Wednesday, July 17, 2019

खिलाफत आन्दोलन

तहरीके जिन्होंने जंगे -आजादी -ए-हिन्द को परवान चढाया


खिलाफत आन्दोलन

सन 1919 से 1924 तक चले इस मूवमेंट को मुस्लिम उल्माओ की कयादत में चलाया गया | इस मूवमेंट का मकसद एक तरफ तुर्की के खलीफा की दोबारा ताजपोशी कराना और दूसरी तरफ हिन्दुस्तान से अंग्रेजो को खदेड़ना था | इसके लिए खिलाफत के रहनुमाओं ने नौजवान नस्ल में पहले इस्लाम के खलीफा की बहाली का जज्बा पैदा करके उन्हें मूवमेंट के साथ मुत्तहिद किया , फिर उनमे मुत्तहिदा कौमियत के लिए ब्रिटिश हुकूमत से लड़ने के लिए तैयार किया | पहली जंगे - अजीम के बाद अंग्रेजो ने तुर्की पर जो जुल्म - ज्यादतिया की इसकी वजह से हिन्दुस्तान ही नही पूरी दुनिया का मुसलमान ब्रिटिश हुकूमत की मुखालिफत में सडको पर उतरकर मुकाबला कर रहा था | दुनिया के मुसलमान तुर्की के खलीफा को ही अपना खलीफा मानते थे जिन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने हटाकर तुर्की को दो हिस्सों में बाट दिया था | ब्रिटेन की इस कार्यवाही से पूरी दुनिया के मुसलमानों में अंग्रेजो के खिलाफ नफरत व तुर्की के लिए हमदर्दी का जज्बा था | इस आन्दोलन की शुरुआत सन 1919 के शुरू में मौलाना मोहम्मद अली ,मौलाना शौकत अली , मौलाना आजाद - मौलाना हसरत मोहानी और हाकिम अजमल खान के कयादत में खिलाफत कमेटी के तकमील से हुई | इस मूवमेंट ने मुल्क के पैमाने पर धरना - सभाए और मुजाहरा करते हुए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ असहयोग आन्दोलन का रूप ले लिया | नवम्बर 1919 में खिलाफत कमेटी का कौमी कांफ्रेंस दिल्ली में हुआ जिसकी सदारत महात्मा गांधी ने की | इस इजलास में अंग्रेजी सामानों का बाईकाट का फैसला हुआ - साथ ही , यह भी तय किया गया कि जंग के बाद समझौते की शर्त जब तक तुर्की के हक़ में नही बनाई जायेगी तब तक ब्रिटिश सरकार के साथ किसी तरह का ताउँन नही किया जाएगा | भारतीयों के बीच एकता बनाये रखने व सरकार के खिलाफ असहयोग आन्दोलन चलाने के लिए इस कांफ्रेंस से महात्मा गांधी की सदारत में एक मजबूत प्लेटफ्राम तैयार हुआ | जून 1920 में इलाहाबाद में हुए खिलाफत कमेटी के मरकजी इजलास के बाद इसी तंजीम ने स्कुल - कालेजो और अदालतों का बाईकाट का फैसला लिया , जो कि जंगे - आजादी के लिए मील का पत्थर साबित हुआ | इस मूवमेंट में बड़ी तादात में मुस्लिम उल्माओ और मुस्लिम सदस्यों की गिरफ्तारिया हुई | बड़े पैमाने पर माली नुक्सान भी हुआ |

प्रस्तुती -- सुनील दत्ता -- स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक
सन्दर्भ --- लहू बोलता भी हैं
आभार - सैय्यद शाहनवाज अहमद कादरी

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