{ 'युवक!' शीर्षक से लिखा गया भगत सिंह का यह लेख 'सा .मतवाला ' वर्ष 2 अंक स
.38, 16 मई 1925 में बलवंत सिंह के नाम से छपा था | इस लेख की चर्चा 'मतवाला ' के सम्पादकीय कर्म से जुड़े आचार्य शिवपूजन सहाय की डायरी में भी मिलती है | लेख से पूर्व यहाँ 'आलोचना ' में प्रकाशित डायरी के उस अंश को उद्घृत किया जा रहा है |--स .}
आज के नौजवानों के लिए यह ख़त उतना ही प्रासंगिक है जितना कल था |
युवावस्था मानव जीवन का बसन्त काल है | उसे पाकर मनुष्य मतवाला हो जाता है | हजारो बोतल का नशा चढ़ जाता है | विधाता की दी हुई सारी शक्तिया सहस्त्र- धारा होकर फूट पड़ती है | मदान्ध मातंग की तरह निरकुश , वर्षा कालीन शोणभद्र की तरह दुद्दर्ष, प्रलयकालीन प्रबल प्रभंजन की तरह प्रचण्ड , नवागत बसंत की प्रथम मल्लिका कलिका की तरह कोमल , ज्वालामुखी की तरह उच्छ्रखल और भैरवी - संगीत की तरह मधुर युवावस्था है | उज्जवल प्रभात की शोभा , स्निग्ध संध्या की छटा , शरच्चन्द्रिका की माधुरी , ग्रीष्म -मध्याहन का उत्ताप और भाद्रपदी अमावस्या के अर्द्धरात्र की भीषणता युवावस्था में सन्निहित है | जैसे क्रांतिकारी की जेब में बम गोला षडयंत्रो की असटी से भरा - भराया तमंचा , रण-रस -रसिक वीर के हाथ में खडग , वैसे ही मनुष्य के देह में युवावस्था | | युवावस्था देखने में तो शस्यश्यामला वसुंधरा से भी सुन्दर है , पर इसके अन्दर भूकम्प की - सी भयंकरता भरी हुई है | इसीलिए युवावस्था में मनुष्य के लिए केवल दो ही मार्ग है -- वह चढ़ सकता है उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर , वह गिर सकता है , अध्:पात के अँधेरे खन्दक में | चाहे तो त्यागी हो सकता है युवक , चाहे तो विलासी बन सकता है युवक | वह देवता बन सकता है , पिशाच भी बन सकता है | वही संसार को त्रस्त कर सकता है , वही संसार को अभयदान दे सकता है | संसार में युवक का ही साम्राज्य है | युवक के कृतिमान से संसार का इतिहास भरा पडा है | युवक ही रणचंडी के ललाट की रेखा है | युवक स्वदेश की यश -ददुन्भीका तुमुल निनाद है | युवक ही स्वदेश की विजय -वैजन्ती का सुदृढ़ दण्ड है | वह महाभारत के भीष्मपर्व की पहली ललकार के समान विकराल है , प्रथम मिलन के स्फीत चुम्बन की तरह सरस है , रावण के अंहकार की तरह निर्भीक है , प्रहलाद के सत्याग्रह की तरह दृढ और अटल है | अगर किसी विशाल ह्रदय की आवश्यकता हो तो ,युवको के ह्रदय टटोलो | अगर किसी आत्मत्यागी वीर की चाह हो तो युवको से मांगो | रसिकता उसी के बाटे पड़ी है | भावुकता पर उसी का सिक्का है | वह छंद शास्त्र से अनभिज्ञ होने पर भी प्रतिभाशाली कविहै | कवि भी उसी हृद्यारविंद का मधुप है | वह रसो की परिभाषा नही जानता , पर वह कविता का सच्चा मर्मज्ञ है | सृष्टि की एक विषम समस्या है युवक | ईश्वरीय रचना - कौशल का एक उत्कृष्ट नमूना है युवक | संध्या समय वह नदी के तात पर घंटो बैठा रहता है | क्षितिज की ओरबढ़ते जानेवाले रक्त -रशिम सूर्यदेव को आकृष्ट नेत्रों से देखता रह जाता है | उस पार से आती हुई संगीत -लहरी के मंद प्रवाह में तल्लीन हो जाता है | विचित्र है उसका जीवन | अदभुत है सुका साहस | अमोघ है उसका उअत्साह |
वह निश्चिन्त है , असावधान है | लगन लग गयी , तो रात -भर जागना उसके बाए हाथ का खेल है , जेठ की दुपहरी चैट की चांदी है , सावन-भादों की झड़ी मंगलोत्सव की पुष्प वृष्टि है , श्मशा की निस्तब्धता , उद्यान का विहाग - कल - कुजन है | वह इच्छा करे तो समाज और जाति को उदबुद्द कर दे , देश की लाली रख ले , राष्ट्र का मुखोज्ज्वल कर दे , बड़े -बड़े साम्राज्य उलट डाले | पतितो के उत्थान और संसार के उद्दारक सूत्र उसी के हाथ में है | वह इस विशाल विश्वरंगस्थल का सिद्धहस्त खिलाड़ी है |
अगर रक्त की भेट चाहिए , तो सिवा युवक के कौन देगा ? अगर तुम बलिदान चाहते हो ,तो तुम्हे युवक की ओर देखना पडेगा | प्रत्येक जाति के भागे विधाता युवक ही तो होते है |
एक पाश्चात्य पंडित ने ठीक कहा है -- It is an established truism that youngmen of today are the countrymen of tomorrow , holding in their hands the haigh destinies of the Land .They are the seeds that spring and bear fruit 2. यह है कि आज के युवक ही कल के देश के भाग्य - निर्माता है | वे ही भविष्य की सफलता के बीज है |
संसार के इतिहासों के पन्ने खोलकर देख लो , युवक के रकत से लिखे हुए अमर संदेश भरे पड़े है | संसार की क्रान्तिया और परिवर्तनों के वर्णन छाँट डालो , उनमे केवल ऐसे युवक ही मिलेंगे , जिन्हें ने 'पागल छोकड़े ' अथवा 'पथ -भ्रष्ट 'कहा है | पर जो सिडी है , वे क्या ख़ाक समझेंगे कि स्वदेशाभिमान से उन्मत्त होकर अपनी लोथो से किले की खाइयो को पाट देने वाले जापानी युवक किस फौलाद के टुकड़े थे | सच्चा युवक तो बिना झिझक के मृत्यु का आलिगन करता है , चोखी संगीनों के सामने छाती खोलकर डट जाता है , तोप के मुंह पर बैठकर भी मुस्कुराता ही रहता है , बेडियो की झंकार पर राष्ट्रीय गान गता है और फाँसी के तख्ते पर अट्टहास पूर्वक आरूढ़ हो जाता है | फाँसी के दिन युवक का ही वजन बढ़ता है , जेल की चक्की पर युवक ही उद्बोधन -मन्त्र गाता है , कालकोठरी के अन्धकार में धँसकर ही वह स्वदेश को अन्धकार के बीच से उबारता है | अमेरिका के युवक -दल के नेता 'पैट्रिक हेनरी ' ने अपनी बातो में कहा था -- Life is dearer outside the prisonwalls , but it is immeasurably dearer within the prison-cells, where it is the price paid for the freedom's fight .'' अर्थात जेल की दीवारों से बाहर कि जिंदगी बड़ी महंगी है , पर जेल की काल - कोठरियों की जिन्दगी और भी मंहगी है ; कयोकी वहाँ यह स्वतंत्रता -संग्राम के मुले - रूप से चुकाई जाती है |
जब ऐसा सजीव नेता है , तभी तो अमेरिका के युवको में यह ज्वलंत घोषणा करने का साहस भी है की '' We,believe that when a government becomes a destructive of the natural right of man , it is the man's duty to destroy that government '' अमेरिका के युवक विशवास करते है की जन्मसिद्द अधिकारों को पद -दलित करनेवाली सत्ता का विनाश करना मनुष्य का कर्तव्य है |
ऐ भारतीय युवक! तू क्यो गफलत की नीद में पडा बेखबर सो रहा है ! उठ , आँखे खोल , देख , प्राची - दिशा का ललाट सिंदूर - रंज्जित हो उठा | अब अधिक मत सो | सोना हो तो अन्नत निद्रा की गोद में जाकर सो रह | कापुरुषता के गोद में क्यों सोता है ? माया - मोह - ममता त्यागकर गरज उठ --
Farewell farewell My true Love ,The armyis on move ; And if Istayed with you Love , Acoward Ishall prove ''
तेरी माता , तेरी प्रात: स्मरणीया , तेरी वन्दनीया , तेरी जगदम्बा , तेरी अन्नपूर्णा , तेरी तत्रिशूलधारणी, तेरी शस्य श्यामला उज्जला आज फूट - फुटकर रो रही है | क्या उसकी विकलता तुझे तनिक भी चंचल नही करती ? धिक्कार है तेरी निर्जीवता पर ! तेरे पितर भी नतमस्तक है इस नपुस्त्वपर ! यदि अब भी तेरे किसी अंग में टुक ह्या बाकी हो , तो उठकर माता के दूध की लाज रख , उसके उद्धार का बिदा उठा , उसके आँसुओ की एक - एक बूंद की सौगंध ले , उसका बड़ा पार कर और बोल मुक्त कंठ से वन्देमातरम |
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