Thursday, July 4, 2019

और चिर मौन छा गया

आज उनकी पूण्यतिथि है ------------------
और चिर मौन छा गया
'' रामकृष्ण और उनके महान शिष्य की मृत्यु के बीच 16 वर्ष का अंतराल है ... भीषण संघर्ष और ज्वालाओ में गुजरे वर्ष .. वे अभी चालीस वर्ष के भी न हुए थे कि वह बलिष्ठ शरीर चिता पर रख दिया गया | किन्तु उस चिता की ज्वाला अब भी धधक रही है | पौराणिक भृंगराज की भांति उसकी राख से भारत की नई चेतना का जन्म हुआ है | '' उन्होंने निवेदिता से कहा था , ' मैं देखता हूँ , जैसे -- जैसे आयु बीत रही है , वैसे -- वैसे मैं छोटी बातो में महानता देख रहा हूँ --- बड़े ओहदे पर बैठकर तो कोई बड़ा हो सकता है | कायर भी रंगमंच के प्रकाश में वीर दिखेगा | संसार देख रहा है ! मुझे सच्ची महानता उस कीड़े में दीख रही है , जो चुपचाप अहर्निश अपने कर्तव्य का पालन कर रहा है | मृत्यु निकट आ रही थी | उन्होंने निर्भय हो उसकी आँखों में आँखे डाल दी और अपने सब शिष्यों को ( जो दूर देश में थे उन्हें भी ) स्मरण किया | उनके प्रशांत रूप को देखकर वे सभी धोखे में पड़ गये और सोचने लगे कि वे अभी तीन -- चार वर्ष और जीवित रहेंगे , जबकि विवेकानंद जानते थे कि यह विदाई की वेला है | परन्तु उन्हें अपना काम दूसरो के हाथ सौपकर जाने में क्लेश नही था | उन्होंने कहा , ' एक गुरु अपने शिष्यों के साथ बराबर बने रहकर प्राय: उन्हें बर्बाद कर देता है | ' उन्हें आवश्यक लगा कि वे अपने शिष्यों से दूर चले जाए , ताकि वे स्वंय अपना विकास कर सके | 4 जुलाई 1902 को वे इतने चुस्त और प्रसन्न दिख रहे थे , जितना कि वर्षो से न दीखे थे | ब्रम्ह मुहूर्त में उठे | पूजाघर में जाकर सब कुछ खुला रखने के अभ्यास के विपरीत उन्होंने खिडकिया बंद कर दी और दरवाजो की साकल चढा दी | फिर एकांत में प्राय: आठ बजे से ग्यारह बजे तक ध्यान किया और काली का ललिता स्रोत गाया | जब वे आगन में बाहर निकल कर आयर , तब रूपांतरित हो गये थे | उन्होंने रुचिपूर्वक शिष्यों के साथ भोजन किया | इसके तुरंत बाद लगातार तेन घंटे तक उन्होंने ब्रम्हचारियो को बड़े उत्साह और आंनद से संस्कृत पढाई | फिर प्रेमानंद के साथ बेलूर मार्ग पर लगभग दो मील टहले , वैदिक महाविद्यालय की चर्चा की और वैदिक अध्ययन के विषय में बात करते हुए कहा , '' इससे अधविश्वास नष्ट होगा '' | संध्या आई -- अपने सन्यासी बधुओ से अंतिम स्नेहपूर्ण साक्षात्कार हुआ | राष्ट्र के उत्थान और पतन पर बोले |
उन्होंने कहा , '' भारत यदि परमात्मा की खोज में लगा रहा तो वह अमर रहेगा , किन्तु यदि राजनीति और सामाजिक संघर्ष में पडा तो वह नष्ट हो जाएगा | सात बजे है --- मठ में आरती के लिए घंटी बजी | वे अपने कमरे में गये और गंगा को निहारने लगे | फिर जो ब्रम्हचारी उनके साथ गया था , उसे बाहर भेज दियया | पैतालीस मिनट बाद उन्होंने उसे बुलाया , सब खिडकिया खुलवा दी , चुपचाप निश्चल बायीं करवट जमीन पर लेट गये | वे ध्यानमग्न लग रहे थे | घंटे भर बाद उन्होंने करवट बदली , गहरी सांसे ली , कुछ क्षण मौन रहे -- पुतलिया पलको के बीह स्थिर हो गयी -- एक और दीर्घ नि: श्वास -- और चिर मौन चा गया | विवेकानंद के एक गुरुभाई ने बताया , उनके नथुनों में मुंह और आँखों में -- थोड़ा -- सा खून आ गया था | ' ऐसा लगा वे स्वेच्छा कुंडलिनी शक्ति जागृत कर निर्विकल्प समाधि में चले गये थे , जैसा कि रामकृष्ण ने उन्हें अपना कार्य पूरा करने के पश्चात ही बताने का वायदा किया था | वह उस समय 39 वर्ष के थे |
अगले दिन रामकृष्ण की भाति उन्हें भी उनके सन्यासी भाई और शिष्य अपने कन्धो पर जय -- जयकार करते हुए चिता तक ले गये --- |
और मन ही मन मैं '' जुडास मैकेबियस '' का वही जयगान सुन रहा हूँ , जो रामनाड की विजय यात्रा के अवसर पर गया गया था | अंतिम प्रतियोगिता के बाद यह उस महान खिलाड़ी के अभिनन्दन का गान था |
प्रस्तुती -- सुनील दत्ता -- स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक
( द लाइफ आफ विवेकानद एंड द युनिवर्सल गास्पेल '' के रघुराज गुप्ता कृत हिंदी अनुवाद '' विवेकानन्द की जीवनी से साभार )

4 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (06 -07-2019) को '' साक्षरता का अपना ही एक उद्देश्‍य है " (चर्चा अंक- 3388) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….
    अनीता सैनी

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    1. अनिता जी आपने मेरे आलेख को स्थान दिया आपका आभार

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  2. भारत के इस महान सपूत की पुण्य स्मृति को सादर नमन..

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