Saturday, October 17, 2015

अल हिल्लाज मंसूर --------- 18-10-15

अल हिल्लाज मंसूर ---------

अल हिल्लाज मंसूर को कत्ल किये जाने से नौ वर्ष पूर्व ही कारागार में बंदी बनाकर डाल दिया गया था | और वह अत्यधिक प्रसन्न था क्योकि उसने नौ वर्षो का उपयोग निरंतर ध्यान करने में किया | बाहर  तो वह हमेशा शोर - व्यवधान , मित्र , शिष्य , समाज , संसार और हजारो चिंताए थी | वह बहुत प्रसन्न था | जिस दिन उसे कारागार में बंद किया गया , उसने हृदय  से इसके लिए उस परमशक्ति  को धन्यवाद दिया | उसने कहा -- तू मुझसे इतना अधिक प्यार करता है , तभी तो तूने संसार भर से मुझे बचाने के लिए ही इतनी ऐसी सुरक्षा दी है कि वहा  अब तेरे और मेरे सिवा और कुछ भी नही बचा | तभी तो वैसा मुझे घटा , तभी तो उस मिलन में पिघल कर मैं  पूरी तरह से मिट गया |

वे नौ वर्ष अत्यधिक तल्लीनता के वर्ष थे | और उन वर्षो के बाद आखिर यह तय किया गया कि उसे कत्ल  किया जाना है , क्योकि इस सजा से वह जरा भी नही बदला , बल्कि उसके  विपरीत वह उसी दशा में और अधिक बढ़ गया | उसके आगे बढने की दिशा थी कि उसने यह घोषणा करना शुरू कर दिया -- ' मैं परमात्मा हूँ -- अनअलहक | मैं ही सत्य हूँ  | मैं ही अस्तित्व हूँ | '

उसके गुरु अल जुन्नैद ने कई तरह से उसे समझाने कि कोशिश  की -- ' तू इस तरह की चीजो की घोषणा मत कर . उस बात को अपने अन्दर ही रख , क्योकि लोग उसे नही समझेगे और तू अनावश्यक  रूप से मुसीबत में पड़ जाएगा | ' लेकिन यह मंसूर के वश के बाहर की बात थी | वह जब भी उस विशिष्ठ दशा में होता था , वह नाचना - गाना शुरू कर देता था | और वे वाक्य अथवा उसका गाना या कुछ भी कहना , अतिरेक से छलकते उदगार थे , जिन पर नियंत्रण करने वाला कोई था ही नही | जुन्नैद उसकी स्थिति को समझता था , लेकिन वह दुसरे लोगो की भी चित्त  दशा को भली भांति जानता था कि देर - सबेर मंसूर को धर्म विरोधी समझा जाएगा | उसकी घोषणा  -- '' मैं परमात्मा हूँ '' एक  तथ्य  था उसके पीछे उसका अनुभव ही यह घोषणा कर रहा था | इसलिए अंतिम रूप से यह निर्णय लिया गया कि उसे फाँसी पर लटका दिया जाए , उसे मृत्यु दंड दिया जाए |


जब वे लोग उसे कारागार की कोठरी  से बाहर निकालने  के लिए गये , तो बहुत मुश्किल उत्पन्न हो गयी -- क्योकि वह ' फना ' की रहस्यमय स्थिति में डूबा हुआ था | अब वह एक व्यक्ति नही रह गया था वह केवल शुद्दतम उर्जा पुंज था |


उस शुद्द उर्जा पुंज को बहार घसीट कर कैसे लाया जाए ? जो लोग उसे बाहर निकालने गये थे वे हतप्रद और मूक बने रह गये | उस अंधरी कोठरी में जो कुछ घट रहा था , वह इतना अधिक अदभुत था , वह  इतना अधिक प्रकाशवान था की मंसूर के चारो ओर से इस संसार का नही , जैसे कोई दैवी आभा मंडल घेरे हुए है | मंसूर वह एक व्यक्ति  की भांति मौजूद नही था | सूफियो के पास इस स्थिति के लिए दो शब्द है -- एक है ' बका ' और दूसरा है ' फना ' 'बका' का अर्थ होता है तुम अपनी अस्मिता को सीमाबद्द कर रहे हो 'फना' का अर्थ है की तुम अब पिघल रहे हो |   ---=----- ओशो ----------------- कबीर

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