Tuesday, July 9, 2019

भारतीय राजनीति के अजातशत्रु

राष्ट्रपुरुष -- चन्द्रशेखर


भारतीय राजनीति के अजातशत्रु

देश के पूर्व प्रधानमन्त्री पी .वी नरसिंह राव ने एक बार कहा था कि चन्द्रशेखर जी किसी बड़ी पार्टी में हो या छोटी , बड़े पद पर हो या छोटे , इसका उतना महत्व नही है , जितना उनकी उपस्थिति का | उनकी उपस्थिति ही हमारी राजनीतिक व्यवस्था को स्थिरता प्रदान करती हैं | मैं यहाँ राजनीतिक व्यवस्था की बात कर रहा हूँ ,राजनीति की नही | नरसिम्हा राव देश के सुलझे राजनेता थे , और उन्होंने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में चन्द्रशेखर जी के 75वे जन्मदिवस के अवसर पर अपनी इस टिपण्णी से बेबाक , दो टूक बात करने और परिस्थितियों प्रतिकूल होने पर कभी - कभी अकेले अपनी राह चल पड़ने वाले नेता के व्यक्तित्व का निचोड़ रखा था | आपको बात अच्छी लगे या बुरी वह अपनी बात कह डालने के आदि थे | उन्होंने राजनीति में अपना लंबा समय बिताया | कभी दूसरो की सोच में असहमति की आवाज बने , तो कभी सहमति की राह ढूढने और सबको साथ लेकर जटिल से जटिल समस्या का हल ढूढने वाले राजनेता | लेकिन हर किसी को अपनी जरुरत महसूस करा देना , पास आने पर सकूं हासिल कराने का अनोखा व्यक्तित्व उन्ही का था जो बरबस बड़े से बड़ा राजनेता , कार्यकर्ता को अपनी तरफ खीचा करता था | कोई राजनेता सत्ता में हो या सत्ता से बाहर बड़ी से बड़ी समस्या के हल के लिए उन्हें ढूढा करता था | समाजवादी आन्दोलन से निकले और 1964 आते - आते कांग्रेस के साथ आ जाने वाले नेता ने थोड़े ही दिनों में देश की उस समय की सत्तारूढ़ पार्टी में भी अपनी उपस्थिति का एहसास करा दिया था | कांग्रेस के नेतृत्व में सत्तर के दशक में बैंको के राष्ट्रीयकरण प्रिवियर्स की समाप्ति और अर्थव्यवस्था को आम लोगो से जोड़ने वाले जो थोड़े बहुत कदम उठाये , वह चन्द्रशेखर जी के नेतृत्व में काम करने वाले थोड़े सांसद की मण्डली के दबाव का परिणाम था | दस वर्ष के उनके कांग्रेस के राजनीतिक जीवन में उनकी आवाज को किसी के लिए भी नजरअंदाज करना मुश्किल काम था | कांग्रेस विभाजन के बाद इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली पार्टी की महासमिति की बैठक दिल्ली में हुई | रात के समय इंदिरा जी के दो निकटस्थ लोगो ने राजनीतिक प्रस्ताव तैयार किया | सवेरे अधिवेशन स्थल पर झंडा फहराने के बाद इंदिरा जी की निगाहें चन्द्रशेखर जी को ढूढने लगी | वह पीछे की कतार में थे मुड़कर उनके पास पहुची , कहा रात को राजनितिक प्रस्ताव तैयार किया गया था आप उसे देख लें | ऐसे अनेक अवसर आये जब इंदिरा जी को उनकी सलाह की जरुरत पड़ी | 1980 के जून में जिस दिन संजय गांधी की मौत हुई वाजपेयी जी और चन्द्रशेखर जी साथ - साथ राममनोहर लोहिया अस्पताल पहुचे | वाजपेयी जी ने पहुचते ही कहा ''इंदिरा जी इस समय आपको अधिक धैर्य का परिचय देना होगा '' इंदिरा ने उन्हें जबाब नही दिया , मुड़कर चन्द्रशेखर जी की तरफ देखा और बांह पकड़कर कमरे के कोने में ले गयी , कहा , चन्द्रशेखर जी कई दिन से आपसे बात करने की सोच रही थी , असम की स्थिति बहुत खराब है , चन्द्रशेखर जी दिमागी उलझन में फंसे , कहा बाद में बात की जायेगी , इंदिरा जी का जबाब था , नही यह जरूरी है , बाद में पंजाब की स्थिति बिगड़ने पर एक नही कई बार इंदिरा जी को उनकी जरुरत पड़ी और एक बार तो अपने निजी सचिव को उन्हें लाने के लिए भेज दिया | चन्द्रशेखर जी स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने के विरुद्ध थे जब इंदिरा जी से उनकी मुलाक़ात हुई उन्होंने इसके विरुद्ध राय दी | स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने का परिणाम उन्होंने देखा और 30 अक्तूबर 1984 को उनकी ह्त्या के बाद वह शायद सबसे दुखी व्यक्ति थे , उनके इस दुःख को सिख विरोधी दंगो और तत्कालीन सरकार की नाकामी ने अधिक बढाया | चन्द्रशेखर जी , इंदिरा जी और जयप्रकाश जी के टकराव के विरुद्ध थे | वह न तो जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रान्ति के पक्षधर बन सके और न ही जातिवादी राजनीति के अलम्बरदारो के | उन्होंने इंदिरा जी और जयप्रकाश जी के बीच समझौता कराने की भी कोशिश की - दोनों को वार्ता के मंच पर ला दिया , सफलता नही मिली यह अलग बात थी | इंदिरा जी के बाद के प्रधान मंत्रियों को भी उनकी जरुरत पड़ी और चाहे नरसिम्हा राव रहे हों या वाजपेयी जी उनके वाद का सिलसिला बना रहा | नरसिंह राव के समय में तो कई अवसर आये जब समस्या सुलझाने में मदद की , जजों की नियुक्ति के कोलेजियम करा फैसला जब आया तो उन्होंने स्वंय प्रधानमन्त्री नरसिंह राव को टेलीफोन कर मुख्य न्यायाधीश से बात करने की सलाह दी थी और कहा था कि जरुरत पड़े तो मुझे भी बुला लीजिये | वाजपेयी जी के समय में संसद पर हमले के बाद पाकिस्तान से युद्ध छेड़ने के खिलाफ थे और इस बारे में संसद में उन्होंने अपनी बेबाक राय दे डाली थी | वाजपेयी जी ने भी टिपण्णी कर दी थी कि चन्द्रशेखर जी का भाषण उन्हें महाभारत के एक चरित्र शल्य की याद दिला रहा हैं | शल्य कर्ण का सारथि था लेकिन तारीफ़ अर्जुन के वाणों की करता था | उनके भाषण के दौरान काफी टोका टिपण्णी भी हुई थी लेकिन नौ महीना सेना को सीमा पर सतर्क स्थिति में रखने के बाद कितनी लड़ाई लड़ी गयी यह देश देखा | ईराक युद्ध के समय वाजपेयी सरकार जब संसद में प्रस्ताव पास करने को लेकर फंसती नजर आई तब मदद के लिए चन्द्रशेखर जी आगे आए | उन्होंने न केवल सोनिया गाँधी बल्कि अन्य नेताओं को भी समझाने और सर्वसम्मत प्रस्ताव तैयार कराने का काम किया | चन्द्रशेखर का ज्यादा समय संसद में बीता , वह 1962 से 2007तक ( 1984 89 संसद में नही रहे ) उन्होंने संसद में हर विषय पर चर्चा को जीवंत बनाया , सदन में व्यवस्था बनाये रखने और संसद के नियमो तथा परम्पराओं का पालन कराने में मदद की | कई बार तो उन्हें मंत्रियो तथा वरिष्ठ सांसदों को भी नसीहत देते देखा गया | संसद में आर - बार व्यवधान तथा कार्यवाई में बाधा से बेहद दुखी हो जाया करते थे | एक बार उन्होंने अपने मित्र वाजपेयी जी को , जब वो प्रधानमन्त्री थे इस बारे में गंभीरता से सोचने की बात कह डाली थी | सत्ता से दूर रहने तथा दो - दो बार केन्द्रीय मंत्री परिषद की सदस्यता ठुकराने वाले चन्द्रशेखर जी इस देश के उस समय की परिस्थितियों के चलते प्रधानमन्त्री पद को स्वीकार किया तो सम्मान के विरुद्ध पाने पर उन्होंने उसे छोड़ने में भी देर नही की | उनके इस्तीफे के बाद राजीव गांधी उनके घर पहुचे , समझाने की कोशिश की इनपर असर नही डाल सके | राजीव गांधी बाद में राष्ट्रपति के पास गये , लेकिन राष्ट्रपति का भी उन्हें यही जबाब था आप चन्द्रशेखर जी स्वभाव नही जानते | जिस समय चन्द्रशेखर जी ने देश का नेतृत्व मिला देश के 90 शहरों में कर्फ्यू लगा था , अयोध्या का वाद चरम पर था , उन्होंने परिस्थितियों कोसम्भाला और देश को किया | अयोध्या विवाद के दोनों पक्षों को बातचीत के मेज पर ला दिया | अगर थोडा समय मिलता तो विवाद शायद हमेशा के लिए हल हो जाता |चन्द्रशेखर जी सवेदनशील व्यक्तित्व के धनी थे | दुसरो के सुख - दुःख में शामिल होना उनके स्वभाव में था फिर कोई बड़ा हो या छोटा वह हर एक का ख्याल रखते थे | इंदिरा जी 1977 का चुनाव हार गयी थी , चुनाव से पहले उन्होंने दो बार उनसे बात करने की कोशिश की लेकिन चन्द्रशेखर जी ने स्वीकार नही किया | उनकी पराजय के बाद वह स्वंय उनकेनिवास पर पहुचेऔर अपनी तरफ से उन्हें हर सहयोग करने का दिलासा दिलाया | नरसिंह राव को सजा मिलने के बाद वह उनसे : भेंट करने वाले पहले राजनेता थे | चन्द्रशेखर जीकी मित्रता तथा आपसी सम्बन्ध राजनीति परिधि उपर थी शुभचिंतको और मित्रो की संख्या अनगिनत थी | दलगत राजनीति इसमें कभी बाधक नही बन सकी | 2007 के मार्च में अपनी तबियत सुधरने पर उन्होंनेमित्रो को दोपहर के खाने पर बुलाया उनके आमंत्रण पर प्रधानमन्त्री मन मोहन सिंह सोनिया गांधी अटल बिहारी बाजपेयी , मुरली मनोहर जोशी नटवर सिंह उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्य मंत्री भुवन चन्द्र खंडूरी हरियाणा तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा भजन लाल ओमप्रकाश चौटाला आदि बहुत राजनेता पहुच गये |भिन्न - भिन्न मतांतर के लोगो को साथ लाना चन्द्रशेखर जी खूब जानते थे और इस दृष्टि से उन्हें अजातशत्रु कहें तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी |
प्रस्तुती -- सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक

------- नर्वदेश्वर राय वरिष्ठ पत्रकार

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