Thursday, June 13, 2019

मेहँदी हसन शहंशाह --- ए--- गजल

अब सदाए मुझे न दो ..................
मेहँदी हसन शहंशाह --- ए--- गजल
आकाश की तरफ
अपनी चाबियों का गुच्छा उछाला
तो देखा
आकाश खुल गया है |
जरुर आकाश में
मेरी कोई चाबी लगती है !
शायद मेरी संदूक की चाबी !!
..........................विनोद शुक्ल की यह पक्तिया ना जाने क्या -- क्या कह दे रही है |
कविता .... शब्द -- दर-- शब्द रचती है ,दृश्य मानस में दृश्य लिख देता है एक कविता अंतस में | शब्दों की रेलम - पेल में कुछ शब्द चुने पिरो दी एक लड़ी , जो कहती है -- सुनो | जो चाहती है --- समझो | जो आँखे मूंद देती है और रच देती है संसार का एक दृश्य आँखों के पटल पे |
एक सूर गुंथे आते है दृश्य , एक के बाद एक यू --- मानो कविता ना हो वो आँखों के सामने वास्तविक धरातल पे उभरते हमारे जीवन से जुडी कहानी हो |
हवा से काप्न्ति छोटी -- छोटी पत्तिया नीचे सर्र से गुजर जाती है , सूरज डूब जाता है दूर किसी पर्वत के सीने में और ऐसे में मेहँदी हसन शाब की आवाज यह बोल पड़ती है ""रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ ...आखिर से फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ .............................और वो आवाज यह कहती हुई इस दुनिया से रुखसत हो गयी '' जिन्दगी में तो सभी प्यार किया करते है .....मैं तो मरकर मेरी जान तुझे चाहूँगा .......तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी है ऐसी अजीम शक्सियत आज हमारे बीच नही रहे पर उनकी जादू भरी आवाज की अदायगी अपने बेमिशाल अल्फाजो के बीच हमारे बीच ताउम्र ज़िंदा रहेगी और हर पल उनके होने का एहसास दिलाती रहेगी की मेंहदी हसन साहब हम लोगो के दर्मिया कही आसपास मौजूद है ..................................लुणा को नाज है अपने "" मेह्दिया '' पर ...................मेहदी हसन भारत विभाजन से करीब एक साल पहले ही भारत से चले गये थे |उनके पिता व चाचा उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर गये | वहा पर राजा ने उन्हें यही पर रुकने के लिए कहा , लेकिन वे नही माने | यहा से वे सीधे पाकिस्तान चले गये , लेकिन अपनी जन्मस्थली लुणा गाँव से उनका नाता ताउम्र बना रहा | मेहदी हसन तीन बार यहा आये |
राजस्थान के शेखावटी अंचल के झुझुनू जिले के लुणा गाँव के बाशिंदों में आज अपने मेह्दिया ( गजल सम्राट मेहदी हसन ) के इतन्काल की खबर मिलते ही सन्नाटा छा गया और हर कोई उनके बचपन को याद कर रहा था | लुणा गाँव में ही अमर सूर साधक मेहदी हसन ने जन्म लिया था और यही की माती में खेलकर चलना सिखा | लुणा गाँव विकास की रफ़्तार में जरुर पिछड़ा हुआ है , मगर इस गाँव के लोगो को फख्र है की उनके गाँव के मेह्दिया को पूरी दुनिया गजल सम्राट मेहदी हसन के नाम से जानती है | लुणा गाँव में हसन के परिवार का कोई सदस्य अब नही रहता , लेकिन गाँव वाले आज भी मेहदी हसन को याद करते है | मेहदी हसन के गाँव के एक बुजुर्ग मेहदी हसन को याद करते हुए उनके बचपन की यादो में खो गये थे | मेंहदी हसन के बुजुर्ग साथी गजल का एक शेर सुनाते हुए कहते है की "" भूलो बिसरी चंद उम्मीदे , चंद अफ़साने , तुम याद आये और तुम्हारे साथ जमाना याद आये ......|"" उन्होंने कहा की जब भी मेंहदी हसन का नाम आटा है बचपन की यादे ताजा हो जाती है | उन्होंने कहा की वे हसन से छ साल बड़े है , लेकिन बचपन में उनके साथ खेलना , कुश्ती लड़ना और साज बजाने की यादे आज भी ताजा है दिवगत हो चुके अर्जुन जागीद के साथ मेहँदी हसन की गहरी दोस्ती थी | हसन शेखावत व जागीद के साथ पहलवानी करते और शेखावत के साथ गायकी का रियाज भी करते थे | मेहँदी हसन के दादा इमामुद्दीन ( इमाम जान ) ढढार ठिकाणे में गाने जाया करते थे | बाद में मेहँदी हसन उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर के राजा के पास चले गये | जानकार लोगो ने बताया की बस्ती नगर के राजा को गायकी का शौक था | राजा ने मेहँदी हसन को अपना गुरु बनाया | वही पर मेहँदी हसन के पिता अजीम जान चाचा जान , इस्माइल जान बुआ भूरी व रहीमा की तालीम हुई |बस्ती से हसन के पिता अजीम जान और चाचा हारमोनियम , सितार लेकर आये | जान की गायकी को देखते हुए उन्हें मडाया ठिकाणा में बुलाया गया | अजीम जान के पुत्र गुलाम कादर व मेहँदी हसन को कई बार बस्ती नगर ले जाया गया , जहा पर उन्होंने शास्त्रीय संगीत की तालीम ली |
यू तो गायकी की तालीम मेहँदी हसन ने अपने दादा से ली , लेकिन उन्होंने अपने चाचा इस्माइल जान से काफी कुछ सिखा | उन्होंने गजल गायकी को शास्त्रीय संगीत में ढालकर गजल गायकी को परवान चढाया अपनी बेजोड़ गजल गायकी से लोगो को मदहोश करके उनके दिलो पर राज करने वाले मेहँदी हसन शहंशाह -- ए-- गजल मेहँदी हसन अहमद फराज की लिखी एक गजल को गाते हुए कहते है की "' अबके हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबो में मिले , जिस तरह सूखे हुए फूल किताबो में मिले ''...... इन अल्फाजो के साथ एक बेजोड़ सूर साधक के गजल की धडकन भी रुक्सत ले ली इस दुनिया से ऐसे सूर साधक को मेरा नमन ................................सुनील दत्ता पत्रकार....

6 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (16 -06-2019) को "पिता विधातारूप" (चर्चा अंक- 3368) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

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    1. आनीता जी आपने मेरे लेख को स्थान दिया आभार आपका

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  2. सच कहा.ग़ज़ल गायकी में मेहदी हसन का कोई सानी नहीं है.

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  3. महान गायक मेहँदी हसन को विनम्र श्रद्धांजलि

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