अहमदाबाद से 8 किलो मी दूर सरखेज क्षेत्र अहमदाबाद की स्थापना से पूर्व यह जगह सरखेज के नाम से विख्यात था | सरखेज एक प्राचीन जगह है कभी इस जगह से साबरमती नदी का प्रवाह इसके पास से बहता था | साबरमती नदी के तटवर्ती में स्थित होने के कारन इसका नाम ''श्रीक्षेत्र '' भी पडा | सरखेज का पहले नाम जरखेज ( फलद्रुप ) था , कारण यहाँ की जमीन बहुत उपजाऊ रही हैं | लेकिन वक्त के साथ ही साथ 'जरखेज ' नामकरण से यह 'सरखेज " नाम में परिवर्तित हो गया | यह क्षेत्र नील की खेती के दुनिया में प्रसिद्ध था |
सन1620 में यहाँ डच लोगो ने फक्ट्री लगाई | यह क्षेत्र गलीचे व हरीपट्टियों व हस्त शिल्प कला लिए भी विख्यात था | आज भी अगर यहाँ पर उत्खनन हो तो अवशेष मिल सकते हैं | यहाँ जो चीजे मिली है वो बताती है की यह क्षेत्र कभी युद्ध क्षेत्र रहा हैं | सरखेज रोजा संकुल का इतिहास ऐतिहासिक रूप से विख्यात रोझा संकुल वर्तमान में स्थित है | वहाँ पर मकबरा नाम का एक छोटा ठान | इसके पीछे का इतिहास जान्ने पर पता चला की यह युद्ध म शहीद हुए सिपाहियों को यही दफनाया गा था तथा बाद में उनकी कब्रगाहो पर मकबरे बनवाये गये | धीरे - धीरे इस क्षेत्र का नाम ''मकबरा '' से मकर्बा ' हो गया | ऐतिहासिक दृष्टि से हजरत शेख गंजबक्श खट्ट मगरीबी ( रह्मत्तुल्लाह अलयह ) का मखबरा स्थित होने से इस स्थल का नाम 'मकबरा ' पडा | भारतीय इतिहासकारों का मत है सरखेज जैसा ऐतिहासिक इमारतो का सुन्दर समन्वय गुजरात के दुसरे क्षेत्र में कही नही हैं | जिसकी वास्तुकला अप्रतिम है , जो हिन्दू -मुस्लिम और जैन शिल्पकला का अदभुत मिश्रण से युक्त हैं |इसे इन्डो -सेरा सैनिक स्थापत्य कला भी कहते हैं | इस संकुल में महल , मस्जिदे , मकबरे , भवनों , तालाबो इत्यादि मौजूद हैं |शहर के शोर्शाराबे से दूर अहमदाबाद की स्थापना में अपना योगदान देने वाले सूफी संत हजरत शेख गंजबक्श खट्ट मगरीबी ( रह्मत्तुल्लाह अलयह ) की दरगाह यही मौजूद होने से यह क्षेत्र साझी विरासत के लिए पूज्यनीय है |इस रोजा संकुल में महान सूफी संत , नाजिमो , सूबेदारों दरबारी अमीरों एवं उमरावो , शायरों के मकबरे मौजूद है | इनमे शहंशाह अकबर के दरबारी शायर गजाली मशहदी , मिर्जा अजीज फोका ,| का मकबरा हैं | इस बात कीपुष्टि खान बहादुर एम् एस कोमिसेरीयट की किताब हिस्ट्री आफ गुजरात भाग एक पेज न 491 में मौजूद है ||
सम्राट औरंगजेब आलमगीर के शहजादे मुहम्मद फर्रुखशिखर के राज्य के समय हिजरी सन ११२५ में ख्वाजा अब्दुल ह्मिद्खान जो अलमदारी के पद पर मौजूद थे वो भी हजरत शेख गंजबक्श खट्ट मगरीबी ( रह्मत्तुल्लाह अलयह ) दरगाह के प्रमुख बन्ने का गौरव प्राप्त किया |
प्रस्तुती - सुनील दत्ता - स्वतंत्र प्त्कार समीक्षक - भाग एक
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-09-2019) को "मोदी का अवतार" (चर्चा अंक- 3461) (चर्चा अंक- 3454) पर भी होगी।--
ReplyDeleteचर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'