मानव पूजी से ही होगा सबका विकास
स्वस्थ और सुशिक्षित नागरिक ही किसी देश के विकास की जमानत होते है | अर्थशास्त्र की शब्दावली में इसे मानव पूजी कहा जाता है | अर्थशास्त्र में , आम तरीके से उत्पादन के पांच साधन माने जाते है , जिसमे श्रम व पूजी दो महत्वपूर्ण सक्रिय साधन माने गये है | नोबेल पुरूस्कार विजेता अर्थशास्त्री थ्योडोर शुल्त्ज ने 1961 में पहली बार मानव पूजी का तसव्वुर पेश किया | अमेरिकन इकोनामिक रिव्यू के मार्च 1961 के अंक में प्रकाशित उनके आलेख में उन्होंने व्यक्ति की शिक्षा , प्रशिक्ष्ण , कौशल उन्नयन आदि पर किये जाने वाले सभी व्यव उसकी उत्पादकता कार्यकुशलता , तथा आमदनी में वृद्दि करते है | वही मानव पूजी की भूमिका के बारे में नोबल पुरूस्कार से सम्मानित अमेरिका के ही एक और विश्वविख्यात अर्थशास्त्री गैरी बेकर ने कहा था कि मानव पूजी का आशय दक्षता , शिक्षा स्वास्थ्य और लोगो को प्रशिक्ष्ण से है | यह पूजी है क्योकि ये दक्षताए या शिक्षा लम्बे समय तक हमारा अभिन्न बनी रहेगी | उसी तरह जिस तरह कोई मशीन , प्लाट या फैक्ट्री उत्पादन का हिस्सा बने रहते है | किस्सा कोताह यह है कि सैद्दांतिक रूप से पूजी दो प्रकार है | पहली वो जो मूर्तरूप में दिखाई देती है -- भौतिक पूजी है | इस पूजी का उत्पादन कार्य में प्रत्यक्ष प्रयोग होता है | दूसरी , मानव पूजी जो मूर्तरूप से दिखाई नही देती लेकिन जो उत्पादन की गुणवत्ता तथा मात्रा दोनों में वृद्दि करती है | उसमे श्रमिक के श्रम कौशल के साथ - साथ , स्वरोजगार करने वाले व उद्यमी का उद्यमिता कौशल भी शामिल होता है | बेकर कोरिया का उदाहरण देते हुए कहते है कि समूचा कोयला उत्तरी कोरिया में है , दक्षिण कोरिया में नही | कोरियाई युद्द से पहले उत्तरी कोरिया - कोरिया का अपेक्षाकृत समृद्द हिस्सा था | आज उत्तर कोरिया आर्थिक रूप से चरमराया गया है | जबकि दक्षिण कोरिया समृद्द लोकतांत्रिक देश के तौर पर उभरा है | मुझे लगता है कि दक्षिण कोरिया की समृद्दी इसीलिए है कि उसने अपनी आबादी की प्रतिभा को प्रोत्साहन देने और उसका उपयोग करने को लेकर खासा प्रयास किया | मतलब यह है कि मानव पूजी वह महत्वपूर्ण सम्पत्ति है , जिसके जरिये भौतिक संसाधनों की कमी के वावजूद प्रगति का रास्ता तेजी के साथ तय किया जा सकता है |
पिछले हफ्ते विश्व आर्थिक मंच यानी डब्लूईएफ द्वारा जारी ह्यूमन कैपिटल रिपोर्ट 2015 के अनुसार , 124 देशो की सूची में भारत मानव पूजी सुचांक में 57.62 अंक के साथ 100वे स्थान पर है | डब्लूईएफ द्वारा तैयार की गयी मानव पूजी रिपोर्ट के अनुसार भारत , न केवल ब्रिक्स देशो - रूस , चीन , ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रिका से नीचे है , बल्कि भारतीय उपमहादीप के उसके पड़ोसी देशो श्रीलंका , भूटान , तथा बाग्लादेश से भी नीचे है | मानव पूजी के दोनों आयामों - शिक्षा और स्वास्थ्य में भारत की हालत पतली है | हाल ही में साख्यिकी और कार्यक्रम कार्यन्वयन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय ने 71 वे दौरे के सर्वेक्षण के आकडे जारी किये है | इस दौर का सर्वेक्षण ' सामजिक उपयोग शिक्षा ' विषय पर कराया गया था | इन आकड़ो के मुताबिक़ , ग्रामीण इलाको में साक्षरता दर 71 प्रतिशत है , जबकि इसकी तुलना में शहरी इलाको में यह 86 फीसदी है | साथ ही साठ वर्ष और उससे अधिक उम्र वाली साक्षर महिलाओं की तुलना में पुरुषो में अधिक साक्षरता देखी गयी |
यह तो रही सिर्फ साक्षरता की बात | ध्यान रहे , तकनीकी रूप से साक्षर होने में और वास्तविक साक्षर में बड़ा अंतर है | असलियत में अधिसंख्य साक्षर अर्धसाक्षर ही है | उच्च शिक्षा , जो की मानव पूजी का अहम् हिस्सा है , में भारत का प्रदर्शन काफी निराशाजनक है | आंकड़े बताते है कि ग्रामीण इलाको में 4.5 फीसदी पुरुषो और 2.2 फीसदी महिलाओं ने स्नातक या उससे अधिक स्तर की शिक्षा पूरी की है | वही शहरी इलाको में 17 प्रतिशत पुरुषो और 12 प्रतिशत महिलाओं ने इस स्तर तक शिक्षा पूरी की | मतलब साफ़ है आर्थिक विकास की नित - नई सीढिया चढ़ता भारत अभी भी उच्च शिक्षा के मामले में काफी पीछे है |
दूसरी तरफ , स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी कोई तसल्लीबख्श प्रदर्शन नही है | कुछ समय पहले ' सेव द चिल्ड्रन ' की विश्व की माओ की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट में भारत को दुनिया के 80 कम विकसित देशो में 76 वा स्थान मिला है | इस मामले में भारत कई गरीब अफ़्रीकी देशो से भी पीछे है | रिपोर्ट के मुताबिक़ , भारत में हर 140 महिलाओं में से एक पर बच्चे को जन्म के दौरान मरने का जोखिम रहता है | यह आकडा चीन और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशो की तुलना में कही अधिक है | चीन में हर 1500 महिलाओं में एक महिला पर प्रसव के दौरान मौत का खतरा होता है , वही श्रीलंका में यह आकडा 1100 पर एक और म्यामार में 180 पर एक है | ध्यान रहे की संयुक्त राष्ट्र की ' द पावर आफ 1.8 बिलियन ' नामक रिपोर्ट के मुताबिक़ , कुल जनसंख्या के मामले में हलाकि भारत चीन से पीछे है , लेकिन 10 - 24 साल की उम्र के 35.6करोड़ लोगो के साथ भारत सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है | रिपोर्ट में कहा गया है की अपनी बड़ी युवा आबादी के साथ विकासशील देशो की अर्थव्यवस्थाए नई उंचाई पर जा सकती है , बशर्ते वे युवा लोगो की शिक्षा व स्वास्थ्य में भारी निवेश करे |
अगर देश को दीर्घकालिक विकास के पथ पर ले जाना है तो इसके लिए स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रो में पहल तो करनी ही होगी | इस साल के बजट आवटन में इन क्षेत्रो को भारी अनदेखी हुई है | जाहिर है कि अगर मानव पूजी निर्माण करना है तो शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को और ज्यादा मजबूत और जिम्मेदार बनाना होगा | और ऐतिहासिक तौर पर यह स्वंय - सिद्द तरीका भी है |
स्वस्थ और सुशिक्षित नागरिक ही किसी देश के विकास की जमानत होते है | अर्थशास्त्र की शब्दावली में इसे मानव पूजी कहा जाता है | अर्थशास्त्र में , आम तरीके से उत्पादन के पांच साधन माने जाते है , जिसमे श्रम व पूजी दो महत्वपूर्ण सक्रिय साधन माने गये है | नोबेल पुरूस्कार विजेता अर्थशास्त्री थ्योडोर शुल्त्ज ने 1961 में पहली बार मानव पूजी का तसव्वुर पेश किया | अमेरिकन इकोनामिक रिव्यू के मार्च 1961 के अंक में प्रकाशित उनके आलेख में उन्होंने व्यक्ति की शिक्षा , प्रशिक्ष्ण , कौशल उन्नयन आदि पर किये जाने वाले सभी व्यव उसकी उत्पादकता कार्यकुशलता , तथा आमदनी में वृद्दि करते है | वही मानव पूजी की भूमिका के बारे में नोबल पुरूस्कार से सम्मानित अमेरिका के ही एक और विश्वविख्यात अर्थशास्त्री गैरी बेकर ने कहा था कि मानव पूजी का आशय दक्षता , शिक्षा स्वास्थ्य और लोगो को प्रशिक्ष्ण से है | यह पूजी है क्योकि ये दक्षताए या शिक्षा लम्बे समय तक हमारा अभिन्न बनी रहेगी | उसी तरह जिस तरह कोई मशीन , प्लाट या फैक्ट्री उत्पादन का हिस्सा बने रहते है | किस्सा कोताह यह है कि सैद्दांतिक रूप से पूजी दो प्रकार है | पहली वो जो मूर्तरूप में दिखाई देती है -- भौतिक पूजी है | इस पूजी का उत्पादन कार्य में प्रत्यक्ष प्रयोग होता है | दूसरी , मानव पूजी जो मूर्तरूप से दिखाई नही देती लेकिन जो उत्पादन की गुणवत्ता तथा मात्रा दोनों में वृद्दि करती है | उसमे श्रमिक के श्रम कौशल के साथ - साथ , स्वरोजगार करने वाले व उद्यमी का उद्यमिता कौशल भी शामिल होता है | बेकर कोरिया का उदाहरण देते हुए कहते है कि समूचा कोयला उत्तरी कोरिया में है , दक्षिण कोरिया में नही | कोरियाई युद्द से पहले उत्तरी कोरिया - कोरिया का अपेक्षाकृत समृद्द हिस्सा था | आज उत्तर कोरिया आर्थिक रूप से चरमराया गया है | जबकि दक्षिण कोरिया समृद्द लोकतांत्रिक देश के तौर पर उभरा है | मुझे लगता है कि दक्षिण कोरिया की समृद्दी इसीलिए है कि उसने अपनी आबादी की प्रतिभा को प्रोत्साहन देने और उसका उपयोग करने को लेकर खासा प्रयास किया | मतलब यह है कि मानव पूजी वह महत्वपूर्ण सम्पत्ति है , जिसके जरिये भौतिक संसाधनों की कमी के वावजूद प्रगति का रास्ता तेजी के साथ तय किया जा सकता है |
पिछले हफ्ते विश्व आर्थिक मंच यानी डब्लूईएफ द्वारा जारी ह्यूमन कैपिटल रिपोर्ट 2015 के अनुसार , 124 देशो की सूची में भारत मानव पूजी सुचांक में 57.62 अंक के साथ 100वे स्थान पर है | डब्लूईएफ द्वारा तैयार की गयी मानव पूजी रिपोर्ट के अनुसार भारत , न केवल ब्रिक्स देशो - रूस , चीन , ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रिका से नीचे है , बल्कि भारतीय उपमहादीप के उसके पड़ोसी देशो श्रीलंका , भूटान , तथा बाग्लादेश से भी नीचे है | मानव पूजी के दोनों आयामों - शिक्षा और स्वास्थ्य में भारत की हालत पतली है | हाल ही में साख्यिकी और कार्यक्रम कार्यन्वयन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय ने 71 वे दौरे के सर्वेक्षण के आकडे जारी किये है | इस दौर का सर्वेक्षण ' सामजिक उपयोग शिक्षा ' विषय पर कराया गया था | इन आकड़ो के मुताबिक़ , ग्रामीण इलाको में साक्षरता दर 71 प्रतिशत है , जबकि इसकी तुलना में शहरी इलाको में यह 86 फीसदी है | साथ ही साठ वर्ष और उससे अधिक उम्र वाली साक्षर महिलाओं की तुलना में पुरुषो में अधिक साक्षरता देखी गयी |
यह तो रही सिर्फ साक्षरता की बात | ध्यान रहे , तकनीकी रूप से साक्षर होने में और वास्तविक साक्षर में बड़ा अंतर है | असलियत में अधिसंख्य साक्षर अर्धसाक्षर ही है | उच्च शिक्षा , जो की मानव पूजी का अहम् हिस्सा है , में भारत का प्रदर्शन काफी निराशाजनक है | आंकड़े बताते है कि ग्रामीण इलाको में 4.5 फीसदी पुरुषो और 2.2 फीसदी महिलाओं ने स्नातक या उससे अधिक स्तर की शिक्षा पूरी की है | वही शहरी इलाको में 17 प्रतिशत पुरुषो और 12 प्रतिशत महिलाओं ने इस स्तर तक शिक्षा पूरी की | मतलब साफ़ है आर्थिक विकास की नित - नई सीढिया चढ़ता भारत अभी भी उच्च शिक्षा के मामले में काफी पीछे है |
दूसरी तरफ , स्वास्थ्य के मोर्चे पर भी कोई तसल्लीबख्श प्रदर्शन नही है | कुछ समय पहले ' सेव द चिल्ड्रन ' की विश्व की माओ की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट में भारत को दुनिया के 80 कम विकसित देशो में 76 वा स्थान मिला है | इस मामले में भारत कई गरीब अफ़्रीकी देशो से भी पीछे है | रिपोर्ट के मुताबिक़ , भारत में हर 140 महिलाओं में से एक पर बच्चे को जन्म के दौरान मरने का जोखिम रहता है | यह आकडा चीन और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशो की तुलना में कही अधिक है | चीन में हर 1500 महिलाओं में एक महिला पर प्रसव के दौरान मौत का खतरा होता है , वही श्रीलंका में यह आकडा 1100 पर एक और म्यामार में 180 पर एक है | ध्यान रहे की संयुक्त राष्ट्र की ' द पावर आफ 1.8 बिलियन ' नामक रिपोर्ट के मुताबिक़ , कुल जनसंख्या के मामले में हलाकि भारत चीन से पीछे है , लेकिन 10 - 24 साल की उम्र के 35.6करोड़ लोगो के साथ भारत सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है | रिपोर्ट में कहा गया है की अपनी बड़ी युवा आबादी के साथ विकासशील देशो की अर्थव्यवस्थाए नई उंचाई पर जा सकती है , बशर्ते वे युवा लोगो की शिक्षा व स्वास्थ्य में भारी निवेश करे |
अगर देश को दीर्घकालिक विकास के पथ पर ले जाना है तो इसके लिए स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रो में पहल तो करनी ही होगी | इस साल के बजट आवटन में इन क्षेत्रो को भारी अनदेखी हुई है | जाहिर है कि अगर मानव पूजी निर्माण करना है तो शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को और ज्यादा मजबूत और जिम्मेदार बनाना होगा | और ऐतिहासिक तौर पर यह स्वंय - सिद्द तरीका भी है |
No comments:
Post a Comment