मित्रता का महत्व
जंगल के बीचो बीच एक बहुत बड़ा सरोवर था | उसके उत्तरी तट पर एक मोर रहता था | एक दिन जंगल में घूमते हुए एक मोरनी भी वहा आ गयी | मोरनी को देखकर मोर बहुँत खुश हो ज्ञा | एक दिन मौक़ा पाकर उसने मोरनी के समक्ष प्रणय का प्रस्ताव रखा | मोरनी ने उससे कहा -- मैं तुम्हे अपना जीवन साथी बना लूँ , पर मैं यह जनाना चाहती हूँ कि तुम्हारे मित्र कितने है ? इस पर मोर ने कहा --- ' मेरा तो एक भी मित्र नही है | ' यह सुनकर मोरनी ने उसके साथ जोड़ा बनाने से इनकार कर डिया | अब मोर सोचने लगा कि सुखपूर्वक रहने के लिए मित्र बनाना भी आवश्यक है | उसने सरोवर के पूर्वी तट पर रहने वाले एक शेर , पश्चिमी तट पर रहने वाले कछुए और बगल में रहने वाली टिटहरी ( जो शेर के लिए शिकार का पता लगाने का काम करती थी ) से दोस्ती कर ली | अब मोर एक बार मोरनी के पास पहुचा और उसने अपने मित्रो के नाम गिनाये | यह जान्ने के बाद मोरनी उसके साथ रहने के लिए तैयार हो गयी | अब उन्होंने वही एक पेड़ पर अपना आशियाना बना लिया और सुखपूर्वक रहने लगे | उस पेड़ पर और भी कई पछियो का बसेरा था | कुछ दिन बाद मोरनी ने घोसले में अंडे दीये | एक दिन जंगल में शिकारी आये | उन्हें दिनभर जंगल में भटकने के बाद वावजूद कोई शिकार नही मिला | आखिर शाम को थक - हार कर वे उसी पेड़ की छाया में आकर ठहर गये और सोचने लगे किपेड़ पर चढ़कर अन्डो - चूजो से भूख मिटाई जाए | यह देखकर मोर दम्पत्ति को बेहद चिंता हुई | मोर सहायता के लिए मित्रो के पास दौड़ा | मोर को मुसीबत में देख टिटहरी ने जोर - जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया | शेर समझ गया कि कोई शिकार है | वह उसी पेड़ के नीचे चला जहा शिकारी बैठे थे | इतने में कछुआ भी पानी से निकलकर बाहर आ गया | शेर से डर कर भागते शिकारियों ने कछुए को ले चलने की बात सोची | जैसे ही उन्होंने कछुए को पकड़ने के लिए हाथ बढाया , कछुआ पानी में खिसक गया और शिकारियों के पैर वही दलदल में फंसकर रह गये | इतने में शेर वह आ गया और उन्हें ठिकाने लगा दिया | यह देख मोरनी ने मोर से कहा --- ' मैंने तुम्हारे साथ जोड़ा बनाने से पूर्व मित्रो के बारे में पूछा था | सो बात काम की निकली ना ! यदि आज ये मित्र ना होते , तो हमारी खैर नही थी | ' मोर ने भी उसकी बात से सहमती जताई और जीवन में मित्रता का महत्व समझाने के लिए उसे धन्यवाद दिया |
जंगल के बीचो बीच एक बहुत बड़ा सरोवर था | उसके उत्तरी तट पर एक मोर रहता था | एक दिन जंगल में घूमते हुए एक मोरनी भी वहा आ गयी | मोरनी को देखकर मोर बहुँत खुश हो ज्ञा | एक दिन मौक़ा पाकर उसने मोरनी के समक्ष प्रणय का प्रस्ताव रखा | मोरनी ने उससे कहा -- मैं तुम्हे अपना जीवन साथी बना लूँ , पर मैं यह जनाना चाहती हूँ कि तुम्हारे मित्र कितने है ? इस पर मोर ने कहा --- ' मेरा तो एक भी मित्र नही है | ' यह सुनकर मोरनी ने उसके साथ जोड़ा बनाने से इनकार कर डिया | अब मोर सोचने लगा कि सुखपूर्वक रहने के लिए मित्र बनाना भी आवश्यक है | उसने सरोवर के पूर्वी तट पर रहने वाले एक शेर , पश्चिमी तट पर रहने वाले कछुए और बगल में रहने वाली टिटहरी ( जो शेर के लिए शिकार का पता लगाने का काम करती थी ) से दोस्ती कर ली | अब मोर एक बार मोरनी के पास पहुचा और उसने अपने मित्रो के नाम गिनाये | यह जान्ने के बाद मोरनी उसके साथ रहने के लिए तैयार हो गयी | अब उन्होंने वही एक पेड़ पर अपना आशियाना बना लिया और सुखपूर्वक रहने लगे | उस पेड़ पर और भी कई पछियो का बसेरा था | कुछ दिन बाद मोरनी ने घोसले में अंडे दीये | एक दिन जंगल में शिकारी आये | उन्हें दिनभर जंगल में भटकने के बाद वावजूद कोई शिकार नही मिला | आखिर शाम को थक - हार कर वे उसी पेड़ की छाया में आकर ठहर गये और सोचने लगे किपेड़ पर चढ़कर अन्डो - चूजो से भूख मिटाई जाए | यह देखकर मोर दम्पत्ति को बेहद चिंता हुई | मोर सहायता के लिए मित्रो के पास दौड़ा | मोर को मुसीबत में देख टिटहरी ने जोर - जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया | शेर समझ गया कि कोई शिकार है | वह उसी पेड़ के नीचे चला जहा शिकारी बैठे थे | इतने में कछुआ भी पानी से निकलकर बाहर आ गया | शेर से डर कर भागते शिकारियों ने कछुए को ले चलने की बात सोची | जैसे ही उन्होंने कछुए को पकड़ने के लिए हाथ बढाया , कछुआ पानी में खिसक गया और शिकारियों के पैर वही दलदल में फंसकर रह गये | इतने में शेर वह आ गया और उन्हें ठिकाने लगा दिया | यह देख मोरनी ने मोर से कहा --- ' मैंने तुम्हारे साथ जोड़ा बनाने से पूर्व मित्रो के बारे में पूछा था | सो बात काम की निकली ना ! यदि आज ये मित्र ना होते , तो हमारी खैर नही थी | ' मोर ने भी उसकी बात से सहमती जताई और जीवन में मित्रता का महत्व समझाने के लिए उसे धन्यवाद दिया |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-11-2015) को "मैला हुआ है आवरण" (चर्चा-अंक 2175) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शिक्षाप्रद कहानी
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