Tuesday, March 27, 2018

बम का दर्शन -- भगत सिंह 27-3-18

बम का दर्शन -- भगत सिंह


हाल की घटनाए ! विशेष रूप से 23 दिसम्बर , 1929 को वायसराय की स्पेशल ट्रेन को उड़ाने का जो प्रयत्न किया गया था , उसकी निंदा करते हुए कांग्रेस द्वारा पारित किया गया प्रस्ताव तथा ''यंग इंडिया '' में गांधी जी द्वारा लिखे गये लेखो से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय राष्ट्रीय काग्रेस ने गांधी जी से साठ- गाठ कर भारतीय क्रान्तिकारियो के विरुद्ध घोर आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया है | जनता के बीच भाषणों तथा पत्रों के माध्यम से क्रान्तिकारियो के विरुद्ध बराबर प्रचार किया जाता रहा है | या तो जानबूझकर किया गया या फिर केवल अज्ञान के कारण उनके विषय में गलत प्रचार होता रहा और उन्हें गलत समझा जाता रहा , परन्तु क्रांतिकारी अपने सिद्धांतो तथा कार्यो की ऐसी आलोचना से नही घबराते है | बल्कि वे ऐसी आलोचना का स्वागत करते है ,क्योकि वे इस बात को स्वर्ण अवसर मानते है कि ऐसा करने से उन्हें उन लोगो की क्रान्तिकारिरो के मूल - भूत सिद्धांतो तथा उच्च आदर्शो को , जो उनकी प्रेरणा तथा शक्ति के अनवरत स्रोत है , समझने का अवसर मिलता है आशा की जाती है कि इस लेख द्वारा आम जनता को यह जानने का अवसर मिलेगा की क्रांतिकारी क्या है ? और उनके विरुद्ध किये गये भ्रामक प्रचार से उत्पन्न होने वाली गलतफहमिया से उन्हें बचाया जा सके |

हिंसा या अंहिसा


पहले हम हिंसा और अहिंसा के प्रश्न पर विचार करे | हमारे विचार से इन शब्दों का प्रयोग ही गलत किया गया हैं , और ऐसा करना ही दोनों दलों के साथ अन्याय करना है , क्योकि इन शब्दों से दोनों ही दलो के सिद्धांतो का स्पष्ट बोध नही हो पाता | हिंसा का अर्थ है अन्याय के लिए किया गया बल प्रयोग , परन्तु क्रान्तिकारियो का तो यह उद्देश्य नही है , दूसरी और अहिंसा का जो आम अर्थ समझा जाता है , वह है आत्मिक शक्ति का सिद्धांत | उसका उपयोग व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय अधिकारों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है | अपने - आप को कष्ट देकर आशा की जाती है कि इस प्रकार अन्त में अपने विरोधी का ह्रदय परिवर्तन सम्भव हो सकेगा | एक क्रांतिकारी जब कुछ बातो को अपना अधिकार मान लेता है तो वह उनकी माँग करता है , अपनी उस माँग के पक्ष में दलीले देता है , समस्त आत्मिक शक्ति के द्वारा उन्हें प्राप्त करने की इच्छा करता है , उसकी प्राप्ति के लिए अत्यधिक कष्ट सहन करता है , इसके लिए वह बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए प्रस्तुत रहता है और उसके समर्थन में वह अपना समस्त शारीरिक बल भी प्रयोग भी करता है | उसके इन प्रयत्नों को आप चाहे जिस नाम से पुकारे , परन्तु आप इन्हें हिंसा नाम से सम्बोधित नही कर सकते , क्योकी ऐसा करना कोष में दिए इस शब्द के अर्थ के साथ अन्याय होगा सत्याग्रह का अर्थ है सत्य के लिए आग्रह | उसकी स्वीकृति के लिए केवल आत्मिक शक्ति के प्रयोग का ही आग्रह क्यों ? इसके साथ - साथ शारीरिक बल - प्रयोग भी क्यों न किया जाए ? क्रांतिकारी स्वतंत्रता - प्राप्ति के लिए अपना शारीरिक एवं नैतिक शक्ति दोनों बल - प्रयोग को निषिद्ध मानते है | इसीलिए अब सवाल यह नही है कि आप हिंसा चाहते है या अहिंसा , बल्कि प्रश्न तो यह है कि आप अपने उद्देश्य - प्राप्ति के लिए शारीरिक बल सहित नैतिक बल का प्रयोग करना चाहते है , या केवल आत्मिक बल का ? आदर्श क्रांतिकारियों का विशवास है कि देश को क्रान्ति से ही स्वतंत्रता मिलेगी | वे जिस क्रान्ति के लिए प्रयत्न शील है और जिस क्रान्ति का रूप उनके सामने स्पष्ट है उसका अर्थ केवल यही नही है कि विदेशी शासको तथा उसके पिट्ठुओ से क्रान्तिकारियो का केवल सशस्त्र संघर्ष हो , बल्कि इस सशत्र संघर्ष के साथ - साथ नई सामजिक व्यवस्था के द्वारा देश के लिए मुक्त हो जाये | क्रान्ति पूंजीवाद , वर्गवाद तथा कुछ लोगो को ही विशेषाधिकार दिलाने वाली प्रणाली का अन्त कर देगी | यह राष्ट्र को अपने पैरो पर खडा करेगी उससे नये राष्ट्र और नए समाज का जन्म होगा | क्रान्ति से सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि वह मजदूर तथा किसानो का राज्य कायम कर उन सब सामाजिक अवांछित तत्वों को समाप्त कर देगी जो देश की राजनितिक शक्ति को हथियाए बैठे है |

आतंकवाद

आज की तरुण पीढ़ी को जो मानसिक गुलामी तथा धार्मिक रुढ़िवादी बंधन पकडे है और उससे छुटकारा पाने के लिए तरुण समाज की जो बेचैनी है , क्रांतिकारी उसी में प्रगतिशीलता के अंकुर देख रहा है | नवयुवक जैसे - जैसे मनोविज्ञान को आत्मसात करता जाएगा वैसे - वैसे राष्ट्र की गुलामी का चित्र उसके सामने स्पष्ट होता जाएगा तथा उसकी देश को स्वतंत्र करने की इच्छा प्रबल होती जायेगी | और उसका यह कर्म तब तक चलता रहेगा जब तक की युवक न्याय क्रोध और क्षोभ से ओरोत -प्रोत हो ये करने वालो की हत्या न प्रारम्भ कर देगा | इस प्रकार देश में आंतकवाद का जन्म होता है | आत्ब्क्वाद सम्पूर्ण क्रान्ति नही और क्रान्ति भी आतंकवाद के बिना पूर्ण नही | यह जो क्रान्ति का एक आवश्यक और अवश्यभावी अंग है | इस सिद्धांत का समर्थन इतिहास की किसी भी क्रान्ति का विश्लेष्ण कर जाना जा सकता है | आतंकवाद आततायी के मन में भय पैदा कर पीड़ित जनता में प्रतिशोध की भावना जागृत कर उसे शक्ति प्रदान करता है | अस्थिर भावना वाले लोग को इससे हिम्मत बढती है तथा उनमे आत्मविश्वास पैदा होता है | क्योकी ये किसी राष्ट्र की स्वतंत्रता की उत्कृष्ट महत्वाकाक्षा का विशवास दिलाने वाले प्रमाण है | जैसे दूसरे देशो में होता आया है , वैसे ही भारत में भी आतंकवाद क्रांति का रूप धारण कर लेगा और अन्त में क्रान्ति से ही देश को सामाजिक राजनितिक तथा आर्थिक स्वतंत्रता मिलेगी |


क्रांतिकारी तौर तरीके
तो यह है क्रांतिकारी के सिद्धांत जिनमे वह विशवास करता है और जिन्हें देश के लिए प्राप्त करना चाहता है | इस तथ्य की प्राप्ति के लिए वह गुप्त तथा खुलेआम दोनों ही तरीको से प्रयत्न कर रहा है | इस प्रकार एक शताब्दी से संसार में जनता तथा शासक वर्ग में जो संघर्ष चला आ रहा है वही अनुभव उसके लक्ष्य पर पहुचने का मार्ग दर्शक है | क्रांतिकारी जिन तरीको में विशवास करता है वे कभी असफल नही हुए |

कांग्रेस और क्रांतिकारी

इस बीच कांग्रेस क्या कर रही थी ? उसने अपना ध्येय स्वराज्य से बदलकर पूर्ण स्वतंत्रता घोषित किया | इस घोषणा से कोई भी व्यक्ति यही निष्कर्ष निकालाएगा की कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा न कर क्रान्तिकारियो के विरुद्ध ही युद्ध की घोषणा कर दी है | इस सम्बन्ध में कनाग्रेस का पहला वार था उसका यह प्रस्ताव जिसमे 23 दिसम्बर 1929 को वायसराय की स्पेशल ट्रेन उड़ाने के प्रयत्न की निंदा की गयी | इस प्रस्ताव का मसविदा गांधी जी ने तैयार किया था और उसको पारित कराने के लिए गांधी जी ने अपनी सारी शक्ति लगा दी | परिणाम यह हुआ की 1913 की सदस्य संख्या में वह केवल 31 मतो से पारित हो सका | क्या इस अत्यल्प बहुमत में भी राजनितिक ईमानदारीi थी ? इस सम्बन्ध में हम सरलादेवी चौधरानी का मत ही यहाँ उद्घृत करे | वे तो जीवन भर कांग्रेस की भक्त रही है | इस सम्बन्ध में प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा है -- मैंने महात्मा गांधी के अनुयायियों के साथ इस विषय में जी बातचीत की , उसमे मुझे मालूम हुआ कि वे इस सम्बन्ध में अपने स्वतंत्र विचार महात्मा जी के प्रति व्यक्तिगत निष्ठा के कारण प्रगट न कर सके , तथा इस प्रस्ताव के विरुद्ध मत देने में असमर्थ रहे , जिसके प्रणेता महात्मा जी थे | जहाँ तक गाँधी जी की दलील का प्रश्न है , उस पर हम बाद में विचार करेंगे | उन्होंने जो दलीले दी है वे कुछ कम या अधिक इस सम्बन्ध में कांग्रेस में दिए गये भाषण का ही वृस्त्रित रूप है |

क्या जनता अंहिसा में विशवास करती है ?

इस दुखद प्रस्ताव में एक बात मार्के की है जिसे हम अनदेखी नही कर सकते वह यह है कि यह सर्वविदित है कि कांग्रेस अहिंसा का सिद्धान्त मानती है और पिछले दस वर्षो से वह उसके समर्थन में प्रचार करती रही है | यह सब होने पर भी प्रस्ताव के समर्थन में , भाषणों में गाली गलौज की गयी | उन्होंने क्रान्तिकारियो को बुजदिल कहा और उसके कार्यो को घृणित | उनमे से एक वक्ता ने धमकी देते हुए यहाँ तक कह डाला की यदि वे ( सदस्य ) गांधी जी का नेतृत्व चाहते है तो उन्हें इस प्रस्ताव को सर्वसम्मती से पारित करना चाहिए | इतना सब कुछ किये जाने पर भी यह प्रस्ताव बहुत थोड़े मतों से ही पारित हुआ यह बात निशंक प्रमाणित हो जाती है , कि देश की जनता पर्याप्त संख्या में क्रान्तिकारियो का समर्थन कर रही है | इस तरह से इसके लिए गांधी ही हमारे बधाई के पात्र है उन्होंने इस प्रश्न पर विवाद खड़ा किया और इस प्रकार संसार को दिखा दिया की कांग्रेस , जो अहिंसा का गढ़ माना जाता है , वह सम्पूर्ण नही तो एक हद तक तो कांग्रेस से अधिक क्रान्तिकारियो के साथ है | इस विषय में गांधी जी ने जो विजय प्राप्त की वह एक प्रकार की हार के बराबर थी और वे ''दिकल्ट आफ दी बम '' लेख द्वारा क्रान्तिकारियो पर दूसरा हमला कर बैठे है | इस सम्बन्ध में आगे कुछ कहने से पूर्व इस लेख पर हम अच्छी तरह विचार करेंगे | इस लेख में उन्होंने तीन बातो का उल्लेख्य किया है | उनका विशवास , उनके विचार और उनका मत | हम उनके विशवास के सम्बन्ध में विश्लेष्ण नही करेंगे , क्योकी विशवास में तर्क के लिए स्थान नही है | गांधी जी जिसे हिंसा कहते है और जिसके विरुद्ध उन्होंने जो तर्क संगत विचार प्रकट किये है ; हम उनका सिलसिलेवार विश्लेष्ण करे |प्रेम का सिद्धांत गाँधी जी सोचते है कि उनकी धारणा सही है कि अधिकतर भारतीय जनता को हिंसा की भावना छू तक नही गयी है और अहिंसा उनका राजनितिक शस्त्र बन गया है | हाल ही में उन्होंने देश का जो भ्रमण किया है , उस अनुभव के आधार पर उनकी यह धारणा बनी है , परन्तु उन्हें अपनी इस यात्रा के इस अनुभव में इस भ्रम में नही पड़ना चाहिए | यह बात सत्य है कि कांग्रेस नेता अपने दौरे वही तक सीमित रखता है जहाँ तक डाकगाड़ी उसे आराम तक पहुचा सकती है , जबकि गाँधी जी ने अपनी यात्रा का दायरा वहां तक बढा दिया है जहाँ तक की मोटरकार द्वारा वे जा सके | इस यात्रा में वे धनी व्यक्तियों के ही निवास स्थानों पर रुके | इस यात्रा का अधिकतर समय उनके भक्तो द्वारा आयोजित गोष्ठियों में की गयी उनकी प्रशंसा सभाओ में यदा - कदा अशिक्षित जनता को दिए जाने वाले दर्शनों में बीता , जिसके विषय में उनका दावा है कि वे उन्हें अच्छी तरह समझते है परन्तु यही बात इस दलील के विरुद्ध है कि वे आम जनता की विचारधारा को जानते | कोई व्यक्ति जन साधारण की विचारधारा को केवल मंचो से दर्शन और उपदेश देकर नही समझ सकता | वह तो केवल इतना ही दावा कर सकता है कि उसने विभिन्न विषयों पर अपने विचार जनता के सामने रखे | क्या गांधी जी ने इन वर्षो में आम जनता के सामाजिक जीवन में भी कभी प्रवेश करने का प्रयत्न किया ? क्या कभी उन्होंने किसी संध्या को गाँव के किसी चौपाल के अलाव के पास बैठकर किसी किसान के विचार जानने का प्रयत्न किया ? क्या किसी कारखाने के मजदुर के साथ एक भी शाम गुजारकर उसके विचार समझने की कोशिश की है ? पर हमने यह किया है और इसलिए हम दावा करते है कि हम आम जनता को जानते है | हम गांधी जी को विशवास दिलाते है कि साधारण भारतीय साधारण मानव के समान ही अंहिसा तथा अपने शत्रु से प्रेम करने की आध्यात्मिक भावना को बहुत कम समझता है | संसार का तो यही नियम है - तुम्हारा एक मित्र है , तुम उसे स्नेह करते हो कभी कभी तो इतना अधिक की तुम उसके लिए प्राण भी दे देते हो | तुम्हारा शत्रु है तुम उससे किसी प्रकार का सम्बन्ध नही रखते हो | क्रान्तिकारियो का यह सिद्धांत नितांत सत्य सरल सीधा है और यह ध्रुव सत्य आदम और हौवा के समय से चला आ रहा है तथा इसे समझने में कभी किसी को कठिनाई नही हुई | हम यह बात स्वंय के अनुभव के आधार पर कह रहे है | वह दिन दूर नही जब लोग क्रन्तिकारी विचारधारा को सक्रिय रूप देने के लिए हजारो की संख्या में जमा होंगे | गांधी जी घोषणा करते है कि अहिंसा के सामर्थ्य तथा अपने आपको पीड़ा देने की प्रणाली से उन्हें यह आशा है कि वे एक दिन विदेशी शासको का ह्रदय परिवर्तन कर अपनी विचारधारा का उन्हें अनुयायी बना लेंगे | अब उन्होंने अपने सामजिक जीवन की इस चमत्कार की 'प्रेम संहिता ' के प्रचार के लिए अपने आपको समर्पित कर दिया है | वे अडिग विशवास के साथ उसका प्रचार कर रहे है , जैसा कि उनके कुछ अनुयाइयो ने भी किया है | परन्तु क्या वे बता सकते है कि भारत में कितने शत्रुओ का ह्रदय परिवर्तन कर उन्हें भारत का मित्र बनाने में समर्थ हुए है ? वे कितने ओडायरो , डायरो तथा रीडिंग और इरविन को भारत का मित्र बना सके है ? यदि किसी को भी नही तो भारत उनकी इस विचारधारा से कैसे सहमत हो सकता है कि वे इंग्लैण्ड को अंहिसा द्वारा समझा बुझाकर इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार कर लेंगे कि वह भारत को स्वतंत्रता दे दें | यदि वायसराय की गाडी के नीचे बमो का ठीक से विस्फोट हुआ होता तो दो में से एक बात अवश्य हुई होती या तो वायसराय अत्यधिक घायल हो जाते या उनकी मृत्यु हो गयी होती | ऐसी स्थिति में वायसराय तथा राजनितिक दलों के नेताओं के बीच मंत्रणा न हो पाती यह प्रयत्न रुक जाता और उससे राष्ट्र का भला होता | कलकत्ता कांग्रस की चुनौती के बादभी स्वशासन की भीख मागने के लिए वायसराय भवन के आस पास मडराने वालो के ये घृणास्पद प्रयत्न विफल हो जाते | यदि बमो का ठीक से विस्फोट हुआ होता तो भारत का एक शत्रु को उचित सजा दे पाता | 'मेरठ ' तथा लाहौर षड्यंत्र और ''भुसावल काण्ड'' का मुकदमा चलाने वाले केवल भारत के शत्रुओ का ही मित्र प्रतीत हो सकती है | साइमन कमिशन के सामूहिक विरोध से देश में जी इकाई स्थापित हो गयी थी , गांधी नेहरु की राजनितिक 'बुद्धिमत्ता ' के बाद ही इरविन उसे छिन्न भिन्न करने में समर्थ हो सका | आज कांग्रेस या उसके चाटुकारों के सिवा कौन जिम्मेदार हो सकता है | इस पर भी हमारे देश में ऐसे लोग है जो उसे भारत का मित्र कहते है |


सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक - आभार प्रकाशक _लोक प्रकाशन गृह

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (30-03-2017) को "सन्नाटा पसरा गुलशन में" (चर्चा अंक-2925) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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