रोहिणी की बगावत के बाद पटना का कमिश्नर बहुत डरा हुआ था | उसने एहतियाती कार्यवाही के नाम पर जिले में एक साल के लिए मार्शल ला लागू करके अवं के असलहे जमा करा लिए | अमन कायम करने के नाम पर शहर के असरदार और रईस लोगो को 19 जून 1857 को मीटिंग के बहाने बुलाया और धोखे से तीन रईस मौलवियों को गिरफ्तार कर लिया | उनमे से मौलवी अह्म्दुल्लाह को आन्दोलनकारी और बागी बताकर ताउम्र कैद की सजा पर कालापानी भेज दिया | बाद में मोहम्मद हुसैन को भी कालापानी की सजा हो गयी | इन दोनों लोगो की संन 1865 में जेल में ही मौत हो गयी | तीसरे मौलवी वईजुलहक को 10 साल कैद की सजा हुई | जेल से छूटने के बाद उन्हें और घर वालो को इतना परेशान कर दिया गया था कि वह अपने घरवालो के साथ मक्का चले गये | पटना में ही 22 जून को बगावत की अफवाह फैली | ऐसी अफवाह फैलाने के इल्जाम में तीन लोगो को गिरफ्तार किया गया , जिनमे सैय्यद कुतुबुद्दीन को 23 जून से 6 जुलाई 1857 के बीच किसी दिन फांसी की सजा दे दी और साथ में नरायन सिंह और रामदास को 6 - 6 महीने की सजा दी गयी | इसके अलावा हबीबुल्लाह फैय्याज अली, मिर्जा आगा मुग़ल ,रजब अली ,असगर अली दीन मोहम्मद और सादात अली इन सभी को डंडा - बेडी के साथ 10 साल कैद - बा मशक्कत की सजा हुई | इन लोगो के अलावा सात और गैर मुस्लिम को भी सजा हुई | इसी मामले में दूसरा ट्रायल 13 जुलाई 1857 को हुआ | इसमें घसीटा मिया खान और पैगम्बर बख्श को फांसी के अली पीर बख्श ढपली शेख फकीर को उम्रकैद और अशरफ अली को 14 साल की कैद की सजा हुई |
इसी मामले में तीसरा ट्रायल 8 अगस्त सन 1857 को हुआ जिसमे अशरफ हुसैन को फांसी ; शेख नबी बक्श ,शेख रहमत अली व दिलावर हुसैन को उम्रकैद और ख्वाजा आमिर जान को 14 साल कैद की सजा सुनाई गयी | सिपाही - बगावत के इल्जाम में जिन मुस्लिम शहीदों को सजा दी गयी उसका पूरा विवरण तो कही नही
मिलता मगर ट्रायल टुकडो में हुआ था और जिस लिस्ट से ये नाम मिले है , उनका हवाला बंगाल के अंडर सेक्रेटरी के भारत सरकार के सचिव को दिनाक 3 जून 1859 को लिखे ख़त के जबाब में मेजर जनरल आर जे एच ब्रीच की तरफ से बंगाल सरकार के सचिव को लिखे ख़त में सजा पाए सिपाहियों की लिस्ट में मिलता है | इसमें कुल 29 नाम थे |
शेख लाल मोहम्मद 28वी पैदल सेना 14- 1 - 58 दानापुर उम्र कैद , शेख अशरफ अली सिपाही 28वी पैदल सेना 14-०1- 58 दाना पुर उम्रकैद फैजुल्लाह खान नायक राम्घ्ध लाईट रेजिमेंट डोरडा उम्रकैद अमीर अली खान निजी रामगढ़ लाईट रेजिमेंट डोरडा 5 साल कैद मेरे सुलतान अली सिपाही 32वी पैदल सेना दाना पुर नेयामत अली खान सिपाही 7वी पैदल सेना दानापुर 3 साल कैद
जंगे - आजादी के दौरान पूरे भारत में सिर्फ आरा बिहार ही एक ऐसा शहर था जहाँ पूरे शहर पर बगावत का बाजफ्ता मुकदमा चला था | सन 1859 में यह मुकदमा गवर्मेंट वर्सेज दि टाउन आफ आरा नाम से चला था | दफा 10 के तहत बगावत का इल्जाम पूरे शहर पर था | इस मुकदमे की सुनवाई मजिस्ट्रेट डब्लू जे हर्शेल ने की थी | इस बगावत में काफी इंकलाबी शहीद हुए थे और कितनो को सजाये हुई थी इसका रिकार्ड बहुत कम है | आरा शहर के जिन 16 लोगो को फांसी की सजा हुई थी उनमे गुलाम याहया , अब्बास अली ,बंदे अली बगैरह शामिल थे | ये सभी लोग वीर कुवर सिंह के आन्दोलन में सरगर्म हिस्सेदार थे | गुलाम याहया शहर के बाअसर साहबे हैसियत वकील थे | उन्हें इंकलाबी सरकार में मजिस्ट्रेट बनाया गया था | इसी इल्जाम में उन्हें फांसी की सजा हुई | अब्बास अली ने आन्दोलन के वक्त जेल के दरोगा को गोली मारकर आंदोलनकारियो को रिहा कराया था जिसके इल्जाम में उन्हें फांसी दे दी गयी | तीसरे बंदे अली को सिर्फ बगावत में हिस्सा लेंने के इल्जाम में फांसी की सजा हुई थी |
प्रस्तुती - सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक
वाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।एक से बढ़कर एक प्रस्तुति।
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aabhaar
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