Sunday, November 1, 2015

सृष्टि में जो मंगल है , उसका अभिसिंचन - विस्तार हो | 2-11-15

सृष्टि में जो मंगल है , उसका अभिसिंचन - विस्तार हो |


श्रुतिधर ने देखा कि पुराने भवन में मकड़ियो ने जहा - तहा जले बन रखे है | पशुओ ने गोबर फैला रखा है | उन्हें लगा कि इसमें रहना तो नरक के  समान है |
उन्होंने भवन को अमगल कहते हुए उसका परित्याग कर दिया और समीप के गाँव में जाकर रहने लगे | निर्धन ग्रामवासी मैले - कुचैले वस्त्र पहनकर सत्संग में शामिल होते है , यह देखकर उनके मन में पुन: अकुलाहट भर गयी | श्रुतिधर ने गाँव को भी अमगल  कहकर उसका भी परित्याग किया और निर्जन वन में एकाकी कुटी बनाकर रहने लगे | रात शान्ति पूर्वक गुजरी | किन्तु प्रात: उठते ही उन्होंने कुटी के बाहर देखा कि जंगली जानवरों द्वारा आखेट किये हुए वन्य पशुओ की हड्डिया व रक्त के छीटे  इधर - उधर पड़े है |
उन्हें वन में भी अमगल  दिखा | तभी उन्हें सामने श्वेत सलिला सरिता दिखाई दी | वे कुटी का परित्याग कर उसे शीतल पयस्विनी के आश्रय में चले हए |
अंजली बाँध उन्होंने जल ग्रहण किया तो अंत: करण प्रफुल्लित हुआ | तभी उन्होंने देखा कि बड़ी मछली ने छोटी मछली पर आक्रमण  कर उसे निगल लिया |
इस उथल - पुथल से नदी के तट तक हिलोर पहुची , जिससे वहा  रखे मेढक के अंडे - बच्चे पानी में उतराने  लगे | तभी बहते - बहते किसी कुत्ते की लाश वहा आ पहुची |
यह दृश्य देखते ही उनका ह्रदय घृणा से भर गया | अब कहा जाए ? इससे तो अच्छा है कि जीवन ही समाप्त कर लिया जाए | अमगल से बचने का उन्हें यही उपाए शेष लगा |
श्रुतिधर ने लकडियो की चिता बनाई और प्रदक्षिणा कर उस पर बैठने ही वाले थे कि महर्षि वैशम्पायन का उधर से गुजरना हुआ | यह कौतुक देख उन्होंने श्रुतिधर से इसका कारण पूछा | श्रुतिधर ने पूरी व्यथा कह सुनाई |
सुनकर महर्षि हँसे और बोले -- ' चिंता में तुम्हारा शरीर जलेगा , तो उसमे भरे मल भी जलेगे , जिससे अमगल ही तो उपजेगा | ' ऐसे में क्या तुम्हे शान्ति मिल सकेगी ? श्रुतिधर कुछ ना बोल सके | तब महर्षि ने कहा -- ' सृष्टि में अमगल से मगल कही अधिक है | घर में रहकर सुयोग्य नागरिको का निर्माण , गाँव में शिक्षा संस्कृति का विस्तार , वन में उपासना की शान्ति और जल में प्रदुषण का प्रक्षालन , प्रकृति की प्रेरणा यही तो है |
सृष्टि में जो मंगल है , उसका अभिसिंचन - विस्तार हो |
जो अमगल है , उसका शुची - संस्कार किया जाए |

श्रुतिधर ने देखा कि पुराने भवन में मकड़ियो ने जहा - तहा जले बन रखे है | पशुओ ने गोबर फैला रखा है | उन्हें लगा कि इसमें रहना तो नरक के  समान है |
उन्होंने भवन को अमगल कहते हुए उसका परित्याग कर दिया और समीप के गाँव में जाकर रहने लगे | निर्धन ग्रामवासी मैले - कुचैले वस्त्र पहनकर सत्संग में शामिल होते है , यह देखकर उनके मन में पुन: अकुलाहट भर गयी | श्रुतिधर ने गाँव को भी अमगल  कहकर उसका भी परित्याग किया और निर्जन वन में एकाकी कुटी बनाकर रहने लगे | रात शान्ति पूर्वक गुजरी | किन्तु प्रात: उठते ही उन्होंने कुटी के बाहर देखा कि जंगली जानवरों द्वारा आखेट किये हुए वन्य पशुओ की हड्डिया व रक्त के छीटे  इधर - उधर पड़े है |
उन्हें वन में भी अमगल  दिखा | तभी उन्हें सामने श्वेत सलिला सरिता दिखाई दी | वे कुटी का परित्याग कर उसे शीतल पयस्विनी के आश्रय में चले हए |
अंजली बाँध उन्होंने जल ग्रहण किया तो अंत: करण प्रफुल्लित हुआ | तभी उन्होंने देखा कि बड़ी मछली ने छोटी मछली पर आक्रमण  कर उसे निगल लिया |
इस उथल - पुथल से नदी के तट तक हिलोर पहुची , जिससे वहा  रखे मेढक के अंडे - बच्चे पानी में उतराने  लगे | तभी बहते - बहते किसी कुत्ते की लाश वहा आ पहुची |
यह दृश्य देखते ही उनका ह्रदय घृणा से भर गया | अब कहा जाए ? इससे तो अच्छा है कि जीवन ही समाप्त कर लिया जाए | अमगल से बचने का उन्हें यही उपाए शेष लगा |
श्रुतिधर ने लकडियो की चिता बनाई और प्रदक्षिणा कर उस पर बैठने ही वाले थे कि महर्षि वैशम्पायन का उधर से गुजरना हुआ | यह कौतुक देख उन्होंने श्रुतिधर से इसका कारण पूछा | श्रुतिधर ने पूरी व्यथा कह सुनाई |
सुनकर महर्षि हँसे और बोले -- ' चिंता में तुम्हारा शरीर जलेगा , तो उसमे भरे मल भी जलेगे , जिससे अमगल ही तो उपजेगा | ' ऐसे में क्या तुम्हे शान्ति मिल सकेगी ? श्रुतिधर कुछ ना बोल सके | तब महर्षि ने कहा -- ' सृष्टि में अमगल से मगल कही अधिक है | घर में रहकर सुयोग्य नागरिको का निर्माण , गाँव में शिक्षा संस्कृति का विस्तार , वन में उपासना की शान्ति और जल में प्रदुषण का प्रक्षालन , प्रकृति की प्रेरणा यही तो है |
सृष्टि में जो मंगल है , उसका अभिसिंचन - विस्तार हो |
जो अमगल है , उसका शुची - संस्कार किया जाए |

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-11-2015) को "काश हम भी सम्मान लौटा पाते" (चर्चा अंक 2149) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. लेख को स्थान देने के लिए शुक्रिया

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