एहसास
पुन्नाग वन में रहने वाला एक दुर्दांत लुटेरा था | वह एक तरह से अपराध का पर्याय बन गया था | भटके हुए यात्री अनायास ही उसके चंगुल में आ फंसते | पुन्नाग उन्हें कष्ट देता और उनका सारा सामान लूट लेता |
वह धन - आभूषण इत्यादि लूट ले तो भी कोई बात नही थी | मगर पुन्नाग को लोगो को उत्पीडित करते हुए लुटने में मजा आता था जब वह लूट का माल लेकर वापस घर पहुचता तो उसकी पुत्री बिपाशा उससे पूछती -- तात , आप यह सारी सम्पत्ति , वस्त्र , आभूषण इत्यादि कहा से लाते है ? यह प्रश्न पुन्नाग को झकझोर देता | वह अपनी बेटी कोई जबाब नही दे पाता था | एक तरह का अपराध बोध उसे घेर लेता | पर अगले ही दिन पुन्नाग पुन: वन में जाकर लूटपाट में लग जाता धीरे - धीरे बिपाशा जान गयी कि उसके पिता द्वारा लाया गया धन कहा से आता है | एक दिन वह अकेली थी | उसे अपना पालतू मृग -- शिशु मयंक कही दिखाई नही पडा | वह उसे खोजती हुई उपवन में पहुची | उसने वह पहुचकर देखा कि मयंक दर्द के मारे l लगडा रहा है | छलांग मारते समय उसकी एक टांग में मोच आ गयी थी | माँ विहीन बिपाशा ने पहली बार किसी को यूँ पीड़ित देखा था | पैर में चोट लगने से क्या होता है , यह जान्ने के लिए नन्ही बोपाषा ने एक पत्थर हाथ में लिया और उसे जोर से अपने पैर में दे मारा | उस पत्थर की चोट लगते ही बिपाशा पीड़ा से छटपटाने लगी | अब उसे मयंक की पीड़ा का एहसास हो रहा था | दोनों वही बैठकर एक - दूसरे की पीड़ा बाँटते रहे | शाम हो गयी और नन्ही बिपाशा को वही बैठे - बैठे नीद आ गयी | पुन्नाग इस बीच घर लौटा तो देखा कि उसकी प्यारी बिटिया वहा नही है | वह तुरंत उपवन की ओर भागा | वहा पहुचकर उसने देखा कि बिपाशा शिशु मृग को बाँहों में लिए पड़ी है | पुन्नाग ने उसे जगाया | बिपाशा ने उठने की कोशिश की तो गिर गयी | तभी पुन्नाग का ध्यान उसके पैर में लगी चोट की ओर गया | उसने पूछा - बेटी तुम्हे यह चोट कैसे लगी ? क्या किसी ने तुम पर आघात किया है ? बिपाशा ने कहा - नही पिताश्री , मैं खुद ही अपने आपको चोटिल किया है | यह सुनकर पुन्नाग चौक गया | कारण पूछने पर बिपाशा ने कहा -- आप दूसरो को पीड़ा देते है तो उन्हें कैसी तकलीफ होती है , यह जानना था | इतना कहकर वह पुर्छित हो गयी | पुन्नाग का मर्म मचल उठा | उसी दिन से उसकी दिशा बदल गयी और उसने शेष जीवन पीड़ित मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया
पुन्नाग वन में रहने वाला एक दुर्दांत लुटेरा था | वह एक तरह से अपराध का पर्याय बन गया था | भटके हुए यात्री अनायास ही उसके चंगुल में आ फंसते | पुन्नाग उन्हें कष्ट देता और उनका सारा सामान लूट लेता |
वह धन - आभूषण इत्यादि लूट ले तो भी कोई बात नही थी | मगर पुन्नाग को लोगो को उत्पीडित करते हुए लुटने में मजा आता था जब वह लूट का माल लेकर वापस घर पहुचता तो उसकी पुत्री बिपाशा उससे पूछती -- तात , आप यह सारी सम्पत्ति , वस्त्र , आभूषण इत्यादि कहा से लाते है ? यह प्रश्न पुन्नाग को झकझोर देता | वह अपनी बेटी कोई जबाब नही दे पाता था | एक तरह का अपराध बोध उसे घेर लेता | पर अगले ही दिन पुन्नाग पुन: वन में जाकर लूटपाट में लग जाता धीरे - धीरे बिपाशा जान गयी कि उसके पिता द्वारा लाया गया धन कहा से आता है | एक दिन वह अकेली थी | उसे अपना पालतू मृग -- शिशु मयंक कही दिखाई नही पडा | वह उसे खोजती हुई उपवन में पहुची | उसने वह पहुचकर देखा कि मयंक दर्द के मारे l लगडा रहा है | छलांग मारते समय उसकी एक टांग में मोच आ गयी थी | माँ विहीन बिपाशा ने पहली बार किसी को यूँ पीड़ित देखा था | पैर में चोट लगने से क्या होता है , यह जान्ने के लिए नन्ही बोपाषा ने एक पत्थर हाथ में लिया और उसे जोर से अपने पैर में दे मारा | उस पत्थर की चोट लगते ही बिपाशा पीड़ा से छटपटाने लगी | अब उसे मयंक की पीड़ा का एहसास हो रहा था | दोनों वही बैठकर एक - दूसरे की पीड़ा बाँटते रहे | शाम हो गयी और नन्ही बिपाशा को वही बैठे - बैठे नीद आ गयी | पुन्नाग इस बीच घर लौटा तो देखा कि उसकी प्यारी बिटिया वहा नही है | वह तुरंत उपवन की ओर भागा | वहा पहुचकर उसने देखा कि बिपाशा शिशु मृग को बाँहों में लिए पड़ी है | पुन्नाग ने उसे जगाया | बिपाशा ने उठने की कोशिश की तो गिर गयी | तभी पुन्नाग का ध्यान उसके पैर में लगी चोट की ओर गया | उसने पूछा - बेटी तुम्हे यह चोट कैसे लगी ? क्या किसी ने तुम पर आघात किया है ? बिपाशा ने कहा - नही पिताश्री , मैं खुद ही अपने आपको चोटिल किया है | यह सुनकर पुन्नाग चौक गया | कारण पूछने पर बिपाशा ने कहा -- आप दूसरो को पीड़ा देते है तो उन्हें कैसी तकलीफ होती है , यह जानना था | इतना कहकर वह पुर्छित हो गयी | पुन्नाग का मर्म मचल उठा | उसी दिन से उसकी दिशा बदल गयी और उसने शेष जीवन पीड़ित मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया
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