Tuesday, July 9, 2019

असहयोग आन्दोलन ( तहरीक अदमताऊन )


तहरीके जिन्होंने जंगे - आजादी - ए- हिन्द को परवान चढाया


असहयोग आन्दोलन ( तहरीक अदमताऊन )


सन 1919 से 1922 के बीच ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ दो मजबूत आन्दोलन चलाए गये - एक खिलाफत दूसरा असहयोग आन्दोलन | दोनों आन्दोलन अलग - अलग मुद्दों पर शुरू हुए थे | दोनों के तहरीक का तरीका और मुजाहेदीन की कयादत करने वालो में कुछ नेता एक ही थे | इन दोनों आंदोलनों से हिन्दुस्तान की जंगे - आजादी में नई जान पैदा हुई |
इन दोनों आंदोलनों की पहली जंगे - अजीम के बाद ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारतीयों के खिलाफ उठाये गये कदमो से भारतीय समाज में पैदा हुई बगावत को माना जाता हैं | यहाँ ब्रिटिश हुकूमत द्वारा उठाये गये उन कदमो का जिक्र करना जरूरी हैं --
1 - पहली जंगे - अजीम के बाद ब्रिटेन की इकोनामी चरमरा - सी गयी , जिससे महगाई बढ़ी , दस्तकार - मजदूरो को काम मिलना बंद हुआ , अनाज की कमी हुई , कारखानों की पैदावार ठप  हो गये | इन वजहों से समाज का हर तबका जिन्दगी की जरूरियात से तंग आ  गया | आर्थिक कमी की वजह से जन - सुविधाए घटी और भूख  व् महामारी फैली | रुपयों की कमी की वजह से अवामी जरूरत घटी और बीमारिया बढ़ गयी | उस वक्त सिर्फ प्लेग की बीमारी से लाखो लोग इलाज के बगैर मर गये |

2 - रौलेट एकत पंजाब में मार्शल ला लगना और जालियावाला बाग़ कत्लेआम अंग्रेजो के जुल्म की इन्तहा थी |
3 - पंजाब के कत्लेआम के बारे में हंटर कमीशन की रिपोर्ट और सिफारिश ब्रिटिश पार्लियामेंट हाउस आफ लार्ड्स में जनरल डायर की कार्यवाई को सही ठहराना  , जनरल डायर को गुडवर्क के लिए मार्निग पोस्ट से 30,000 पाउंड का इनाम देना | ब्रिटिश हुकूमत के कारनामो ने हिन्दुस्तानियों के जख्मो पर मिर्च डालने का काम किया और आन्दोलन की आग को भडका दिया |
4 -1919 के माटेग्यु - चेम्सफोर्ड रिफार्म्स ने भी स्वराज की मांग कर रहे हिन्दुस्तानियों को बहुत मायूस किया | दूसरी तरफ अंग्रेजो की इन हरकतों और जुल्मो - ज्यादतियों ने अलग - अलग खेमो में बटकर भारत की आजादी की लड़ाई लड़ रहे लोगो को एक साथ लाने में बहुत अहम् किरदार अदा किया | इसने हिन्दू - मुस्लिम सियासत को एक करने की जमीन तैयार कर दी - जैसे लखनऊ समझौता ( 1916 ) जिससे कांग्रेस और मुस्लिम लीग में आपसी ताल्लुकात बढ़े | रौलेट एक्ट के खिलाफ मुजाहरे व तहरीक में हिन्दू - मुस्लिम ही नही , सभी हिन्दुस्तानी एक - दुसरे से कंधे - से कंधा मिलाकर खड़े हो गये | यही वह वक्त था जब ज्यादातर हिन्दू और मुसलमान लीडरशिप ने एक साथ एक बैनर - तले बैठकर आन्दोलन की हिकमते - अमली बनाई और उस पर अमल किया , क्योकि पहले से चल रहे खिलाफत मूवमेन्ट और कांग्रेस के अलावा दीगर पार्टियों के जरिये शुरू किये गये असहयोग आन्दोलन ने मिलकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मोर्चेबंदी कर दी | इस आन्दोलन में बड़े पैमाने पर मुसलमानों की गिरफ्तारिया हुई , हजारो हजार लोगो को सजाये हुई व जायदाद जब्त की गयी |


सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक

साभार ---- लहू बोलता भी है -- सैय्यद  शाहनवाज अहमद कादरी 

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