Monday, March 26, 2018

इण्डिया विन्स फ्रीडम - 26-3-18

इण्डिया विन्स फ्रीडम

भारत विभाजन के गुनहगार -- डा राम मनोहर लोहिया
भारत की आजादी के साथ जुडी देश - विभाजन की कथा बड़ी व्यथा - भरी है | आजादी के सुनहरे भविष्य के लालच में देश की जनता ने देश -विभाजन का जहरीला घूंट दवा की तरह पी लिया , लेकिन प्रश्न आज तक अनुत्तरित ही बना हुआ है कि क्या भारत - विभाजन आवश्यक था ही ? इस सम्बन्ध में मौलाना अबुलकलाम आजाद ने अवश्य लिखा है और उन्होंने विभाजन की जिम्मेदारी तत्कालीन अन्य नेताओं पर लादी है | डा राम मनोहर लोहिया ने विभाजन के निर्णय के समय होने वाली सभी घटनाओं को प्रत्यक्ष देखा था और उन्होंने देश विभाजन के कारणों और उस समय के नेताओं के आचरण पर बड़ी निर्भीकता से विश्लेष्ण किया है |
इंडिया विन्स फ्रीडम -
विश्लेषण - डा लोहिया
मौलाना आजाद की किताब , थोडा - थोड़ा करके ही शै , पर मैंने पूरी पढ़ी है | उसके परिक्षण के समय , | जिससे बड़े पैमाने पर लाभ ही हो सकता है |
एक खूब स्थायी प्रभाव जो पुस्तक ने मुझ पर छोड़ा है , वह है समुदायों और राष्ट्रों के आचरण के सम्बन्ध में | समुदाय और राष्ट्र अक्सर अपनी ही वास्तविकता और व्यापक हितो को समझ पाने में असमर्थ रहते है और सहज रूप में वे सम्वेदनशील तथा अल्प फलदायक नतीजो के पीछे बह जाते है | मौलाना आजाद ने कही भी स्पष्ट रूप से इसकी चर्चा नही की है | जब वे बोल कर किताब लिखवा रहे थे , तब वे इसके प्रति सतर्क न रहे होंगे | लेकिन इस बात में कोई शंका नही कि मौलाना आजाद एक बढ़िया मुसलमान थे और मिस्टर जिन्ना इतने बढ़िया मुसलमान न थे फिर भी भारत के मुसलमानों ने ऐसे व्यक्ति की अगुवाई के लिए चुना जो उनके हितो को अच्छी तरह साध न सका | गोयाकि उस समय एक और मुसलमान था जो इन दोनों से महान था , लेकिन वह जन्म व विशवास से मुसलमान न था न कि राजनीति में | मौलाना आजाद ने उसकी चर्चा लगभग नीचता पूर्वक की है और यह कोई आश्चर्य की बात नही | मौलाना आजाद को मिस्टर जिन्ना से बढ़िया मुसलमान कहने में , मेरा तात्पर्य उनकी धार्मिकता से तनिक भी नही है , न इससे की इस्लाम के सिद्धांतो को किस सीमा तक उन्होंने समझा है या अपने जीवन में - आचरण में उनको उतरा है | मेरा सम्बन्ध केवल इसी हद तक है जहां तक उन्होंने भारत के मुसलमानों का हित - साधन किया है | दोनों ने बाहर से बहुत मुखर होकर , खुलकर और शायद आंतरिक लालसा से भी समस्त भारतीय जन के हितो से अलग हटकर मुस्लिम हितो को समझने का प्रयत्न किया | मौलाना मुस्लिम हितो के मिस्टर जिन्ना से अधिक अच्छे सेवक थे | लेकिन मुसलमानों ने उनकी सेवा को ठुकरा दिया | यह बात मुझे तब कौधि जब मैंने अंतिम समय से पहले वाले ब्रिटिश प्रस्ताव पर मौलाना आजाद के वक्तव्य को दूसरी बार पढ़ा और जो पुस्तक में अन्यत्र उद्घृत है | तब ब्रिटेन ने एक विधान प्रस्तावित किया था जिसमे प्रान्तों को अधिकतम स्वायत शासन स्वीकृत था | असल में , तब भारत की केन्द्रीय सरकार के पास केवल प्रतिरक्षा , विदेश निति और यातायात तथा ऐसे ही अधिकार जो प्रांत उसे सौपना पसंद करते , के अलावा और कुछ न रहता | फिर प्रान्तों को विभिन्न श्रेणियों में पुनर्गठित किया जाता जैसे उत्तर - पूर्वी या उत्तर - पश्चिमी | श्री आजाद स्वंय भी ब्रिटिश वायसराय के साथ इस प्रस्ताव का जनक होने का दावा करते है | अन्ततोगत्वा प्रस्ताव ठुकरा दिया गया था | इस पर श्री आजाद का वत्क्तव्य और अभिव्यक्ति दोनों की स्पष्टता का आदर्श नमूना है | वह दृढ़ता पूर्वक कहते है कि भारत में विभाजन की योजना मुस्लिम हितो के लिए हानिकारक होगी | जिन प्रान्तों में मुसलमानों का बहुमत है वहाँ उन्हें इससे कुछ ठोस न मिल सकेगा , मुकाबले उसके जो अधिकतम प्रांतीय स्वायत्त शासन के विधान के अंतर्गत उन्हें मिल सकेगा | इससे भारत के बड़े भाग के मुस्लमानो से बहुत कुछ छीन जाएगा और वहाँ वे प्रभावपूर्ण आवाज के बिना ही रह जायेंगे | बाद की घटनाओं ने उनकी बात को सत्य साबित किया है | भारत के विभाजन ने यदि अधिक नही तो मुसलमानों का उतना ही अहित किया है जितना हिन्दुओ का | यद्दपि मौलाना आजाद का वक्तव्य कुछ अधिक तर्कपूर्ण , कुछ अधिक स्पष्ट है जो सम्भवत ऐसे आदमियों की पहचान है जो दुसरे रूपों में तो प्रतिभा सम्पन्न होते है पर इतने बड़े नही होते की घटनाओं को मोड़ दे सके | अधिकतम प्रांतीय स्वायत्त का यह प्रस्ताव निश्चित रूप से मुसलमानों के हितो की रक्षा आश्चर्यजनक सीमा तक करता | सम्भवत इससे उनके अंहकार या महानता की लालसा को भी संतोष न मिलता , जो दो ऐसे आवेग है जिनमे परस्पर एक दुसरे से भेद कर पाना कठिन है | इसके परिणाम स्वरूप हिन्दुओ और मुसलमानों के बीच काफी संघर्ष भी हो सकता था और दोनों में किसी एक की स्थित नैराश्य की भी हो सकती थी यद्दपि आवश्यक नही कि वह इतनी अधिक होती की जिस पर विजय पाना असम्भव होता | अपने वक्तव्य में श्री आजाद न तो मनुष्य की निर्बलता के प्रति सतर्क है और न स्थिति की वास्तविकता के ही ! वे विलक्ष्ण रूप से मुस्लिम हित की सुरक्षा की अपनी कामना के प्रति विवेकशील है | भारत के मुसलमान अपने इस विवेकशील नेता का अनुसरण करके अपने हितो के लिए अच्छा करते , किन्तु न कर सके , यही तो मानव का अभिशाप है | मनुष्य सदा ही सारहीन महानता के पीछे दौड़ता है जो उसे छलती है वह लगातार स्वंय निर्मित झूठे भय से व्याकुल रहता है | काल्पनिक भय और सारहीन महानता की चक्की के इन दो पाटो के बीच वह पीस कर दुर्घटना का शिकार होता है जो प्राय शानदार नही होती | भारत का विभाजन एक जघन्य दुर्घटना थी | यद्दपि परिणाम भयानक था और अनेक महान दुर्घटनाओ की अपेक्षा अधिक ही प्राणियों को इसमें नष्ट होना पडा | यदि भारत का मुस्लिम अपने स्वार्थ - हित को समझने में असमर्थ था तो हिन्दू समुदाय या समस्त भारतीय जन की बात ही क्या ? इसमें कोई शक नही कि हिन्दुओ में भी विवेक की उतनी ही कमी थी और इसलिए समस्त जनता में भी | बहुत बड़ी तादात में लोगो में यह तो आज भी कम है | यह एक साधारण भ्रान्ति फैली है कि यदि एक योजना द्वारा मुस्लिम हितो की रक्षा हो जाती है तो स्वाभाविक रूप से वह हिन्दुओ और दुसरे हितो को आघात पहुचायेगी | जनता के बीच बने विभिन्न समुदाय बहुधा इस भ्रान्ति के शिकार होते है | वे सिद्धांत रूप में मानते है कि एक समुदाय के हित दुसरो के विपरीत होते है | अवश्य ही यह कुछ स्थलों पर सत्य भी हो सकता है ? पर दुसरो के लिए आंशिक सत्य और पूर्णत: असत्य | देश के विभाजन के पूर्व वास्तव में हिन्दू या मुस्लिम हित क्या था , और आज तक क्या है ? घनिष्ठ जांच के लिए की हिन्दू या मुसलमान हित जैसा तब था या जैसा आज है , संसदीय सरकारी या व्यापारी हितो के क्षेत्र से और साधारण आर्थिक एवं सामूहिकता के कुछ उदाहरण कोई भी चुन सकता है निसंदेह किसी एक गणतंत्र राज्य के दो राष्ट्रपति नही हो सकते , न एक चुनाव क्षेत्र के दो संसद सदस्य इस झगड़े के हल के लिए रास्ता खोजने के निश्चय ही दुनिया के कुछ राष्ट्रों में प्रयत्न किये गये है | उनका सविधान जिम्मा लेता है , जैसे राष्ट्रपति का पद एक समुदाय का और प्रधानमन्त्री का पद दुसरे समुदाय का , लेकिन ऐसा हल एक या दुसरे समुदाय को असंतुष्ट रखेगा और एक दुसरे के अधिकार प्रभावकारी होने से एक या दुसरे के मन में जलन भी पैदा हो सकती है | कोई भी निर्भीकता से कह सकता है की श्री आजाद के सुझाव से कम से कम शुरू की स्थिति में हिन्दुओ के इस सीमित और संसदीय हित को नुक्सान पहुच सकता है |
सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-03-2018) को ) "घटता है पल पल जीवन" (चर्चा अंक-2923) पर होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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