Saturday, October 17, 2015

अपनी माँ से सुनी एक छोटी कहानी याद आ गई ---- 18-10-15

अपनी माँ से सुनी एक छोटी कहानी याद आ गई ----

श्रमरहित - पराश्रित जीवन विकास के सारे  द्वार बंद कर देता है |

पुराणों  में एक कथा आती है  |  महर्षि वेदव्यास एक बार किसी राह से गुजर रहे थी , तभी उन्होंने एक कीड़े को तेजी से भागते हुए देखा | उन्होंने कीड़े से पूछा -- ' हे क्षुद्र जन्तु  , तुम इतनी तेजी से कहा जा रहे हो ? उनके इस प्रश्न ने कीड़े के मन को तनिक चोट पहुचाई  और वह बोला - ' हे महर्षि  आप तो ज्ञानी है | यहाँ क्षुद्र कौन है और महान कौन है ? क्या इस प्रश्न और उसके उत्तर की सही - सही परिभाषा सम्भव है ? ' कीड़े की इस बात ने महर्षि  को निरुतर कर दिया  |  फिर उन्होंने पूछा -- ' अच्छा चलो यह बताओ कि तुम इतनी तेजी से कहा भागे जा रहे हो ? इस पर कीड़े ने कहा -- मैं तो अपनी  जान बचाने के लिए भाग रहा हूँ | देख नही रहे कि पीछे से कितनी तेजी से बैलगाड़ी चली आ रही है | ' कीड़े   के उत्तर ने महर्षि को तनिक चौकाया और वे बोले -- ' पर तुम तो इस कीट योनि में पड़े हो | यदि मर गये तो तुम्हे दूसरा और बेहतर शरीर  मिलेगा | ' इस पर कीड़ा बोला -- महर्षि , मैं तो इस कीट योनि में रहकर कीड़े का आचरण कर रहा हूँ परन्तु ऐसे प्राणी तो असख्य है , जिन्हें विधाता ने शरीर तो मनुष्य का दिया  है , पर वे मुझ कीड़े से भी गया गुजरा आचरण कर रहे है | मेरे पास  तो शरीर ही ऐसा है कि अधिक ज्ञान नही पा सकता , पर मानव तो श्रेष्ठ् शरीरधारी है , परन्तु उनमे से ज्यादातर ज्ञान से विमुख होकर कीड़ो की तरह आचरण कर रहे है | ' कीड़े  की बातो में महर्षि को सत्यता नजर आई | वे सोचने लगे कि वाकई जो मानव जीवन पाकर भी देहासिक्त और अंहकार  से बंधा है , जो ज्ञान पाने की असीम क्षमता पाकर भी ज्ञान से विमुख है , वह कीड़े से भी बदतर है | महर्षि कुछ देर उस नन्हे जीव के कथन को विचारते रहे , फिर उन्होंने उससे कहा -- ' हे नन्हे जीव , चलो हम तुम्हारी सहायता कर देते है | ' किस तरह की सहायता ? ' कीड़े  ने पूछा | तब महर्षि बोले -- ' तुम्हे अपने हाथ में उठाकर मैं उस पीछे आने वाली बैलगाड़ी से दूर पहुचा देता हूँ | ' इस पर कीड़े  ने कहा -- ' आपका आभार मुनिवर , किन्तु श्रमरहित - पराश्रित जीवन विकास के सारे  द्वार बंद कर देता है | मुझे स्वंय ही संघर्ष करने दीजिये | इस संघर्ष में यदि मृत्यु भी हो गयी तो भगवान स्वंय ही मेरे लिए विकास के द्वार खोल देगे | कीड़े के इस कथन ने महर्षि को ज्ञान का नया संदेश दिया |

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