लहू बोलता भी हैं -- सैय्यद शाहनवाज कादरी
बिहार में गया जेल का फाटक तोड़कर बागी सैनिको ने वहाँ बंद आंदोलनकारियो को आजाद करा लिया था | अंग्रेज अफसरों का मानना था की जेल के मिलाजिमो की मिलीभगत से ही जेल पर हमला कैदियों को आजाद कराया गया हैं | लिहाजा इस इल्जाम में 12 नजीबो और 7 जेल सिपाहियों पर मुकदमा चलाया गया | मजिस्ट्रेट ए.मनी ने ड्यूटी में लापरवाही बरतने के इल्जाम में दफा 14 के तहत शेख कादिर सहित १२ नजीबो को चार साल कैद की सजा सुनाई | बाकी जेल - सिपाहियों में सात को आंदोलनकारियो से मिलीभगत का कसूरवार मानते हुए दफा 16 के तहत नजीब खान और गुलाम अली के साथ फाँसी की सजा दे दी | नजीब खान जेल के सिपाही नही ,बल्कि किसान थे | उन्हें बागी सिपाही होने के शक में गिरफ्तार किया गया था | उनके पास से जो सामन बरामद हुए उनमे ताबे की 74 टोपियो के अलावा , एक तलवार थी , जिस पर खून लगा दिखाया गया था | मजिस्ट्रेटने नजीब खान को फांसी का हुकम दिया मगर उससे पहले बचाव का मौका देते हुए जब उनसे इल्जाम के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा -- मैं किसान हूँ मेरे पास अपनी हिफाजत के सिर्फ एक तलवार थी जिस पर कोई निशान नही था | मेरे उपर झूठा इल्जाम लगाया गया हैं | उन्होंने अपने हाथ पैर दिखाते हुए कहा था की आप खुद देखे मैं किसान हूँ | मगर अदालत ने कोई सफाई नही मानी और सजा सुनाकर फांसी पर लटका दिया | नजीब खान के अलावा काशी सिंह भी किसान थे मगर उन्हें भी विद्रोही सिपाही के नाम पर 10 साल की सजा देकर कालापानी भेज दिया गया |
फर्जी मुकदमे : उस दौरान फर्जी मुकदमो में कई लोगो के साथ ऐसा ही हुआ था | अदालती कार्यवाही सिर्फ खानापूर्ति करती थी | उनका मकसद ज्यादा से ज्यादा हिन्दुस्तानियों को कड़ी से कड़ी सजा देकर आंदोलनकारियो में दहशत पैदा करना था जिस मजिस्ट्रेट ने नजीब खान को सिपाही बताते हुए फांसी की सजा दे दी थी , उसी के अदालत में कुछ और नमूनों का यहाँ जिक्र होना जरूरी हैं |
जफर खान और खान : जफर खान पर मोतिहारी में डाकबंगला लुटने का इल्जाम था और बशारत खान के घर से डाक बंगले का लुटा सामन बरामद होना दिखाया था , जबकि इन दोनों लोगो ने अपनी सफाई में कहा की हम मोतिहारी का डाकबंगला जानते ही नही | जब मजिस्ट्रेट ने सख्ती से पूछा तब इन लोगो ने कहा की क्या वही , जहाँ से चिठ्ठी भेजी जाती है , उसे ही डाकबंगला कहते है ? इस पर अदालत में मजिस्ट्रेट की हंसी होने की वजह से मजिस्ट्रेट ने गुस्से में आकर बिना कुछ सुने फ़ौरन जफर खान को बेदी के साथ पांच साल की सजा सुना दिया और बशारत को तीन साल कैद की जा सुना दिया | इसी तरह कहर खान और हुस्नो खान पर भी बगावत और बागियों का साथ देने का इल्जाम लगा जबकि हुस्नो खान का भाई डोरडा बालियाँ में था | उसी की वर्दी घर से बरामद करके हुस्नो खान को वर्दी रखने के जुर्म में सात साल की सजा इ गयी | गया जिले के आंदोलनकारियो को बगावत में मदद करने उर बागियों को पनाह देने के नाम पर कलक्टर एच .आर .मेडोराक की अदालत में मुकदमा चालाकर 17 लोगो की उल जायदाद जब्त कर नीलामी करके रुपया सरकारी खजाने में जमा कर दिया गया | इस तरह ब्रिटिश सरकार के खजाने में 47.641रूपये जायदाद जब्ती से हासिल हुए थे |
प्रस्तुती - सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक
आभार
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