Thursday, February 22, 2018

गुलामी कही गयी नही दुःख हमारी चमड़ी को छूकर जाती है -- प्रो चन्द्रकला त्रिपाठी -- 22-2-18

गुलामी अभी भी है कहीं गयी नही- दुःख हमारी चमड़ी को छूकर जाती है - प्रो चन्द्रकला त्रिपाठी

पृथ्वी अपनी गति की दिशा के विपरीत नही जाती , मनुष्य की चेतना भी विकास के उलट नही जाती | मनुष्य को ऊँचाइया और गहराइया चाहिए | उसे श्रेष्टतर साहित्य , संगीत , कला , विज्ञान और श्रेष्ठतर मानवीय सम्बन्ध चाहिए | वह उलट कर बर्बरता , जड़ता और अज्ञान की यात्रा नही करना चाहता गाथांतर स्त्रियों की प्रजातंत्र है जो आजादी मुक्ति की बात करती है , लेकिन पुरुष समाज स्त्रियों को परम्परा , संस्कृतियो की बेदी में जकड़ कर बाँधना चाहते है गाथांतर सम्मान समारोह में पद्मश्री उषा किरण खान जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि ख़ास तौर पर बिहार और उत्तर प्रदेश में सामन्ती तरीका विशेष रूप से रहा है ऐसे में जब बिहार के चम्पारण में गांधी जी द्वारा आन्दोलन चलाया गया , उससे एक नई चेतना की जागृति आई और उस समय घर से बहार निकली स्तरीय और आजादी के आन्दोलन में कूद पड़ी , महात्मा गांधी के कारण ही महिलाओ को बड़ा लाभ मिला | उन्होंने आगे कहा कि जिस तरह मैथली भाषा को साहित्य एकेडमी में स्थान मिला है उसी तरह भोजपुरी को भी मिलना चाहिए उषा किरण खान जी ने अपनी चर्चा में कहा की इसके जिम्मेदार आचार्य हजारी प्रसाद द्दिवेदी जी के कारन भोजपुरी को यह न्याय नही मिला जब साहित्य एकेडमी में मैथली भाषा को स्थान दिया जा रहा था , उसी समय आचार्य हजारी प्रसाद द्दिवेदी जी ने मन कर दिया की भोज्पुरो को इसमें शामिल न किया जाए | उन्होंने एक जिवंत पात्र की कहानी की चर्चा करते हुए गुलाबो की कहानी सुनाई गुलाबो जो एक तवायफ की बेटी थी जिसमे एक राजा का भी अंश था , राजा ने गुलाबो को उच्च शिक्षा दिलाई उच्च शिक्षा प्राप्त करके गुलाबो ने अध्यापन का कार्य किया आज उनकी दो बेतिया उच्च शिक्षा प्राप्त करके समाज में उनका नाम रोशन कर रही है |

कहानीकार किरण सिंह जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज के युग में नारी चेतना विकसित हुई है जिसके चलते आज की औरते आगे बढ़ रही है उनके पास खोने के लिए अपने जंजीरों के सिवाए कुछ भी नही है , इसलिए वो अभिव्यक्ति के खतरे उठा रही है इसी की प्रतिक्रिया के कारण उसकी आवाज को दबाने के लिए उसके उपर तेज़ाब फेका जा रहा है उसके साथ बलात्कार किया जा रहा है तरह - तरह के आरोप लगाकर उसे बदनाम किया जा रहा है , उन्होंने आगे कहा समाज स्त्री की प्रतिभा से डरता है आगे ये आगे आ गयी तो हमारी जगह खतम हो जायेगी , स्त्री जैसा की उसकी स्वभाव होता है सबको मिलकर चलना चूँकि वो जननी होती है प्राकृतिक रूप से उसे सृजन करना आता है इसके कारण तथाकथित पुरुष समाज अपने को असुरक्षित महसूस कर रहा है आज हर स्त्री और लडकियों में इनकार करने का साहस संचार हुआ है इसके कारन तथाकथित पुरुष समाज के प्रतिनिधि वो इस इनकार को शान नही कर पा रहे है , उनके लिए आज भी स्त्री मात्र भोग की वस्तु है इसी कारण से वो दिखाना चाहते है इस तरह के अन्याय से कि मात्र भोग की वस्तु हो यही बनकर जीना सीखो किरण सिंह ने आगे कहा की आज स्त्रियों का यह संक्रमन दौर है यह दौर भी खत्म होगा यह निश्चित है आने वाला न्य सवेरा जरुर आयेआ उन्होंने आज की व्यवस्था पे तंज कसते हुए खा आज प्रधान सेवक ने न्याय व्यवस्था को भीद्तंत्र के हाथो सौप दिया है इसी कारन आप देखे सडक हो खेत -- खलिहान हो हर तरफ हिंसक भीड़ ऐसे कृत्य कर रही है जो अशोभनीय है | यह लोग हिंसक प्रवृत्ति को और तेज भड़का रहे है | 

कार्यक्रम की अध्यक्षा प्रो चन्द्रकला त्रिपाठी जी ने अपने वक्तब्य में कहा किआज आजमगढ़ से गाथांतर के माध्यम से एक नई नारी चेतना, स्त्री रचनात्मकता , स्त्री क्षमता का आयोजन में एक बड़ी भागीदारी साथियो का है निश्चित ही यह इतिहास के पन्नो पर आज दर्ज हो गया , उन्होंने कहा कि लगता है हर स्त्री ऐसे किसी अगले जन्म की प्रतीक्षा कर रही है जो आने वाला नही है , स्त्री के विकास और उसकी आजादी को लेकर जो दुनिया है वो बहुत दूसरी ओर खड़ी है | आजादी के संघर्ष में गांधी के दौर स्त्रिया आई लड़ने के लिए उन्हें एक बड़ी दुनिया मिली उन्हें आजादी मिली ज्ञान का दरवाजा खुला स्त्री जब बाहर आई तो उसकी क्रांन्तिकारी सहभागिता बढ़ी उसकी दुनिया का सपना है जब वो मनुष्यों की तरह रह सके और जी सके , आज के समाज में तथाकथित पुरुष वर्ग को वो नारिया कदापि पसंद नही आती जो अपने जोर - साहस और हस्तक्षेप से अपने होने की निशानदेही करती है |आज स्त्रियों को बाजार में बिकने का सामन बना दिया गया , आज का बाजार उसके हर अंग को बेचकर पैसा बना रहा है किरण सिंह गीताश्री ने अपनी कहानियो के माध्यम से जो नई चेतना का विकास कर रही है उससे लगता है न्य दिन आयेगा | दुनिया ऐसे नही बदलती आप बदलना शुरू करिये कौन कितना बदल रहा है यह बड़ा प्रश्न है गुलामी अभी भी है कही गयी नही है दुःख हमारी चमड़ी को छूकर जाती है | आज आजमगढ़ की धरती ने गाथांतर के माध्यम से नया आगाज किया है नई चेतना का सृजन किया है और यही सृजन एक दिन स्त्री क्रान्ति के रूप में परिवर्तित होगी |
कार्यक्रम आज़मगढ़ शहर के नेहरू हॉल में गुरुवार को गाथांतर समारोह का आयोजन किया गया है।पूर्वांचल के आज़मगढ़ जिले में महिलाओं द्वारा आयोजित यह पहला साहित्यिक सम्मान है।

गाथांतर हिन्दी पत्रिका द्वारा साहित्य ,रंग मंच एवं कला के क्षेत्र में ज़मीनी संघर्ष से विशिष्ट पहचान बनाने वाली महिलाओं को गाथांतर सम्मान वर्ष 2014 से दिया जाना आरम्भ किया गया। पहला गाथांतर सम्मान प्रसिद्धि रंग कर्मी ममता पंडित को दिया गया था। पिछले दो वर्षों से आर्थिक संसाधनों के अभाव में सम्मान स्थगित रहा। अपने चार साल की यात्रा में पत्रिका ने समकालीन कविता विशेषांक और स्त्री लेखन की चुनौतियाँ विशेषांक निकाल साहित्य जगत में चर्चा में रहा है।
गाथांतर सम्मान 2015 पद्मश्री उषा किरण खान को लोक साहित्य एवं आंचलिक भाषा मैथली के संरक्षण एवं संवर्धन में विशेष योगदान के लिए,
2016 प्रो.चन्द्रकला त्रिपाठी को हिन्दी आलोचना विधा में महत्वपूर्ण स्त्री स्वर के लिए,
2017 किरण सिंह,पहले कहानी संग्रह यीशू की किलें को, 2018 गीता श्री हसीनाबाद को दिया गया | कार्यक्रम संचालन मृदुला शुक्ला जी ने किया
कार्यक्रम में नगरपालिका अध्यक्षा श्रीमती शीला श्रीवास्तव ,अनामिका सिंह पालीवाल, अनीता साईलेस,कंचन यादव,रानी सिंह,अनामिका प्रजापति,अंशुमाला, सोनी पाण्डेय,

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (23-02-2017) को "त्योहारों की रीत" (चर्चा अंक-2890) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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