अपना शहर ----- मगरुवा
एक मुलाक़ात `-- विद्रोही दादी का शालीन विद्रोही पौत्र
लिपि को लेकर मैं पहुचा आर्य कन्या कालेज वहा उसका एग्जाम था वो तो एग्जाम देने चली गयी अब समस्या बनी की एक बजे तक कहा बैठा जाए सो मैंने विजय से बोला चल यार बनवारी चाय वाले के यहाँ चलते है वही बैठकी किया जाए कुछ दूर पे ही बडौदा बैंक के नीचे छोटी सी गोमती में पिछले पचास सालो से चाय बेचते आ रहे है हम लोगो के प्यारे बनवारी भइया उनकी भी कहानी अजीब है | वहा पर पहले से बैठा मगरुवा अचानक मेरी तरफ मुडा बोला बड़े दिन बाद आवत हउआ दत्ता बाबू हमने कहा हां यार का करी और सुनावा मगरू भाई मगरुवा बोललस देखत हउआ बनवारी भइया के इहो आजमगढ़ के रहे वाला हउये मेहनगर के जवानी के दिने इह आयेल रहने तब चाय बेचत रहने एक रुपया आज पचास साल बाद उहे चाय बेचत हउये पाच रुपया में बाऊ बतावा एसे कैइसे गुजर करत होइए बनवारी भइया तबले बनवारी भइया बोलने का करी यार मगरू सरवा '' अमीर - गरीब - भिखारी सबकर एकके गती बा बनावे वाला सरवा बुजरो के .. अपने हिसाब से बनइले बा यार इह सब पिछले जन्म के भोग लिखल ह | छेना फारे वालन के अंत उनकर गांड फार के देवेला ऊपरवाला का समझल ला मगरू भइया सरवा चैन कहा मोदी भइया के जमाने में देखत हई बवाले - बवाले बा अभी तलक मूर्ति विसर्जन न भइल देखा अदालत का फैसला देवे ला | मगरुवा लम्बी साँस खीचकर बोला सही बोलत हउआ बनवारी भइया तू अब देख ला काशी में नवरात से विजय दशमी ले कभी सरवा नाटी इमली के भरत मिलाप त कहि वही में मुहरम बा फिर दुसरे दिने नकटईया पर मेला लगी | तभी आ गये वल्लभ भाई उनको देखकर मगरुवा बोल पड़ा का गुरु इत्ते दिन कहा रहला कबो एहर देखत न रहला लगल बतावे मगरुवा दत्ता बाबू वल्लभ भाई कैथी के रहे वाला हउये तोहके पता है इनकर दादी जी गजबे विद्रोही रहनी जाति - बिरादरी से उपर रहनी उ ई सब ना मानत रहनी | वो समय जब पूरा समाज रूढी से जकड़ रहल तब इनकर दादी अपने घर के बर्तन में सब बिरादरी के खाना खिवावे उहे असर वल्लभ भाई के परल बा इहो क्ब्वो गंगा सफाई अभियान कब्बो पर्यावरण त कबो शिक्षा के साथ किसानन के समस्या पे लड्त रहेने मगरुवा बोललस तोहके पता ना होई इनकर गाँव कैथी ऐतिहासिक गाँव ह | ऊहा के मार्कंडेय महादेव बड़ा महत्व रखेने और इनके गाँव से शेरशाह सूरी के जमाने में पक्की सडक बनल रहल मगरुवा की बात सुनकर वल्लभ भाई हँस रहे थे और कहे ना यार सब चलत ह केहू के त आगे आवे के पड़ी ना तबले मगरुवा बोल्लसा गुरु तोहहरे दें बा की एन एच सीधी हो गइल न त कितने गरीबन के घर - सनासर उजड़ जात गुरु तू त विद्रोही दादी के शालीन पौत्र हउआ ------------------- जय हो महादेव
एक मुलाक़ात `-- विद्रोही दादी का शालीन विद्रोही पौत्र
लिपि को लेकर मैं पहुचा आर्य कन्या कालेज वहा उसका एग्जाम था वो तो एग्जाम देने चली गयी अब समस्या बनी की एक बजे तक कहा बैठा जाए सो मैंने विजय से बोला चल यार बनवारी चाय वाले के यहाँ चलते है वही बैठकी किया जाए कुछ दूर पे ही बडौदा बैंक के नीचे छोटी सी गोमती में पिछले पचास सालो से चाय बेचते आ रहे है हम लोगो के प्यारे बनवारी भइया उनकी भी कहानी अजीब है | वहा पर पहले से बैठा मगरुवा अचानक मेरी तरफ मुडा बोला बड़े दिन बाद आवत हउआ दत्ता बाबू हमने कहा हां यार का करी और सुनावा मगरू भाई मगरुवा बोललस देखत हउआ बनवारी भइया के इहो आजमगढ़ के रहे वाला हउये मेहनगर के जवानी के दिने इह आयेल रहने तब चाय बेचत रहने एक रुपया आज पचास साल बाद उहे चाय बेचत हउये पाच रुपया में बाऊ बतावा एसे कैइसे गुजर करत होइए बनवारी भइया तबले बनवारी भइया बोलने का करी यार मगरू सरवा '' अमीर - गरीब - भिखारी सबकर एकके गती बा बनावे वाला सरवा बुजरो के .. अपने हिसाब से बनइले बा यार इह सब पिछले जन्म के भोग लिखल ह | छेना फारे वालन के अंत उनकर गांड फार के देवेला ऊपरवाला का समझल ला मगरू भइया सरवा चैन कहा मोदी भइया के जमाने में देखत हई बवाले - बवाले बा अभी तलक मूर्ति विसर्जन न भइल देखा अदालत का फैसला देवे ला | मगरुवा लम्बी साँस खीचकर बोला सही बोलत हउआ बनवारी भइया तू अब देख ला काशी में नवरात से विजय दशमी ले कभी सरवा नाटी इमली के भरत मिलाप त कहि वही में मुहरम बा फिर दुसरे दिने नकटईया पर मेला लगी | तभी आ गये वल्लभ भाई उनको देखकर मगरुवा बोल पड़ा का गुरु इत्ते दिन कहा रहला कबो एहर देखत न रहला लगल बतावे मगरुवा दत्ता बाबू वल्लभ भाई कैथी के रहे वाला हउये तोहके पता है इनकर दादी जी गजबे विद्रोही रहनी जाति - बिरादरी से उपर रहनी उ ई सब ना मानत रहनी | वो समय जब पूरा समाज रूढी से जकड़ रहल तब इनकर दादी अपने घर के बर्तन में सब बिरादरी के खाना खिवावे उहे असर वल्लभ भाई के परल बा इहो क्ब्वो गंगा सफाई अभियान कब्बो पर्यावरण त कबो शिक्षा के साथ किसानन के समस्या पे लड्त रहेने मगरुवा बोललस तोहके पता ना होई इनकर गाँव कैथी ऐतिहासिक गाँव ह | ऊहा के मार्कंडेय महादेव बड़ा महत्व रखेने और इनके गाँव से शेरशाह सूरी के जमाने में पक्की सडक बनल रहल मगरुवा की बात सुनकर वल्लभ भाई हँस रहे थे और कहे ना यार सब चलत ह केहू के त आगे आवे के पड़ी ना तबले मगरुवा बोल्लसा गुरु तोहहरे दें बा की एन एच सीधी हो गइल न त कितने गरीबन के घर - सनासर उजड़ जात गुरु तू त विद्रोही दादी के शालीन पौत्र हउआ ------------------- जय हो महादेव
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