बैंक के बढ़ते ब्याज दर का रोना
दिग्गज घरेलू कम्पनियों के पास अकूत नकदी के संदर्भ में
देश की वर्तमान आर्थिक सुस्ती या मंदी की चर्चाओं प्रचारों में विभिन्न क्षेत्रो में पूंजी निवेश की कमी का रोना रोया जा रहा है | वैश्विक मंदी खासकर यूरोपीय देशो में मंदी के चलते देश में विदेशी निवेश की कमी को और बैंको के ब्याज दर बढने से देशी कम्पनियों द्वारा निवेश में कमी को खासतौर प्रचारित किया जाता रहा है | फिलहाल अब विदेशी निवेशको को छोडकर देश की दिग्गज कम्पनियों के बारे में सूचनाये -सच्चाई जाने -दिनाक 7 मई के एक हिन्दी दैनिक ने 'अकूत नकदी से भरी दिग्गज घरेलू कम्पनियों की तिजोरी '' शीर्षक के साथ यह सूचनाये दी है की घरेलू बाजार में 10 कम्पनियों के पास करीब 2 .34 लाख करोड़ की नकदी है | इसमें एक तिहाई ( करीब 70 .252 करोड़ रूपये की ) नकदी तो रिलायंस इण्डस्ट्रीज के पास है | कम्पनी की यह नकदी उसकी सालाना आय की 19 .5 % है | इसी तरह से 'इनफ़ोसिस " नाम की दूसरी दिग्गज कम्पनी के पास 20 .591 करोड़ रूपये की नगदी मौजुद है | यह कम्पनी के सालाना बिक्री की 61 % है | सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कम्पनियों के बहुप्रचारित घाटे के विपरीत तथ्यगत सच्चाई यह है की आयल इंडिया के पास हजारो करोड़ के लाभ के साथ सितम्बर 2011 में 72 .598 करोड़ रूपये की नकदी मौजूद थी | समाचार पत्रों की सूचनाओं के अनुसार सितम्बर 2011 तक कोल इंडिया के पास 54 हजार 980 करोड़ ओ . एक .जी . सी .के पास 17 हजार 914 करोड़ , सेल के पास 15 हजार 658 करोड़ और टाटा मोटर्स के पास 15 हजार 382 करोड़ रूपये की नकदी मौजूद है | स्वाभाविक है की अन्य दिग्गज कम्पनियों के पास नकदी भंडार जरुर होगा जिसकी सूचनाये अभी नही मिली | कई कम्पनियों व उच्च स्तरीय मैनेजिग डायरेक्टर ने यह स्वीकार किया है की बड़ी कम्पनियों के पास नकदी इसलिए है की वे बड़ी परियोजनायो की शुरुआत नही कर पा रही है | अगर मैनेजिग डायरेकटरो की यह बात मान ली जाए तो भी यह मुद्दा जरुर खड़ा रहेगा की देशी कम्पनियों के पास भारी नकदी जमा होने के वावजूद उसके द्वारा देश में निवेश के लिए बैंक के ब्याज दर वृद्धि का हल्ला क्यों मचाया जा रहा है ? क्या ऐसा करना इन कम्पनियों द्वारा देश की अर्थव्यवस्था में पूंजी निवेश को बढाने से अपने आप को बचाने का द्योतक नही है ?
असल मामला भी यही है | और वह इसलिए है की दिग्गज कम्पनिया अपने नकदी का इस्तेमाल विदेशो में विदेशी सम्पत्तियों , कम्पनियों आदि के अधिग्रहण में लगाने का सुअवसर तलाश रही है | समाचार पत्र में ओ । एन । जी. सी .के सी . एम् डी. सुधीर वासुदेव ने खुलकर कहा है की '' हमारे पास 11 .000 करोड़ की नगदी है | इसका इस्तेमाल कम्पनी विदेश में अधिग्रहण के लिए कर सकती है |" यह है देश की दिग्गज कम्पनियों का राष्ट्र प्रेम और आर्थिक सुस्ती या मंदी को हल करने के बारे में उनकी चिंताओं की असलियत | निवेश की कमी के लिए बैंक के बढ़ते ब्याज दर पर रोने- धोने या हल्ला मचाने की असलियत | ऐसा नही है की इन सच्चाइयो से देश के उच्च कोटि के अर्थशास्त्री एवं प्रचार माध्यमिगण अन्जान है| वे सब कुछ जानते है | जानने के बाद भी वे कम्पनियों द्वारा आर्थिक सुस्ती के लिए सरकार की नीतिगत सुधारों की सुस्ती के साथ -- साथ बैंको के बढ़ते रहे ब्याज दर से निवेश की कमी पर ही लिखते --- बोलते रहते है | उसे ही प्रचारित करने में लगे रहते है | फिर सब कुछ जानते हुए भी देश की सरकारे उनकी आलोचनाओं पर न केवल मौन साधे रहती है बल्कि उन आलोचनाओं के अनुसार ही जनविरोधी नीतियों आदि को आगे बढाती जा रही है | साथ ही बैंको द्वारा ब्याज दर को कम किए जाने का आश्वासन भी देती रहती है | जैसा की वित्त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने अभी अपने हाल के बयानों में भी दिया भी है | जाहिर सी बात है की धनाढ्य कम्पनियों को राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय बैंको से यह धन देश की मंदी पड़ती अर्थव्यवस्था को ठीक करने और उसे गति देने के लिए नही बल्कि विदेशो में अपनी पूंजियो परिसम्पत्तियों के और ज्यादा फैलाव बढाव के लिए चाहिए | उसी के लिए वे अपने नकदी के भंडार को बचाए भी हुए है | यह है आर्थिक मंदी के बहुप्रचारित अभियान में बैंको के बढ़ते ब्याज दर से निवेश की कमी का हल्ला मचाने की असलियत.
-सुनील दत्ता
पत्रकार
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