Monday, November 9, 2015

अर्पण 10-11-15

माँ से सुनी एक कहानी ----
अर्पण
बंगाल में एक सुविख्यात शक्तिसाधक हुए है , जिनका नाम था -- रामप्रसाद | उनकी साधना एवं भक्ति ने बंगाल के जन - मन को विभोर किया | उनके गाये गीत तथा उनके द्वारा कहे व लिखे गये भजन आज भी वहा के घर - घर में प्रेम से गाये जाते है | दक्षिणेश्वर के संत रामकृष्ण परमहंस भी उनके भजनों के बड़े अनुरागी थे | ऐसे परम अनुरागी भक्त के पास एक रोज एक युवा साधक का आना हुआ | उस युवा साधक का नाम था निशिकांत भट्टाचार्य |
वह युवक देखने में तेजस्वी प्रतीत होता था | वह दृढ - निश्चयी और देवी भगवती की साधना के प्रति समर्पित - संकल्पित था | परन्तु न जाने क्यों उसका मन बार - बार साधना से उचटता रहता | वह अपने मन को साधना में एकाग्र करने की भरसक कोशिश करता , पर कही न कही उसका ध्यान भटक जाता रोज पाठ करना उसका नित्य नियम था , उसकी दिनचर्या की प्रत्येक महानिशा या तो पाठ में गुजरती थी अथवा देवी - माँ की नामवली के जप में |
उसके स्वरों में आकुलता एवं विरह झलकता था | फिर भी उसके अस्तित्व के किसी कोने में गहरी पीड़ा छिपी थी | उसने आकर अपनी यह व्यथा रामप्रसाद जी को बताई | उन्होंने उसकी पूरी बात ध्यान से सुनी -- जानते हो तुम्हारी समस्या क्या है ? युवक द्वारा जिज्ञासा प्रगट करने पर उन्होंने कहा -- ' तुम युवा हो , भावुक हो , देवी माँ की कृपा को पाना चाहते हो | परन्तु समस्या यह है कि तुम्हारे मन - बुद्दी से सांसारिक लाभ - हानि का गणित अब तक गया नही है |
जगन्माता के चरणों में तुमने अपनी बुद्दी का अर्पण नही किया | बस यही कमी है | बुद्दी को अपनी आत्मा की अनुगामिनी बनाओ | जब तक तुम बुद्दी का समर्पण - रूपांतरण नही कर लेते , तुम्हारा चित्त यू ही उचटा रहेगा | जब तुम माँ के हो गये , तो फिर तुम्हारी बुद्दी उससे विलग क्यों है | अपनी बुद्दी को उसका बना लो | फिर सारी समस्या सुलझ जायेगी | '

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