साम्राज्यवाद के खिलाफ राष्ट्रीय संघर्ष 1857 और उसके बाद
प्रथम स्वाधीनता सग्राम -- 1857 के राष्ट्रीय विद्रोह ने , जिसमे लाखो करोड़ो किसानो , सैनिको , दस्तकारो . जमींदारों ने हिस्सा लिया , वास्तव में अंग्रेजो के 100 वर्षो के शासन को उसकी जड़ो से हिलाकर रख दिया | जन उभार से पहले कि राज्य - हरण की निति ने तमाम रियासतों के शासको को घबराहट से भर दिया | विशेष रूप से , इसने नाना साहेब , झाँसी की रानी और बहादुर शाह जफर को प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजो का दुश्मन बना दिया | देशी - विदेशी शासको के विदृद्ध गहरे और व्यापक असंतोष के जन उभार का गवाह बना | बड़े पैमाने पर उथल - पुथल की उन दशाओं में चर्बी वाले कारतूसो के प्रकरण ने चिंगारी का काम किया | सिपाहियों के विद्रोह ने भारतीय समाज के अन्य तबको को विद्रोह करने के लिए भड़काया | यह विद्रोह 10 मई 1857 को मेरठ में शुरू हुआ और कमोवेश पूरे देश में फ़ैल गया | इसने विदेशी आधिपत्य की एक सदी के बाद आजादी के लिए संघर्ष की शुरुआत की थी | कुछ समय के लिए ऐसा लगा की ब्रिटिश नियंत्रण खत्म हो गया है | ''1857 के विद्रोह की शक्ति का एक महत्वपूर्ण तत्व हिन्दू - मुस्लिम एकता में निहित था , सभी विद्रोहियों ने एक मुस्लिम , बहादुर शाह जफर को अपना बादशाह स्वीकार किया , एक वरिष्ठ अधिकारी ने आगे चलकर शिकायत की -'इस मामले में हम मुस्लिमो को हिन्दुओ के खिलाफ नही भिड़ा सके |' दरअसल ,1857 की घटनाओं ने इस देश बात को साफ़ तौर पर स्पष्ट कर दिया कि मध्य युग में और 1858 के पहले भारत की जनता और राजनीति मूलत: साम्प्रदायिक नही थी | लेकिन , भारतीय राजाओं और सरदारों के द्वारा समर्थित ब्रिटिश साम्राज्यवाद विद्रोहियों के लिए अत्यधिक सशक्त था , जिनके पास शस्त्र , सगठन और नेतृत्व का अभाव था | 20 सितम्बर 1857 को दिल्ली पर काबिज होने और बहादुर शाह के पकडे जाने के बाद अन्य नेता एक - एक करके पराजित हुए | 1859 के आखरी तक ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने भारत को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में ले लिया | लेकिन विद्रोह व्यर्थ नही गया | यह ब्रिटिश साम्राज्यवाद से भारतीय अवाम का प्रथम स्वाधीनता संग्राम साबित हुआ | राष्ट्रीय विद्रोह में , नान साहब , तात्या टोपे , झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई और मंगल पाण्डेय की तरह के शूरवीर नायको के अलावा , हम मौलवी अह्मददुल्ला , अजीमुल्ला खान और हजरत महल बेगम को सगर्व याद करते है , जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह को सगठित करने में प्रमुख भूमिका निभायी |
कुछ गुमनाम नायको की भूमिका --
फैजाबाद के शेरिफ मौलवी अह्मददुल्ला प्रथम स्वतंत्रता के महानतम नायको में से एक थे | वे शानदार गुणों ,अविचलित साहस , दृढ निश्चय और इस सबसे बढ़कर विद्रोहियों के बीच सर्वश्रेष्ठ सैनिक थे | मौलवी लेखक और योद्धा का विरल संयोग थे | उन्होंने विदेशी दासता के विरुद्ध जनता को जागृत और गोलबंद करने के लिए अपनी तलवार का वीरतापूर्वक और अपनी कलम का सहज ढंग से प्रयोग किया | अंग्रेजो ने उन्हें काबिल शत्रु और महान योद्धा के रूप में लिया | उनके उपर राजद्रोह का मुकदमा चला और फांसी की सजा दी गयी | लेकिन इस आदेश के क्रियान्वित होने से पहले विद्रोह शुरू हो गया | मौलवी फैजाबाद जेल से भाग गये , जहाँ से उन्हें बंदी बनाया गया था और उपनिवेशवादियो के विरुद्ध लड़ाई में अवध की जेल में बंद नवाब वाजिद अली शाह की बीबी बेगम हजरत महल से मिल गये | बेगम और मौलवी दोनों ने युद्ध के मैदान में अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोही सैनिको का नेतृत्व किया | साम्राज्यवादियों ने उन्हें ज़िंदा पकड़ने के लिए 50 हजार रुपयों के इनाम की घोषणा की | वे 5 जून 1858 तक उन्हें चकमा देते रहे , आखिरकार भरी - भरकम रकम के लालच में पवई के राजा ने धोखा दे दिया और उन्हें गोली मार दी | इस प्रकार देशभक्त की गाथा का आकस्मिक अन्त एक कायर भीतरघाती के हाथो हो गया | विद्रोह से पहले और उसके दौरान उनके कार्यो और व्यवहार को हिन्दू पुनरुथानवादी विनायक दामोदर सावरकर से भी सराहना मिली "" इस बहादुर मुस्लिम का जीवन दर्शाता है कि इस्लाम की शिक्षाओं में तर्कपरक आस्था भारतीय धरती से भी गहरे एवं सर्व शक्तिमान प्रेम से किसी भी तरह असंगत या शत्रुतापूर्ण नही है |''
लेकिन बदकिस्मती से इतिहास की पाठ्य पुस्तको में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के इस महान गुमनाम नायक का नाम शायद ही हमारे सामने आता हो | क्रान्ति का राजदूत समझे जाने वाले चालाक और दृढ राजनीतिक अजीमुल्ला खान 1830 - 1859 ने कानपुर में नाना साहब के प्रतिनिधि के रूप में काम किया | विद्रोह के फूट पड़ने से पहले उसने नाना साहब के लिए पेंशन हासिल करने की कोशिश करने के क्रम में लन्दन की यात्रा की | उन्होंने मित्र बनाये , लेकिन इसके साथ ही वह उन तारीको पर गौर कर रहे थे कि अंग्रेजो को कैसे नष्ट किया जाए | भारत वापस लौटते समय वे क्रिमियाई युद्ध अक्तूबर 1853 फरवरी 1856 को देखने के लिए रुके और यह देखकर उन्हें ख़ुशी हुई कि अंग्रेज अपने रुसी शत्रुओ के द्वारा बहुत बुरी तरह से पराजित हुए | अंग्रेज वहाँ भूखे , जख्मी और लगभग नष्ट हो चुके थे | यह उनके लिए सबक था | वह अपने नेता के रूप में नाना साहब के साथ अपने शत्रुओ को नष्ट करने की प्रतिज्ञा करते हुए भारत लौटे | उन्होंने विद्रोह में सक्रिय हिस्सा लिया | विद्रोह कुचल दिए जाने के बाद वह नाना साहब के साथ नेपाल चले गये , जहाँ 1859 में भूटवल में उनकी मृत्यु हो गयी | उत्तर प्रदेश के लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह की पत्नी हजरत बेगम महल को अवध की बेगम के नाम से भी जाना गया | ईश्वर के दिए अत्यंत सम्मोहक शारीरिक सौन्दर्य के अलावा उनके अन्दर सगठन और नेतृत्व की जन्मजात प्रतिभा थी पति को निर्वासन में कलकत्ता भेज दिए जाने के बाद उन्होंने सराफा - उद - दौला , महाराज बाल कृष्ण ,राजा जय लाल और इन सबसे बढ़कर मैंमन खान जैसे उत्साही समर्थको के समूह की सहयाता से अवध के भाग्य को पुनर्जीवित करने के लिए निरंतर प्रयास किया | उन्होंने क्रांतिकारी ताकतों के साथ मिलकर लखनऊ को अपने कब्जे में ले लिया और अपने शहजादे बिरजिस कादिर को अवध का नवाब घोषित किया | हजरत महल ने नाना साहब के साथ मिलकर काम किया लेकिन बाद में लखनऊ से निकल कर शाहजहापुर पर हमले में फैजाबाद के मौलवी से मिल गयी | वह अपना ठिकाना बदलती रहती लेकिन धीरज के साथ पीछे हटती | उन्होंने भत्ते और खुद को दिए जाने वाले दर्जे के अंग्रेजो के वादों को नफरत के साथ खारिज कर दिया जिनके विरुद्ध उनकी नफरत समझौता - विहीन थी | प्रतिरोध के समूचे दौर में दुर्भाग्य और गरीबी झेलने के बाद आखिर में उन्हें नेपाल में शरण मिली जहां 1979 में उनकी मौत हो गयी | इस प्रकार रानी लक्ष्मी बाई की तरह उनकी याद अवाम के गीतों और लोकगीतों में अभी भी बनी हुई है | सांतिमोये रे ने अपनी पुस्तक ''फ्रीडम मूवमेंट एवं इन्डियन मुस्लिम '' में ऐसे 224 मुस्लिमो की सूची दर्ज की है , जिन्होंने 1857 में भारत की आजादी के प्रथम संग्राम में लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी | तक़रीबन 40 मुस्लिम देश्भ्कतो को उम्रकैद की सजा सुनाई गयी और उन्हें सेलुलर जेल में डाल दिया गया , जिसे काला - पानी भी कहा जाता है | विद्रोह के बाद जहां भारतीयों के प्रति अंग्रेजो के रवैये में आमचुल परिवर्तन आया वही उन्होंने मुस्लिम समुदाय के लिए सर्वाधिक कटु और घोर शत्रुता जारी रखी | अंग्रेजो ने उनके उपर विरोधी गतिविधियों को बड़े पैमाने पर संचालित करने के आरोप लगाये जिन्हें अंग्रेजो ने मुग़ल बादशाह की सत्ता को बहाल करने के प्रयास के रूप में देखा |
प्रस्तुती - सुनील दत्ता - स्वतंत्रत पत्रकार - समीक्षक -
आभार लेखक - डा पृथ्वी राज कालिया - अनुवादक कामता प्रसाद
Ye history hum sabhi ko janni chahiye.
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