भगत सिंह
भगत सिंह और उनके साथियों का सन 1920 में अंग्रेज साम्राज्यवादियो सत्ता के विरुद्ध मोर्चा लेना , भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सदैव ही एक गौरवशाली अध्याय बना रहेगा | एक उच्च आदर्श के लिए अडिग निष्ठा और उस आदर्श को पूरा करने की राह में आई मुसीबतों की कहानी , देश वासियों को सदैव विदेशी आधिपत्य या जनता के किसी भी प्रकार के आर्थिक बंधन का नामो -- निशाँ तक मिटा देने के लिए संघर्ष को प्रेरित करती रहेगी |
उनके बालपन में जनता के संघर्ष
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जनता का गुसा '' रौलेक्ट एक्ट '' के खिलाफ था , जिसके द्वारा अंग्रेज सरकार ने यह कोशिश की थी कि प्रथम विश्व युद्ध के समय की असाधारण दमनकारी धाराओं को युद्ध के बाद भी जारी रखा जाए | सारे देश में उथल पुथल थी , प्रदर्शन हो रहे थे , जगह - जगह हडतालो की बाढ़ आ गयी थी | बम्बई की हडतालो में सूती मिलो के एक लाख से भी ज्यादा मजदूर काम छोड़कर सडको पर आ गये थे | सरकार जनता पर भीषण दमन का चक्र चला रही थी | अप्रैल 1919 में अमृतसर के जलियावाला बाग़ में जनरल डायर ने सभा में एकत्र हुए जन समूह पर गोलिया बरसाकर निहत्थे आदमियों , औरतो तथा बच्चो का कत्ल कर दिया , पर आन्दोलन रुका नही चलता रहा |
कांग्रेसी वालन्टियर के रूप में
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भगत सिंह का जन्म लाहौर से कुछ मील दूर सिन्दा गाँव में किसानी करने वाले एक सिख परिवार में हुआ था | उनके पिता -- सरदार किशन सिंह आर्य समाज के समाज सुधार आन्दोलन में शामिल होने के कारण प्रसिद्ध थे | भगत सिंह ने अपने स्कूली जीवन में ''रौलेक्ट एक्ट '' के खिलाफ होने वाले जनता के प्रदर्शनों के उथल पुथल भरे दिन देखे थे | अग्रेजी शासन के खिलाफ आम जनता की घृणा ने -- जो अपने -- आप फूट पड़ी थी और जिसका इजहार लाहौर में तीन मील लम्बे जलूस तथा उसके बाद होने वाली सप्ताह भर की शानदार हड़ताल में हुआ था -- स्वाभाविक तौर पर इस बारह वर्ष के बालक के दिमाग पर एक गहरा असर डाला था | उसके कोमल मस्तिष्क पर अपनी गहरी छाप छोड़ी थी |
दो वर्ष बाद भगत सिंह ने असहयोग -- आन्दोलन में एक कांग्रेसी वालंटियर की हैसियत से अपनी सक्रिय राजनैतिक शिक्षार्थी -- जीवन की शुरुआत की | उन्होंने सिख गुरुद्वारे के प्रचार -- आन्दोलन में भी सक्रिय भाग लिया | यह आन्दोलन गुरुद्वारे की विशाल भूमि की सम्पत्ति पर थोड़े से महन्तों का ही सम्पत्ति -- अधिकार बनाये रखने के विरुद्ध , और उसे सारे सिख समुदाय की पंचायत के अधिकार में लाने के लिए था | सत्याग्रह सफल हुआ | पर उसके बाद , सिखों के एक हिस्से में साम्प्रदायिकता बढने लगी , परन्तु भगत सिंह साम्प्रदायिकता से दूर रहे उन्होंने उसमे सहयोग नही दिया | इतनी कुछ सक्रियता के बाद भगत सिंह ने पंजाब नेशनल कालेज में
नाम लिखाया , तब वह अपने संक्षिप्त पर सितारे की तरह झिलमिलाते हुए क्रांतिकारी जीवन के द्वार पर ही थे |
यही
पर वह सुखदेव और उन दूसरे साथियों से मिले जो आगे चलकर क्रांतिकारी कार्य
में उनके साथी बने | इसी दौरान में उत्तर परदेश के क्रान्तिकारियो द्वारा
-- संगठित '' हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी '' से सम्पर्क किया
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'' हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियसन ''
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भगत सिंह और उनके साथियों का सन 1920 में अंग्रेज साम्राज्यवादियो सत्ता के विरुद्ध मोर्चा लेना , भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सदैव ही एक गौरवशाली अध्याय बना रहेगा | एक उच्च आदर्श के लिए अडिग निष्ठा और उस आदर्श को पूरा करने की राह में आई मुसीबतों की कहानी , देश वासियों को सदैव विदेशी आधिपत्य या जनता के किसी भी प्रकार के आर्थिक बंधन का नामो -- निशाँ तक मिटा देने के लिए संघर्ष को प्रेरित करती रहेगी |
उनके बालपन में जनता के संघर्ष
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जनता का गुसा '' रौलेक्ट एक्ट '' के खिलाफ था , जिसके द्वारा अंग्रेज सरकार ने यह कोशिश की थी कि प्रथम विश्व युद्ध के समय की असाधारण दमनकारी धाराओं को युद्ध के बाद भी जारी रखा जाए | सारे देश में उथल पुथल थी , प्रदर्शन हो रहे थे , जगह - जगह हडतालो की बाढ़ आ गयी थी | बम्बई की हडतालो में सूती मिलो के एक लाख से भी ज्यादा मजदूर काम छोड़कर सडको पर आ गये थे | सरकार जनता पर भीषण दमन का चक्र चला रही थी | अप्रैल 1919 में अमृतसर के जलियावाला बाग़ में जनरल डायर ने सभा में एकत्र हुए जन समूह पर गोलिया बरसाकर निहत्थे आदमियों , औरतो तथा बच्चो का कत्ल कर दिया , पर आन्दोलन रुका नही चलता रहा |
कांग्रेसी वालन्टियर के रूप में
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भगत सिंह का जन्म लाहौर से कुछ मील दूर सिन्दा गाँव में किसानी करने वाले एक सिख परिवार में हुआ था | उनके पिता -- सरदार किशन सिंह आर्य समाज के समाज सुधार आन्दोलन में शामिल होने के कारण प्रसिद्ध थे | भगत सिंह ने अपने स्कूली जीवन में ''रौलेक्ट एक्ट '' के खिलाफ होने वाले जनता के प्रदर्शनों के उथल पुथल भरे दिन देखे थे | अग्रेजी शासन के खिलाफ आम जनता की घृणा ने -- जो अपने -- आप फूट पड़ी थी और जिसका इजहार लाहौर में तीन मील लम्बे जलूस तथा उसके बाद होने वाली सप्ताह भर की शानदार हड़ताल में हुआ था -- स्वाभाविक तौर पर इस बारह वर्ष के बालक के दिमाग पर एक गहरा असर डाला था | उसके कोमल मस्तिष्क पर अपनी गहरी छाप छोड़ी थी |
दो वर्ष बाद भगत सिंह ने असहयोग -- आन्दोलन में एक कांग्रेसी वालंटियर की हैसियत से अपनी सक्रिय राजनैतिक शिक्षार्थी -- जीवन की शुरुआत की | उन्होंने सिख गुरुद्वारे के प्रचार -- आन्दोलन में भी सक्रिय भाग लिया | यह आन्दोलन गुरुद्वारे की विशाल भूमि की सम्पत्ति पर थोड़े से महन्तों का ही सम्पत्ति -- अधिकार बनाये रखने के विरुद्ध , और उसे सारे सिख समुदाय की पंचायत के अधिकार में लाने के लिए था | सत्याग्रह सफल हुआ | पर उसके बाद , सिखों के एक हिस्से में साम्प्रदायिकता बढने लगी , परन्तु भगत सिंह साम्प्रदायिकता से दूर रहे उन्होंने उसमे सहयोग नही दिया | इतनी कुछ सक्रियता के बाद भगत सिंह ने पंजाब नेशनल कालेज में
नाम लिखाया , तब वह अपने संक्षिप्त पर सितारे की तरह झिलमिलाते हुए क्रांतिकारी जीवन के द्वार पर ही थे |
यही
पर वह सुखदेव और उन दूसरे साथियों से मिले जो आगे चलकर क्रांतिकारी कार्य
में उनके साथी बने | इसी दौरान में उत्तर परदेश के क्रान्तिकारियो द्वारा
-- संगठित '' हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी '' से सम्पर्क किया
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'' हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियसन ''
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सितम्बर सन 1928 में इन क्रान्तिकारियो का काम एक महत्वपूर्ण मंजिल तक पहुच गया था जब मुख्यत: भगत सिंह , सुखदेव , विजय कुमार सिन्हा और शिव वर्मा के प्रयत्नों से उत्तर प्रदेश, पंजाब , राजपुताना , और बिहार के क्रांतिकारी दलों के प्रतिनिधियों ने दिल्ली में फिरोजशाह कोटला के पास कांफ्रेंस की | दो दिन की बहस के बाद एक नया संगठन बनाया गया जिसका नाम '' दि हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रखा गया | उसकी केन्द्रीय समिति भी चुनी गयी और सभी प्रान्तों से सम्पर्क रखने का कम विजय कुमार सिन्हा और भगत सिंह को सौपा गया इस कांफ्रेंस में समाजवादी जनतांत्रिक राज्य की स्थापना के उद्देश्य का स्वीकृत होना बताता है कि रुसी क्रांति के फलस्वरूप भारत के अधिकाधिक तरुणों में समाजवादी विचारों का प्रसार होता जा रहा था | भगत सिंह कुछ समय के लिए '' कृति '' के दफ्तर से भी काम कर चुके थे | इस समाजवादी पत्र को पंजाब के कम्युनिस्ट नेता सरदार सोहन सिंह '' जोश '' ने शुरू किया था | भारत के साम्राज्यवाद ---- विरोधी संघर्ष में मार्क्सवाद -- लेलिनवाद के अस्त्र को काम में लाने का पूरा अर्थ तो इन क्रान्तिकारियो ने भी अभी तक नही समझा था लेकिन उनमे इस विश्वास ने जड़ जमा ली थी कि मनुष्य द्वारा होने वाले मनुष्य के शोषण को सिर्फ समाजवाद ही खत्म कर सकता है |
उनके इरादे
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क्या भगत सिंह और उनके साथी गोरी चमड़ी वाले अफसरों के खिलाफ थे जो अन्याय करते थे | साण्डर्स को गोली मारने के बाद बाटे हुए उनके पर्चे को देखने पर , कोई भी उन पर ऐसा लाक्षण नही लगा सकता था | असेम्बली भवन में बाटे हुए उनके पर्चे भी यही बताते है | उन पर्चो से मनुष्यों के रक्तपात के प्रति उनकी दिली नफरत और न्याय के लिए उनकी ललक की भी झलक मिलती है | अंग्रेज शासन का हित इसी में था कि जनता के सामने भगत सिंह के कार्यो को दूसरे ही रंगों में पेश किया जाए नही तो उनकी अमानुषिक दण्ड देने पर सारे देश की संवेदना और क्रोध का ज्वार उमड़ पड़ता | इसीलिए उस परचे पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था |
हिन्दुस्तान टाइम्स के एक उत्साही सवाददाता ने किसी तरह विस्फोट के ठीक बाद ही उस परचे की एक प्रति हासिल कर ली और उसी दिन दोपहर को अखबार का एक विशेष संस्करण निकला जिसने उसके विषय की जानकारी को जनता की सम्पत्ति बना दिया |
परचा इस प्रकार था -----
'' बधिरों को सुनाने के लिए एक भारी आवाज की आवश्यकता पड़ती है |
ऐसे ही एक अवसर पर , एक फ्रांसीसी अराजकतावादी शहीद -- भाईयो -- द्वारा कहे गये इन अमर शब्दों के साथ '' हम दृढतापूर्वक अपने इस कार्य को न्यायपूर्ण ठहराते है | ''
'' हम यहाँ सुधारों ( माटेग्यु - चेम्सफोर्ड सुधारों ) के लागू होने के पिछले दस वर्षो के अपमानजनक इतिहास की कहानी को बिना दोहराए और भारत के माथे पर इस सदन -- इस तथा कथित भारतीय प्रालियामेंट द्वारा मढ़े हुए अपमानो का भी बिना कोई जिक्र किये देख रहे है कि इस बार फिर , जबकि साइमन कमीशन से कुछ और सुधारों की आशा करने वाले लोग उन टुकडो के बटवारे के लिए ही एक दूसरे पर भौक रहे है ,, सरकार हमारे उपर पब्लिक सेफ्टी ( जन सुरक्षा ) और ट्रेडर्स डिस्प्यूट्स ( औद्योगिक विवाद ) जैसे दमनकारी बिलों ( विध्येको ) को थोप रही है | ' प्रेस सेडीशन बिल ' को उसने अगली बैठक के लिए रख छोड़ा है | खुले आम काम करने वाले मजदूर नेताओं की अन्धाधुन्ध गिरफ्तारिया साफ़ बताती है कि हवा का रुख किस तरफ है |
इस अत्यंत ही उतेजनापूर्ण परिस्थितियों में पूरी स्जिदगी के साथ अपनी पूरी जिम्मेदारी महसूस करते हुए , ( हि. सो , रि ए ) ने अपनी सेना को यह विशेष कार्य करने का आदेश दिया है जिससे कि इस अपमानजनक नाटक पर परदा गिराया जा सके | विदेशी नौकरशाह शोषक मनमानी कर ले | लेकिन जनता की आँखों के सामने उनका असली रूप प्रकट होना चाहिए |
जनता के प्रतिनिधि अपने चुनाव -- क्षेत्रो में वापिस लौट जाए और जनता को आगामी क्रान्ति के लिए तैयार करे | और सरकार भी यह समझ ले कि असहाय भारतीय जनता की ओर से ' पब्लिक सेफ्टी ' और ट्रेडर्स डिस्प्यूटस ' बिलों तथा लाला लाजपत राय की निर्मम हत्या का विरोध करते हुए हम उस पाठ पर जोर देना चाहते है जो इतिहास अक्सर दोहराया करता है |
यह स्वीकार करते हुए दुःख होता है कि हमे भी जो मनुष्य को जीवन को इतना पवित्र मानते है , जो एक ऐसे वैभवशाली भविष्य का सपना देखते है जब मनुष्य परम शान्ति और पूर्ण स्वतंत्रता भोगेगा , मनुष्य का रक्त बहाने पर विवश होना पड़ा है | लेकिन मनुष्य द्वारा होने वाले मनुष्य के शोषण को असम्भव बनाकर सभी के लिए स्वतंत्रता लाने वाली महान क्रान्ति की वेदी पर कुछ व्यक्तियों का बलिदान अवश्यभावी है |
इन्कलाब जिंदाबाद ------------------------------ ----------- हस्ताक्षर -- बलराज ( कमांडर इन चीफ )
सितम्बर सन 1928 में इन क्रान्तिकारियो का काम एक महत्वपूर्ण मंजिल तक पहुच गया था जब मुख्यत: भगत सिंह , सुखदेव , विजय कुमार सिन्हा और शिव वर्मा के प्रयत्नों से उत्तर प्रदेश, पंजाब , राजपुताना , और बिहार के क्रांतिकारी दलों के प्रतिनिधियों ने दिल्ली में फिरोजशाह कोटला के पास कांफ्रेंस की | दो दिन की बहस के बाद एक नया संगठन बनाया गया जिसका नाम '' दि हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रखा गया | उसकी केन्द्रीय समिति भी चुनी गयी और सभी प्रान्तों से सम्पर्क रखने का कम विजय कुमार सिन्हा और भगत सिंह को सौपा गया इस कांफ्रेंस में समाजवादी जनतांत्रिक राज्य की स्थापना के उद्देश्य का स्वीकृत होना बताता है कि रुसी क्रांति के फलस्वरूप भारत के अधिकाधिक तरुणों में समाजवादी विचारों का प्रसार होता जा रहा था | भगत सिंह कुछ समय के लिए '' कृति '' के दफ्तर से भी काम कर चुके थे | इस समाजवादी पत्र को पंजाब के कम्युनिस्ट नेता सरदार सोहन सिंह '' जोश '' ने शुरू किया था | भारत के साम्राज्यवाद ---- विरोधी संघर्ष में मार्क्सवाद -- लेलिनवाद के अस्त्र को काम में लाने का पूरा अर्थ तो इन क्रान्तिकारियो ने भी अभी तक नही समझा था लेकिन उनमे इस विश्वास ने जड़ जमा ली थी कि मनुष्य द्वारा होने वाले मनुष्य के शोषण को सिर्फ समाजवाद ही खत्म कर सकता है |
उनके इरादे
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क्या भगत सिंह और उनके साथी गोरी चमड़ी वाले अफसरों के खिलाफ थे जो अन्याय करते थे | साण्डर्स को गोली मारने के बाद बाटे हुए उनके पर्चे को देखने पर , कोई भी उन पर ऐसा लाक्षण नही लगा सकता था | असेम्बली भवन में बाटे हुए उनके पर्चे भी यही बताते है | उन पर्चो से मनुष्यों के रक्तपात के प्रति उनकी दिली नफरत और न्याय के लिए उनकी ललक की भी झलक मिलती है | अंग्रेज शासन का हित इसी में था कि जनता के सामने भगत सिंह के कार्यो को दूसरे ही रंगों में पेश किया जाए नही तो उनकी अमानुषिक दण्ड देने पर सारे देश की संवेदना और क्रोध का ज्वार उमड़ पड़ता | इसीलिए उस परचे पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था |
हिन्दुस्तान टाइम्स के एक उत्साही सवाददाता ने किसी तरह विस्फोट के ठीक बाद ही उस परचे की एक प्रति हासिल कर ली और उसी दिन दोपहर को अखबार का एक विशेष संस्करण निकला जिसने उसके विषय की जानकारी को जनता की सम्पत्ति बना दिया |
परचा इस प्रकार था -----
'' बधिरों को सुनाने के लिए एक भारी आवाज की आवश्यकता पड़ती है |
ऐसे ही एक अवसर पर , एक फ्रांसीसी अराजकतावादी शहीद -- भाईयो -- द्वारा कहे गये इन अमर शब्दों के साथ '' हम दृढतापूर्वक अपने इस कार्य को न्यायपूर्ण ठहराते है | ''
'' हम यहाँ सुधारों ( माटेग्यु - चेम्सफोर्ड सुधारों ) के लागू होने के पिछले दस वर्षो के अपमानजनक इतिहास की कहानी को बिना दोहराए और भारत के माथे पर इस सदन -- इस तथा कथित भारतीय प्रालियामेंट द्वारा मढ़े हुए अपमानो का भी बिना कोई जिक्र किये देख रहे है कि इस बार फिर , जबकि साइमन कमीशन से कुछ और सुधारों की आशा करने वाले लोग उन टुकडो के बटवारे के लिए ही एक दूसरे पर भौक रहे है ,, सरकार हमारे उपर पब्लिक सेफ्टी ( जन सुरक्षा ) और ट्रेडर्स डिस्प्यूट्स ( औद्योगिक विवाद ) जैसे दमनकारी बिलों ( विध्येको ) को थोप रही है | ' प्रेस सेडीशन बिल ' को उसने अगली बैठक के लिए रख छोड़ा है | खुले आम काम करने वाले मजदूर नेताओं की अन्धाधुन्ध गिरफ्तारिया साफ़ बताती है कि हवा का रुख किस तरफ है |
इस अत्यंत ही उतेजनापूर्ण परिस्थितियों में पूरी स्जिदगी के साथ अपनी पूरी जिम्मेदारी महसूस करते हुए , ( हि. सो , रि ए ) ने अपनी सेना को यह विशेष कार्य करने का आदेश दिया है जिससे कि इस अपमानजनक नाटक पर परदा गिराया जा सके | विदेशी नौकरशाह शोषक मनमानी कर ले | लेकिन जनता की आँखों के सामने उनका असली रूप प्रकट होना चाहिए |
जनता के प्रतिनिधि अपने चुनाव -- क्षेत्रो में वापिस लौट जाए और जनता को आगामी क्रान्ति के लिए तैयार करे | और सरकार भी यह समझ ले कि असहाय भारतीय जनता की ओर से ' पब्लिक सेफ्टी ' और ट्रेडर्स डिस्प्यूटस ' बिलों तथा लाला लाजपत राय की निर्मम हत्या का विरोध करते हुए हम उस पाठ पर जोर देना चाहते है जो इतिहास अक्सर दोहराया करता है |
यह स्वीकार करते हुए दुःख होता है कि हमे भी जो मनुष्य को जीवन को इतना पवित्र मानते है , जो एक ऐसे वैभवशाली भविष्य का सपना देखते है जब मनुष्य परम शान्ति और पूर्ण स्वतंत्रता भोगेगा , मनुष्य का रक्त बहाने पर विवश होना पड़ा है | लेकिन मनुष्य द्वारा होने वाले मनुष्य के शोषण को असम्भव बनाकर सभी के लिए स्वतंत्रता लाने वाली महान क्रान्ति की वेदी पर कुछ व्यक्तियों का बलिदान अवश्यभावी है |
इन्कलाब जिंदाबाद ------------------------------
भगत सिंह का दर्शन -- के क्रांति और बमो के संदर्भ में
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भगत सिंह क्रान्ति को किस रूप में समझते थे ?
दिल्ली सेशन जज द्वारा आजन्म कैद की सजा के फैसले के खिलाफ लाहौर हाईकोर्ट में अपनी अपील की सुनवाई के समय उन्होंने अदालत में कहा था : -- '' क्रान्ति संसार का नियम है , वह मानवीय प्रगति का रहस्य है | लेकिन '' उनमे रक्तरंजित संघर्ष बिलकुल लाजिमी नही है और न उसमे व्यक्तिगत प्रति -- हिंसा की ही कोई जगह है | वह बम और पिस्तौल का सम्प्रदाय नही है |
लेकिन तब भगत सिंह और उनकी पार्टी द्वारा संगठित साण्डर्स गोलीकांड और तमाम बमो के विस्फोटो का क्या अर्थ लगाया जाना चाहिए ? साण्डर्स से असेम्बली के बम फोड़ने के बाद बाटे गये परचे इन कृत्यों के कारणों को बताते है | दिल्ली लाहौर की अदालतों में दिए गये भगत सिंह के वक्तव्य में उन्हें विस्तृत रूप से रखा गया था | उन्होंने बिलकुल स्पष्ट तौर पर कहा था वह और उनके साथी विदेशी शासन के कसमसिया दुश्मन होते हुए भी किसी व्यक्ति के प्रति अंधी और कुत्सित घृणा की भावना से प्रेरित नही थे |
बटुकेश्वर दत्त के साथ , एक संयुक्त वक्तव्य में उन्होंने स्पष्ट रूप से घोषित किया था :: '' हम मानवीय जीवन को अकथनीय पवित्रता देते है | मानवता की सेवा किसी को हानि पहुचाने की अपेक्षा शीघ्र ही अपने स्वंय के जीवन को होम कर देगे | हम समाजवादी सेना के भाड़े के सैनिको के तरह नही है , जिन्हें बिना किसी अफ़सोस के हत्या करने का अनुशासन सिखाया जाता है | हम मानवीय जीवन का आदर करते है जहा तक बनता है उसे बचाने के कोशिश करते है | इस पर भी , हम असेम्बली भवन में जानबूझकर बम फेकने के काम को स्वीकार करते है | तथ्य स्वंय ही अपनी कहानी कहते है और उद्देश्यों की परख उस काम प्रणाम को देखकर ही करनी चाहिए , न कि कल्पित परिस्थितियों और मनमानी धारणाओं के आधार पर |
'' सरकारी पक्ष के विशेषज्ञ के सबूतों के बावजूद , असेम्बली भवन में फेके जाने वाले बमो से आधे दर्जन से भी कम लोगो को कुछ खरोचे भर लगी यदि उन बमो में कुछ ज्यादा क्लोरेट पोटाश का पूत दे दिया जाता और जेल किस्म की पिक्रेट ( एसिड ) का भी मिश्रण होता , तो उनसे चारो ओर का टीम -- ताम ही चकनाचूर हो जाता और विस्फोट के कुछ गजो के दायरे में तमाम लोग धाराशायी हो जाते | यदि , उन बमो में कुछ दूसरे अधिक विस्फोटक प्रदार्थ व नाशकारी चहरे या सुइया आदि भी मिला दी जाती तो वह विधान सभा के अधिकांश सदस्यों को खत्म करने के लिए काफी होते | इस पर भी हम उन्हें अफसरों के बैठने के स्थान पर फेंक सकते थे जहा बहुत ख़ास -- ख़ास लोग ठसाठस भरे थे | और अंत में हम उन बमो का निशाना सर जान साइमन को भी बना सकते थे जो उस समय अध्यक्ष की गैलरी में बैठा था , जिसके अभागे कमिशन से सभी जिम्मेदार आदमी नफरत करते थे | लेकिन यह सब कुछ तो हमारा उद्देश्य नही था | बमो ने ठीक उतना ही काम किया जितने के लिए वे बनाये गये थे | जिसे चमत्कार कहा जाता है वह कुछ और नही , एक समझा बुझा हुआ उद्देश्य ही था , जिसके कारण वे हानिरहित स्थानों पर ही फेंके गये थे | ''
अपने मुकदमे में बहस करते हुए उन्होंने यह भी कहा था कि विठ्ठल भाई पटेल , पंडित मोतोलाल नेहरु , पंडित मदन मोहन मालवीय तथा दूसरे आदरणीय नेताओ पर संहारक बम फेकने की बात वे सपने में भी नही सोच सकते थे -- यह अलग बात थी कि क्रांतिकारी उन नेताओं के विचारो से सहमत नही थे | उनके साधनों में विश्वास नही करते थे | भगत सिंह ने मिस्टर जसिस्ट फोर्ड से पूछा था : '' यदि एक आदमी इस तरकीब से एक बम बनाता है कि उससे किसी को भी कोई गम्भीर चोट नही लग सकती और वह उसके फटने के वक्त ज्यादा से ज्यादा सावधानी बरतता है कि कोई ऐसी चोट न लग सके , तब भी क्या वह आदमी हत्या का पर्यटन करने का अपराधी होगा ?
मिस्टर फोर्ड : '' तुमको यह साबित करना होगा कि वह बम इसी प्रकार का था , और उसको ऐसे ढंग से फेंका गया था कि किसी आदमी के जीवन को खतरा पैदा न हो | "
भगत सिंह : '' हम उन बमो की सीमित शक्ति जानते थे , और किसी को भी चोट न लगने देने के लिए हमने हर संभव सावधानी बरती थी | ''
उन्होंने आगे कहा कि जनरल दायर ने जालियावाला बाग़ में सैकड़ो आदमियों की हत्या की थी , लेकिन उस पर कभी भी मुकदमा नही चलाया गया था | इसके विपरीत उसके देश के लोगो ने उसे लाखो का इनाम दिया था | वह कहते गये उसकी तुलना में
'' हम एक कमजोर बम बनाते है और जानबूझकर उसे एक खाली स्थान पर फेंकते है | पर हम , पर मुकदमा चलाया जाता है और आजन्म कैद की सजा सुनाई जाती है | किसी की हत्या करने का हमारा इरादा नही था | द्देष शब्द को निकल दीजिये बस मुझे संतोष हो जाएगा | हमारा एक निश्चित आदर्श है हम अपने आदर्श को पाने के लिए कुछ साधन अपनाए थे | ''
भगत सिंह को ऐसा कोई बचकाना भ्रम नही था कि बमो से ही क्रान्ति आ जायेगी | या ऐसा करना क्रान्ति की ओर एक आगे बढा हुआ कदम होगा | परतंत्र मातृभूमि की वेदना ने उनके हृदय में विद्रोह की भावना जगा दी | बमो का प्रयोग देशवासियों की हृदय -- विदारक पीड़ा के प्रति उनके '' क्षोभ का अभिव्यक्तिकरण ही था |
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भगत सिंह क्रान्ति को किस रूप में समझते थे ?
दिल्ली सेशन जज द्वारा आजन्म कैद की सजा के फैसले के खिलाफ लाहौर हाईकोर्ट में अपनी अपील की सुनवाई के समय उन्होंने अदालत में कहा था : -- '' क्रान्ति संसार का नियम है , वह मानवीय प्रगति का रहस्य है | लेकिन '' उनमे रक्तरंजित संघर्ष बिलकुल लाजिमी नही है और न उसमे व्यक्तिगत प्रति -- हिंसा की ही कोई जगह है | वह बम और पिस्तौल का सम्प्रदाय नही है |
लेकिन तब भगत सिंह और उनकी पार्टी द्वारा संगठित साण्डर्स गोलीकांड और तमाम बमो के विस्फोटो का क्या अर्थ लगाया जाना चाहिए ? साण्डर्स से असेम्बली के बम फोड़ने के बाद बाटे गये परचे इन कृत्यों के कारणों को बताते है | दिल्ली लाहौर की अदालतों में दिए गये भगत सिंह के वक्तव्य में उन्हें विस्तृत रूप से रखा गया था | उन्होंने बिलकुल स्पष्ट तौर पर कहा था वह और उनके साथी विदेशी शासन के कसमसिया दुश्मन होते हुए भी किसी व्यक्ति के प्रति अंधी और कुत्सित घृणा की भावना से प्रेरित नही थे |
बटुकेश्वर दत्त के साथ , एक संयुक्त वक्तव्य में उन्होंने स्पष्ट रूप से घोषित किया था :: '' हम मानवीय जीवन को अकथनीय पवित्रता देते है | मानवता की सेवा किसी को हानि पहुचाने की अपेक्षा शीघ्र ही अपने स्वंय के जीवन को होम कर देगे | हम समाजवादी सेना के भाड़े के सैनिको के तरह नही है , जिन्हें बिना किसी अफ़सोस के हत्या करने का अनुशासन सिखाया जाता है | हम मानवीय जीवन का आदर करते है जहा तक बनता है उसे बचाने के कोशिश करते है | इस पर भी , हम असेम्बली भवन में जानबूझकर बम फेकने के काम को स्वीकार करते है | तथ्य स्वंय ही अपनी कहानी कहते है और उद्देश्यों की परख उस काम प्रणाम को देखकर ही करनी चाहिए , न कि कल्पित परिस्थितियों और मनमानी धारणाओं के आधार पर |
'' सरकारी पक्ष के विशेषज्ञ के सबूतों के बावजूद , असेम्बली भवन में फेके जाने वाले बमो से आधे दर्जन से भी कम लोगो को कुछ खरोचे भर लगी यदि उन बमो में कुछ ज्यादा क्लोरेट पोटाश का पूत दे दिया जाता और जेल किस्म की पिक्रेट ( एसिड ) का भी मिश्रण होता , तो उनसे चारो ओर का टीम -- ताम ही चकनाचूर हो जाता और विस्फोट के कुछ गजो के दायरे में तमाम लोग धाराशायी हो जाते | यदि , उन बमो में कुछ दूसरे अधिक विस्फोटक प्रदार्थ व नाशकारी चहरे या सुइया आदि भी मिला दी जाती तो वह विधान सभा के अधिकांश सदस्यों को खत्म करने के लिए काफी होते | इस पर भी हम उन्हें अफसरों के बैठने के स्थान पर फेंक सकते थे जहा बहुत ख़ास -- ख़ास लोग ठसाठस भरे थे | और अंत में हम उन बमो का निशाना सर जान साइमन को भी बना सकते थे जो उस समय अध्यक्ष की गैलरी में बैठा था , जिसके अभागे कमिशन से सभी जिम्मेदार आदमी नफरत करते थे | लेकिन यह सब कुछ तो हमारा उद्देश्य नही था | बमो ने ठीक उतना ही काम किया जितने के लिए वे बनाये गये थे | जिसे चमत्कार कहा जाता है वह कुछ और नही , एक समझा बुझा हुआ उद्देश्य ही था , जिसके कारण वे हानिरहित स्थानों पर ही फेंके गये थे | ''
अपने मुकदमे में बहस करते हुए उन्होंने यह भी कहा था कि विठ्ठल भाई पटेल , पंडित मोतोलाल नेहरु , पंडित मदन मोहन मालवीय तथा दूसरे आदरणीय नेताओ पर संहारक बम फेकने की बात वे सपने में भी नही सोच सकते थे -- यह अलग बात थी कि क्रांतिकारी उन नेताओं के विचारो से सहमत नही थे | उनके साधनों में विश्वास नही करते थे | भगत सिंह ने मिस्टर जसिस्ट फोर्ड से पूछा था : '' यदि एक आदमी इस तरकीब से एक बम बनाता है कि उससे किसी को भी कोई गम्भीर चोट नही लग सकती और वह उसके फटने के वक्त ज्यादा से ज्यादा सावधानी बरतता है कि कोई ऐसी चोट न लग सके , तब भी क्या वह आदमी हत्या का पर्यटन करने का अपराधी होगा ?
मिस्टर फोर्ड : '' तुमको यह साबित करना होगा कि वह बम इसी प्रकार का था , और उसको ऐसे ढंग से फेंका गया था कि किसी आदमी के जीवन को खतरा पैदा न हो | "
भगत सिंह : '' हम उन बमो की सीमित शक्ति जानते थे , और किसी को भी चोट न लगने देने के लिए हमने हर संभव सावधानी बरती थी | ''
उन्होंने आगे कहा कि जनरल दायर ने जालियावाला बाग़ में सैकड़ो आदमियों की हत्या की थी , लेकिन उस पर कभी भी मुकदमा नही चलाया गया था | इसके विपरीत उसके देश के लोगो ने उसे लाखो का इनाम दिया था | वह कहते गये उसकी तुलना में
'' हम एक कमजोर बम बनाते है और जानबूझकर उसे एक खाली स्थान पर फेंकते है | पर हम , पर मुकदमा चलाया जाता है और आजन्म कैद की सजा सुनाई जाती है | किसी की हत्या करने का हमारा इरादा नही था | द्देष शब्द को निकल दीजिये बस मुझे संतोष हो जाएगा | हमारा एक निश्चित आदर्श है हम अपने आदर्श को पाने के लिए कुछ साधन अपनाए थे | ''
भगत सिंह को ऐसा कोई बचकाना भ्रम नही था कि बमो से ही क्रान्ति आ जायेगी | या ऐसा करना क्रान्ति की ओर एक आगे बढा हुआ कदम होगा | परतंत्र मातृभूमि की वेदना ने उनके हृदय में विद्रोह की भावना जगा दी | बमो का प्रयोग देशवासियों की हृदय -- विदारक पीड़ा के प्रति उनके '' क्षोभ का अभिव्यक्तिकरण ही था |
दिल्ली के अदालत में उन्होंने कहा था
'' समाज का वास्तविक पोषक मजदूर है | जनता का प्रभुत्व मजदूरो का अंतिम
भाग्य है | इन आदर्शो और विश्वासों के लिए , हम हर उस कष्ट का स्वागत
करेंगे जिसकी हमे सजा दी जायेगी | हम अपनी तरुणाई को इसी क्रान्ति की वेदी
पर होम करने लाये है क्योकि इतने गौरवशाली उद्देश्य के लिए कोई भी बलिदान
बहुत बड़ा नही है | क्रान्ति के आगमन की प्रतीक्षा करने में हमे संतोष है ''
|
उनके विचार से क्रान्ति का उद्देश्य '' स्पष्ट रूप से अन्याय पर खड़ी हुई वर्तमान व्यवस्था '' को बदलना था | यह अन्याय किस जगह पर होता है ?
'' समाज के सबसे आवश्यक तत्व होते हुए भी उत्पादन करने वालो या मजदूरो से उनके शोषक उनकी मेहनत का फल लूट लेते है , और उनको प्रारम्भिक अधिकारों से भी वंचित कर देते है | एक ओर तो सभी के लिए अनाज पैदा करने वाले किसानो के परिवार भूखो मरते है सारे संसार के बाजारों को सूत जुटाने वाला जुलाहा अपना और अपने बच्चो का तन ढकने के लिए भी पूरा कपडा नही जूता पता शानदार महल खड़े करने वाले राज लुहार और बढ़ई झोपड़ियो में ही बसर करते और मर जाते है और दूसरी ओर पूजीपति शोषक -- समाज की जोंके -- अपनी संको पर ही करोड़ो बहा देते है | '' भगत सिंह ने कहा था कि इसीलिए एक उग्र परिवर्तन की आवश्यकता थी और लोग भी महसूस कर चुके थे उनका कर्तव्य था कि '' एक समाजवादी आधार पर समाज का पुनर्गठन करे | ''
'' जब तक यह नही किया जता और मनुष्य द्वारा होने वेक मनुष्य के , तथा साम्राज्यवाद का चोगा पहने हुए देश द्वारा देश के शोषण का अंत नही किया जता , मानवता की इस मुसीबत और खूनखराबे को , जो आज उसे धमका रही है , नही रोका जा सकता | दरअसल इसके बिना युद्धों को अंत करने और विश्व व्यापी शान्ति के युग को लाने की सारी बाते ऐसी व्यवस्था की स्थापना जिसमे इस प्रकार के हडकम्प का भय न हो और जिसमे मजदुर वर्ग के प्रभुत्व को मान्यता दी जाए और उसके फलस्वरूप विश्व संघ पूजीवाद के बन्धनों , दुखो तथा युद्धों की मुसीबतों से मानवता का उद्धार कर सके | '' आज भी भगत सिंह के विचार प्रासंगिक है |
सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक
उनके विचार से क्रान्ति का उद्देश्य '' स्पष्ट रूप से अन्याय पर खड़ी हुई वर्तमान व्यवस्था '' को बदलना था | यह अन्याय किस जगह पर होता है ?
'' समाज के सबसे आवश्यक तत्व होते हुए भी उत्पादन करने वालो या मजदूरो से उनके शोषक उनकी मेहनत का फल लूट लेते है , और उनको प्रारम्भिक अधिकारों से भी वंचित कर देते है | एक ओर तो सभी के लिए अनाज पैदा करने वाले किसानो के परिवार भूखो मरते है सारे संसार के बाजारों को सूत जुटाने वाला जुलाहा अपना और अपने बच्चो का तन ढकने के लिए भी पूरा कपडा नही जूता पता शानदार महल खड़े करने वाले राज लुहार और बढ़ई झोपड़ियो में ही बसर करते और मर जाते है और दूसरी ओर पूजीपति शोषक -- समाज की जोंके -- अपनी संको पर ही करोड़ो बहा देते है | '' भगत सिंह ने कहा था कि इसीलिए एक उग्र परिवर्तन की आवश्यकता थी और लोग भी महसूस कर चुके थे उनका कर्तव्य था कि '' एक समाजवादी आधार पर समाज का पुनर्गठन करे | ''
'' जब तक यह नही किया जता और मनुष्य द्वारा होने वेक मनुष्य के , तथा साम्राज्यवाद का चोगा पहने हुए देश द्वारा देश के शोषण का अंत नही किया जता , मानवता की इस मुसीबत और खूनखराबे को , जो आज उसे धमका रही है , नही रोका जा सकता | दरअसल इसके बिना युद्धों को अंत करने और विश्व व्यापी शान्ति के युग को लाने की सारी बाते ऐसी व्यवस्था की स्थापना जिसमे इस प्रकार के हडकम्प का भय न हो और जिसमे मजदुर वर्ग के प्रभुत्व को मान्यता दी जाए और उसके फलस्वरूप विश्व संघ पूजीवाद के बन्धनों , दुखो तथा युद्धों की मुसीबतों से मानवता का उद्धार कर सके | '' आज भी भगत सिंह के विचार प्रासंगिक है |
सुनील दत्ता - स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक
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