Thursday, April 19, 2018

बाजारीकरण ने नारी के जननी होने की युगों पुरानी गरिमा को कलंकित करने का काम किया है ? 19-4-18

बाजारीकरण ने नारी के जननी होने की युगों पुरानी गरिमा को कलंकित करने का काम किया है ?


पिछले 15-20 सालो से महिला सशक्तिकरण एक बहुचर्चित मुद्दा बना हुआ है | महिलाओं में सुन्दर दीखने - दीखाने का चलन बढ़ता चला जा रहा है | इन सालो में शहरों से लेकर कस्बो तक में व्यूटी पार्लर के बढ़ते सेंटर के साथ नये - नये किस्म के और हर रंग रोगन वाले प्रसाधन के मालो - सामानों का बढ़ता बिक्री बाजार सुन्दर दिखने - दिखाने के इसी चलन को परीलक्षित करता है | इस सन्दर्भ में 8 मार्च के दैनिक जागरण में महिला लेखिका क्षमा शर्मा जी का ''सौन्दर्य केन्द्रित स्त्री विमर्श '' शीर्षक से लेख प्रकाशित हुआ था | लेखिका का कहना है कि महिला सशक्तिकरण के नाम पर औरतो को सुन्दर दिखने और बालीवुड को आदर्श बनाये जाने के कारण भी इन दिनों तमाम उम्र दराज महिलाए भी अपने हाथो , चेहरे और गर्दन की झुरिया मिटवा रही है | औरतो की यह छवि बनाई गयी है कि अगर वे सुन्दर नही है तो किसी काम की नही है | उनका जीवन व्यर्थ है | खुबसूरत दिखने की चाहत कोई बुरी बात नही है , लेकिन सब कुछ भूलकर सिर्फ खुबसूरत दिखने की बात ही अब प्रमुख हो गयी है | ---
महिलाओं को सौन्दर्य के इन उल जुलूल मानको को चुनौती देनी चाहिए थी , मगर ऐसा होते हुए कही दीखता नही | दीखता तो वह है , जिसे स्त्रीवादी नारों में लपेटकर बेचा जाता है और मुनाफ़ा कमाया जा रहा है | --
औरतो का असली सशक्तिकरण उसकी बुद्धि और कौशल से ही हो सकती है , लेकिन जब तक लडकियों को यह सिखाया जाता रहेगा कि तुम्हारे जीवन का मूलमंत्र सुन्दर दिखना भर है , तब तक महिलाओं के सशक्तिकरण की राह आसान होने वाली नही है |
लेखिका ने महिलाओं , लडकियों में सुन्दर दिखाने की बढती प्रवृति को अपने लेख में कई ढंग से उठाया है और उस पर सही व सटीक टिपण्णी तथा आलोचना भी किया है | पर उन्होंने इस प्रवृति व चलन के कारणों व कारको पर लेख में कोई चर्चा नही किया है | फिर उन्होंने इस अंध सौन्दर्यबोध एवं प्रचलन को रोकने के किसी कारगर तरीके को भी नही सुझाया - या बताया है | हाँ यह बात जरुर कही है कि औरत का असली सशक्तिकरण उनके बुद्धिकौशल से ही हो सकता है , न की सौन्दर्य के प्रतिमानों पर खरा उतर कर '|
लेखिका की इस बात में बुद्धि और कौशल के साथ श्रम को भी अनिवार्य रूप से जोड़ा जाना चाहिए | सही बात तो यह है कि पुरुषो व महिलाओं के श्रम ने ही उन्हें और पूरे समाज को सशक्त बनाने का काम किया है | उनके श्रमबल ने ही परिवार और समाज को बुद्धि एवं कौशल के क्षेत्र में भी सशक्त बनाया है | इसके बावजूद श्रम , बुद्धि एवं कौशल को खासकर श्रम व श्रमिक वर्ग की महिला एवं पुरुष को महत्व नही दिया जाता | अधिकाधिक पैसा पाने ,कमाने वाली को कही ज्यादा महत्व मिलता है , जबकि अधिकाधिक श्रम से घर परिवार व समाज को खड़ा करने महिलाओं व पुरुषो को आमतौर पर कोई महत्व नही मिल पाता | वास्तविकता है कि आधुनिक युग में धन - सम्पत्ति , पैसे - पूंजी के साथ उनके द्वारा बढावा दिए जाने वाले मुद्दों - मसलो को ही प्रमुखता मिलती रही है | पैसे , पूंजी तथा उत्पादन बाजार के धनाढ्य मालिको द्वारा नारी सुन्दरता के विज्ञापन प्रदर्शन को बाजार व प्रचार का प्रमुख मामला बना दिया गया है | इसी के फलस्वरूप नारी की दैहिक सुन्दरता और उसके प्रतिमान लडकियों , महिलाओं के आदर्श बनते जा रहे है |
मध्ययुग में सामन्ती मालिको ने नारी और उसकी दैहिक सुन्दरता को अपने भोग - विलास के रूप में अपनाने का काम किया था | उनके चारणों ने वैसे ही वर्णन लेखन को प्रमुखता से अपनाया था | हालाकि उसका असर जनसाधारण पर बहुत कम पडा | लेकिन आधुनिक उद्योग व्यापार के धनाढ्य मालिको ने नारी सुन्दरता को अपने मालो - सामानों के प्रचार विज्ञापन का प्रमुख हथकंडा बना लिया है | उन्होंने पुरुष समाज में नारी की दैहिक सुन्दरता के प्रति बैठे सदियों पुरानी भावनाओं , प्रवृत्तियों का इस्तेमाल अपने मालो - सामानों के विज्ञापनों एवं प्रचारों को बढाने में कर लिया है | बढ़ते माल उत्पादन तथा उसके बिक्री बाजार के साथ नारी सुन्दरता के इस इस्तेमाल का , उसके अधिकाधिक प्रदर्शन का चलन भी बढ़ता जा रहा है | नारी सौन्दर्यबोध के लिए प्रतिमानों के , उन्हें बढाने वाले प्रतिष्ठानों तथा प्रसाधन के ससाधनो की बाढ़ आती गयी है | इसी के साथ नए धंधे के रूप में उच्चस्तरीय फैशनबाजी माडलबाजी को लगातार बढ़ाया जाता रहा है | अंतर्राष्ट्रीय , राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर ब्यूटी क्वीन चुने जाने की चलन सालो साल बढ़ता रहा है | विकसित साम्राज्यी देशो में यह चलन काफी पहले से शुरू हो गया था | इस देश में भी इसका चलन 1980 - 85 के बाद जोर पकड़ता गया है | जैसे - जैसे देश - विदेश की धनाढ्य कम्पनियों को अधिकाधिक छूटे व अधिकार देने के साथ उनके मालिकाने के उत्पादन व बाजार को बढ़ावा दिया जाता रहा है , वैसे - वैसे उन मालो - सामानों के विज्ञापन प्रचार में नारी की दैहिक सुन्दरता का प्रचार बढ़ता रहा है | अर्द्धनग्न रूप में नारी सुन्दरता का प्रचार बढ़ता रहा है | पुरुषो की तुलना में नारियो को माडलों , फिल्मो सीरियलों से लेकर अब आम समाज में कम से कम वस्त्रो के साथ पेश किया जाता है | उपर से नीचे तक फ़ैल रहे या कहिये फैलाए जाते रहे नारी देह की बहुप्रचारित सुन्दरता का इस्तेमाल अब लडकियों , लडको की युवा पीढ़ी को फँसाये रखने के लिए तथा उन्हें जीवन की तथा समाज की गंम्भीर समस्याओं से विरत करने के लिए भी किया जा रहा है | नारी सुन्दरता के साथ यौन सम्बन्धो का खुले रूप में बढाये जाते रहे प्रोनोग्राफी आदि के बढ़ते प्रचारों के जरिये खासकर अल्पव्यस्क एवं युवा वर्ग के लोगो में ''सेक्स का नशा '' बढ़ाया जा रहा है | शराबखोरी एवं ड्रग्स एडिक्शन की तरह इसे एक नशे की तरह आम समाज में उतारा गया है | यह महिला उत्पीडन एवं बलात्कार को बढाने का एक अहम् कारण बनता जा रहा है | इस बात में कोई संदेह नही है कि आधुनिक बाजारवादी जनतांत्रिक युग ने घर परिवार के दायरे में सीमित नारियो को उससे बाहर निकलने का अवसर प्रदान किया है | आधुनिक उत्पादन बाजार , यातायात , संचार , शिक्षा , ज्ञान शासन प्रशासन के क्षेत्रो में तथा अन्य प्रतिष्ठानों कामो , पेशो में भी लडकियों महिलाओं को भागीदारियो करने का अवसर प्रदान किया है | पिता, पति , पुत्र की पहचान से जोड़कर देखी जाने वाली नारी समुदाय को अपने पैरो पर अपनी पहचान के साथ खड़ा होने का गौरव प्रदान किया है | नारी को सशक्त बनाने का काम किया है | लेकिन इसी के साथ आधुनिक युग के बाजारवाद ने उसके अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर के धनाढ्य मालिको संचालको ने नारी के जननी होने की युगों पुरानी गरिमा को गिराने और कलंकित करने का भी काम किया है | उसको मातृत्व की गरिमामयी आसन से उतारकर बाजारी विज्ञापन का वस्तु बनाने का काम किया है | उसकी दैहिक सुन्दरता को कम से कम वस्त्रो में प्रदर्शित करके उस देह में विद्यमान उसकी श्रमशीलता और मातृत्व को महत्वहीन करने का भी काम किया है | ''भोग्या नारी '' के रूप में उस पर हमलोवरो से घिरे समाज की असुरक्षित नारी बनाने का काम किया है |
यह स्थिति आधुनिक युग के विभिन्न क्षेत्रो में महिलाओं की बढती भागीदारी के फलस्वरूप उनके बढ़ते अशक्तिकरण का भी ध्योतक है | ज्यादातर महिलावादी संगठन और नारी स्वतंत्रता समर्थक सगठन आधुनिक युग में महिलाओं के बढ़ते अशक्तिकरण पर , उसके दैहिक सौन्दर्य के बाजारवादी एवं धनाढ्य वर्गीय इस्तेमाल पर और इसे बढावा देने वाली बाजारवादी उपभोक्तावादी संस्कृति पर एकदम नही बोलते | उस पर बढ़ रहे हमलो तथा यौन उत्पीडन के लिए कुछ अराजक तत्वों को ही दोषी मानकर मामले को रफा दफा कर देते है | हालाकि यह मामला आधुनिक युग की बाजार व्यवस्था का तथा उसकी उपभोक्तावादी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है | इस संस्कृति और नारी स्वतंत्रता के नाम पर उसे बढ़ावा देने वाले धनाढ्य एवं उच्च हिस्सों का विरोध किये बिना नारियो का वास्तविक सशक्तिकरण सम्भव नही है |नारी देह की सुन्दरता के बढाये जा रहे बाजारीकरण के साथ नारी सशक्तिकरण सम्भव नही है |
सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक - साभार चर्चा आजकल

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-04-2017) को "बातों में है बात" (चर्चा अंक-2947) (चर्चा अंक-2941) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आभार शास्त्री जी आपने मुझे चर्चा मंच पर स्थान दिया

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  2. आँखें खोलने वाला चिंतन परक लेख आदरणीय सुनील जी आपके सभी तर्कों से सहमत हूँ | सचमुच नारी देह की सुन्दरता के बढाये जा रहे बाजारीकरण के साथ नारी सशक्तिकरण सम्भव बिलकुल भी नही है |अपनी सुन्दरता की फ़िक्र में एक रुग्ण मानसिकता का शिकार हो रही | क्यों नहीं समझती हर उम्र का अपना सौन्दर्य होता है | सादर आभार --

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    1. आदरणीय रेनू जी आभार आपका की आपने इस तथ्य को स्वीकार किया , मेरे सोशल साईट पे तो जितने भी नारी लेखिका है चंद लोगो को छोड़कर किसी ने अपनी प्रतिक्रिया नही दी , बड़ा अफ़सोस हुआ मुझे इस बात का , यही लोग नारी सशक्तिकरण की हामी भर्ती नजर आती है |

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