Wednesday, June 12, 2019

देव बुद्ध , देवी बुद्ध

देव बुद्ध , देवी बुद्ध


बौद्ध धर्म की उत्पत्ति भारत में हुई और सदियों के कालखंड में वह निरंतर यहाँ फलता - फूलता रहा | फिर उसकी शाखाए तिब्बत - चीन और जापान तक विस्तृत हुई | इन्ही के साथ बोधिसत्व के विभिन्न रूप भी विकसे | उन्ही में से एक पर यह रोचक वृत्तांत है | बौद्ध धर्म में ईसा की प्रथम शताब्दी में जब महायान शाखा का उदय हुआ , तब महायान के बौद्धों ने ' बोधिसत्व ' पद की कल्पना की | उनकी धारणा थी कि बोधिसत्वता' प्राप्त होने पर इन बौद्धों में यह उदात्त भावना रहती है कि जब तक प्रत्येक प्राणी को हम सांसारिक कष्ट और जन्म - मरण के चक्र से मुक्त नही करा देंगे , तब तक हम स्वयं भी निर्वाण प्राप्ति को स्थगित कर देंगे | इस लोक - कल्याण की भावना से ओत - प्रोत बोधिचर्चा में जो पारंगत होते , उनको महायानी बोधिसत्व पद से अलंकृत कर देते है | इन बोधिसत्वो की श्रृखंला में ''अवलोकितेश्वर '' सर्वश्रेष्ठ माने , जाते हैं , क्योकि वे दुखार्द जनो के प्रति अति करुणामय है और हर प्राणी का उद्धार करने के लिए यत्नशील रहते हैं | वस्तुत: करुणा ही बोधिसत्व के आध्यात्मिक जीवन का प्रमुख लक्षण है और अवलोकितेश्वर इस करुणाभाव से परिपूर्ण हैं | वस्तुत: अवलोकितेश्वर शब्द दो पदों का संयुक्त है -- अवलोकित और ईश्वर , जिसका अर्थ है ' वह ईश्वर, जो दुखी प्राणियों द्वारा देखा जाता हैं |' ईसा की छठी शताब्दी के बाद जब बौद्ध धर्म में 'तंत्र ' का समावेश हो चूका था , तब इन तांत्रिक बौद्धों ने अवलोकितेश्वर को भी अपने तंत्र में सम्मिलित करके उन्हें एक उपास्य देव के रूप में प्रतिष्ठित किया और हिन्दू देवताओं की तरह इस बोधिसत्व की धूप - दीप से पूजा करने लगे | इन भक्तो ने तांत्रिक मन्त्र 'ओम मणि पद्द्मे हुम ' की रचना की , इस आस्था से कि इस मन्त्र के निरंतर जाप से उपासक सांसारिक कष्ट से मुक्त होकर निर्वाण प्राप्त कर लेता है | जिस प्रकार हिन्दू भक्तो ने अपने प्रमुख देवताओं की एकपत्नी स्वरूपा शक्ति मानी है , उसी प्रकार इन तांत्रिको ने अवलोकितेश्वर की शक्ति 'तारा देवी ' को माना है | यह देवी प्राणियों के उद्धार में सलग्न हैं | महायान के बौद्धों ने अवलोकितेश्वर को सृष्टिकर्ता के रूप में भी उद्घाटित किया है | बौद्ध संस्कृत ग्रन्थ कारण्डि - ब्यूह सूत्र में इसका वृत्तांत हैं | ऐसा ही संदर्भ सृष्टि की उत्पत्ति के सम्बन्ध में यजुर्वेद के पुरुषसूक्त में भी मिलता है | जिस प्रकार शिव का स्थायी निवास कैलाश पर्वत हैं , उसी प्रकार अवलोकितेश्वर का शाश्वत निवास 'पोतल पर्वत ' बताया गया है | बौद्ध साहित्य में 'पोतल पर्वत' की स्थिति के बारे में अनेक मत - मतांतर हैं | एक मत के अनुसार यह पर्वत दक्षिण भारत में धनुषकोटि के निकट मलय पर्वत पर स्थित हैं | किन्तु दलाई लामा का जो राजमहल ल्हासा ( तिब्बत ) में स्थित है , वह भी पोतल पर्वत हैं | जब बौद्ध धर्म तिब्बत , चीन , जापान जैसे सुदूर पूर्वी एशियाई देशो प्रसार हो गया , तब वहाँ के बौद्धों ने अपने धर्म में अलोकितेश्वर को भी सम्मिलित कर लिया | सातवी शताब्दी के मध्य में तिब्बत के लामाओं ने अवलोकितेश्वर को अमिताभ बुद्ध का आध्यात्मिक पुत्र मानते हुए सभी दलाई लामाओं को अवलोकितेश्वर का अवतार माना है | प्रो मोनियर विलियम्स का मत है कि तिब्बत के लामावाद में यह बोधिसत्व एक दैवी धर्मगुरु हैं , जो भूतल पर स्थित सभी बौद्धों को अपने - अपने कर्म में सलग्न करते है | इन लामाओं ने अपनी अतिश्र्द्धा व्यक्त करने के लिए अवलोकितेश्वर को 11 शीर्ष वाला बताया हैं , इसमें पहली पंक्ति में तीन , दूसरी व तीसरी पंक्ति में तीन - तीन , उसके उपर एक के और उपर एक शीर्ष | सबसे उपर का शीर्ष उनके आध्यात्मिक पिता अमिताभ का हैं | जब बौद्ध धर्म चीन देश में लोकप्रिय हो चुका , तब चीन के बौद्धों ने भी अलोकितेश्वर को अति करुणामय उपास्य देवता के रूप में अंगीकार किया | किन्तु इन चीनी बौद्धों की मान्यता है कि चूँकि अवलोकितेश्वर करुणा से ओत - प्रोत है और करुणा का तत्व पुरुषो की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक होता हैं ,
इस दृष्टि से चीनी बौद्धों ने अवलोकितेश्वर को स्त्री - रूप माना हैं | इन बौद्धों ने कहा कि यह संसार के आर्त प्राणियों का करुण स्वर प्रसारित करने वाली देवी हैं किन्तु तांग वंश के चित्रकारों ने अपने चित्र में हल्की मूछो वाले युवारूप में अवलोकितेश्वर का चित्राकन किया हैं | चीन के बौद्धों ने देवी तारा को भी अपने धर्म में सम्मिलित किया | इन्हें चीनी भाषा में 'तो -लो -पू-सा ' कहा गया हैं | चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने संस्मरण में तारा का उल्लेख्य किया है कि यहाँ बौद्ध वर्ष के प्रथम दिवस से ग्यारह दिनों का भव्य उत्सव मनाया जाता हैं , जिसमे राजा , मंत्री एवं सभी गणमान्य देवी तारा की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करते हैं | चीन के बौद्धों के अनुसरण में जापान के बौद्धों ने भी अवलोकितेश्वर को स्त्री रूप माना है | जापानी भाषा में उन्हें 'क्वा नाँन ' यह संज्ञा दी गयी हैं | जापानी बौद्धों की भी यही मान्यता है कि ''क्वा -नाँन'' करुणा की देवी है प्राणियों के कल्याण के लिए वे नाना रूप धारण करती हैं | जापान में इस देवी को मूर्त रूप में शिल्पकारो ने ग्यारह मुख वाली और सहस्त्र भुजाओं के साथ उतक्रींण किया है | संतान प्राप्ति हेतु इस मूर्ति पूजन किया जाता हैं | महायान बौद्धों के संस्कृत ग्रंथो , जैसे सद्धर्म , पुंडरिक सुखावती - व्यूह सूत्र गंव्यूह आदि में अवलोकितेश्वर का विशेष वर्णन किया हैं |
---- डा ० निखिलेश शास्त्री - साभार - अहा ! जिन्दगी
प्रस्तुती - सुनील दत्ता - स्वतंत्र -पत्रकार - समीक्षक

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-06-2019) को "काला अक्षर भैंस बराबर" (चर्चा अंक- 3366) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आदरणीय बाबू जी

      Delete
  2. अति सुंदर लेख

    ReplyDelete