट्टे खाते की रकम बड़े कारोबारियों एवं कम्पनियों पर चढ़े बट्टे खाते की रकम से बहुत कम है | इसके वावजूद छोटे कर्जदारों का नाम उजागर करने में बैंको को कोई हिचक नही होती | जबकि बड़े कारोबारियों का नाम आज तक उजागर नही कर पाए | यह तो छोटे चोरो को सरे आम पीटने और बड़े डाकुओ पर ऊँगली तक न उठाने जैसी बात है | यह बैंकिंग क्षेत्र में जनतांत्रिक प्रणाली की नही अपितु घु गैर जनतांत्रिक एवं भेदभाव पूर्ण प्रणाली के संचालन का सबूत है |
इसी गैर जनतांत्रिक एवं भेदभाव पूर्ण बैंकिंग प्रणाली का परिलक्षण शिक्षा कर्ज और उसमे बैंको के डूबता धन को महत्व देने के रूप में भी परिलक्षित हो रहा है | पूरी सम्भावना है की इसी डूबता धन को आगे करके आने वाले दिनों में शिक्षा के लिए दिए जाने वाले कर्ज की मात्रा को और ज्यादा घटा दिया जाएगा |
क्या यही काम बड़े कारोबारियों एवं कम्पनियों के साथ भी होगा ? कदापि नही ! उनके लिए तो ज्यादा कर्ज देने और उस पर व्याज दर घटाने की रिजर्व बैंक से मांग सरकारे करती रही है |
पूँजी निवेश बढाने के नाम पर करती है | इसी सबके फलस्वरूप धनाढ्य कारोबारियों , सरकार के मंत्रियो , अधिकारियों एवं बैंको के उच्च स्तरीय अधिकारियो के साठ-गाठ से धनाढ्य कारोबारियों एवं कम्पनियों को हजारो करोड़ का कर्ज मिलता रहा है | उन पर बैंको की देनदारियो पहले से ही चढ़े होने के वावजूद उन्हें कर्ज मिलता है | इन कर्जदारों में एक नाम विजय माल्या का है | लेकिन बाकी के लोगो के नाम उजागर नही किया गया है |
सच्चाई यह है की धनाढ्य कारोबारियों में ज्यादातर लोग विजय माल्या ही है | यही हिस्से सरकारी बैंको को उसी तरह से घटे में ढकेल रहे है , जिस तरह उन्होंने 1980 के दशक में और उससे पहले भी सार्वजनिक क्षेत्रो के उपक्रमों , प्रतिष्ठानों सरकारों से सर्वाधिक लाभ उठाते हुए उसे घटे में धकेलने का कम किया था और आज भी कर रहे है | फिर उसी घाटे को दिखाकर वे सार्वजनिक क्षेत्र को नकारा या सफेद हठी बताने का भी काम बखूबी कर रहे है |
कोई आश्चर्य की बात नही होगी कि कल को सरकारी बैंको को घाटे का क्षेत्र बताकर उसे इन्ही बड़े कारोबारियों एवं कम्पनियों को सौंप दिया जाए | जबकि वही आज अपने बड़े बकायो से सरकारी बैंको को सबसे ज्यादा घाटे में ढकेल रहे है | बैंको के निजीकरण की चर्चा शुरू हो गयी है | फिर निजीकरणवादी नीतियों को आगे बढाते हुए यह कम होना निश्चित है |
देश की सत्ता सरकारों को अब यही उपचार समझ में आ रहा है | डकैतों , लुटेरो को ही घर का मालिक बना देने जैसा उपचार सही लग रहा है |
फिर इसकी सलाहे उच्च स्तरीय अर्थशास्त्री तथा विद्वान् बुद्दिजीवी गण देते भी रहते है | फिर उनसे उपर बैठे सबसे बड़े सलाहकार तो विश्व व्यापार सगठन जैसी संस्थाए है ही | उनके द्वारा प्रस्तुत डंकल प्रस्ताव की धारा में यह स्पष्ट निर्देश है कि सरकारे बैंकिंग सेवाओं को भी देश व विदेश के निजी मालिको को सौंप दे |
प्रस्तुती -- सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-01-2018) को "मकर संक्रंति " (चर्चा अंक-2848) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हर्षोंल्लास के पर्व लोहड़ी और मकर संक्रान्ति की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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