Tuesday, November 25, 2014

ब्रिटिश हुकूमत से समय का '' जब्त शुदा साहित्य ""
नब्बे समाचार पत्रों का बलिदान
सन ' 42 की क्रान्ति के समय देश के नब्बे समाचार पत्रो ने अपना प्रकाशन स्थगित कर दिया था | इनका एक सम्मलेन बम्बई में आयोजित हुआ | इसमें पराड़कर जी विशेष रूप से आमंत्रित किये गये थे किन्तु वे न जा सके | सम्मलेन को पराड़कर जी ने जो संदेश भेजा उससे तत्कालीन राष्ट्रीय पत्रों की नीति का परिचय मिल जाता है -------- ''' मेरा मत है कि अभी वह उपयुक्त अवसर नही आया जबकि राष्ट्रीय पत्रों का प्रकाशन शुरू किया जा सके | वर्तमान स्थिति में इतने प्रतिबन्ध है कि समाचार पत्र केवल बुलेटिन मात्र ही रहेगे | टीका -- टिप्पणी की जा नही सकती | हम जनता की राय व्यक्त करने के माध्यम बनकर जीवित नही रह सकते | इसीलिए अच्छा है कि हमारा प्रकाशन स्थगित ही रहे | मातृभूमि के हित के लिए आवश्यक हो तो हमारा बलिदान भी श्रेयकर है | '' राष्ट्र भाषा हिन्दी के इन पत्रों के अतिरिक्त देश के अन्य भाषा के पत्रों का इतिहास देखा जाये तो विदित होगा कि''सन 1857 से स्वाधीनता के लिए जिस क्रान्ति का श्री गणेश हुआ उसमे समग्र देश में पत्रों तथा उसके महाप्राण संपादको ने असाधारण त्याग ववन बलिदान कर अनुपम आदर्श उपस्थित किया है | ( ज्ञान भारती , अगस्त - सितम्बर 62 से साभार

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