Tuesday, June 4, 2019

लहू बोलता भी हैं

लहू बोलता भी हैं -- सैय्यद शाहनवाज कादरी


जंगे - आजादी - ए - हिन्द के मुस्लिम किरदार


इतिहास के अन्याय को दुरुस्त करना समय की मांग


इतिहास में जाति - धर्म के आधार पर काफी पक्षपात हुआ है | इसका एक उदाहरण तब भी सामने आया था जब स्व एल .सी , जैन के पिता ने आजादी के आन्दोलन के बारे में जिन दस्तावेजो को घूम - घूम कर संग्रहित किया था , उनका प्रकाशन हुआ था | स्व मस्तराम कपूर ने इस संकलन को तैयार करने का काम किया था तथा उसमे बताया था कि आजादी के आन्दोलन के सैनिको के साथ किस प्रकार का भेदभाव हुआ है | आजादी के आन्दोलन के ऐसे ही एक नायक थे स्व अब्दुल गनी खान , जिन्हें लोग आम तौर पर गनी चाचा के नाम से जानते थे | वह महात्मा गांधी के आन्दोलन में अनेक बार जेल में रहें | कुछ समय तक मेरे पिता स्व भवानी सिंह और गनी चाचा साथ - साथ जेल में भी रहे | गनी चाचा न केवल स्वतंत्रता - संग्राम - सेनानी व पक्के गांधीवादी और धर्मनिरपेक्ष जेहनियत के व्यक्ति थे , बल्कि जब महात्मा गांधी ने आजादी के आन्दोलन के दौरान गौ - वध - बंदी का समर्थन किया था और बहुत से मुस्लिम - भाइयो को उसका सहयोगी बनाया था तब गनी चाचा भी खुलकर साथ में थे | मध्यप्रदेश के सागर जिले के रतौना नामक गाँव में जब अंग्रेजी हुकूमत गौ - कशी के लिए स्लाटर - हाउस बना रही थी , तब गनी चाचा ने वहाँ जाकर इसका विरोध किया और मुस्लिम - भाइयो को साथ लेकर गौ - वध - बंदी के पक्ष में खड़े हुए तथा इस्लामिक सिद्धांतो और कुरआन की आयतों का उल्लेख करते हुए गौ - वध - बंद कराने के पक्ष में अकाट्य तर्क दिए | दरअसल अंग्रेजी हुकूमत गाय के नाम पर हिन्दू और मुसलमान को बाटना और महात्मा गांधी के आजादी के आन्दोलन को कमजोर करना चाहती थी , मगर गनी चाचा की पहल से अंग्रेजो का यह षड्यंत्र विफल हो गया | उन्होंने गाँव के मसायल पर एक अखबार ''देहाती दुनिया'' भी शुरू किया था जिसे वह लिखते भी थे , छापते भी थे , बाटते भी थे और गाँव - गाँव जाकर महात्मा गांधी के विचारों को जिसके जरिये लोगो तक पहुचाते भी थे | अब्दुल गनी का निवास - स्थान सागर नगर के शनिचरी मुहल्ले में था | वर्ष 2004 - 2005 में मैंने पहल करके सागर के नगर निगम से मांग की कि उनके निवास स्थान से कुछ दुरी पर जो पार्क है उसे उनके नाम कर दिया जाए | निगम के तत्कालीन महापौर ने , जो संघ की पृष्ठभूमि के थे , पहले तो सहमती प्रदान कर दी तथा कुछ प्रक्रिया आगे भी बढाई - मगर कुछ दिनों बाद ही प्रक्रिया थम गयी और यह स्पष्ट हो गया कि संघ के लोग उनके नाम पर पार्क का नामकरण नही होने देना चाहते | वर्ष 2009 में जब भारत सरकार ने सागर के डा0 हरी सिंह गौर विश्व विध्यालय का उन्नयन करके उसे केन्द्रीय विश्व विद्यालय बनाया , तब मैंने उसकी शुरुआत के लिए आये तत्कालीन मानव - ससाधन - मंत्री अर्जुन सिंह से विश्व विद्यालय के स्टेडियम का नाम अब्दुल गनी खान साहब के नाम पर करने का अनुरोध किया | उन्होंने इसे तत्काल स्वीकार किया और नामकरण करने की घोषणा व उसे बनवाने के लिए फौरी तौर पर 3 करोड़ रुपया स्वीकृत भी किया | जब यह खबर सागर के अखबारों में प्रकाशित हुई तो बहुत - सारे राजनेताओं ने , जिनमे धर्मनिरपेक्षता का दावा करने वाले लोग भी शामिल थे , मुझे उलाहना देते हुए कहा आपको किसी और स्वतंत्रता - संग्राम - सेनानी का नाम नही मिला | यह है हमारे समाज की छिपी हुई फिरकापरस्ती ! घोषत रूप से फिरकापरस्त जमाते तो पहचान ली जाती है , परन्तु धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा पहने छिपी हुई फिरकापरस्ती ताकते व लोग आम तौर पर पहचान में नही आते | आपातकाल में मैं इंदौर जेल में था | वहां पर बड़ी संख्या में मीसाबंदी थे तथा संघ के तत्कालीन अखिल भारतीय प्रमुख सुदर्शन जी भी थे | विचारधारा को लेकर अक्सर मेरी और तत्कालीन जनसंघ के मित्रो के बीच नोंक - झोंक होती रहती थी तथा वे मुझे अपना शत्रु जैसा मानते थे | सन 1977 में लोकसभा - चुनाव की घोषणा के बाद मैं जेल से रिहा हुआ और नवगठित जनता पार्टी ने मुझे पार्टी का महासचिव मनोनीत किया | मेरे महासचिव बनने के बाद सुदर्शन जी ने -- जो की सुशिक्षित , ईमानदार और भले ( परन्तु अपने विचारों के प्रति प्रतिबद्ध व कट्टर ) व्यक्ति थे - सिरोंज के संघ - कार्यकर्ताओं को चिठ्ठी लिखी ''रघु ठाकुर'' जैसे अशिष्ट और असभ्य व्यक्ति पार्टी के पदाधिकारी बन गये | कुल मिलाकर , अपने विचारों से असहमति को असभ्यता व अशिष्टता मानना और अपने पीछे चलनेवालो को ही सभ्य व शिष्टाचारी होने का खिताब देना - यही संघ के लोगो का शिक्षण है | मेरी राय में भारत की आजादी के लिए हुए आन्दोलन के इतिहास को पुन: लिखने और सशोधित करने की आवश्यकता है | यह काम सरकार नही करेगी वरन समाज के धर्मनिरपेक्ष लोगो को ही करना होगा | जिन नायको को जाति या मजहबी नजरिये के चलते धकेल दिया गया हैं , उन्हें उनके त्याग और कुर्बानी के साथ सामने लाना होगा -- तथा जिन्हें औचित्य से अधिक स्थान दिया गया है . उसे भी दुरुस्त करना होगा | इस सम्बन्ध में ग्वालियर के स्वतंत्रता - संग्राम - सेनानी स्व गणेशीलाल सेन का उदाहरण देकर मैं अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा | स्व गणेशीलाल सेन साबरमती आश्रम में जाकर गांधी जी से मिले थे और एक प्रकार उन्ही के द्वारा कांग्रेस में प्रवेश भी लिया था | स्व० सेन हजामत का काम करते थे | गांधी जी के आश्रम से लौटने के बाद ग्वालियर के मुरार स्थित अपने मकान को उन्होंने कांग्रेस का कार्यालय बना दिया और खुद सड़क पर अपनी दूकान लगाने लगे | वह स्वतंत्रता आन्दोलन में जेल गये , परन्तु ग्वालियर शहर में उनकी स्मृति में कुछ भी नही है | आजादी के आन्दोलन के विरोधियो के नाम पर , राजा - महाराजाओं के नाम पर चौराहों व मूर्तियों है - परन्तु आजादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान करनेवालों के नाम पर कुछ भी नही है | इतिहास के इस अन्याय को दुरुस्त करना होगा |

प्रस्तुति - सुनील दत्ता ''कबीर ' स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक

रघु ठाकुर --- प्रखर समाजवादी चिन्तक - वरिष्ठ लेखक - जननेता
लोहिया सदन 32 नीलम कालोनी , जहांगीराबाद , भोपाल

No comments:

Post a Comment