गुलाम ----
अजीब सा गाँव नाम था नत्थूपुर उस गाँव की अपनी एक अनूठी परम्परा के लिए विख्यात था | परम्परा कुछ ऐसी थी कि गांववाले अपनी जमीन बिना किसी मूल्य के किसी भी उनके गाँव में आये मेहमानों को दे दिया करते थे | बस इसके लिए उसे गांव वालो द्वारा राखी गयी शर्त को पूरा करना होता था | हालाकि यह बात अलग थी कि वे शर्त क्या रखते थे इसका बहार के लोगो को पता नही लग पाटा था | ऐसा ही किवदन्तीयो को सुनकर एक किसान उस गाँव में पहुचा | उसने गाँव वालो से जब इस परम्परा के विषय में पूछा तो उन्होंने ने भी इस बात की पुष्टि की और उसे मुखिया के पास ले गये | गाँव के मुखिया ने जब उस किसान को देखा तो जोर से हँसा और बोला --- लो एक और आ गया ! यह सुनकर किसान आश्चर्यचकित हो गया और पूछने लगा -- आप इस तरह हँस क्यो रहे है ? तब गाँव के मुखिया ने कहा दरअसल हँसने की बात यह है कि यहाँ तो लगभग हर दिन ही कोई न कोई इस शर्त का पता लगाने आ जाता है , लेकिन आज तक उसको जीतकर कोई वापस नही लौटा | इस पर किसान ने कहा -- अप शर्त बताये मैं उसे पूरा करूंगा | मुखिया बोला -- साड़ी जमीन नि: शुल्क उपलब्ध है | इसके लिए मात्र एक शर्त है कि तुम यहाँ खिची रेखा से सूर्योदय से दौड़ना शुरू करोगे और सूर्यास्त होने तक जितनी जमीन नापकर तुम इसी रेखा तक आ जाओगे , उतनी जमीन तुम्हारी हो जायेगी | पर यदि नही आ पाए तो तुम्हे आजीवन यही गुलाम बनकर रहना पड़ेगा | किसान को लगा कि यह तो बड़ी आसान शर्त है और उसने तुरंत हाँ कर दी | सूर्योदय पर उसने भागना शुरू किया और दोपहर होने तक सैट - आठ मील जमीन नाप ली तो उसका लालच बढने लगा | उसने साथ लाया भोजन और पानी वही छोड़ा और सोचा कि एक दिन भी नही खाया तो क्या , आज से ज्यादा से ज्यादा जमें नाप लेते है | भागते -- भागते साय के चार बज गये पर ज्यादा जमीन का लालच उसे दूसरी तरफ खिचे जा रहा था | मन मार कर वह वापस लौटा तो खिची रेखा से आधा मील दूर जमीन पे गिर गया | | मुखिया वही खड़ा था | वह किसान के पास आया और बोला --- शर्त आसान है |
अजीब सा गाँव नाम था नत्थूपुर उस गाँव की अपनी एक अनूठी परम्परा के लिए विख्यात था | परम्परा कुछ ऐसी थी कि गांववाले अपनी जमीन बिना किसी मूल्य के किसी भी उनके गाँव में आये मेहमानों को दे दिया करते थे | बस इसके लिए उसे गांव वालो द्वारा राखी गयी शर्त को पूरा करना होता था | हालाकि यह बात अलग थी कि वे शर्त क्या रखते थे इसका बहार के लोगो को पता नही लग पाटा था | ऐसा ही किवदन्तीयो को सुनकर एक किसान उस गाँव में पहुचा | उसने गाँव वालो से जब इस परम्परा के विषय में पूछा तो उन्होंने ने भी इस बात की पुष्टि की और उसे मुखिया के पास ले गये | गाँव के मुखिया ने जब उस किसान को देखा तो जोर से हँसा और बोला --- लो एक और आ गया ! यह सुनकर किसान आश्चर्यचकित हो गया और पूछने लगा -- आप इस तरह हँस क्यो रहे है ? तब गाँव के मुखिया ने कहा दरअसल हँसने की बात यह है कि यहाँ तो लगभग हर दिन ही कोई न कोई इस शर्त का पता लगाने आ जाता है , लेकिन आज तक उसको जीतकर कोई वापस नही लौटा | इस पर किसान ने कहा -- अप शर्त बताये मैं उसे पूरा करूंगा | मुखिया बोला -- साड़ी जमीन नि: शुल्क उपलब्ध है | इसके लिए मात्र एक शर्त है कि तुम यहाँ खिची रेखा से सूर्योदय से दौड़ना शुरू करोगे और सूर्यास्त होने तक जितनी जमीन नापकर तुम इसी रेखा तक आ जाओगे , उतनी जमीन तुम्हारी हो जायेगी | पर यदि नही आ पाए तो तुम्हे आजीवन यही गुलाम बनकर रहना पड़ेगा | किसान को लगा कि यह तो बड़ी आसान शर्त है और उसने तुरंत हाँ कर दी | सूर्योदय पर उसने भागना शुरू किया और दोपहर होने तक सैट - आठ मील जमीन नाप ली तो उसका लालच बढने लगा | उसने साथ लाया भोजन और पानी वही छोड़ा और सोचा कि एक दिन भी नही खाया तो क्या , आज से ज्यादा से ज्यादा जमें नाप लेते है | भागते -- भागते साय के चार बज गये पर ज्यादा जमीन का लालच उसे दूसरी तरफ खिचे जा रहा था | मन मार कर वह वापस लौटा तो खिची रेखा से आधा मील दूर जमीन पे गिर गया | | मुखिया वही खड़ा था | वह किसान के पास आया और बोला --- शर्त आसान है |
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