8 नवम्बर 2014
प्यारे --- साथियो --
तारीख 27 अक्टूबर आज़मगढ़ से निकयहाँला हूँ | पहले झासी पहुचा वहा से बीकानेर ''कला एवं साहित्य उत्सव ''में हिस्सेदारी करने यहाँ आ गया . बहुत से लोगो से मिलना हुआ .उनसे बाल साहित्य पे चर्चा किया कुछ लोगो के इंटरव्यू लिए साथ ही कार्यक्रम समाप्ति के बाद दो दिन रूककर बीकानेर को समझने की कोशिश की और फिर वहा से अपनी सबसे प्यारी -- छोटी बहन- आशा पाण्डे से मिलने पिण्डवाड़ा आ गया | इन सबकी वृस्त्रित जानकारी यहाँ से लौटने पर दूंगा | एक सुखद संयोग ही रहा मेरे लिए बीकानेर कला व साहित्य उत्सव -- राजस्थान -----
आज सुबह जब मैं सो कर उठा सामने किताबो के रैक पर नजर गयी . अचानक उसपे नजर ठहर गयी |
'' कात रे मन ......... कात इस पुस्तक को मायामृग ने लिखा है |
आओ बताये यह मायामृग कौन है ?
मायामृग की जुबानी ---------- ' मायामृग नाम मैंने खुद रखा | परिजनों ने नाम दिया ठा संदीप कुमार , जो अब सिर्फ सरकारी रिकार्ड में रह ग्या है | जन्म 26 अगस्त १९६५ को फाजिल्का ( पंजाब ) में हुआ | जन्म के दस दिन बाद ही परिवार को पंजाब छोड़ हनुमानगढ़ ( राजस्थान ) आना पडा , मेरे जीवन के शुरूआती 25 साल यहाँ बीते |इसके बाद का सफर जयपुर आ ग्या | शुरूआती सरकारी नौकरी फिर पत्रकारिता | इसके बाद मुद्रण और प्रकाशन को व्यवसाय के रूप में चुन लिया ||
अब ले चलता हूँ उनके लिखे दुनिया में -------
1 -- रात की सियाही को छुआ तुमने तो सबेरा हो ग्या ...... तुम्हारी छुअन सियाही में घुली सी कयू है ......
2 कविता अपने गुनाहों की सफाई नही है .........................
3 गरीबी प्रयोगशाल है ..|
4-- जो लिखा वो पानी था ... जिससे लिखा वो पानी था .... हाथ में नमी थी .. आँखे गीली .. जाने क्या सूझी
पिघले बादलो पर लिख रहा था ..... तुम्हारा नाम ..........
Well, I am really thankful for all your inputs shared on this matter levels of CMMI Capability Maturity Model Integration
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