Monday, July 8, 2019

नीलबगान आन्दोलन

तहरीके - जिन्होंने जंगे - आजादी - ए- हिन्द को परवान चढाया
भाग -- तीन



नीलबगान आन्दोलन
हिन्दुस्तान में ईस्ट इंडिया कम्पनी के व्यापारों में एक बड़ा और कीमती कारोबार नील की खेती का था | इस काम की शुरुआत में कम्पनी ने वेस्टिंइंडीज से नीलबगान के जाकार लोगो को नील की खेती करने के लिए बुलाया था | उन्हें एडवांस में काफी रकम दी गयी थी | बगान के ठेकेदारों ने भारतीय किसानो से बहुत कम मजदूरी पर काम कराना शुरू किया | धीरे धीरे वेस्टिंइंडीज के काम करने वाले वापस कर दिए गये , कयोकी उनसे काम कराने के खर्च ज्यादा आता था और खेती का पूरा काम हिन्दुस्तानियों किसानो से लिया जाने लगा | जिस किसान को एडवांस में रकम दी जाती थी , उसे बंधुआ मजदुर के रूप में इस्तेमाल किया जाता था | बगान मालिक किसानो के साथ बहुत बदतमीजी और औरतो के साथ गलत हरकत भी करते थे | इन वजहों से किसानो में बेचैनी बढ़ने लगी | नतीजन बगानों में टकराव की स्थिति बनने लगी | शिकायत पहुचने पर जांच हुई | जांच में फरीदपुर के मजिस्ट्रेट ने नील की खेती को खून खराबे की वजह बताया | उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि किसानो को रैय्यत बनाकर रखा गया है और कम मजदूरी पर काम कराया जाता हैं |
मैकाले ने इस रिपोर्ट के बाद सरकार से बगान - मालिको को सजा देने की सिफारिश की लेकिन सरकार में बैठे लोग मालिको से मोटी रकम लेते थे इसलिए उन पर कोई कार्यवाई नही हुई | किसानो और मजदूरो पर जुलम बढ़ता गया | जब जुल्म औ जबरदस्ती बर्दाशत के बाहर हो गयी तो मजदुर - किसानो ने नील बगान के मालिको के घरो और दफ्तरों पर हमला कर दिया और खेती को भारी नुक्सान पहुचाया | बगान - मालिको की मदद में जब घुड़सवार पुलिस और अंग्रेज आये तो हिन्दुस्तानी मजदुर - किसानो की मदद के लिए उत्तर बंगाल में बहावी आन्दोलन के नेता रफीक मंडल अपने लोगो को साथ लेकर आये और किसानो की मदद की | इस टकराव में वहाँ की पूरी खेती बर्बाद हो गयी | अंग्रेज और बगान मालिको के अलावा उनके निजी स्टाफ को भी भारी नुक्सान उठाना पडा | काम बंद हो जाने से जसोर और नदिया जिले में भुखमरी फ़ैल गयी | सरकार ने तशद्दुद को दूर करने के लिए सीनियर और तजुर्बेकार अफसरों को भेजा | अफसरों ने जो रिपोर्ट पहले मैकाले ने दी थी उसी को सही मना | सरकार ने नील की खेती का काम बंद कर दिया ताकि आन्दोलन को बढ़ने का मौक़ा न मिले | इस आन्दोलन में सीधे तौर से तो नही दुसरे भानो से बहुत - से - लोगो को सजाये दी गयी थी |

सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार - समीक्षक
लहू बोलता भी हैं -- सैय्यद शाहनवाज अहमद कादरी

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-07-2019) को "नदी-गधेरे-गाड़" (चर्चा अंक- 3392) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत शानदार प्रस्तुति।

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