Sunday, November 16, 2014

17- 11 - 2014 दिन सोमवार, बीकानेर -------

17- 11 - 2014 दिन सोमवार

बीकानेर ------- 

कुछ सुखद पल ----

प्यारे  मेरे नन्हे - मुन्ने दोस्तों ---

सेठ मांडासाव जैन मन्दिर में जैन समुदाय के पांचवे तीर्थंकर सुमति नाथ विराजमान है | इस मन्दिरके भीतर बहुत ही सुन्दर मूर्तियों का रचना संसार है ख़ास तौर पर इन मूर्तियों पे सोने के असली रंग चढ़े हुए है जो आज भी वैसे बनी हुई है इन मूर्तियों को जसलमेर के पत्थरों से बनाया गया है | जसलमेर के पत्थरों से रचा यह संसार अदभुत है असली सोने के रंगों से सजा यह मन्दिरइसकी मूर्ति शिल्प अपने पांच सौ पैतालीस सालो के पुराने इतिहास के दस्तावेजो के साथ हमे बता रही है कि हमारा शिल्प उस समय कितना  समृद्द था  हमारा शिल्प मूर्त -- अमूर्त में ----------
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आज  तुम्हे बीकानेर का एक किस्सा सुना रहा हूँ ------ आज से करीब पांच सौ पैतालीस वर्ष पूर्व बीकानेर शहर से बाढ़ मील दूर माल गाँव में मांडा साव नाम के एक व्यापारी रहा करते थे . उनका बहुत बड़ा घी और तेल का व्यापार था . बड़े खुशमिजाज और हमदर्द थे सेठ मांडासाव एक दिन उनके पास एक महात्मा  आये सेठ माडासाव ने उनका सत्कार किया महात्मा ने जाते - जाते सेठ जी को एक पत्थर दिया और बोले कि मैं कही और जा रहा हूँ मेरी अमानत को संभल कर रखना वापस आ  कर ले जाऊँगा , उसके बाद वो महात्मा आगे प्रस्तान कर गये | उस पत्थर को पाने के बाद सेठ मांडा साव का व्यापार दिन दूना रात चौगुना बढने लगा , बहुत सालो के बाद वो महात्मा लौटकर उसी गाँव में माडासाव के पास आये और अपनी अमानत वो पत्थर मांगने लगा पर मांडासाव के मन में लालच आ गया उन्होंने महात्मा से कहा कि वो पत्थर कही खो गया है पर महात्मा को सब पता था कि सेठ की नियत में खोट आ गया है --- उन्होंने सेठ को श्राप दिया '' तेरे तेरे बाद कोई वंश नही चलेगा इतना सुनते ही सेठ उस महात्मा के पैरो पर अपना माथा रखकर क्षमा - याचना की तब
महात्मा बोले मैं श्राप तो वापस नही लूंगा जा तुझे आशीर्वाद देता हूँ कि तेरे न रहने पर भी इस पृथ्वी पर तेरा नाम हमेशा जीवित रहेगा और उन्होंने सेठ मांडासाव को एक गाय दिया और कहा यह गाय जहा पर अपने थान से दूध गिराएगी वही पर एक मंदिर बनवाना और महात्मा वह से चले गये |
सेठ मांडासाव उस गाय की सेवा करने लगे वर्तमान में जहा मंदिर स्थित है एक दिन उस गाय ने वही पर अपने धन से दूध  गिराया उसके बाद सेठ जी ने यह निर्णय लिया कि मन्दिर अब यही बनेगा उन्होंने अपने यहाँ मूर्ति शिल्पकार को आमंत्रित किया . सेठ मांडासाव उस शिल्पकार से जिस स्थान पर बैठकर बाते कर रहे थे वही पास में घी रखा हुआ था , सेठ की नजर उस मक्खी पर पड़ गयी उन्होंने उस मक्खी को निकालकर अपनी जूती के तलवे में रगड दिया सेठ की इस हरकत को देखकर वो शिल्पकार अपने मन में सोचने लगा की लगता है सेठ बहुत बड़ा मक्खीचूस है उसने सेठ मांडासाव से बोला कि मन्दिर बनाने में उसकी नीव में एक हजार कूपी घी लगेगा . उस समय एक कुपी में चालीस सेर घी आता था ) सेठ मांडासाव ने शिल्पकार से बोला ठीक है जो आप चाहते है वो सब मैं दूंगा और सेठ ने घी मंगवा दिया . शिल्पकार ने पांच सौ कुपी घी नीव में डलवा दिया उसके बाद उसने सेठ से बोला जानते है मैंने ऐसा क्यों किया ! सेठ मांडासाव ने पूछा क्यों ? शिल्पकार ने उन्हें अपनी जूती में मक्खी रगड़ने की बात बताई तब मांडासाव ने हँसकर बोला मैंने एक मक्खी अपनी जूती में रगड़कर एक हजार जीव हत्या होने से रोका | अगर मैं मक्खी को कही और फेंकता तो उसपे चीटी लगती खुद सोचो उस वक्त कितनी चीटिया उस पे लगती उनको मारना होता कितनी जीव हत्या होती इसीलिए मैंने उस मक्खी को अपनी जूती में रगडा था सेठ मांडासाव की बाते सुनकर शिल्पकार निरुतर हो गया।

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