Saturday, June 1, 2019

महान क्रांतिकारी मौलवी बरकतुल्लाह

महान क्रांतिकारी मौलवी बरकतुल्लाह
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( 7 जुलाई 1854 - 20 सितम्बर 1927 )
ज्यादातर लोग जानते है कि ब्रिटिश शासन के दौर में बनी पहली हिन्दुस्तानी सरकार आज़ाद हिन्द फ़ौज की सरकार थी | लेकिन सच्चाई यह है कि पहली हिन्दुस्तानी सरकार 1915 में अफगानिस्तान में बनी हिन्दुस्तान की अस्थाई सरकार थी | राजा महेंद्र प्रताप इसके राष्ट्रपति और मौलवी बरकतुल्लाह इसके प्रधानमन्त्री थे | इस तरह बरकतुल्लाह साहब को हिन्दुस्तान का पहला प्रधानमन्त्री बनने का गौरव प्राप्त हैं | उनका जीवन शुरुआत से ही संघर्षो का जीवन रहा है | वह संघर्ष इस्लाम धर्म के धर्मवादी रुझानो से गदर पार्टी के राष्ट्रवादी क्रांतिकारी एवं धर्म निरपेक्षी रुझानो की तरफ बढ़ता रहा | इस्लामी जगत के स्कालर के रूप में अन्तराष्ट्रीय प्रसिद्धि हासिल किए तथा कई भाषाओं के विद्वान् मौलाना राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर पर इस्लामी धार्मिक या किसी भी भाषाई संस्थान के उच्च पद पर पहुचने में कही कोई अडचन नही थी | वे लिवरपूल व टोकियो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के रूप में सालो साल काम भी करते रहे थे | लेकिन अन्त में उन्होंने वह सब त्याग कर राष्ट्र के स्वतंत्रता के लिए प्रवासी क्रांतिकारी का जीवन अपनाया | गदर पार्टी के निर्माण में और उसे आगे बढाने में भरपूर योगदान दिया | बाद में अफगानिस्तान में देश की पहली अस्थाई सरकार बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई |ब्रिटिश दासता और उसके शोषण व अन्याय , अत्याचार के विरुद्ध मौलवी बरकतुल्लाह के विचार एवं व्यवहार आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं स्मरणीय है और चौतरफा बढ़ते विदेशी प्रभाव , प्रभुत्व के मौजूदा दौर में अनुकरणीय भी हैं |
मौलवी बरकतुल्ला का पूरा नाम अब्दुल हफ़ीज़ मोहम्मद बरकतुल्ला था | इनके जन्म के समय इनके पिता शुजातुल्लाह एक छोटे से स्कुल में अध्यापन का काम कर रहे थे | बाद में वे नौकरी छूट जाने के बाद वे स्थानीय पुलिस चौकी पर नियुक्त हो गये थे | घर की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी | इसी लिए बरकतुल्लाह साहब की जन्म तिथि पर भी मतभेद है | कुछ का कहना है की उकी पैदाइस की तिथि 7 जुलाई 1854 थी | जबकि कि दूसरी जगह पर उनकी पैदाइश को 1857 और 1858 के बीच बताया गया हैं | मौलाना ने भोपाल के सुलेमानिया स्कूल से अरबी , फ़ारसी कई माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा प्राप्त की | मौलाना ने यही से हाई स्कूल तक की अंग्रेजी शिक्षा भी हासिल की | शिक्षा के दौरान ही उन्हें उच्च शिक्षित अनुभवी तथा देश दुनिया के बारे में जानकार मौलवियों , विद्वानों से मिलने और उनके विचारों को जानने का अवसर मिला | शिक्षा समाप्त करने के बाद वे उसी स्कूल में शिक्षक नियुक्त हो गये | यही काम करते हुए वे अन्तराष्ट्रीय ख्याति के लीडर शेख जमालुद्दीन अफगानी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए | शेख साहब सभी देशो के मुसलमानों में एकता व भाईचारा के लिए दुनिया के तमाम देशो का दौरा कर रहे थे | मौलवी बरकतुल्लाह के माँ - बाप की मृत्यु भी इसी दौरान हो गयी | इकलौती बहन की शादी हो चुकी थी | अब मौलाना परिवार में एकदम अकेले थे | उन्होंने अचानक और बिना किसी को बताये ह़ी भोपाल छोड़ दिया और बाम्बे चले गये | वो पहले खंडाला और फिर बाम्बे में ट्यूशन पढाने के साथ खुद की अंग्रेजी पढाई जारी राखी | 4 साल में उन्होंने अंग्रेजी भाषा की उच्च शिक्षा हासिल कर ली और 1887 में वे आगे की शिक्षा ज्ञान की तलाश में इंग्लैण्ड पहुच गये | सम्भवत: उन्हें इंग्लैण्ड पहुचने में प्रवासी हिन्दुस्तानी क्रान्तिकारियो के सबसे बड़े प्रोत्साहक , संरक्षक श्याम जी कृष्ण वर्मा का योगदान था | इंग्लैण्ड में मौलाना का जीवन वहा की चकाचौध व विलासिता से एकदम अछूता रहा | श्याम जी कृष्ण वर्मा और इंग्लैण्ड में रह रहे दूसरे क्रांतिकारियों के सम्पर्क से मौलवी बरकतुल्लाह का , हिन्दुस्तान की स्वतंत्रता के क्रांतिकारी विचारों गतिविधियों से सम्पर्क बढना शुरू हुआ जो लगातार बढ़ता ही रहा | वे कांग्रेस के नेता गोपाल कृष्ण गोखले से और फिर बाद में बाल गंगाधर तिलक से , उनके ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरोध में स्वराज्य की मांग से अत्यधिक प्रभावित हुए थे | राष्ट्र स्वतंत्रता के लिए अपनी बढती गतिविधियों के कारण मौलाना अंग्रेजी भाषा की उच्च शिक्षा को तो जारी रख सके लेकिन इसी बीच उन्होंने जर्मनी , फ्रांसीसी , टर्की और जापानी भाषा का ज्ञान जरुर हासिल कर लिया | उर्दू अरबी और फ़ारसी के विद्वान् तथा अंग्रेजी के तो अच्छे खासे जानकार वे पहले से ही थे | अब अरबी , फ़ारसी के विद्वान् के रूप में प्रसिद्धि पाने के साथ - साथ मौलाना की पहचान राजनीति व पत्रकारिता के क्षेत्र में भी स्थापित होने लगी थी | ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हिन्दुस्तान के बिगड़ते आर्थिक हालात पर मौलाना के भाषणों व लेखो को खूब सराहा जाता था | लन्दन में 7 - 8 सालो तक अरबी भाषा के अध्यापक तथा स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम करने के बाद मौलाना लिवरपूल यूनिवर्सिटी के ओरियन्टल कालेज में फ़ारसी के प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हुए | लेकिन राष्ट्र वादी और धर्मवादी विचारधारा को लेकर इंग्लैण्ड के शासकीय हल्के में मौलाना का विरोध बढ़ता रहा | क्योंकि नौजवान बरकतुल्लाह मुस्लिम देशो की शासन सत्ताओ के विरुद्ध ब्रिटिश शासन की नीतियों , कारवाइयो का तथा हिन्दुस्तान में ब्रिटिश शासन की लुटेरी नीतियों का लगातार विरोध करते रहे | उस पर खुलकर बोलते व लिखते रहे थे | इसी कारण ब्रिटिश सरकार ने अब उन पर तरह - तरह के प्रतिबन्ध भी लगाना शुरू कर दिया | इसलिए मौलाना के लिए अब वहा टिकना सम्भव नही रह गया | इसी बीच न्यूयार्क के मुसलमानों की तरफ से उन्हें एक मस्जिद व इस्लामिक स्कूल बनवाने के लिए रखे गये सम्मलेन में आने का निमत्रण मिला | इस दौरान मौलाना का परिचय व पहुच विश्व के नामी गिरामी इस्लामी विद्वानों तथा बहुतेरे मुस्लिम राष्ट्रों के शासको में हो चुकी थी | 1899 में अमेरिका पहुचने के बाद बरकतुल्लाह साहब ने वहा के स्कूलो में अरबी पढाने का काम शुरू कर दिया | लेकिन ब्रिटिश नीतियों के विरुद्ध अपनी क्रियाशीलता को वहा भी लगातार जारी रखा | इसका सबूत आप 21 फरवरी 1905 में हसरत मोहानी को लिखे गये एक पत्र में भी देख सकते हैं |बरकतुल्ला ने यह पत्र हसरत मोहानी द्वारा हिन्दू मुस्लिम एकता की जरूरत पर लिखे गये किसी समाचार पत्र के सम्पादकीय को पढकर लिखा था | उन्होंने हसरत मोहानी के विचारों की प्रशंसा करते हुए लिखा था कि"बड़े अफ़सोस की बात है कि, 2 करोड़ हिन्दुस्तानी , हिन्दू मुसलमान भूख से मर रहे हैं , पूरे देश में भुखमरी फैलती जा रही हैं | लेकिन ब्रिटिश सरकार हिन्दुस्तान को अपने मालो - सामानों का बाज़ार बनाने की नीति को ही आगे बढाने में लगी हैं | इसके चलते देश के लोगो के काम -धंधे टूटते जा रहे हैं | ब्रिटिश सरकार खेती के आधुनिक विकास का भी कोई प्रयास नही कर रही है जबकि उसकी लूट निरंतर जारी रखे हुए है | भारतीयों को अच्छे व ऊँचे पदों , ओहदों से भी वंचित किया जाता रहा हैं | इस तरह से ब्रिटिश हुकूमत द्वारा हिन्दुस्तान व उसकी जनता पर हर तरह का बोझ डाला जा रहा हैं | उसकी अपनी धरोहर को भी नष्ट किया जा रहा है |हिन्दुस्तान से करोड़ो रुपयों की लूट तो केवल इस देश में लगाई गयी पूंजी के सूद के रूप में ही की जाती रही है और निरंतर बढती जा रही है | देश की इस गुलामी और उसमे उसकी गिरती दशा के लिए जरूरी है कि देश के हिन्दू मुसलमान एकजुट होकर तथा कांग्रेस के साथ होकर देश की स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए हिन्दू मुस्लिम एकता को बढाया जाना चाहिए "| खुद मौलाना ने 1857 के संघर्ष को याद करते हुए हिन्दू मुस्लिम एकता को आगे बढाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किया | इसी संदर्भ में वे न्यूयार्क से जापान पहुचे | अब ब्रिटिश हुकूमत और उसकी नीतियों के विरोध को आगे बढाने का काम मौलाना और उनके अन्य साथियो , सहयोगियों का सर्वप्रमुख मिशन बन चुका था | मिशन में ब्रिटिश हुकूमत से पीड़ित हर देश के हिन्दू मुसलमान व अन्य धर्मावलम्बी लोग उने साथ खड़े हो रहे थे | 1905 के अन्त में जापान पहुचने के साथ मौलाना की ख्याति एक महान क्रांतिकारी के रूप में हो चुकी थी | वहा उन्होंने जापानी भाषा के साथ कई भाषाओं का अधिकारपूर्ण ज्ञान तथा उर्दू , अरबी , फ़ारसी की विद्वता के चलते टोकियो यूनवर्सिटी में उनकी नियुक्ति उर्दू प्रोफेसर के रूप में हो गयी | लेकिन उनका मुख्य काम ब्रिटिश हुकूमत का विरोध बना रहा | वे हर जगह ब्रिटिश राज को उखाड़ फेकने के लिए खासकर मुसलमानों का आव्हान करते रहे और इस बात पर जोर देकर करते रहे कि मुसलमानों को हिन्दू और सिक्खों से भी इसके लिए एकता बढाने की जरूरत है | इसी के चलते जापान में ब्रिटिश हुकूमत के प्रतिनिधि के दबाव के चलते मौलाना को यूनवर्सिटी से निकाल दिया गया | लेकिन मौलाना का वह विरोध समाचार पत्रों तथा मीटिंगों सम्मेलनों के माध्यम से निरंतर चलता बढ़ता रहा | इसी सिलसिले में वे फ्रांस और फिर दोबारा अमेरिका पहुचे | तब तक अमेरिका के प्रवासी हिन्दुस्तानियों द्वारा गदर पार्टी के निर्माण के लिए प्रयास आरम्भ हो चुका था | यह प्रयास अमेरिका , कनाडा तथा मैकिसकोमें एक साथ शुरू किया गया था | 13 मार्च 1913 को गदर पार्टी और उसके क्रियाकलापों को संगठित और निर्देशित करने के लिए 120 भारतीयों का सम्मलेन बुलाया गया | इसमें सोहन सिंह बहकना , लाला हरदयाल , मौलाना बरकतुल्ला जैसे लोगो ने प्रमुखता से भागीदारी निभाई | गदर पार्टी का उद्देश्य ब्रिटिश राज को सशत्र संघर्ष के जरिये उखाड़ कर देशवासियों के जनतांत्रिक व धर्म निरपेक्ष गणराज्य की स्थापना करना था | गदर पार्टी के इन उद्देश्यों , घोषणाओं को निरुपित करने में बरकतुल्ला ने भी प्रमुख भागीदारी निभाई थी | मौलाना के जीवन का यह मोड़ उनको धर्मवादी , इस्लाम - वादी रुझानो से आगे बढकर राष्ट्रवादी क्रांतिकारी एवं धर्म निरपेक्षी मूल्यों , रुझानो की तरफ बढने वाला साबित हुआ , जो म्रत्यु पर्यंत चलता रहा | अमेरिका में गदर पार्टी के फैलाव और 'साप्ताहिक गदर ' के कई भाषाओं में प्रकाशन के जरिये ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेकने के प्रचार - प्रसार का काम तेज़ हो गया | फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने अमेरिका सरकार पर गदर पार्टी पर रोक लगाने , उसे प्रतिबंधित करने के लिए दबाव डालना शुरू किया | इसके चलते भी बरकतुल्ला , लाला हरदयाल और कई अन्य क्रान्तिकारियो को अमेरिका छोड़ना पडा |इन क्रान्तिकारियो ने जर्मनी पहुच कर वहा से हिन्दुस्तान की स्वतंत्रता के ध्येय को पूरे यूरोप में फैलाने - बढाने के लिए ' बर्लिन पार्टी ' में प्रमुख रूप से चम्पक रामन पिल्लई,लाला हरदयाल बरकतुल्ला , भूपेन्द्रनाथ दत्ता , राजा महेंद्र प्रताप और अब्दुल वहीद खान शामिल थे | यही पर राजा महेंद्र प्रताप और बरकतुल्ला पहली बार मिले और इसके बाद टी वे जीवन- पर्यंत एक दूसरे के साथ तब तक रहे , जब तक मौत ने बरकतुल्ला को अपने आगोश में नही ले लिया | बर्लिन पार्टी का एक मुख्य काम विदेशो में ब्रिटिश सरकार की तरफ से युद्धरत हिन्दुस्तानी सैनिको को ब्रिटिश फ़ौज से बगावत करवाने और फिर उन्हें ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध खड़ा करना था | बर्लिन पार्टी द्वारा बरकतुल्ला व राजा महेंद्र प्रताप को अफगानिस्तान के रास्ते विद्रोही सैनिको को लेकर हिन्दुस्तान की ब्रिटिश सरकार पर हमला करने का कार्यभार सौपा गया |इसी सिलसिले में बरकतुल्ला और महेंद्र प्रताप ने टर्की , बगदाद और फिर अफगानिस्तान का सफर किया | वे वहा के शासको से मिलते , अपना उद्देश्य बताते और हिन्दुस्तान की स्वतंत्रता के लिए सहयोग , सहायता मांगते हुए आगे बड़े रहे थे | प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन के विरुद्ध युद्ध कर रही जर्मनी की सरकार ने सफर के दौरान जर्मन सैनिको का एक दस्ता भी उनके साथ कर दिया था |
काबुल पहुचने पर पहले तो उन्हें राजकीय गेस्ट हाउस में नजरबंद करलिया गया | पर बाद में जर्मनी तथा अफगानी हुकमत के प्रधानमन्त्री के दबाव में न केवल इन्हें नजरबंदी से मुक्ति दे दी गयी अपितु हिन्दुस्तान की आजादी के लिए अफगानिस्तान में रहकर क्रिया -कलाप बढाने की छुट मिल गयी | 1915 का अंत होते - होते मौलवी बरकतुल्ला और महेंद्र प्रताप ने अपने सहयोगियों के साथ अफगानिस्तान में हिन्दुस्तान की अस्थाई सरकार के गठन का काम पूरा किया | प्रथम विश्व युद्ध का दौर में ब्रिटिश विरोधी जर्मनी सरकार ने तुरंत ही अफगानिस्तान में हिन्दुस्तानियों की अस्थाई क्रांतिकारी सरकार को मान्यता प्रदान कर दी | महेंद्र प्रताप इस अस्थाई सरकार के अध्यक्ष व बरकतुल्ला प्रधानमन्त्री बने | मौलाना ओबेदुल्ला सिंधी को इस सरकार का विदेश मंत्री बनाया गया | इस अस्थाई सरकार और अफगानी सरकार में यह समझौता हुआ कि अफगानिस्तान की सरकार उन्हें हिन्दुस्तान को आजाद कराने में पूरा सहयोग देगी | लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दुस्तान की सरकार बलूचिस्तान और पख्तुनी भाषा - भाषी क्षेत्र अफगानिस्तान को सौप देगी |इस अस्थाई सरकार ने हिन्दुस्तान की स्वतंत्रता के लिए हर संभव प्रयास जारी रखा | इस प्रयास से काबुल में हिन्दुस्तानियों की खासी बड़ी जमात इकठ्ठा हो गयी | अस्थाई सरकार के अध्यक्ष महेंद्र प्रताप ने रूस के सम्राट जार निकोलस द्दितीय से ब्रिटेन से सम्बन्ध तोड़ लेने और हिन्दुस्तान की स्वतंत्रता के लिए अस्थाई सरकार से सहयोग करने का अनुरोध किया | लेकिन जारशाही रूस ब्रिटेन के साथ था | उसने अस्थाई सरकार को कोई सहयोग नही किया |अब अस्थाई सरकार ने हिन्दुस्तान की ब्रिटिश हुकूमत पर आक्रमण करने के लिए सेना का गठन शुरू किया | इस सेना में ज्यादातर सीमावर्ती क्षेत्रो के लोग शामिल थे | सेना के गठन के साथ अस्थाई सरकार द्वारा हिन्दुस्तानियों को देश में बगावत करने , अंग्रेजो की हुकूमत को ध्वस्त करने और अंग्रेजो को पूरी तरह से खत्म कर देने की अपीले जारी कर दी |इसी बीच 1917 की अक्तूबर क्रान्ति के जरिये रूस की जारशाही का तख्ता पलट दिया गया | लेलिन के नेतृत्त्व में बनी सोवियत सत्ता ने अंग्रेजो के साथ हुए गोपनीय समझौतों व संधियों को रुसी जनता के सामने उजागर करते हुए उन्हें रद्द कर दिया मई 1919 में बरकतुल्ला , महेंद्र प्रताप मौलवी अब्दुल रब तथा दिलीप सिंह के साथ हिन्दुस्तान की स्वतंत्रता के उद्देश्य के लिए मास्को पहुचे | जहा उन्होंने लेलिन से भेट की |लेलिन ने उनके उद्देश्य को न्याय संगत बताते हुए उनका समर्थन किया | बरकतुल्ला और उनके साथी लेलिन से मिलकर और सोवियत सत्ता की व्यवस्था देखकर खासे -प्रभावित हुए |उन्होंने लेलिन की प्रसशा करते हुए यह लिखा कि "लेलिन अकेले ऐसे बहादुर इंसान हैं , जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के साथ जारशाही और बाद की करेनसकी सरकार के गोपनीय संधियों , समझौतों को सबके सामने उजागर करते हुए उन्हें रद्द कर दिया |लेलिन पर लिखे अपने बहुत से लेखो में बरकतुल्ला ने उन्हें मुसलमानों और एशियाई जनगण की मुक्ति के लिए " उगता सूर्य " बताया |बरकतुल्ला की अगुवाई में अस्थाई सरकार तथा प्रवासी हिन्दुस्तानी क्रान्तिकारियो का सोवियत रूस के साथ सम्पर्क बढ़ता रहा | उन्हें सोवियत रूस से हिन्दुस्तान के स्वतंत्रता संघर्ष का सीधा समर्थन निरंतर मिलता रहा | अब बढती उम्र और लगातार की भाग - दौड़ के साथ बढते काम के दबाव के कारण मौलाना का स्वास्थ्य गिरने लगा था | लम्बे संघर्ष की निरंतर गतिशीलता ने उन्हें थकने के लिए मजबूर कर दिया | अपने उद्देश्य पूर्ण एवं संघर्ष पूर्ण जीवन की आखरी मंजिल तक पहुचते हुए मौलाना ने अमेरिका जाकर अपने मित्रो से मिलने और भविष्य की रणनीतियो पर विचार - विमर्श करने का निर्णय लिया | वे 70 वर्ष से ज्यादा कि उम्र के थे और मधुमेह रोग से ग्रसित भी थे |कैलिफोर्निया में मौलाना को सुनने के लिए हिन्दुस्तानियों की भारी संख्या इकठ्ठा हुई |वे बोलने के लिए खड़े हुए लेकिन बीमारी , बुढापे और भावावेश में वे अपनी बात देर तक नही रख सके | उन्होंने महेन्द्र प्रताप से सभा को संबोधित करने की बात कह स्वंय को डायस से हटा लिया | चंद दिन बाद 27 सितम्बर 1927 को मौलाना के जीवन का चमकता सूरज चिर- विलीन हो गया |उन्हें अमेरिका के मारवस्बिली में दफन किया गया |उनका अंतिम संस्कार रहमत अली . डॉ0 सैयद हसन , डॉ0 औरगशाह, और राजा महेन्द्र प्रताप द्वारा संयुक्त रूप से सम्पन्न किया गया | मृत्यु से पहले मौलाना द्वारा अपने साथियो के समक्ष निम्नलिखित शब्दों में उनके अपने विचार व्यक्त किया गया था " मैं आजीवन हिन्दुस्तानी स्वतंत्रता के लिए कार्य करता रहा | यह मेरे लिए ख़ुशी की बात हैं कि मेरा जीवन मेरे देश कि बेहतरी के लिए इस्तेमाल हो पाया | अफ़सोस है कि हमारे प्रयास हमारे जीवन में फलीभूत नही हो सके | लेकिन उसी के साथ यह ख़ुशी भी है कि अब हजारो कि तादात में नौजवान देश की स्वतंत्रता के लिए आगे आ रहे हैं | वे ईमानदार भी है साहसी भी | मैं पुरे विश्वास के साथ देश का भविष्य उनके हाथो में छोड़ सकता हूँ | मुझे अली सरदार जाफरी की कुछ लाइन याद आ रही है '
हिन्दुस्तान में इक नयी रूह फूंककर
आज़ादी-ए-हयात का सामान कर दिया
शेख़ और बिरहमन में बढ़ाया इत्तिहाद
गोया उन्हें दो कालिब-ओ-यकजान कर दिया
ज़ुल्मो-सितम की नाव डुबोने के वास्ते
क़तरे को आंखों-आंखों में तूफ़ान कर दिया
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सुनील दत्ता -- स्वतंत्र पत्रकार --- समीक्षक

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