Tuesday, December 2, 2014

बलिदान से पहले साथियों को अंतिम पत्र ---- - भगतसिंह






 3-12-14
बलिदान से पहले साथियों को अंतिम पत्र
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22 मार्च 1931
साथियों ,
स्वाभाविक हैं कि जीने की इच्छा मुझमे भी होनी चाहिए ,मैं इसे छिपाना नहीं चाहता |लेकिन मैं एक शर्त पर जिन्दा रह सकता हूँ कि मैं क़ैद होकर या पाबन्द होकर जीना नहीं चाहता |
मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका हैं और क्रन्तिकारी दल के आदर्शो और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया हैं -इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा हरगिज़ नहीं हो सकता |........हाँ ,एक विचार आज भी मेरे मन में आता हैं कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरते मेरे दिल में थीं ,उनका हजारवा भाग भी पूरा नही कर सका |अगर स्वतंत्र ,जिन्दा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरते पूरी कर सकता |इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच
फांसी से बचे रहने का नही आया |मुझसे अधिक भाग्यशाली कोंन होगा ?आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व हैं |अब तो बड़ी बेताबी से अन्तिम समय का इंतजार हैं |कामना है की यह और नजदीक हो जाए |.......
....................................... आपका --- भगतसिंह
प्रस्तुती --- सुनील दत्ता

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