Tuesday, July 2, 2019

''मारग्रेट कंजिस''

विश्व की प्रथम महिला मताधिकार आन्दोलन की सूत्रधार
''मारग्रेट कंजिस''

''अखिल भारतीय महिला सम्मेलन ' के प्रधान कार्यालय में प्रवेश करते ही आपको एक बोर्ड नजर आयेगा -- '' मार्गरेट कंजिस मेमोरियल पुस्तकालय |'' सामने ही दीवार पर उनका एक बड़ा - सा आकर्षक चित्र टंगा हैं |
सन 1917 से 1947 तक भारत में महिला - सगठनों और महिला - आंदोलनों का 30 वर्षो का इतिहास पढ़िए तो एक नाम आपको सभी जगह पहली पंक्ति में दिखाई देगा -- मार्गरेट कंजिस |
मार्गरेट कंजिस ने कई क्षेत्रो में एक साथ पहल की | वे पहले अखिल भारतीय महिला सगठन 'विमेंस इन्डियन एसोसियशन ' की संस्थापिका हैं | इस संगठन के माध्यम से वे भारत में 'महिला मताधिकार आन्दोलन ' की सूत्रधार बनी | इन्डियन होमरूल लीग एवं अखिल भारतीय महिला मजिस्ट्रेट ' की संस्थापिका में से एक है |
उनका नाम भारत ही नही , विश्व भर की महिलाओं में प्रेरणा के रूप में जाना जाता हैं
आयरिश महिला होकर भी उन्होंने भारतीयता राष्ट्रीयता को ग्रहण किया और अपना आधे से अधिक जीवन भारतीय महिलाओं के उत्थान के लिए व्यतीत किया | मार्गरेट कंजिस 7 नवम्बर 1878 को आयरलैंड में जन्म हुआ | उनका घर एक ऐसे सार्वजनिक स्थल के सामने पड़ता था जो प्रमुख राजनीतिक एवं सामजिक गतिविधियों का केंद्र था | रोज सभाए देखते उनके बाल मन में कुछ करने की चाहत जगी और स्वतंत्र क्रांतिकारी विचार पनपने लगे बचपन से ही वो रुढियो को तोड़ने लगी | 1898 में विशेष योग्यता की छात्रवृति के सतह मैट्रिक परीक्षा पास किया | 1902 में रायल विश्व विद्यालय से संगीत की डिग्री लेकर संगीत शिक्षा बन गयी | 1903 में उनका विवाह जेम्स कंजिस के साथ हुआ | मार्गरेट बहुत सुन्दर कलाप्रिय और भावुक किस्म की महिला थी |
वे साहसी और स्वतत्र विचारधारा की पोषक महिला थी |
''वी टू टुगेदर पुस्तक में अपने विवाह से सम्बन्धित संस्मरणों में उन्होंने बड़े मनोरजक ढंग से लिखा हैं विवाह के लिए उनका सपना था लम्बा गहरे रंग सुन्दर आवाज वाला कला प्रिय युवक प्रोफ़ेसर | मिस्टर कंजिस इसके बिलकुल विपरीत थे | छोटे कद गोर रंग अरुचिकर आवाज वाले और एक व्यापारी संस्थान में एकाउटेन्ट

इसलिए सगाई के पहले साल उन्हें बड़ी निराशा हुई | उनके गुणों से प्रभावित होते हुए श्रीमती कंजिस के पूर्वाग्रह के कारण विवाह टूट जाता यदि पैसे की कमी के कराण उनके विवाह में तीन साल की देर न हुई होती | सगाई के उन तीन वर्षो में जैसे जैसे वे श्री कंजिस का अध्ययन करती गयी , उनके गुणों से लगातार प्रभावित होती गयी | बाद में उनका जीवन बहुत सुखी एवं सफल रहा | थिओसोफ़िकल सोसायटी के काम में श्रीमती एनी बेसेंट को सहयोग देने के लिए 1915 में श्रीमती कंजिस अपने पति के साथ भारत आई | इसके पूर्व 1906 से 1913 तक पहले आयरिश महिलाओं के मताधिकार आन्दोलन में फिर इंग्लैण्ड की महिलाओं के मताधिकार आन्दोलन में उन्होंने प्रमुख रूप से भाग लिया | इस सिलसिले में उन्होंने आयरलैंड एवं इंग्लैण्ड की जेलों की हवा खाई थी | और जेल में भूख हड़ताल भी की थी |
भारतीय दर्शन ने उन्हें बहुत प्रभावित किया था | भारत आते ही उन्होंने महिलाउत्थान से सम्बन्धित सभी सामाजिक शैक्षणिक एवं राजनितिक कार्यो में भाग लेना शुरू कर दिया पर उनका कार्य मुख्य रूप से प्रारम्भ होता है 1917 से |
1917 में एक दिन समाचार छपा कि सचिव आफ स्टेट श्री एडविन पी मांटेग्यु भारतीयों के राजनितिक अधिकारों के विस्तार के लिए भारत की स्थिति का अध्ययन करने एवं तत्कालीन वाइसराय श्री चेम्सफोर्ड से मिलने इंग्लैण्ड से भारत आ रहे हैं | श्रीमती कंजिस ब्रिटेन महिला मताधिकार आन्दोलन की नेत्री रही थी इसलिए उनके पति डा जेम्स कंजिस ने मजाक में उनसे कहा ''भारत में यही आन्दोलन चलाने के बारे में तुम्हारा ख्याल क्या हैं ? '
अपने अधिकारों की मांग रखने के लिए यह अच्छा मौका हैं | श्रीमती कंजिस तो जैसे पहले से ही तैयार बैठी हो | उन्होंने इस मजाक को चुनौती के रूप में ले लिया और उसी क्षण योजना बनाने लगी | तुरंत पूना में महिला विश्व विद्यालय के संचालक श्री करचे को पत्र लिखकर उनकी सम्मति मगाई गयी | उत्साहजनक उत्तर पाकर उन्होंने कुछ प्रमुख नेत्रियो से सलाह की और उसी वर्ष मद्रास में विमेंस इन्डियन असोसिएशन की स्थापना कर डाली |
इस संस्था के माध्यम से उन्होंने भारतीय महिलाओं के लिए मताधिकार की मांग को सामने लाने का निश्चय किया | पर इंग्लैण्ड के अपने अनुभव के आधार पर प्रारम्भ में वे आशावादी नही थी |
| इंग्लैण्ड की महिलाओं को मताधिकार के लिए लड़ते हुए 85 वर्ष हो चुके थे तब तक उन्हें मताधिकार नही मिले थे अगले वर्ष 1918 में ही वहाँ सीमित रूप में महिला मताधिकार स्वीकार किया गया था फिर जहाँ भारत में महिलाये न शिक्षित थी न अपने अधिकारों के प्रति सचेत या सगठित ही वहां महिला मताधिकार की मांग उन्हें एक अजूबा ही मालूम हो रही थी \ भारत आये उन्हें दो वर्ष ही हुए थे इसलिए भारतीय स्त्रियों की सामाजिक योग्यताओं की पूरी जानकारी भी उन्हें नही थी | फिर भी डब्लिन विश्व विद्यालय में भारतीय दर्शन के अध्ययन से और भारत में उस समय प्रमुख राष्ट्रीय संस्था कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर एक महिला एनी बेसेंट को आसीन देखकर उन्हें आशा बंधी की भारत में महिलाओं को स्वतंत्रता भले न प्राप्त हो उनका सम्मान अवश्य किया जाता है | इससे प्रभावित होकर उन्होंने भारत की नागरिकता ग्रहण किया |
18 दिसम्बर 1917 का दिन भारत में महिला पुनुरुथान का पहला मोड़ माना जाता हैं | उस दिन श्रीमती सरोजनी नायडू के नेतृत्व में सभी प्रान्तों की महिलाओं का एक शिष्टमंडल सेक्रेटरी i आफ स्टेट श्री माटेग्यु एवं वायसराय श्री चेम्सफोर्ड से मिला | श्रीमती कंजिस एक सदस्या थी | शिष्टमंडल की मांग थी महिलाये सामान्य नागरिक मानी जाए लिंग आधार पर भेद समाप्त हो , समान मताधिकार दिया जाए एवं शिक्षा - सुविधाए बढाई जाए |
इसके पश्चात स्थान - स्थान पर सभाए कर प्रस्ताव पारित किये गये | मताधिकार जांच कमेटी के अध्यक्ष श्री साउथबरो को बम्बई की 800 महिलाओं द्वारा ज्ञापन दिया गया | फिर भी अप्रैल 1919 में साउथबरो कमेटी की जो रिपोर्ट प्रकाशित हुई उसमे महिलाओं का जिक्र तक नही था | जुलाई अंत में जब श्रीमती कंजिस ने पत्रों में पढ़ा साउथबरो ने लन्दन में दोनों सदनों की ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटी के सामने यह बयान दिया है कि भारत में स्त्रियों की तरफ से अभी ऐसी कोई माँग ही नही हैं तो उन्हें बहुत आश्चर्य एवं दुःख हुआ | परन्तु वीमेंस इन्डियन एसोसियेशन वीमेंस ग्रेजुएट यूनियन भारत स्त्री मंडल होमरूल लीग कीमहिला शाखाओं और अन्य महिला संस्थाओं की संयुक्त सभा आयोजित करके उन्होंने साउथबरो - कमेटी रिपोर्ट पर विरोध किया और एक प्रस्ताव पास कर लन्दन में ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटीके पास भेजा | भारतीय महिलाओं राजनीतिक स्थिति के विषय में उन्होंने दो दलीले प्रस्तुत की राष्ट्रीय कांग्रेस में उनका महत्वपूर्ण स्थान एवं अध्यक्ष पद पर महिला नियुक्ति और विगत 15 वर्षो सेस्थानीयशासन में महिला भागीदारी |इसके साथ ही मद्रास सरकार जोर डाला और1921 के प्रारम्भ में मद्रास विधान सभा में एक प्रस्ताव पास कराके महिलाओं को पुरुषो के समान योग्यता के आधार पर मत देने का अधिकार प्रदान कर दिया गया | इस प्रकार इंग्लैण्ड में महिला मताधिकार के लिए जो लड़ाई 1832 से 1918 तक यानी पूरे 86 साल लड़ी गई भारत में वही सफलता 1917 - 1921 तक के समय में प्राप्त कर गयी | 19 मई 1926 को मद्रास विधान सभा में एक प्रस्ताव पास करके मद्रास के गवर्नर को महिला प्रतिनिधि नामजद करने तथा महिलाओं को चुनाव लड़ने का अधिकार प्रदान करवा दिया १७ अक्तूबर १९२६ को ही श्रीमती कंजिस ने प्रेस में बयान दिया चुनाव संघर्ष में भाग लेने वाली दो प्रतिनिधियों श्रीमती कमला चट्टोपाध्याय तथा हन्ना एंग्लो के नाम घोषित किये | 12 नवम्बर , 1926 को मद्रास के गवर्नर को पत्र लिखकर कमलादेवी चट्टोपाध्याय के साउथ कनारा क्षेत्र से चुनाव की सुचना दी तथा प्रार्थना किया यदि वे हार जाती तो उन्हें नामजद किया जाए नामजदगी के लिए विकल्प के तौर पर दुसरा नाम उन्होंने श्रीमती मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी का सुझाया कमलादेवी चुनाव हार गयी परन्तु श्रीमती कमलादेवी के चुनाव लड़ने को सफलता मानते हुए उन्हें नामजद की गुजारिश किया परन्तु मद्रास के गवर्नर ने हारी प्रतिनिधि के स्थान पर श्रीमती मुत्तुलक्ष्मी रेड्डी को ही पहली विधायक के रूप विधान - सभा में बैठने का अधिकार दिलाया |

सुनील दत्ता -- स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक

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