Thursday, September 26, 2019

जमात - ए - उलमा -ए हिन्द और उल्माओ के आन्दोलन - भाग - एक

लहू बोलता भी हैं -
जमात - ए - उलमा -ए हिन्द और उल्माओ के आन्दोलन

अंग्रेजो ने सन 1799 में टीपू सुलतान को धोखे से हराकर उनका कत्ल कर दिया था | उससे पहले प्लासी की जंग में भी उन्होंने नबाब के ख़ास लोगो को अपनी तरफ मिलाकर उनका कत्ल करके उनकी सरहदों तक पर अपना कब्जा जमा लिया था | इस तरह बंगाल , बिहार , उड़ीसा और युनाईटेड प्राविन्स के ज्यादातर हिस्से ईस्ट इंडिया कम्पनी के जरिये ब्रिटिश हुकूमत के कब्जे में आ गये थे | अवध का सूबा ब्रिटिश हुकूमत के लिए एक कोरिडोर की तरह था | एक समझौते के मुताबिक़ हैदराबाद पर ब्रिटिश हुकूमत का ही असर था | इधर , मराठा आपस में न सिर्फ बटे हुए थे , बल्कि खुद आपस में ही लड़ भी रहे थे | दूसरी तरफ मराठो से जंग में अंग्रेज अफसरों की चालाकी से मराठा कमजोर हो गये | इसका फायदा अंग्रेजो ने उठाया और अपने रास्ते की रुकावट दूर कर ली | मराठो के बाद अंग्रेजो की निगाह सिंधिया - राज पर थी जिसे आपसी संधि के जरिये ब्रिटिश हुकूमत ने अपनी तरफ कर लिया | इसके बाद अंग्रेजो ने दिल्ली की तरफ रुख किया | दिल्ली के राजा शाह आलम सेहत से कमजोर और अंधे हो चुके थे | उनकी जंग लड़ने की हालत भी नही थी | इसका भी अंग्रेजो ने भरपूर फायदा उठाया और उन्हें अपनी पनाह में लेकर उनकी जरूरतों का बन्दोबस्त करके उन्हें भी हुकूमत से हटाकर दिल्ली की हुकूमत को भी पूरी तरह अपने कब्जे में कर लिया | अब हिन्दुस्तानियों को डराने की कार्यवाही शुरू हुई | दिल्ली सडको पर अंग्रेजी फ़ौज ने बगैर किसी वजह के ही अपनी ताकत का मुजाहरा किया | बचे हुए नवाबो और जमींदारों को भी डरा धमका सबसे अलग - अलग संधियाँ करके उन्हें मदद करने का लालच दिया और उनके हलको को भी अपने कब्जे में कर लिया | बाद में उनकी हिफाजत के लिए जो सेनाये अंग्रेजो ने तैनात की , उनका खर्च भी उन्ही पर डालकर उन्हें कर्जदार बना दिया | जो सरदार , नवाब या जमींदार कर्ज की अदायगी नही करता , उसकी जायदाद और एजाज को जब्त कर लिया जाता था | देश के उत्तर - पश्चिम में सिख - सामंत आपस में छोटी - बड़ी लड़ाई लड़कर थक हुके थे | सभी सिख - सामन्तो को एक - एक करके सिख - राजनेता राजा रंजित सिंह ने अपना शासन बरकरार रखने के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी से एक शान्ति - संधि कायम की अपने - आप को सुरक्षित कर लिया था | इस संधि के बाद जब एक तरफ अंग्रेजो से फौरी खतरा टल गया तो दूसरी तरफ उनके शासन में मुसलमानों के साथ भेदभाव और ज्यादती के अलावा उन पर जुल्म बढने लगे | कई मस्जिद और खानकाहे तोड़ी जाने लगी | पुरे पंजाब में माहौल खराब होने लगा , जबकि वहां मुसलमान तादात के एतबार से अक्सरियत में थे | अब कलकत्ता से दिल्ली तक कम्पनी के कब्जे में पूरी तरह से आ चुका था , जिसका फायदा उठाकर अंग्रेजो ने ईसाइयत को मजबूत करना शुरू किया | आम कारोबारियों और मुसाफिरों के शहर में दाखिल होने पर तो कोई रोक नही थी , लेकिन शुजाउल मुल्क और विलायत बेगम जैसे ख़ास लोगो को शहर में घुसने पर पाबंदी थी | तब की मजबूत रियासतों में से हैदराबाद , रामपुर और लखनऊ ने मुहायदे के तहत अंग्रेज अफसरों के मातहत काम करना शुरू कर दिया था | एक तरीके से इन रियासतों ने भी अंग्रेजो की गुलामी मंजूर कर ली थी | कितनी हैरत की बात थी कि भारतीयों के खर्चे पर पलने वाली भारतीय फ़ौज अब अंग्रेजो के हुकम की गुलाम होकर भारतीयों पर ही जुल्मो - ज्यादती करने पर मजबूर थी | सारे राजा , नवाब , जमींदार व जागीरदार इन मंजर का तमाशा देख रहे थे |अंग्रेजो की बढती ताकत और चालाकी से फैलाए हुए उनके जाल में एक - एक करके ज्यादातर रियासते फंसकर गुलाम हो गयी अंग्रेज अब मुस्लिम - समाज से बदला लेने की तैयारी में लग गये थे , जिसे देखते हुए मुस्लिम - समाज में बेचैनी बढनी लाजिमी थी | आगे जारी भाग - एक

लहू बोलता भी है - सैय्यद शाहनवाज कादरी
प्रस्तुती - सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक

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