कर संग्रह में 18 % की उछाल --
आखिर यह चमत्कार हो कैसे रहा है ?
{ विडम्बना यह है कि प्रत्यक्ष कर - संग्रह में यह उछाल देश में धनाढ्य एवं उच्च आयवर्गो के लोगो की बढती संख्या के मुकाबले बहुत कम है | इसीलिए यह प्रत्यक्ष कर संग्रह में उछाल नही , बल्कि उसमे कमी या गिरावट का ध्योतक है }
प्रत्यक्ष करो में उछाल की सूचना 10 फरवरी के समाचार पत्रों में आई हुई है | उन सूचनाओं के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2017 - 18 के दिसम्बर तक प्रत्यक्ष करो का कुल संग्रह 6.56 लाख करोड़ रूपये का रहा है | यह प्रत्यक्ष कर संग्रह 2016 - 17 के इसी अवधि 1 अप्रैल से 31 दिसम्बर के दौरान के कर संग्रह से 18.2% अधिक है | इसी के साथ यह सूचना भी आई है कि इन नौ महीनों में सरकार ने वर्तमान वित्तीय वर्ष के अनुमानित प्रत्यक्ष कर संग्रह का 67 % हिस्सा प्राप्त कर लिया है |
प्रत्यक्ष करो में कारपोरेट टैक्स या निगम कर , सम्पत्ति कर और व्यक्तिगत आयकर शामिल है | इन टैक्सों की देनदारी धनाढ्य कम्पनियों तथा उच्च एवं बेहतर आय के लोगो के लाभों - मुनाफो , पूंजियो , सम्पत्तियों एवं वेतन भत्तो के आधार पर निर्धारित की जाती है | प्रत्यक्ष कर की कुल मात्रा के बारे में यह सूचना भी प्रकाशित हुई है कि केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2017 - 18 के लिए 8.8 लाख करोड़ रूपये का लक्ष्य निर्धारित किया था | उससे पहले अर्थात 2016 - 17 के बजट में कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह 8.49 लाख करोड़ था |
केन्द्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा समाचार पत्रों में प्रत्यक्ष कर संग्रह में 18 % के उछाल के आंकड़ो को ऐसे प्रचारित किया जा रहा है , मानो यह कर संग्रह वास्तव में बहुत बढ़ गया हो | सरकार धनाढ्य वर्गो तथा उच्च एवं बेहतर आयवर्ग के लोगो से उनके बढ़ते मुनाफो , पूंजियो एवं सम्पत्तियों तथा आमदनियो के फलस्वरूप उनसे ज्यादा टैक्स वसूलने में सफल हो गयी है | क्या सचमुच ऐसा हुआ है ?
इस पर अपनी तरफ से कुछ कहने से पहले हम दिसम्बर 2017 में केन्द्रीय कर बोर्ड {सी बी डी टी द्वारा} जारी किये गये आंकड़ो को प्रस्तुत कर दे रहे है | इन आंकड़ो में दर्शाया गया है कि 2015 - 16 के दौरान आयकर श्रेणी में आने वाले 2.18 करोड़ वेतन भोगी करदाता ने कोई आयकर नही दिया है
ऐसा इसलिए सम्भव हुआ कि करो में मिली छूटो के चलते इनकी घोषित आय कर दायरे से बाहर हो गयी | इन छूटो में स्टैन्डर्ड डीडकशन तथा आयकर कानून की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत दी जाने वाली कर छूटे शामिल है | यह भी हो सकता है कि उन्होंने अपनी आय व बचत का हिस्सा सरकार की किसी योजना परियोजना में घोषित रूप में निवेशित कर रखा हो | आवासीय ऋण भी ले रखा हो | इन दोनों के लिए आयकर में किसी भी सीमा तक छूट मिली हुई है |
इस आंकड़े में बेहतर आय वर्ग के गैर वेतन भागियो की संख्या शामिल नही है | जबकि यह कोई छिपी हुई बात नही है कि योग्य आय वर्ग के गैर वेतनभोगी लोग कर छूट लेने के मामले में पहले से ही उस्ताद रहे है | कर योग्य आय वाले व्यापारी एवं अन्य उच्च आय वाले पेशेवर लोग आयकर के दायरे से या तो बाहर रहते है या बहुत कम कर चुका कर छुट्टी पा जाते है | इस सन्दर्भ में तथ्यगत सूचना यह है कि आयकर देने वाले 97 % या कहिये 90% अधिक हिस्सा वेतन भोगियो का ही है | उच्चस्तरीय निजी आय करने वालो की संख्या 8 - 9% से अधिक नही है | जाहिर सी बात है कि वेतन भोगियो द्वारा घोषित छूटो के जरिये आयकर बचाने से कही ज्यादा संख्या में 2.18 करोड़ से अधिक ज्यादा संख्या में उच्च आयवर्ग के गैर वेतनभोगी लोग नौजूद है , जो आयकर नही देते है | इसी तरह से धनी मानी वर्गो पर लगने वाले निगम कर को भी पिछले 28 सालो में 50% से घटाकर 30% कर दिया गया है | इस 30% में तमाम छूटो को जोड़ने के बाद वास्तविकता निगम कर 23% से अधिक नही होता | इसके अलावा निगम कर व आयकर के बहुतेरे मामले सालो साल तक मुकदमे में अटके रहते है | यह भी जानी समझी बात है कि निगमकर की छूटो को बढाने के साथ - साथ आयकर की सीमा को हर साल या हर दो साल बाद बढ़ा दिया जाता है | प्रत्यक्ष करो में लगातार बढाई जाने वाली इन छूटो के वावजूद संग्रह में 18% से अधिक का उछाल आया हुआ है आखिर यह चमत्कार हो कैसे रहा है | दरअसल इसमें कोई चमत्कार नही है | इसका कोई नक्षत्रीय या आसमानी कारण नही है | इसका सर्वप्रमुख एवं जमीनी कारण यह है कि साल दर साल खरबपतियो ,अरबपतियो एवं करोडपतियो की संख्या में होती रही वृद्धि से छूटो एवं कर चोरियों के वावजूद कर संग्रह में वृद्धि होती रही है | दिसम्बर 2017 में आयकर विभाग द्वारा जारी आंकड़ो के अनुसार देश में करोडपतियो की संख्या में 23.5% की वृद्धि हुई है |
2015 - 16 में लगभग 60 हजार लोगो ने अपनी वार्षिक आय एक करोड़ से अधिक बताया था | इनकी कुल घोषित आय 1.54 लाख करोड़ थी | इससे एक साल पहले 2014 - 15 में एक करोड़ से ज्यादा वार्षिक आय वालो की संख्या 48 हजार से थोडा उपर थी | स्वाभाविक बात है की २2015 - 16 में करोडपतियो की संख्या जिसमे अरबपतियो खरबपतियो की संख्या भी शामिल है अब 2017-18 में और ज्यादा बढ़ी होगी |
इसका स्पष्ट आंकडा अभी प्रकाशित नही हुआ है | लेकिन इसका अंदाजा इस बात से लग सकता है कि एक साल पहले जारी रिपोर्ट में बताया गया था कि देश में 1% अमीर लोगो के हाथो में कुल दौलत का 58% हिस्सा सकेंद्रित है | 23 जनवरी के समाचार पत्रों में अन्तराष्ट्रीय अधिकार समूह आम्सफैम द्वारा जारी रिपोर्ट में इस सकेंद्रण में जबर्दस्त उछाल बताया गया है | रिपोर्ट के अनुसार अब देश में एक प्रतिशत सर्वाधिक धनाढ्य लोगो के हाथ में कुल दौलत का 73% हिसा हो गया | स्वाभाविक है कि दौलत के संकेन्द्रण के इस जबर्दस्त उछ्हाल में देश की 1% आबादी में बड़ी संख्या करोडपतियो और अरबपतियो , खरबपतियो की ही संख्या मौजूद है | समाचार पत्रों में कर संग्रह में इस प्रचारित उछाल को सरकार और राजकोष के लिए राहत की बात बताई गयी है | जबकि दरअसल ऐसा नही है | निसंदेह वास्तविक प्रत्यक्ष कर की देनदारी से कही कम देनदारी कर रहे धनाढ्य एवं उच्चवर्गो के लिए प्रत्यक्ष कर संग्रह में उछाल उनकी झूठी प्रशंसा के साथ उनके लिए राहत की बात भी है | क्योकि कर संग्रह में उछाल के नाम पर कर चोरियों पर पर्दा पड़ जाना है बताना जरूरी नही है कि उनके पूंजियो एवं उच्चस्तरीय आमदनियो ,सम्पत्तियों में तीव्र उछाल के साथ उनके क़ानूनी एवं गैरकानूनी कर चोरियों का दायरा भी बढ़ता रहा है |लेकिन इसके फलस्वरूप राजकोष का घाटा निरन्तर बढ़ता ही रहा है | और उसकी पूर्ति जनसाधारण द्वारा मालो एवं सेवाओं के खरीद में व्यापक रूप से चुकाए गये अप्रत्यक्ष करो से होता रहा है |जी एस टी के नाम पर थोपी गयी मूल्य सम्वर्धन की टैक्स प्रणाली इसी का सबूत है | अप्रत्यक्ष कर संग्रह की मात्रा में साल दर साल तेजी से हो रही बढ़त भी इसी बात का सबूत है |
सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक - साभार - चर्चा आजकल
No comments:
Post a Comment