Sunday, November 30, 2014

ब्रिटिश हुकूमत से समय का '' जब्त शुदा साहित्य ''

ब्रिटिश हुकूमत से समय का '' जब्त शुदा साहित्य ''
वे दीवाने ---
अनुत्तरदायी ? जल्दबाज ? अधीर आदर्शवादी ? डाकू " हत्यारे ? अरे , ओ दुनियादार तू उन्हें किस नाम से , किस गाली से विभूषित करना चाहता है ? वे मस्त है , वे दीवाने है , वे इस दुनिया के नही | वे स्वपनलोक की विधियों में विचरण करते है | उनकी दुनिया में , शासन की कटुता से , माँ धरित्री का दूध अपेय नही बनता | उनके कल्पना लोक में उंच - नीच का , धनी - निर्धन का , हिन्दू - मुसलमान का भेद नही है | इसी सम्भावना का प्रचार करने के लिए वे जीते है | इसी दुनिया में उसी आदर्श को स्थापित करने के लिए वे मरते है | दुनिया के पंठित मूर्खो की मण्डली उनको गालिया देती है | लेकिन यदि सत्य के प्रचारक गालियों की परवाह करते तो शायद दुनिया में आज सत्य , न्याय , स्वतंत्र और आदर्श के उपासको के वंश में कोई नामलेवा और पानिदेवा भी न रह जाता | लोकरुचि अथवा लोक्कोतियो के अनुसार जो अपना जेवण -- यापन करते है , वे अपने पड़ोसियों की प्रंशसा के पात्र भले ही बन जाए , पर उनका जीवन औरो के लिए नही होता | संसार को जिन्होंने ठोकर मारकर आगे बढाया वे सभी अपने - अपने समय में लांछित हो चुके है | दुनिया खाने , पीने , पहनने , ओढने तथा उपभोग करने की वस्तुओ का व्यापार करती है |
पर कुछ दीवाने चिल्लाते फिरते है ---- हो जाए
'' सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ! ''
ऐसे कुशल किन्तु औधट व्यापारी भी कभी देखे है ? अगर एक बार आप - हम ले तो कृत्कृत्य हो जाए
( गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा सम्पादित '' प्रताप ' के एक अग्रलेख से साभार )

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-12-2014) को "ना रही बुलबुल, ना उसका तराना" (चर्चा-1814) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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