अपना शहर -------
काशी के किसानो की दुर्दशा - घूरेलाल की पुकार अखिलेश भइया - मोदी बाबा कहा हउआ
चित्र में घूरेलाल
चेतगंज थाने के सामने घूमते हुए मगरुवा को मुगलसराय क्षेत्र के गाँव बबुरी का एक सामन्य किसान घूरेलाल फटेहाल मिल गया ,मगरुवा ने देखा वह सडक पर फेके कबाड़ को बीन रहा है | मगरुवा अपने उत्सुकता को नही रोक पाया , उसने उसे अपने पास बुला लिया पूछा कहा घर है कब से यह काम कर रहे हो एक ऐसी वेदना भरी आवाज उसके कानो तक गूंजी की का करी मगरू भइया अधिया पे खेती करत रहनी महाजन के कर्जा से लद गईनी कउनो तरीके से महाजन से फुर्सत मिलल अब बनारस में पांच बरिस से कबाड़ बीन के दुई बच्चा अउर परानी के जियावत बानी उहो पे पुलिस और साहब लोगन जिए न देत हवे | ऐसे न जाने कितने खेतिहर - किसान होंगे आम मजदूर बुनकर होंगे जिनकी रोजी व्यवस्था ने छीनकर कारपोरेट के हाथो में दे दिया | मगरुवा को अदम गोंडवी की कुछ लाइने याद आ जाती है |
बज़ाहिर प्यार की दुनिया में जो नाकाम होता है
कोई रूसो कोई हिटलर कोई खय्याम होता है
ज़हर देते हैं उसको हम कि ले जाते हैं सूली पर
यही हर दौर के मंसूर का अंजाम होता है
जुनूने-शौक में बेशक लिपटने को लिपट जाएँ
हवाओं में कहीं महबूब का पैगाम होता है
सियासी बज़्म में अक्सर ज़ुलेखा के इशारों पर
हकीकत ये है युसुफ आज भी नीलाम होता है
काशी के किसानो की दुर्दशा - घूरेलाल की पुकार अखिलेश भइया - मोदी बाबा कहा हउआ
चित्र में घूरेलाल
चेतगंज थाने के सामने घूमते हुए मगरुवा को मुगलसराय क्षेत्र के गाँव बबुरी का एक सामन्य किसान घूरेलाल फटेहाल मिल गया ,मगरुवा ने देखा वह सडक पर फेके कबाड़ को बीन रहा है | मगरुवा अपने उत्सुकता को नही रोक पाया , उसने उसे अपने पास बुला लिया पूछा कहा घर है कब से यह काम कर रहे हो एक ऐसी वेदना भरी आवाज उसके कानो तक गूंजी की का करी मगरू भइया अधिया पे खेती करत रहनी महाजन के कर्जा से लद गईनी कउनो तरीके से महाजन से फुर्सत मिलल अब बनारस में पांच बरिस से कबाड़ बीन के दुई बच्चा अउर परानी के जियावत बानी उहो पे पुलिस और साहब लोगन जिए न देत हवे | ऐसे न जाने कितने खेतिहर - किसान होंगे आम मजदूर बुनकर होंगे जिनकी रोजी व्यवस्था ने छीनकर कारपोरेट के हाथो में दे दिया | मगरुवा को अदम गोंडवी की कुछ लाइने याद आ जाती है |
बज़ाहिर प्यार की दुनिया में जो नाकाम होता है
कोई रूसो कोई हिटलर कोई खय्याम होता है
ज़हर देते हैं उसको हम कि ले जाते हैं सूली पर
यही हर दौर के मंसूर का अंजाम होता है
जुनूने-शौक में बेशक लिपटने को लिपट जाएँ
हवाओं में कहीं महबूब का पैगाम होता है
सियासी बज़्म में अक्सर ज़ुलेखा के इशारों पर
हकीकत ये है युसुफ आज भी नीलाम होता है
जय माँ अम्बे।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-10-2015) को "देवी पूजा की शुरुआत" (चर्चा अंक - 2132) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'