अल हिल्लाज मंसूर ---------
अल हिल्लाज मंसूर को कत्ल किये जाने से नौ वर्ष पूर्व ही कारागार में बंदी बनाकर डाल दिया गया था | और वह अत्यधिक प्रसन्न था क्योकि उसने नौ वर्षो का उपयोग निरंतर ध्यान करने में किया | बाहर तो वह हमेशा शोर - व्यवधान , मित्र , शिष्य , समाज , संसार और हजारो चिंताए थी | वह बहुत प्रसन्न था | जिस दिन उसे कारागार में बंद किया गया , उसने हृदय से इसके लिए उस परमशक्ति को धन्यवाद दिया | उसने कहा -- तू मुझसे इतना अधिक प्यार करता है , तभी तो तूने संसार भर से मुझे बचाने के लिए ही इतनी ऐसी सुरक्षा दी है कि वहा अब तेरे और मेरे सिवा और कुछ भी नही बचा | तभी तो वैसा मुझे घटा , तभी तो उस मिलन में पिघल कर मैं पूरी तरह से मिट गया |
वे नौ वर्ष अत्यधिक तल्लीनता के वर्ष थे | और उन वर्षो के बाद आखिर यह तय किया गया कि उसे कत्ल किया जाना है , क्योकि इस सजा से वह जरा भी नही बदला , बल्कि उसके विपरीत वह उसी दशा में और अधिक बढ़ गया | उसके आगे बढने की दिशा थी कि उसने यह घोषणा करना शुरू कर दिया -- ' मैं परमात्मा हूँ -- अनअलहक | मैं ही सत्य हूँ | मैं ही अस्तित्व हूँ | '
उसके गुरु अल जुन्नैद ने कई तरह से उसे समझाने कि कोशिश की -- ' तू इस तरह की चीजो की घोषणा मत कर . उस बात को अपने अन्दर ही रख , क्योकि लोग उसे नही समझेगे और तू अनावश्यक रूप से मुसीबत में पड़ जाएगा | ' लेकिन यह मंसूर के वश के बाहर की बात थी | वह जब भी उस विशिष्ठ दशा में होता था , वह नाचना - गाना शुरू कर देता था | और वे वाक्य अथवा उसका गाना या कुछ भी कहना , अतिरेक से छलकते उदगार थे , जिन पर नियंत्रण करने वाला कोई था ही नही | जुन्नैद उसकी स्थिति को समझता था , लेकिन वह दुसरे लोगो की भी चित्त दशा को भली भांति जानता था कि देर - सबेर मंसूर को धर्म विरोधी समझा जाएगा | उसकी घोषणा -- '' मैं परमात्मा हूँ '' एक तथ्य था उसके पीछे उसका अनुभव ही यह घोषणा कर रहा था | इसलिए अंतिम रूप से यह निर्णय लिया गया कि उसे फाँसी पर लटका दिया जाए , उसे मृत्यु दंड दिया जाए |
जब वे लोग उसे कारागार की कोठरी से बाहर निकालने के लिए गये , तो बहुत मुश्किल उत्पन्न हो गयी -- क्योकि वह ' फना ' की रहस्यमय स्थिति में डूबा हुआ था | अब वह एक व्यक्ति नही रह गया था वह केवल शुद्दतम उर्जा पुंज था |
उस शुद्द उर्जा पुंज को बहार घसीट कर कैसे लाया जाए ? जो लोग उसे बाहर निकालने गये थे वे हतप्रद और मूक बने रह गये | उस अंधरी कोठरी में जो कुछ घट रहा था , वह इतना अधिक अदभुत था , वह इतना अधिक प्रकाशवान था की मंसूर के चारो ओर से इस संसार का नही , जैसे कोई दैवी आभा मंडल घेरे हुए है | मंसूर वह एक व्यक्ति की भांति मौजूद नही था | सूफियो के पास इस स्थिति के लिए दो शब्द है -- एक है ' बका ' और दूसरा है ' फना ' 'बका' का अर्थ होता है तुम अपनी अस्मिता को सीमाबद्द कर रहे हो 'फना' का अर्थ है की तुम अब पिघल रहे हो | ---=----- ओशो ----------------- कबीर
अल हिल्लाज मंसूर को कत्ल किये जाने से नौ वर्ष पूर्व ही कारागार में बंदी बनाकर डाल दिया गया था | और वह अत्यधिक प्रसन्न था क्योकि उसने नौ वर्षो का उपयोग निरंतर ध्यान करने में किया | बाहर तो वह हमेशा शोर - व्यवधान , मित्र , शिष्य , समाज , संसार और हजारो चिंताए थी | वह बहुत प्रसन्न था | जिस दिन उसे कारागार में बंद किया गया , उसने हृदय से इसके लिए उस परमशक्ति को धन्यवाद दिया | उसने कहा -- तू मुझसे इतना अधिक प्यार करता है , तभी तो तूने संसार भर से मुझे बचाने के लिए ही इतनी ऐसी सुरक्षा दी है कि वहा अब तेरे और मेरे सिवा और कुछ भी नही बचा | तभी तो वैसा मुझे घटा , तभी तो उस मिलन में पिघल कर मैं पूरी तरह से मिट गया |
वे नौ वर्ष अत्यधिक तल्लीनता के वर्ष थे | और उन वर्षो के बाद आखिर यह तय किया गया कि उसे कत्ल किया जाना है , क्योकि इस सजा से वह जरा भी नही बदला , बल्कि उसके विपरीत वह उसी दशा में और अधिक बढ़ गया | उसके आगे बढने की दिशा थी कि उसने यह घोषणा करना शुरू कर दिया -- ' मैं परमात्मा हूँ -- अनअलहक | मैं ही सत्य हूँ | मैं ही अस्तित्व हूँ | '
उसके गुरु अल जुन्नैद ने कई तरह से उसे समझाने कि कोशिश की -- ' तू इस तरह की चीजो की घोषणा मत कर . उस बात को अपने अन्दर ही रख , क्योकि लोग उसे नही समझेगे और तू अनावश्यक रूप से मुसीबत में पड़ जाएगा | ' लेकिन यह मंसूर के वश के बाहर की बात थी | वह जब भी उस विशिष्ठ दशा में होता था , वह नाचना - गाना शुरू कर देता था | और वे वाक्य अथवा उसका गाना या कुछ भी कहना , अतिरेक से छलकते उदगार थे , जिन पर नियंत्रण करने वाला कोई था ही नही | जुन्नैद उसकी स्थिति को समझता था , लेकिन वह दुसरे लोगो की भी चित्त दशा को भली भांति जानता था कि देर - सबेर मंसूर को धर्म विरोधी समझा जाएगा | उसकी घोषणा -- '' मैं परमात्मा हूँ '' एक तथ्य था उसके पीछे उसका अनुभव ही यह घोषणा कर रहा था | इसलिए अंतिम रूप से यह निर्णय लिया गया कि उसे फाँसी पर लटका दिया जाए , उसे मृत्यु दंड दिया जाए |
जब वे लोग उसे कारागार की कोठरी से बाहर निकालने के लिए गये , तो बहुत मुश्किल उत्पन्न हो गयी -- क्योकि वह ' फना ' की रहस्यमय स्थिति में डूबा हुआ था | अब वह एक व्यक्ति नही रह गया था वह केवल शुद्दतम उर्जा पुंज था |
उस शुद्द उर्जा पुंज को बहार घसीट कर कैसे लाया जाए ? जो लोग उसे बाहर निकालने गये थे वे हतप्रद और मूक बने रह गये | उस अंधरी कोठरी में जो कुछ घट रहा था , वह इतना अधिक अदभुत था , वह इतना अधिक प्रकाशवान था की मंसूर के चारो ओर से इस संसार का नही , जैसे कोई दैवी आभा मंडल घेरे हुए है | मंसूर वह एक व्यक्ति की भांति मौजूद नही था | सूफियो के पास इस स्थिति के लिए दो शब्द है -- एक है ' बका ' और दूसरा है ' फना ' 'बका' का अर्थ होता है तुम अपनी अस्मिता को सीमाबद्द कर रहे हो 'फना' का अर्थ है की तुम अब पिघल रहे हो | ---=----- ओशो ----------------- कबीर
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