Tuesday, February 27, 2018

जातिप्रथा और गुलामी - 27-2-18

जातिप्रथा और गुलामी -


डा राम मनोहर लोहिया 8जुलाई 1961

हम लोग बहुत बा गुलाम हुए है | ऐसा नही कि सिर्फ अंग्रेज रहे हो | उसके पहले मुसलमान थे , बल्कि मुसलमान भी गुलाम रहे | तैमुरलंग ने पांच लाख आदमी क़त्ल किये | मामला हिन्दू - मुसलमान का नही देशी - परदेशी का है | अफगान मुसलमान पठान मुसलमान को खत्म करता है | इतिहास से सबक लेना है | नादिरशाह का आना मुग़ल साम्राज्य को खत्म करने वाला हुआ | मुसलमान को भी इसको समझना होगा | 1.500 बरस से हमेशा इस देश में देशी - परदेशी का सवाल रहा है | परदेशी हमेशा जीतता रहा है | इसका बड़ा सबब है कि हिन्दुस्तान के लोगो ने कभी भी अंदरूनी अत्याचार के खिलाफ बगावत नही की | इंगलिस्तान में पांच सौ साल में चार बार जुल्म करने और बादशाही करने वालो के खिलाफ बगावत हुई | लेकिन हिन्दुस्तान में पिछले दो हजार साल में कभी भी देशी अत्याचार के खिलाफ बगावत नही की गयी | यह कोई अच्छी बात नही है | बाहर के लोग जालिम के खिलाफ बगावत करना जानते है , देशी के भी | लगता है हम लोग देशी के खिलाफ बगावत करना भूल गये है , क्योकि कभी किया नही | सारी दुनिया में छोटे - बड़े का फर्क है | लेकिन हमारे यहाँ तो आकाश - पाताल का फर्क है | मिसाल के लिए अमरीका में तो भंगी की भी तनख्वाह 1.300 रूपये है और वहाँ के कलेक्टर की करीब 6.000 रुपया ! अपने यहाँ कलेक्टर को नाम के लिए तो 700 रूपये से 1.000 तक मिलते है लेकिन तनख्वाह के अलावा कितनी और सुविधा मुफ्त मिल जाती है - मोटर आलिशान बंगला वगैरह | शहर की बढिया - बढिया जमीने , सरकारी अफसर लोग अपने क्लब के लिए मामूली दामो में दो चार रूपये गज में ले लेते है | लेकिन भंगी को पचास - साठ रूपये ही | छोटे बड़े का फर्क और देखे | देहात का खेत मजदूर उसको रुपया - आठ आना रोज पड़ता है | रिक्शा वाला , पल्लेदार कड़ी मेहनत के बाद कितना पाता है ? यही तीन रुपया के करीब | और यह कमाना भी फेफड़ो को खत्म करके होता है | हिन्दुस्तान में सबसे छोटे आदमी , खेत मजदूर की तनखाह पच्चीस - तीस रुपया महीना | हिन्दुस्तान में सबसे छोटे आदमी , खेत मजदूर की तनखाह पच्चीस - तीस रुपया महीना | और अमरीका में सबसे कम मजदूरी 1.300 रूपये | वहाँ कूड़े की गाडी चलाने वाला भी करीब 6.400 रूपये पाता है | और बड़ा अफसर 6.000 | यहाँ छोटा 50 रूपये और बड़ा कलेक्टर 6.000 रूपये गांधी जी ने सादगी और कर्तव्य की जिन्दगी की सीख दी , लेकिन बदनसीबी की देश के मंत्रियो का मन बदला कि हम अमरीका - यूरोप की तरह रहे और देश को भी वैसे ही बनाये | अमरीका के राष्ट्रपति की गाड़ी आठ लाख रुए की है | नेहरु साहब ने अमरीका में देखा तो लौट कर फ़ौरन फैसला किया कि हम भी ऐसी गाडी रखेंगे और स्विट्जरलैंड से वैसी ही गाड़ी आठ लाख रूपये मे मगाई गयी | हमारा सबसे बड़ा रोग रहा है , और है , कि हम नकलची है | डाक्टर या वकील भी जो अमीर है ज्यादा फीस दे सकते है , उसको पहले देखता है उसकी ज्यादा खबर रखेगा | यूरोप में बड़ा से बड़ा डाक्टर , जिस हिसाब से जो आता है उसी हिसाब से देखता है , चाहे छोटा हो या बड़ा | हमारे यहाँ मिसाल के लिए दो बच्चे है , एक छोटा , निमोनिया का बीमार और अमीर का मामूली बीमार | डाक्टर किसको पहले देखेगा ? अमीर के बच्चे को | यह मुल्क गिर गया है | हम लोगो के मन भी ठीक नही रहे | ईमारत बस एक छोटी - सी नोक पर टिकी है | दुकानदार भी छोटे बड़े का फर्क करता है | अच्छे कपडे वाले को खूब दिखाएगा और फटे कपडे वाले को एक दो ही | दुनिया में छोटे बड़े का फर्क जन्म के हिसाब से नही पैसे , पढाई वगैरह से होता है | यहाँ जात का फर्क , रूपये , ओहदा वगैरह से नही जन्म के मन से है | ब्राह्मण , बनिया , शेख , सयैद बड़ी जात है | लोहार , कहार , नाइ , जोलाहा , धोबी , माला , मदिगा वगैरह तमाम सब नब्बे फीसदी है | इनका दिमाग जात - पात के भेद ने जकड़ दिया है | इनको आगे लाये वगैर मुल्क नही बन सकता , जैसे हाथ को हिलाओ - डुलाओ नही तो लकवा लग जाएगा | इसी तरह इनको 2.000 साल से लकवा लग गया है , जकड़ दिए गये है ! यही है मूल में गुलामी का कारण , और अगर सुधरे नही , तो फिर गुलाम होने का खतरा है |
इस हालत को बदलना आसान नही है , क्योकि और जगह तो छोटा आदमी सगठन अपना बना भी लेता है | यहाँ इन्कलाब करने की हिम्मत नही करता , सोचता भी नही | गरीब झोपडी वाला थक गया है , उसके मन को यकीन नही होता कि वह भी राजा बन सकता विशवास न जमने का कारण रहा है , उसके साथ पिछले दो हजार साल से लगातार दगाबाजी | विशवास उठ गया है | दूसरे देशो में ख्रुश्चेव गडरिया का लड़का , ताकत में बड़ा , स्टालिन चमार का बेटा , हिटलर जर्मनी वाला कारीगर ,- राज का बेटा | इग्लिस्तान के भी , जिनसे हाथ मिलाने को लोग लार टपकाते है , वही बवान मारिसन कोयला खदान मजदूर , सडक पर अख़बार बेचने वाले रहे है | क्या दो हजार बरस में हमारे देश में छोटे पेशे वाले आदमी कभी बढ़ा ही नही , हिन्दुस्तान का बड़ा आदमी बना है ? इधर पाँच - दस साल में एक ही दीखता है , श्री जगजीवन राम | असल में वह भी बड़ा नही हुआ | जिस प्रकार चिड़िया पकड़ने के लिए लासा लगाया जाता है उसी प्रकार देश के चमार पकड़ने के लिए श्री जगजीवन राम का लासा लगाते है | इसी तरह मुसलमानों में भी लासा लगाते है | मुस्लिम लीग को केरल में उठाना , फिर काम निकल जाने के बाद धता बता देना ! लिगायत और वक्कालिंगायत को उठाने वाली बात भी सोचना | मैसूर की आबादी कुल तीन करोड़ के करीब है | इसमें पचास लाख के करीब लिंगायत और वक्कालिंगा लोग है और बाकी ढाई करोड़ दूसरे बिखरे हुए है | और सबका ये 50 लाख लायदा उठाते है | इनमे भी सबका नही बल्कि दो तीन हजार का फायदा होता है | और ये लोग सिर्फ फायदा उठाने वालो के नाम का इस्तेमाल करते है | ये लोग सिर्फ पुरानी पलटन को इकठ्ठा करते है | जरा डुग्गी पिटी , खड़ी हो गयी पुरानी पलटन | नई पलटन खड़ी करना तो बहुत मुश्किल है | यह तो सोशिलिस्ट पार्टी को ही करना है और वह कर रही है लेकिन मुसीबत है कि सब दबे हुए लोग इस नयी पलटन में भरते नही होते | इसको कैसे दूर किया जाए ? एक तरीका है | एक तरफ आदमी का नियम बनाना चाहिए और दूसरी तरफ बराबरी का नियम | कम से कम ऐसी हालात पैदा करनी चाहिए की गैरबराबरी ज्यादा न हो | जैसे , समाजवादियो का फैसला है की आम्द्नियो में से दस से ज्यादा का फर्क न हो , मानी अगर कम से कम 100 हो तो ज्यादा से ज्यादा 1000 | ऐसा नही की बिडला एक दिन में एक लाख पैदा करे और प्रधानमन्त्री पैदा तो कुछ न करे लेकिन पच्चीस हजार रूपये रोज खर्चा करे | सरकारी सेठ और कारखाने का सेठ , दोनों सेठो को खत्म करना चाहिए | इसके लिए समाजवादियो का एक और दस का सिद्धांत अपनाना पडेगा | जाति मिटाने का भी कोई तरीका अपनाना होगा | दो हजार सालो से दबे हुए है , उनको उठाना होगा | लोग कहते है कि पहले इनको पढाओ लिखाओ | दो हजार साल लगातार दबे रहने से परिपाटी बन गयी है | मारवाड़ी का लडका व्यापार की कला में कुशल हो गया है , ब्राह्मण - कायस्थ वगैरह दिमाग में जैसे काम चला लेते है वैसा ये नही कर सकते | दबे को सिर्फ पढ़ाने से काम नही चलेगा , क्योकि संस्कार और परिपाटी की वजह से ऊँची जाति वाले ही आगे रहेंगे | छोटी जात को उठाने के लिए सहारा देना पडेगा | जैसे हाथ लुंज हो जाने पर सहारा देते है , और तब हाथ काम करने लगता है , उसी तरह इन नब्बे फीसदी दबे हुए लोगो को सहारा देना होगा , उस समय तक जब तक हिन्दुस्तान में बराबरी न आ जाए | इसीलिए समाजवादी पार्टी कहती है कि 100में कम से कम 60 ऊँची जगहे इनको दो जिनमे हरिजन , शुद्र आदिवासी जुलाहा अंसार धुनिया औरत वैगरह है |


प्रस्तुती - सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक - पुस्तक हिन्दू बनाम हिन्दू

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